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17.10.11

तुम



तुम 


तेरी आँखों के समन्दर में, उल्फत को छलकते देखा. 
तेरी मदहोश अदाओ से  , जमाने को मचलते देखा.

 उझड़े हुये गुलशन को ,फूलो से सँवरते देखा.     
तेरे चेहरे की रंगत में, फूलों को सिमटते देखा.
सितारों की चुनड़ी में, चन्दा को झलकते देखा. 
तेरे हुस्न पे फिदा होकर, चंदा को ढलते  देखा.

तेरी आँखों के समन्दर में, उल्फत को छलकते देखा. 
तेरी मदहोश अदाओ से, जमाने को मचलते देखा .

कलियों के खिलने पर ,भंवरो  को टहलते  देखा. 
तेरे रस रसीले होंठो में, भंवरो  को लिपटते देखा.
सागर की गहराई  में, साहिल को पार लगते देखा .
तेरे गालो के गड्ढों में, हर साहिल को डूबते देखा.

तेरी आँखों के समन्दर में, उल्फत को छलकते देखा .
तेरी मदहोश अदाओ से, जमाने को मचलते देखा.

विरह के गीत पर रोते ,रात में चकोर को देखा. 
तेरी यादो में ढलती शाम, करवटों में सूरज देखा. 
यूँ तो शमां पर, मिटते आये हैं, जमाने से परवाने .
तेरे नाम के संग हर पल, मेरे नाम को जुड़ते देखा. 

तेरी आँखों के समन्दर में, उल्फत को छलकते देखा .
तेरी मदहोश अदाओ से , जमाने को मचलते देखा  
     

   

3 comments:

S.N SHUKLA said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति, आभार .


कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें.

vandana gupta said...

बहुत सुन्दर ख्याल्।

Unknown said...

धन्यवाद, शुक्ला जी और वंदना जी .