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30.6.11

चवन्नी : मेरे बचपन का पूँजीवाद

दोस्तों आज चवन्नी हम से विदा हो गयी। तुम लोग सोचोगे कि ये क्या 'मुंह्बाजी' है पर सच में पता नहीं क्यों मुझे इसके जाने का बहुत दुःख हुआ।
समय बदलता रहता है, हमारे बड़ों ने शायद 'आने'(वही एक आना,दो आना) को इस तरह याद किया होगा और शायद आज से बीस-पच्चीस साल बाद आने वाली पीढ़ी में से कोई 'हजार के नोट' की समाप्ति पर कुछ दुःख व्यक्त करे। पर मेरे बचपन की औकात तो चवन्नी तक ही सीमित थी,इसलिए मैं इसके सम्मान में कुछ शब्द कहूँगा।

मुझे पंजी,दस्सी और बीस पैसे के जाने का कभी उतना दुःख नहीं हुआ जितना इस छोटी सी गोल चवन्नी के विलुप्त होने का.........................

पूरा पढने के लिए यहाँ पधारें
http://shishirwoike.blogspot.com/2011/06/blog-post_30.html

कृष्णावतार


* गुंडाराज तक तो हम पहुँच ही चुके थे | क्या बुरा है जो बाबाराज की ओर जा रहे हैं ?
[टीका]

* नक्सलियों  ने राष्ट्रपति के वार्ता -प्रस्ताव को ठुकराया |  [समाचार] 
  - वे कर्मशील समूह हैं , बातों में समय व्यर्थ नहीं करते |  [टीप]

* जश्न-ए-हमारा गंज २५/६/११
आयोजकों को मुबारक | मुबारक तो हमें भी होना चाहिए था लेकिन कैसे हो ? हम हज़रतगंज तक कैसे पहुंचें ? अलीगंज से हम विक्रम टेम्पो पर सवार होते हैं | चालक कहता है - बहन जी थोड़ा आप आगे  खिसकिये , भाई साहब आप पीछे होकर बैठिये | और इस तरह वह एक का जंघा दुसरे के पुट्ठे से सटाकर तीन की सीट पर चार सवारियाँ फिट कर देता है | जो कुछ कमी रह जाती है वह टेम्पो के झटके से पूरी हो जाती है | 
तो यह है लखनऊ  की तहजीब जिसे हम रोज़-ब-रोज़ झेलते हैं ,और इसी पर गर्व करने के कसीदे गाये जाते हैं | क्या कोई बताएगा ऐसा कैसे हो रहा है ? किसकी मिली भगत से यह चल रहा है ? जब कि ऐसा पहले न था | निश्चय ही तेल के दाम बढ़े , तो उसी हिसाब से किराया भी तो बढ़ता रहा | और भरती रहीं जेबें किसकी किसकी | क्या इसके लिए भी कोई जन - यातायात -प्रबंध पाल बिल  की ज़रुरत है ?  ##
        
0 कृष्णावतार
होगा क्या लोकपाल
भ्रष्ट नाशक ? (हाइकु)
0 कुछ चाहिए
मुद्दे नेता बनने
को युवाओं को
जयप्रकाश
हों बाबा रामदे या
अन्ना हजारे । (हाइकु)
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सआदत हसन मंटो की कहानी : खोल दो

