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19.10.11

हम राजनीति में नहीं आयेंगे !!


हम राजनीति में नहीं आयेंगे !!

हम राजनीति में नहीं आयेंगे,यह बात बार बार अन्ना टीम क्यों कहती है ? एक तरफ आप व्यवस्था में 
आमूलचूल परिवर्तन की बात करते हैं और दूसरी और व्यवस्था को हाथ में नहीं लेना चाहते हैं .इसका 
अर्थ तो ये हुआ जिन्हें आप देश की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार मानते हैं उन मक्कारों में ही  इमानदारी या 
देशभक्ति ढूंढना चाहते हैं.ऐसा प्रयोग तो असफल ही होगा .

जो चीज होती है ,दिखती है उसके पीछे एक कारण होता है .अन्ना के सुर में करोडो देशवासियों के सुर
मिल गए थे उसका कारण विकराल होता भ्रष्टाचार ही था .अब यदि भ्रष्टाचार का इलाज वास्तव में अन्ना
हजारे जी ढूंढना चाहते हैं तो उन्हें धर्म और न्याय के उपदेश के साथ साथ कर्म में उतरना ही पडेगा या फिर
टीम को बड़ी बनाकर टीम को राष्ट्र धर्म के लिए मैदाने जंग में उतारना पडेगा .

अगर हम यह कह कर बरी होना चाहते हैं की भ्रष्टाचार मुक्त भारत  की बात करने के लिये चुनाव लड़ना
कहाँ जरुरी है तो शायद अन्ना टीम अपने सपने को कभी पूरा भी नहीं कर पायेगी. यदि राजनीती में
निडर ,साहसी ,नैतिक ,समदर्शी ,संवेदनशील और राष्ट्र भक्त जनता नहीं आएगी तो फिर देश स्वार्थी ,झूठे,
गुनाहगार ,निरंकुश ,भ्रष्ट और चोरो के एकाधिकार में ही चलेगा .यदि अन्ना टीम देश की जनता को
वास्तव में भ्रष्टाचार मुक्त भारत देना चाहती है तो अरबों की जनसंख्या वाले देश में ५५० देश भक्त तो उन्हें
मिल ही जायेंगे.

अन्ना कहते हैं मेरे पास बैंक बैलेंस नहीं है या मेरी चुनाव लड़ने पर जमानत जब्त हो जायेगी या इस
गंदगी में मेरा काम नहीं है तो फिर देश का भविष्य भगवान् या वर्तमान पिट्टू नेताओं के भरोसे चलने
दिया जाये. जब हम किसी जगह की गंदगी की सफाई करेंगे तो कुछ धुल ,मिटटी हमारे पर लगेगी ,मगर
उससे डरकर हम सफाई करना ही छोड़ दे या हमारे हाथ गंदगी उठाने के कारण मेले हो जायेंगे और लोग
अन्ना को सफाई करते वक्त मैला देख कर  कुछ गलत समझ बैठेंगे तो फिर सुधार कागज़ पर ही संभव
होगा.

सिर्फ कानून बन जाने से क्या होगा .क्या कानून बन जाने से  समस्या ख़त्म हो जाती है ?असल में कानून
का पालन करने वाले और करवाने वाले कर्मवीर मानव गढ़ने होंगे .प्राचीन भारत में सदाचारी महामानव
ही राजनीती में आते थे वे सदाचारी वशिष्ट हो, विदुर हो या चाणक्य .इन महानुभावो ने कभी नहीं कहा कि
हम देश की गंदगी को साफ स्वयं नहीं करेंगे .इन सबने राष्ट्र के लिए कर्म भी किया और कर्म करने के लिए
लोगों को प्रेरित भी किया .अन्ना यदि भारतीयों को सिर्फ प्रेरित करना चाहते हैं तो संकल्प सिद्ध होने में
संदेह ही है .हमारे देश में उपदेशक बहुत हैं ,धर्म के मर्मग्य भी बहुत हैं ,विवेचक भी कम नहीं हैं लेकिन
हमने आज तक क्या पाया ,कथा सुनी एक कान से और दुसरे से निकाल दी ,अमल नहीं की .इसका कारण
यही है की हमारे उपदेशक स्वयं कर्म नहीं करते सिर्फ जबान हिलाते हैं .

किसी एक को वोट मत दो या कम खराब को वोट दो या किसी को भी मत दो ,यह उत्तर क्या हमारे देश की
उन्नति के लिए सही है ? अन्ना का  उत्तर यह होना चाहिए था- भारतवासियों ,मुझे  हर जिले से ,हर तहसील
से एक एक ऐसा आदमी दो जो नैतिकता पर खरा उतरने वाला हो ताकि मैं भ्रष्टाचार मुक्त भारत का निर्माण
कर सकूँ .लेकिन यह बात अन्ना नहीं कह पा रहे हैं और टीम अन्ना उलझ गयी है छोटा चोर और बड़ा चोर
के फेर में .जिसका नतीजा ढाक के तीन पात वाला होता देख कंही थप्पड़ बरस रहे हैं तो कहीं चप्पल .               

3 comments:

अजित गुप्ता का कोना said...

असल में इन सारी घटनाओं को देखकर लगने लगा है कि जैसे एक बच्‍चा अपनी जिद मां के समक्ष ही रखता है और उससे ही अपेक्षा करता है कि मां उसकी जिद पूरा करे। तो अन्‍ना टीम की मां कांग्रेस है। अब उनके खिलाफ तो राजनीति नहीं की जा सकती है ना।

Unknown said...

एक तरफ देश के पैसे का गलत इस्तेमाल को रोकने में असफल माँ है तो दूसरी तरफ असफल माँ को दिशा देने वाले जिद्दी बच्चे .सार यही है की मुहीम को अंजाम तक पहुंचाने के लिए खाली प्रेरणा या बातें होगी तो कागज पर सुधार नजर आयेगा धरातल पर परिवर्तन मुश्किल हो जाएगा .जैसा RTI में जान गंवाते हैं वैसे लोकपाल में भी जान का खतरा रहेगा .स्वामी विवेकानंद ने कहा था मुझे १०० इमानदार और कर्मठ कार्यकर्त्ता मिल जाए तो भारत का आमूल परिवर्तन कर दूंगा मगर उन्हें सौ कार्यकर्त्ता नहीं मिल पाए थे जो अपना सर्वस्व देश को समर्पित कर सके . आपका आभार .

Unknown said...
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