शायद पेन की स्याही सूख गयी है,
बस कुछ निशान बाकी है कागज़ पर
और हाथ के पसीने के कुछ धब्बे भी है ,
ऐसे सादे पन्ने कौन संभालेगा ?
न जाने मुझसे क्या चाहिए?
एक भड़कीला झूठा रंग और
रंगीले फौवारे
यहाँ तो बस बेरंग चादर और दीवारें हैं,
अब ऐसे कमरे कौन सजाएगा ?
कभी रुको मेरी तकिया तुमे सुला देगी,
मेरी चादर की सिलवटें सुबह होते ही तुमे जगा देगी.
एक बार फिर मोमबत्ती तुम्हारी ओर रख दी है मैंने.
रात होगी तो देखेंगे कौन इसे जलाएगा?
दूर से आती है वो आवाज़ थकी हुई सी,
मेरे कानो में फिर से ठहरने को पूछती है.
हालाँकि थका हुआ तो मैं भी बहुत हूँ
इंतजार में बैठे -बैठे,
तो अब कौन किसे जवाब सुनाएगा?
10.10.11
सवालों की बारिश हुई है ...
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2 comments:
khoobsurat .....bhawpoorn.
Thanx madam....
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