अमृतसर से स्पेशल ट्रेन दोपहर दो बजे चली और आठ घंटों के बाद मुगलपुरा पहुंची। रास्ते में कई आदमी मारे गए। अनेक जख्मी हुए और कुछ इधर-उधर भटक गए।
सुबह दस बजे कैंप की ठंडी जमीन पर जब सिराजुद्दीन ने आंखें खोलीं और अपने चारों तरफ मर्दों, औरतों और बच्चों का एक उमड़ता समुद्र देखा तो उसकी सोचने-समझने की शक्तियां और भी बूढ़ी हो गईं। वह देर तक गंदले आसमान को टकटकी बांधे देखता रहा। यूं ते कैंप में शोर मचा हुआ था, लेकिन बूढ़े सिराजुद्दीन के कान तो जैसे बंद थे। उसे कुछ सुनाई नहीं देता था। कोई उसे देखता तो यह ख्याल करता की वह किसी गहरी नींद में गर्क है, मगर ऐसा नहीं था। उसके होशो-हवास गायब थे। उसका सारा अस्तित्व शून्य में लटका हुआ था।
गंदले आसमान की तरफ बगैर किसी इरादे के देखते-देखते सिराजुद्दीन की निगाहें सूरज से टकराईं। तेज रोशनी उसके अस्तित्व की रग-रग में उतर गई और वह जाग उठा। ऊपर-तले उसके दिमाग में कई तस्वीरें दौड़ गईं-लूट, आग, भागम-भाग, स्टेशन, गोलियां, रात और सकीना...सिराजुद्दीन एकदम उठ खड़ा हुआ और पागलों की तरह उसने चारों तरफ फैले हुए इनसानों के समुद्र को खंगालना शुरु कर दिया।
पूरे तीन घंटे बाद वह ‘सकीना-सकीना’ पुकारता कैंप की खाक छानता रहा, मगर उसे अपनी जवान इकलौती बेटी का कोई पता न मिला। चारों तरफ एक धांधली-सी मची थी। कोई अपना बच्चा ढूंढ रहा था, कोई मां, कोई बीबी और कोई बेटी। सिराजुद्दीन थक-हारकर एक तरफ बैठ गया और मस्तिष्क पर जोर देकर सोचने लगा कि सकीना उससे कब और कहां अलग हुई, लेकिन सोचते-सोचते उसका दिमाग सकीना की मां की लाश पर जम जाता, जिसकी सारी अंतड़ियां बाहर निकली हुईं थीं। उससे आगे वह और कुछ न सोच सका।
सकीना की मां मर चुकी थी। उसने सिराजुद्दीन की आंखों के सामने दम तोड़ा था, लेकिन सकीना कहां थी , जिसके विषय में मां ने मरते हुए कहा था, "मुझे छोड़ दो और सकीना को लेकर जल्दी से यहां से भाग जाओ।"
सकीना उसके साथ ही थी। दोनों नंगे पांव भाग रहे थे। सकीना का दुप्पटा गिर पड़ा था। उसे उठाने के लिए उसने रुकना चाहा था। सकीना ने चिल्लाकर कहा था "अब्बाजी छोड़िए!" लेकिन उसने दुप्पटा उठा लिया था।....यह सोचते-सोचते उसने अपने कोट की उभरी हुई जेब का तरफ देखा और उसमें हाथ डालकर एक कपड़ा निकाला, सकीना का वही दुप्पटा था, लेकिन सकीना कहां थी?
सिराजुद्दीन ने अपने थके हुए दिमाग पर बहुत जोर दिया, मगर वह किसी नतीजे पर न पहुंच सका। क्या वह सकीना को अपने साथ स्टेशन तक ले आया था?- क्या वह उसके साथ ही गाड़ी में सवार थी?- रास्ते में जब गाड़ी रोकी गई थी और बलवाई अंदर घुस आए थे तो क्या वह बेहोश हो गया था, जो वे सकीना को उठा कर ले गए?
सिराजुद्दीन के दिमाग में सवाल ही सवाल थे, जवाब कोई भी नहीं था। उसको हमदर्दी की जरूरत थी, लेकिन चारों तरफ जितने भी इनसान फंसे हुए थे, सबको हमदर्दी की जरूरत थी। सिराजुद्दीन ने रोना चाहा, मगर आंखों ने उसकी मदद न की। आंसू न जाने कहां गायब हो गए थे।
छह रोज बाद जब होश-व-हवास किसी कदर दुरुसत हुए तो सिराजुद्दीन उन लोगों से मिला जो उसकी मदद करने को तैयार थे। आठ नौजवान थे, जिनके पास लाठियां थीं, बंदूकें थीं। सिराजुद्दीन ने उनको लाख-लाख दुआऐं दीं और सकीना का हुलिया बताया, गोरा रंग है और बहुत खूबसूरत है... मुझ पर नहीं अपनी मां पर थी...उम्र सत्रह वर्ष के करीब है।...आंखें बड़ी-बड़ी...बाल स्याह, दाहिने गाल पर मोटा सा तिल...मेरी इकलौती लड़की है। ढूंढ लाओ, खुदा तुम्हारा भला करेगा।
