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26.9.11


महंगाई मार गई
दिनांक -26/9/2001
सच्चे अर्थो मे एक अर्थशात्र के अच्छे जानकार और पत्रकार की तरह महंगाई पर कलम चला देना एक अलग बात है, लेकिन आम आदमीयो के समझ से यह दूर की बात है, कि महंगाई को कम करने के लिए पिछले दो सालो मे रिजर्व बैंक ने बारह बार ब्याज दरो मे लगातार वृद्धि की अलबत्ता महांगाई कम होने के बजाय मकान के लोन पर ईएमआई डेढ़ गुनी बढ़ गई उधर प्रेट्रोल के दाम बढ़ जाने की वजह से अन्य सामानो के खुदरा मूल्यों मे बृद्धि होना स्वाभाविक है जब से केंन्द्र मे संप्रग सरकार आई तब से केबल प्रेट्रोल के दाम दुगनी हो गई। जबकि एक तरफ हमारे देश के प्रधान मंत्री जी स्वंम महान अर्थ शात्री हैं, साथ ही साथ मोंटेक सिंह आलूवालिया जैसे दिग्गज लोग के बैठे रहने के बावजूद महंगाई कम होने की अपेक्षा और बढ़ती चली गई। फिर भी सरकार महंगाई घटाने का दावा ठोक रही है। यह बात समझ से परे है, कि अगर प्रट्रोल के दाम बढ़े तो महंगाई बढ़ना निश्चित है, उधर महंगाई बढ़ी नही कि रिजर्व बैंक अपने ब्याज दरें जरुर बढ़ाएगी। यदि हम देखें तो कह सकते हैं, कि कांग्रेस की सरकार जब-जब केंन्द्र मे रही तब-तब महंगाई मे इजाफा हुआ। इस तरह वह हमेशा यह ढींढोरा पिटती रही कि आने वाले दिनो मे महंगाई पर काबू पा लिया जाएगा, पता नही कब तक ऐसी झूठे आस्वाशन के बलबूते कोई सरकार और उसके नेता लोग जनता को मूर्ख बनाती रहेगी और लोग मूर्ख बनते रहेंगे। अब ऐसे मे यह लगता है कि सभी पार्टीयाँ गरिबी हटाओ के नारे को अगला चुनावी मुद्दा बनाने वाले हैं। दूसरी तरफ सरकार द्वारा सर्वोच्च न्यायालय मे गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या तय करने संम्बन्धी दाखिल किए गए हलफनामे मे पच्चीस रुपये प्रतिदिन खर्च करने वाले व्यक्ति को गरीब नही माना गया है। ऐसा कहना निश्तित रुप से गरीबो के पिठ पर छुरा घोंपने जैसा है। इस तरह की घोषणा करना सरकार द्वारा चलाए जा रहे गरीबी उन्मूलन करने जैसी कार्यक्रमों की असफलता को ही दर्शाती है। जहां आज देश की गरीब जनता 32 रुपए प्रतिदिन खर्च यानी कि एक डालर से भी कम मे अपना जीवन-निर्वाह करने के लिए मजबूर है, और इतने कम रुपयों मे जीवन-निर्वाह करने के फलस्वरुप भूखे या आधा पेट भोजन कर कुपोषण के शिकार बन जाते हैं, और इस कारण देश के बहुसंख्यक गरीब लोग तरह-तरह के बीमारीयों से घीरे रहते हैं। सरकारी हलफनामे में सिर पर छत रखने के खर्च को भी शामिल नही किया गया है। दूसरी ओर हमारे माननीय संसद लोग के संसद कैंटीन मे 32 रुपये लेकर 35 रुपये मे दो वक्त का खाना उन्हें उपलब्ध है। जिसमे सब्जी,दाल,रायता,कड़ी,चावल समेत करीब दस तरह के व्यंजन होते है इसी तरह रेलवे,योजना आयोग समेत केंद्रीय महकमों की कैंटीनो मे 12 रुपये से लेकर 15 रुपयों मे थाली मिलती है। इसलिए सरकार का यह मानना कि 32 रुपयों मे आम व्यक्ति को भी ऐसा भोजन उपलब्ध हो सकता है. इस परिपेक्ष मे यही कहाना पड़ता है कि 32 रुपये भोजन कर जीवन निर्वाह करने के लिए सभी गरीब व्यक्तियों को सांसद बनना पड़ेगा । इन सब बातों से तो यही लगता है, कि सरकार गरीब लोग को फुटपाथ पर ही रहेने देना चाहती है, गरीब और गरीब हो जाए। जिससे लोगों पर और अधिक दिनो तक राज किया जा सके। जब तक इस देश मे गरीब और गरीबी रहेगी तब तक उनके वोट बैंक भी मजबूत रहेगें गरीबो से इससे बड़ा छल और उनका अपमान और क्या हो सकता है ?       

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