वाणी की अनूठी महिमा है .यह साली जीभ भी कैसे कैसे रंग दिखा जाती है .बिना हड्डी के लपलपाती
रहती है .वाणी के कारण मुर्ख और बुद्धिमान शब्द बने हैं .थोड़ी सी भी चूक एक बड़े हादसे में तब्दील हो
जाती है.वाणी आशिको के लिए वरदान भी है और व्यापारी के लाभ का कारण भी.नेता लोग जो घाघ होते
हैं वो तो बहुत कंजूसी से वाणी उपयोग करते हैं मगर चुनाव के समय वाणी का खुलकर उपयोग करते हैं .
वाणी जब भले आदमी के मुखारविंद से निकलती है तो जनमानस पर छाप छोड़ जाती है लेकिन जब अंह
और गर्व से चूर आदमी के मुंह से निकलती है तो जन जन की हथेली की छाप चेहरे पर छोड़ जाती है .
जाती है.वाणी आशिको के लिए वरदान भी है और व्यापारी के लाभ का कारण भी.नेता लोग जो घाघ होते
हैं वो तो बहुत कंजूसी से वाणी उपयोग करते हैं मगर चुनाव के समय वाणी का खुलकर उपयोग करते हैं .
वाणी जब भले आदमी के मुखारविंद से निकलती है तो जनमानस पर छाप छोड़ जाती है लेकिन जब अंह
और गर्व से चूर आदमी के मुंह से निकलती है तो जन जन की हथेली की छाप चेहरे पर छोड़ जाती है .
वाणी के प्रभाव से कुछ दिनों पहले बाबा फँस गए थे .योग से तंदुरुस्ती का विज्ञापन बढ़िया चल निकला
तो भोले भक्तो को मखनिया वाणी से प्रभावित कर ऊँची कुर्सी पर लोटने के सपने देखने लगे मगर वाणी
कब फिसली कि बेचारे घर के रहे न घाट के .
तो भोले भक्तो को मखनिया वाणी से प्रभावित कर ऊँची कुर्सी पर लोटने के सपने देखने लगे मगर वाणी
कब फिसली कि बेचारे घर के रहे न घाट के .
वाणी जब निस्वार्थ भाव से निकलती है तब अमृत बन जाती है .एक दादाजी बुढापे में भी ऐसा बोले कि
शक्तिशाली अजगर भी विकल्प हीन हो दंडवत हो गया था .यह अजगर भी दौ मुंह वाला था ,दोनों मुंह से
एक साथ दोनों बातें बोलता था .कभी हाँ कभी ना के कारण अजगर कुमार मखनिया बेबी बन गया था .
वाणी के प्रभाव से अफसर भी अछूते नहीं हैं ,अपने अधीनस्थ से गुपचुप में ऐसी वाणी बुलवाई कि चक्की
पीसने लगे, हवा का रुख राजा की और है मगर वो इसे कब मानने वाले ,पिल पड़े राजा पर और लगे अंट
संट बकने .नतीजा तो फिर वैसा ही आना था और आया भी .
बुड्ढ़े दादाजी के बोल पर पुरे देशवासियों को थिरकता देख छोटे दादाजी में भी हवा भर गयी .वो बोले -
बड़े दादा तो कुछ साल से वाणी उपयोग कर रहे हैं और सुपर हिट हो गए हैं जबकि मैं तो कई दशकों से
वाणी विलास करता आया हूँ ,राम को रिझाता आया हूँ ,बाल वाणी विलास से निरमा की सफेदी ले चुके
हैं मगर बात अभी तक बनी नहीं सो हठ करके बैठ गए कि मुझे एक मौका दे मैं फिर से वाणी के तेज
से महल जीतना चाहता हूँ .जो बात बड़े दादा आगे करने वाले हैं वो मैं घोड़े पर बैठकर अभी कहना चाहता
हूँ .सबने डांटा,डपटा मगर वो नहीं माने .आखिर हारकर पितामह से बात मनवा गए और वाणी से चेतना
जगाने लगे
वाणी तो सच्चे संतो के मुंह से सुनी जाती है और ऐसी वाणी दिल तथा दिमाग को खुराक भी देती है .माया
वाले बाबा भी जै रामजी की बोल के कथा के अमृत में बबलू की कहानी कह डालते हैं .अब बेचारा बबलू
क्या जबाब दे ? कभी कभी ही तो बबलू बोलता है और बोलते ही टांग खिचाई हो जाती है .मगर बबलू की
बात बबलू के कबीले-कुनबे के लोग सर माथे पर रख लेते हैं आखिर मदारियों को पेट जो भरना है
बड़े दादाजी की अंगुली पकड़ कर एक नौसिखिया तलवार की धार पर वैतरणी पार कर गया .जब वैतरणी
पार हो गयी और दादा ने अंगुली छोड़ी तो साहबजादे ने झोश में आकर अंगुली माँ के माथे की और ताक
दी.कुछ नासमझ बन्दों को नागवार गुजरा और साहबजादे को प्रेक्टिकल सीख दे डाली ,साहबजादे ने
फरमाया- मैं दादा के साथ रह चूका हूँ तुमने उनकी बात मानी और मशाल जला दी ,अब मेने अकेले में
वाणी विलास किया तो मशाल से मेरी मूंछ जला दी .ऐसा करना नाइंसाफी है कि नहीं .
इन्हें कौन समझाए सा'ब कि माँ कि गाली कौन खुद्दार बच्चा सहन कर लेगा .मगर हम तो इस वाणी
विलास में ना पड़ेंगे क्योंकि कबीर ने कहा था -
ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय
ओरन कुं शीतल करे आपहुं शीतल होय
जगाने लगे
वाणी तो सच्चे संतो के मुंह से सुनी जाती है और ऐसी वाणी दिल तथा दिमाग को खुराक भी देती है .माया
वाले बाबा भी जै रामजी की बोल के कथा के अमृत में बबलू की कहानी कह डालते हैं .अब बेचारा बबलू
क्या जबाब दे ? कभी कभी ही तो बबलू बोलता है और बोलते ही टांग खिचाई हो जाती है .मगर बबलू की
बात बबलू के कबीले-कुनबे के लोग सर माथे पर रख लेते हैं आखिर मदारियों को पेट जो भरना है
बड़े दादाजी की अंगुली पकड़ कर एक नौसिखिया तलवार की धार पर वैतरणी पार कर गया .जब वैतरणी
पार हो गयी और दादा ने अंगुली छोड़ी तो साहबजादे ने झोश में आकर अंगुली माँ के माथे की और ताक
दी.कुछ नासमझ बन्दों को नागवार गुजरा और साहबजादे को प्रेक्टिकल सीख दे डाली ,साहबजादे ने
फरमाया- मैं दादा के साथ रह चूका हूँ तुमने उनकी बात मानी और मशाल जला दी ,अब मेने अकेले में
वाणी विलास किया तो मशाल से मेरी मूंछ जला दी .ऐसा करना नाइंसाफी है कि नहीं .
इन्हें कौन समझाए सा'ब कि माँ कि गाली कौन खुद्दार बच्चा सहन कर लेगा .मगर हम तो इस वाणी
विलास में ना पड़ेंगे क्योंकि कबीर ने कहा था -
ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय
ओरन कुं शीतल करे आपहुं शीतल होय
No comments:
Post a Comment