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9.11.11

तूफान जा रहे थे उनके साथ नाव में..

  मैं जिस राह से जाऊं वो ही तेरा भी रस्ता हो,
सुनाई दे मुझे हरपल जो दिल तेरा धड़कता हो।
मेरे हमराह बस मेरी यही छोटी सी ख्वाहिश है,
तेरी बाहों में दम निकले, कफन तेरा दुपट्टा हो।। - अतुल

  गजल के चाहने वालों को अतुल का नमस्कार।। कई बार ऐसा होता है कि राह चलते कोई दिख जाता है तो घर तक उसकी यादें या कई-कई दिन तक साथ रहती हैं। ऐसी अतीत की तमाम स्मृतियां हमारे साथ भी जुड़ी हैं। एक सुहानी शाम याद है मुझे। मुंबई के जुहू बीच और सामने साहिल से टकराती समंदर की लहरें। इसी बीच कोई सपना आया, और वो कुछ इस तरह। गजल के रूप में आपके सामने पेश कर रहा हूं। पसंद आए तो जरूर सूचित करना....

जब तक खड़ा रहा मैं दरख्तों कि छांव में,
था शोर इक अजीब सा साहिल के गांव में।

निकले उधर से जब वो समंदर ठहर गया,
तूफान जा रहे थे उनके साथ नाव में।

सूरत को क्या बयां करूं वो हुस्न नूर था,
नजरें थीं आसमान पर इतना गुरूर था,

पायल कि वो झनकार सुन रहा हूं आज तक,
कारीगरी थी ऐसी कोई उसके पांव में।

थे होंठ सुर्ख और बदन मरमरी सा था,
था रूप कोई अप्सरा का या परी का था,

जुल्फों में घटाएं थीं चेहरे पे धूप थी,
सूरज भी आ गया था आशिकी के दांव में।।- अतुल

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