रजाकार नौजवानों ने बड़े जज्बे के साथ बूढे¸ सिराजुद्दीन को यकीन दिलाया कि अगर उसकी बेटी जिंदा हुई तो चंद ही दिनों में उसके पास होगी।
आठों नौजवानों ने कोशिश की। जान हथेली पर रखकर वे अमृतसर गए। कई मर्दों और कई बच्चों को निकाल-निकालकर उन्होंने सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया। दस रोज गुजर गए, मगर उन्हें सकीना न मिली।
एक रोज इसी सेवा के लिए लारी पर अमृतसर जा रहे थे कि छहररा के पास सड़क पर उन्हें एक लड़की दिखाई दी। लारी की आवाज सुनकर वह बिदकी और भागना शुरू कर दिया। रजाकारों ने मोटर रोकी और सबके-सब उसके पीछे भागे। एक खेत में उन्होंने लड़की को पकड़ लिया। देखा, तो बहुत खूबसूरत थी। दाहिने गाल पर मोटा तिल था। एक लड़के ने उससे कहा, घबराओ नहीं-क्या तुम्हारा नाम सकीना है?
लड़की का रंग और भी जर्द हो गया। उसने कोई जवाब नहीं दिया, लेकिन जब तमाम लड़कों ने उसे दम-दिलासा दिया तो उसकी दहशत दूर हुई और उसने मान लिया कि वो सराजुद्दीन की बेटी सकीना है।
आठ रजाकार नौजवानों ने हर तरह से सकीना की दिलजोई की। उसे खाना खिलाया, दूध पिलाया और लारी में बैठा दिया। एक ने अपना कोट उतारकर उसे दे दिया, क्योंकि दुपट्टा न होने के कारण वह बहुत उलझन महसूस कर रही थी और बार-बार बांहों से अपने सीने को ढकने की कोशिश में लगी हुई थी।
कई दिन गुजर गए- सिराजुद्दीन को सकीना की कोई खबर न मिली। वह दिन-भर विभिन्न कैंपों और दफ्तरों के चक्कर काटता रहता, लेकिन कहीं भी उसकी बेटी का पता न चला। रात को वह बहुत देर तक उन रजाकार नौजवानों की कामयाबी के लिए दुआएं मांगता रहता, जिन्होंने उसे यकीन दिलाया था कि अगर सकीना जिंदा हुई तो चंद दिनों में ही उसे ढूंढ निकालेंगे।
एक रोज सिराजुद्दीन ने कैंप में उन नौजवान रजाकारों को देखा। लारी में बैठे थे। सिराजुद्दीन भागा-भागा उनके पास गया। लारी चलने ही वाली थी कि उसने पूछा-बेटा, मेरी सकीना का पता चला?
सबने एक जवाब होकर कहा, चल जाएगा, चल जाएगा। और लारी चला दी। सिराजुद्दीन ने एक बार फिर उन नौजवानों की कामयाबी की दुआ मांगी और उसका जी किसी कदर हलका हो गया।
शाम को करीब कैंप में जहां सिराजुद्दीन बैठा था, उसके पास ही कुछ गड़बड़-सी हुई। चार आदमी कुछ उठाकर ला रहे थे। उसने मालूम किया तो पता चला कि एक लड़की रेलवे लाइन के पास बेहोश पड़ी थी। लोग उसे उठाकर लाए हैं। सिराजुद्दीन उनके पीछे हो लिया। लोगों ने लड़की को अस्पताल वालों के सुपुर्द किया और चले गए।
कुछ देर वह ऐसे ही अस्पताल के बाहर गड़े हुए लकड़ी के खंबे के साथ लगकर खड़ा रहा। फिर आहिस्ता-आहिस्ता अंदर चला गया। कमरे में कोई नहीं था। एक स्ट्रेचर था, जिस पर एक लाश पड़ी थी। सिराजुद्दीन छोटे-छोटे कदम उठाता उसकी तरफ बढ़ा। कमरे में अचानक रोशनी हुई। सिराजुद्दीन ने लाश के जर्द चेहरे पर चमकता हुआ तिल देखा और चिल्लाया-सकीना
डॉक्टर, जिसने कमरे में रोशनी की थी, ने सिराजुद्दीन से पूछा, क्या है?
सिराजुद्दीन के हलक से सिर्फ इस कदर निकल सका, जी मैं...जी मैं...इसका बाप हूं।
डॉक्टर ने स्ट्रेचर पर पड़ी हुई लाश की नब्ज टटोली और सिराजुद्दीन से कहा, खिड़की खोल दो।
सकीना के मुद्रा जिस्म में जुंबिश हुई। बेजान हाथों से उसने इज़ारबंद खोला और सलवार नीचे सरका दी। बूढ़ा सिराजुद्दीन खुशी से चिल्लाया, जिंदा है-मेरी बेटी जिंदा है-। डॉक्टर सिर से पैर तक पसीने में गर्क हो गया।
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मुंगेरीलाल के बदनसीब सपने-ब्रज की दुनिया

