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2.12.11

...और सड़क पर आ जाएंगे खुदरा व्यापारी

शंकर जालान



कांग्रेस की अगुवाई वाली केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार की खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को मंजूरी देने की मंशा से लाखों खुदरा व्यापारी खफा हैं। इस बाबत व्यापारियों का आरोप है कि संप्रग सरकार ऐसा कर हम जैसे खुदरा व्यापारियों को सड़क पर लाना चाहती है। खुदरा व्यापारियों के मुताबिक एफडीआई को मंजूरी किसी नजरिए से भारत व भारत के खुदरा व्यापारियों के हित में नहीं है, इसलिए अन्य राजनीतिक दलों के अलावा संप्रग की सहयोगी पार्टियां भी इसका विरोध कर रही हैं। वहीं कुछ संगठन इसे हितकर मान रहे हैं।
खुदरा व्यापार से जुड़े एक किराना कारोबारी अमरलाल अग्रवाल ने बताया कि खुदरा बाजार में एफडीआई लागू हो गया तो इस क्षेत्र से स्वरोजगार अर्जित कर रहे कम से कम दस करोड़ भारतीय बेरोजगार हो जाएंगे। विदेशी निवेश से खुदरा बाजार तहस-नहस हो जाएगा। ऐसा होने पर भारतीय बाजार में विदेशी कंपनी अपनी मनमर्जी कीमत वसूलेंगी।
कपड़ा विक्रता दामोदर गनेरीवाल ने कहा कि इस बात की क्या गारंटी है कि विदेशी निवेशक सिर्फ कृषि उत्पाद तक ही अपने-आप को सीमित रखेंगे और दूसरे उत्पादों के व्यवसाय में दखल नहीं देंगे।
ट्रांसपोर्ट कारोबार से जुड़े विक्रांत सिंह ने एफडीआई पर चिंता जताते हुए कहा कि विदेशी निवेशक बड़े पैमाने के व्यवसाय के लिए धीरे-धीरे खुद की ट्रांसपोर्ट व्यवस्था कर लेंगे रखेंगे। अगर ऐसा हुआ तो आम ट्रांसपोर्ट से जुड़े लाखों लोग बेरोजगार हो जाएंगे।
चीनी दुकान के मालिक सुरेंद्र चौधरी ने बताया कि वाममोर्चा व भाजपा समेत कई राजनीतिक पार्टियां एफडीआई का विरोध कर रही हैं और फिलहाल इस आंदोलन में व्यापारियों के साथ खड़ी दिख रही हैं, लेकिन हमें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कहीं राजनीतिक पार्टियों व्यापारियों को हथियार के रूप में तो नहीं इस्तेमाल कर रही है और व्यापारियों को आगे बढ़ाकर खुद राजनीतिक लाभ लेने की फिराक में जुटी हैं।
एक अन्य खुदरा व्यापारियों ने बताया कि वालमार्ट और टेस्को जैसी बड़ी कंपनियों के आ जाने से उनकी रोजी रोटी के लिए खतरा पैदा हो सकता है, इसलिए एक जुट होकर एफडीआई का विरोध करना चाहिए और संप्रग सरकार को बाध्य करें कि वह इसे लागू न करे।
भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के पूर्वी क्षेत्र का कहना है कि विदेशी पूंजी के आने से कृषि बाजार व कृषि में सुधार होगा। किसानों को भी उनके उत्पादों का बेहतर मूल्य मिल सकेगा। छोटे और मझोले कारोबारियों को भी इससे फायदा होगा, क्योंकि 30 फीसदी खरीदारी उन्हीं से होनी है। उनका तर्क है कि वेयर हाउसिंग, कोल्ड स्टोरेज और अन्य आपूर्ति श्रृंखला में बड़े पैमाने पर निवेश होगा, जिससे कृषि ढांचागत क्षेत्र के विकास में तेजी आएगी और ठीक इसी समय खाद्य पदार्थ की बर्बादी में कमी आएगी। मर्चेट्स चेंबर आॅफ कामर्स का कहना है कि वैश्विक खुदरा कंपनियां जैसे कि वाल मार्ट, टेस्को, टार्गेट अपने प्रबंध, गुणवत्ता और उचित कीमतों के लिए जानी जाती हैं। भारत में अब उनकी निवेश प्रक्रिया ज्यादा स्थाई रहेगी और वह भारत को दीर्घकालीन बाजार के रूप में देखेंगी और भारतीयों का विश्वास जीतने की कोशिश करेंगी।
फेडरेशन आफ वेस्ट बंगाल ट्रेड एसोसिएशंस का कहना है कि सिंगल ब्रांड में सौ फीसद एफडीआई और मल्टी ब्रांड रिटेल में 51 फीसद एफडीआई को मंजूरी से छोटे-खुदरा किराना दुकानदारों के अस्तित्व और उनकी रोजमर्रा की जिंदगी पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। देश की 33 फीसद आबादी जिसका जीवन यापन इसी खुदरा कारोबार के भरोसे है, बुरी तरह प्रभावित होगी। इस खुदरा कारोबार से करीब पांच करोड़ लोग प्रत्यक्ष रूप से और दस करोड़ लोग अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े हैं और इसी खुदरा कारोबार से 40 करोड़ लोगों का जीवन यापन हो रहा है।

2 comments:

MKHAN said...

bilkul sahi kaha aapne

S.N SHUKLA said...

सामयिक और यथार्थ, आभार.