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12.10.11

सच्ची बात कही थी मैंने...

  स दिन ग्वालियर की गुलाबी ठंडी शाम थी। वाकया नवंबर २००४ का है। मौका था रूपसिंह स्टेडियम में आयोजित 'जगजीत नाइट' का। कार्यक्रम में काफी भीड़ पहुंची थी। मैंने 'भीड़' इसलिए लिखा है क्योंकि वे सब गजल रसिक नहीं थे। यह भीड़ गजल के ध्रुवतारे जगजीत सिंह को सुनने के लिए नहीं शायद देखने के लिए आई थी।  बाद में यह भीड़ जगजीत सिंह की नाराजगी का कारण भी बनी। दरअसल गजल के लिए जिस माहौल की जरूरत होती है। वैसा वहां दिख नहीं रहा था। लग रहा था कोई रईसी पार्टी आयोजित की गई है। जिसमें जाम छलकाए जा रहे हैं। गॉसिप रस का आनंद लिया जा रहा है। जगजीत सिंह शायद यहां उस भूमिका में मौजूद हैं, जैसे कि किसी शादी-पार्टी में कुछेक सिंगर्स को बुलाया जाता है, पाश्र्व संगीत देने के लिए। गजल सम्राट को इस माहौल में गजल की इज्जत तार-तार होते दिखी। आखिर गजल सुनने के लिए एक अदब और सलीके की जरूरत होती है। यही अदब और सलीका आज की 'जगजीत नाइट' से नदारद था। गजल के आशिक और पुजारी जगजीत सिंह से गजल की यह तौहीन बर्दाश्त नहीं हुई। उनका मूड उखड़ गया। उन्होंने महफिल में बह रहे अपने बेहतरीन सुरों को और संगीत लहरियों को वापस खींच लिया। इस पर आयोजक स्तब्ध रह गए। सभी सन्नाटे में आ गए। आयोजकों ने जगजीत जी से कार्यक्रम रोकने का कारण पूछा। इस पर गजल सम्राट ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा था कि 'गजल मेरे लिए पूजा है, इबादत है। यहां इसका सम्मान होता नहीं दिख रहा है। अगर गजल सुननी है तो पहले इसका सम्मान करना सीखें और सलीका भी। मैं कोई पार्टी-शादी समारोह में गाना गाने वाला गायक नहीं हूं। गजल से मुझे इश्क है। मैं इसका अपमान बर्दाश्त नहीं कर सकता। यहां उपस्थित अधिकांश लोग मुझे गजल श्रोता, गजल रसिक नहीं दिखते। संभवत: आप लोग यहां सिर्फ जगजीत सिंह को देखने के लिए आए हैं। ऐसे में मेरे गजल कहने का कोई मतलब नहीं है। मैं खामोश ही भला।
      उनका इतना कहना था कि आयोजकों के चेहरे देखने लायक थे। काफी अनुनय, विनय और माफी मांगने पर जगजीत सिंह फिर से गाने के लिए तैयार हुए। लेकिन, उन्होंने चिट्ठी न कोई संदेश... गाकर ही कार्यक्रम को विराम दे दिया। जगजीत सिंह की महफिलों में अक्सर यही आखिरी गजल होती है। यह घटनाक्रम दूसरे दिन शहर के सभी अखबारों की सुर्खियां बना। उस दिन ग्वालियरराइट्स के दिलों में गजल के लिए सम्मान के भाव जगा दिए थे। इस पूरे वाकए पर उनकी लोकप्रिय गजलों में से एक 'सच्ची बात कही थी मैंने...' सटीक बैठती है।
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