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9.12.11

खामोशियां आकाश से बरसती हैं

  यहां हर रात उजाले से विदा लेती है,
हर इक राह मुसाफिर से जुदा होती है।
सुबह से शाम तक तनहाइयों का मेला है,
कहीं खामोशियां आकाश से बरसती हैं।।- अतुल

1 comment:

Always Unlucky said...

Dude, you you must be a writer. Your text is so great.

From Great talent