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11.12.11

रख दे कोई ज़रा सी खाके वतन कफन में


अमर शहीद पं० रामप्रसाद बिस्मिल के बलिदान से दो दिन पूर्व १७ दिसंबर को फैज़ाबाद की ज़ेल मे जिस महान बलिदानी ने फांसी का फंदे को चूमा था उसका नाम है अशफाक उल्ला खां।वे जितने बडे क्रांतिकारी थे शायर भी उतने ही बडे थे।'हसरत' नाम से शायरी करने वाले इस महान बलिदानी  के अमतिम दिनो की शायरी के नमूने आपके समक्ष रख रहा हूं----
अफसोस क्यों नहीं वेह रूह अब वतन में?
जिसने हिला दिया था दुनिया को एक पल में
ऐ पुख्ताकार उल्फत हुशियार डिग न जाना
मराज़ आसकां हैं इस दार औ रसन में
मौत और ज़िदगी है दुनियां का सब तमाशा
फरमान कृष्न का था,अरजुन को बीच रण मेम
कुछ आरज़ू नहीं है,है आरज़ू तो यह है,
रख दे कोई ज़रा सी खाके वतन कफन में
सैयाद ज़ुल्म पेशा आया है जब से हसरत
हैं बुलबुलें कफस में ज़ागो ज़गन चमन में






दोस्तों इस गज़ल को पढने के बाद लगा   कि पं० जगतनारायण मुल्ला को मिला साहित्य अकादमी पुरस्कार भी कुत्ते का बिस्किट था जिसे भारतसरकार ने उन्हे शायद इसलिये खिलाया था लगा  कि वे शांत होकर लाखों भारतवासियों को बिस्मिल और अशफाक की गज़लें कविता, अपनी शिराओॅ में महसूस करने का अवसर दें ,पर देशवासियों ने कितना महसूस किया इसे फैसला आप पर छोडता हूं--------

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