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10.12.11

गूंगी बस्ती ...........

गूंगी बस्ती ...........
गूंगी बहरी जिन्दी लाशें, हर तरफ बिखरी पड़ी है .
आज यहाँ की सारी बस्ती, दिन में भी सोयी पड़ी है.

बस्ती में बसते गूंगों को, सही गलत की कहाँ पड़ी है.
जान बची तो लाखों पाये,मरते सच की किसे पड़ी है.

लड़ पड़ते छोटी बातों पर, बड़ी बात की किसे पड़ी है.
मेरी माला - तेरी टोपी,हर बात यही पर फँसी पड़ी है.

आग लगी है जिसके घर में,तुमको उसकी क्यों पड़ी है.
बुझ जाये तो मिल के आना,जंग लड़ने की कहाँ अड़ी है.

लुटपाट चोरी मक्कारी, दलदल में यह नाव धंसी है.
चोर लुटेरे करे फैसले ,सच सुने ,कहे,तो मौत खड़ी है.  

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