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16.12.11

वृहस्पतिवार की वह काली रात

शंकर जालान



वृहस्पतिवार की काली रात कहे या ब्लैक फ्राई डे। उनके लिए कोई फर्क नहीं पड़ता, जिन्होंने इस मनहूस दिन अपने किसी को खोया है। हर फ्राई डे की तरह इस शुक्रवार की सुबह सूरज तो जरूर निकला, लेकिन हमेशा की तरह उजाला लेकर नहीं, बल्कि दुर्भाग्यवश उन लोगों के लिए अंधेरा लेकर आया, जिनके घरवाले अब कभी न नींद से उठ पाएंगे और न नहा-धो। जी हां, हम बात कर रहे हैं दक्षिण कोलकाता के ढाकुरिया स्थित एडवांस मेडिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एएमआरआई यानी आमरी) की।
महंगे, अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस कहे जाने वाले सात मंजिला इस अस्पताल में भूतल (बेसमेंट) में प्रबंधन की लापरवाही के कारण आग लग गई, जिसने आठ दर्जन से ज्यादा लोगों को मौत की नींद सुला दिया। मीना बसु, शैल दासगुप्त, श्याचरण पाल, नेपालचंद्र गुप्ता समेत अस्पताल में भर्ती करीब एक सौ मरीजों व उनके हजारों घरवालों ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि ये अपने पैर पर चलकर घर नहीं लौट सकेंगे, बल्कि चार लोगों के कंधे के सहारे मरघट पहुंचेंगे।
कोलकाता ही क्या, देश की किसी भी अस्पताल में आगजनी की यह पहली इतनी बड़ी घटना है, जिनसे एक साथ 99 लोगों को खामोश कर दिया या दूसरे शब्दों में को सदा-सदा को लिए चीर नींद में सुला दिया। इस घटना ने भले ही विभिन्न अस्पतालों के प्रबंधन, राज्य सरकार व केंद्र सरकार के सचेत कर दिया हो, बावजूद इसके उनलोगों का दुख कभी कम नहीं हो पाएगा, जिन्होंने इस दर्दनाक हादसे में अपने को खोया है।
भले ही अग्निकांड में मारे गए लोगों को अस्पताल प्रबंधन, राज्य सरकार व केंद्र सरकार ने आर्थिक अनुदान देने का एलान किया है, फिर में लोगों को गुस्सा कम होने का नाम ही नहीं ले रहा है। मृतक काशीनाथ सरकार, इशानी दत्ता, शाहिद आलम, ज्ञानेश्व राय के घरवालों ने नाराजगी व गुस्से के साथ कहा कि मुआवजा किसी व्यक्ति की कमी को कभी पूरा नहीं कर सकता। इन लोगों ने बगैर किसी पार्टी, सरकार या नेता का नाम लिए कहा कि अगर मुआवजा ही पर्याप्त है तो मुआवजा का एलान करने वाले लोग अपने किसी घरवाले को मौत के मुंह में घकेल कर दिखाए।
घटना की सूचना मिलने पर केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री व स्वास्थ्य मंत्री ममता बनर्जी, शहरी विकास मंत्री फरियाद हकीम, दमकल मंत्री जावेद अहमद खान, कोलकाता के मेयर शोभन चटर्जी, वाममोर्चा के चेयरमैन विमान बसु, राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता व राज्य के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री सूर्यकांत मिश्र समेक कई नेता मौके पर पहुंचे और मारे गए लोगों को सांत्वना देने का प्रयास किया, लेकिन पीड़ित लोगों का गुस्सा सातवें आसमान पर था। स्थिति यहां तक पहुंची की लोगों की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, जिनके पास स्वास्थ्य विभाग की जिम्मेवारी भी है का घेराव कर लिया। कोलकाता के पुलिस आयुक्त रंजीत कुमार पचनंदा समेत पुलिस के कई वरिष्ठ अधिकारियों ने काफी मशक्कत के बाद सुरक्षित स्थान तक पहुंचाया।
इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि अस्पताल प्रबंधन का अपराध अक्षम्य है, पर इस सवाल का उत्तर तो ममता बनर्जी को ही देना चाहिए कि अस्पताल अगर नियमों का पालन नहीं कर रहा था, तो उसको समय रहते नियमों का महत्व समझाने की जिम्मेदारी आखिरकार थी किसकी? शंपा चौधरी ने इस हादसे में अपने चाचा राम दास को खोया है। भींग आंखों ने उसने बताया कि चाहे प्रबंधन की गलती हो या सरकार की मुझे को फर्क नहीं पड़ता। गलतियों के कारण इनके चाचा राम दास ‘राम’ को प्यारे हो गए। उन्होंने ‘शुक्रवार’ से कहा- जब तक प्यास लगने पर कुआं खोदने की प्रक्रिया जारी रहेगी, लोग प्यासे मरते रहेंगे। यानी आग लगने के बाद यह कहना कि दमकल विभाग के नियमों को उल्लंघन किया गया, इसे लिपा-पोती ही कहा जाना चाहिए।
सूत्रों के मुताबित आमरी में तीन वर्ष पहले यानी 2008 में भी अग्निकांड की घटना घटी थी। आमरी ही क्या कोलकाता के अन्य कई नामी-गिरामी अस्पतालों की अव्यवस्थाएं भी आए दिन उजागर होती रही हैं, कभी बच्चों की मौत के रूप में, तो कभी मरीजों का इलाज करने से मना करने के रूप में। आलम तो यह है कि जब आग ने कई नागरिकों को लील लिया, तब जुझारू नेता और अग्निकन्या के रूप में चर्चित ममता बनर्जी को पता चला कि आमरी में आग बुझाने के इंतजाम नहीं थे। यदि आग नहीं लगती, तो उन्हें इसका पता भी नहीं चलता, तो क्या यह भी उनकी लापरवाही नहीं है?
जरा अतीत की ओर देखे तो पता चलता है कि महानगर कोलकाता में दो दशक के दौरान आगजनी का दर्जनों घटनाएं घटी है, लेकिन आमारी की आग की लपटों ने सबको बौना कर दिया। बीते साल यानी 2010 में स्टीफन कोर्ट, 2008 में सोदपुर व नंदराम मार्केट, 2006 में तपसिया, 2002 में फिरपोस मार्केट, 1998 में मैकेंजी इमारत, 1997 में एवरेस्ट हाउस व कोलकाता पुस्तक मेला, 1996 में लेंस डाउन, 1994 में कस्टम हाउस और 1993 में इंडस्ट्री हाउस, 1992 में मछुआ फल मंडी, 1991 में हावड़ा मछली बाजार में भयावह आग की घटना घटी चुकी है। इनमें सबसे ज्यादा मौते बीते साल 23 मार्च के पार्क स्ट्रीट स्थित स्टीफन कोर्ट अग्निकांड में हुई थी, यहां 46 लोग आग की भेंट चढ़ गए थे। बीते 20 सालों में आग की 11 बड़ी घटनाओं में इतने लोगों की मौत नहीं हुई, जितने लोगों आमरी अग्निकांड में मारे गए।

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