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25.11.11

दिल के ज़ख़्म ।(गीत)






दिल के ज़ख़्म ।(गीत)


मेरे कानों  में  कुछ, कह गया  है  कोई ।

मेरे  मन  को   फिर,  छू  गया  है  कोई ।


अंतरा-१.


दिल  के  ज़ख़्मों  को यादें सहलाती रही,

मेरे   दिल   को  तनहाई  बहलाती रही ।

रगबत  आग़ोश   में   ले  गया  है  कोई ।

मेरे   मन  को  फिर, छू   गया  है  कोई ।

(रगबत = आरज़ू,  इच्छा )


अंतरा-२.


मेरी  बातें  कुछ  सुनी-अनसुनी सी रही,

बाक़ी  संगमन  सी  वो  भी  अधूरी रही ।

आज  चुपके से फिर, मिल गया है कोई ।

 मेरे  मन  को  फिर,  छू   गया  है  कोई ।

( संगमन=मिलन)



अंतरा-३.


ज़िंदगी  का  सफर  यूँ  ही कट जायेगा ।

वक़्त  गुज़रा  था  जो  न  लौट आयेगा ।


मेरे  दिल  को  फिर  समझाता  है  कोई ।

मेरे   मन  को  फिर,  छू   गया  है  कोई ।



अंतरा-४.



जिनकी हसरत  लिए  मैं  तो  फिरता  रहा ,

जिनको  अक्सर  ख़यालों  में  मिलता  रहा ।

लो, फिर  मुझ से  रूबरू हो  गया  है  कोई ।

मेरे   मन   को    फिर,   छू   गया  है  कोई ।


मेरे   कानों   में   कुछ,  कह  गया  है  कोई ।

मेरे    मन    को   फिर,   छू   गया  है  कोई ।

मार्कण्ड दवे । दिनांक-२५-११-२०११.

2 comments:

mridula pradhan said...

आज चुपके से फिर, मिल गया है कोई ।
मेरे मन को फिर, छू गया है कोई ।
behad khoobsurat......

Unknown said...

abhinav geet........waah !