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12.10.11

प्रशांत भूषणजी पर तीन युवकों द्वारा हमला....


प्रशांत भूषणजी पर तीन युवकों द्वारा हमला किसी भी सूरत में सही नहीं ठहराया जा सकता। परन्तु, यहाँ एक विचारणीय प्रश्न यह है कि यह हमला आखिर क्यों हुवा? जिस प्रकार सारे न्यूज़ चैनलों पर श्रीराम सेना का नाम लिया जा रहा था और धर्मनिरपेक्ष (मुस्लिम तुष्टीकरण) ताकतों द्वारा बड़े ही जोर-शोर से सारे हिंदू संगठनों को कटघरे में खड़ा किया जा रहा था; तो मुझे लगा कि अवश्य ही उन्होंने हिन्दुओ के विरुद्ध या मुसलमानों के पक्ष में कुछ कहा होगा।

अंततः वही बात सामने आई। प्रशांत भूषणजी ने २५ सितम्बर २०११ को बनारस में कार्यकर्ता प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरानं प्रेस वार्ता में कहा था कि कश्मीर से सैनिकों को हटा लेना चाहिए और जनमत संग्रह के दौरन अगर वहां कि जनता अलग होना चाहे तो कश्मीर को आजाद कर देना चाहिए। कितने उच्च विचार हैं भूषणजी के? आज लाखों कश्मीरी हिन्दुओ को वहां के आतंकवादीयों ने मार कर भगा दिया और कोई भी धर्मनिरपेक्ष नेता या न्यूज़ चैनल ने चूं नहीं किया। उनके पुनर्वास कि बात भी दफना दी गयी है। उन्हें तो सिर्फ मोदी का गुजरात दिखाई पड़ता है। और अब भूषणजी कश्मीर आज़ाद करने कि बात कर रहे हैं। जिस प्रकार मुसलमानों कि यह फितरत है कि जब भी ये कम संख्या में रहते हैं तो अल्पसंख्यक और मानवाधिकार कि बातें करतें हैं और जहाँ इनकी संख्या ५० प्रतिशत से अधिक हुई कि इन्हें तुरंत सरीयत कि मांग करने लगते हैं। एक नहीं कई उदहारण हैं। जब इनके इन कृत्यों को कोई हिंदू समर्थन देने लगता है तो कुछ कट्टर हिंदू वादियों का खून खौल उठाना स्वाभाविक ही है। महात्मा गाँधी को गोडसे द्वारा गोली मारना भी कुछ इसी प्रकार कि प्रतिक्रिया थी । नोवाखाली दंगे के दौरान गाँधीजी द्वारा सिर्फ हिन्दुओ को समझाना और कहना कि जाने दो तुम्हारे भाई हैं और मुसलमानों को कुछ नहीं कहना। पाकिस्तान तो पैसे देने के लिए अनशन पर बैठ जाना। ये सब क्या है? क्या इसी को धर्मनिर्पेक्षता कहते हैं? मै आप सभी लोगों से पूछना चाहता हूँ कि जिस प्रकार का हमारी सरकार का रवैया है क्या वो सही है ......

2 comments:

रविकर said...

बढ़िया प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई ||

लगा रेकने जब कभी, गधा बेसुरा राग |
बहुतों ने बम-बम करी, बैसाखी में फाग |

बैसाखी में फाग, घास समझा सब खाया |
गलत सोच से खूब, सकल परिवार मोटाया |

रही व्यक्तिगत सोच, चला कश्मीर छेंकने |
ढेंचू - ढेंचू रोज, लगा बे-वक्त रेंकने ||

Bharat Swabhiman Dal said...

भारत की भोली - भाली जनता देशहित की बात करने वालों को सम्मान देने के लिए उनके जूत्ते तक को अपने सिर पर रख सकती है तो वही पर देशद्रोह की बात करने पर उनके जूत्ते से उनका सिर भी फोड़ सकती है , यह बात इन तीन वीरों ने व्यवहार में चरितार्थ कर दिखायी है , जो गर्व करने के योग्य है । टीम अन्ना को जनता ने जो सम्मान और विश्वास दिया है वह राष्ट्रहित की बात करने पर दिया है , तो टीम अन्ना को चाहिए कि वह उस विश्वास की रक्षा करे , ना कि विश्वासघात ।
सुन्दर , साहसपूर्ण प्रस्तुती ...... आभार ।