mungeri

मित्रों,आजकल अपने मुंगेरी भाई बहुत परेशान हैं.काजीजी तो सिर्फ शहर की चिंता में ही दुबले हो गए थे,मुंगेरी भाई के पास तो चिंताओं का अम्बार है.एक चिंता अभी खत्म भी नहीं हुई होती है कि दूसरी बेचारे के छिलपट मगज पर आकर सवार हो जाती है.चिंता से चतुराई का घटना सर्वज्ञात तथ्य है सो बेचारे चतुर से चतुरी चमार बनते जा रहे हैं.क्या करें और क्या न करें;क्या खरीदें और क्या न खरीदें;आज सिर्फ आम आदमी की ही समस्या नहीं है बल्कि इससे सपनों की दुनिया के बेताज बादशाह भी त्रस्त हैं.
       मित्रों,इन दिनों मुंगेरीलाल जी की सबसे बड़ी समस्या है महंगाई.अभी बेचारे खुश चल रहे थे कि सब्जियों के दाम गिर गए हैं.कई महीनों के बाद उनकी बेलगाम जीभ ने हरी-हरी सब्जियों का स्वाद चखा था.मुंगेरी लाल जी की तरंगित आँखें फिर से लखना डाकू को पकड़ने के सपने देखने लगी थीं कि नींद ही टूट गयी.इस बार उनके रिटायर्ड दारोगा ससुर ने स्वप्नभंग नहीं किया बल्कि उनका सपना टूटा रेडियो पर डीजल,किरासन और रसोई गैस के दाम बढ़ने की खबर को सुनकर.सुनते ही मानो बेचारे की जिंदगी का ही जायका बिगड़ गया.
          मित्रों,मुंगेरी भाई ने एक लम्बे समय से दाल का स्वाद नहीं चखा.और भी ऐसी कई खाने-पीने की चीजें हैं जो इस कृशकाय प्राणी की पहुँच से दूर हो चुकी हैं.मुंगेरी भाई अब चिंतित हैं कि पहले से ही मनमाना भाड़ा वसूलने वाले निजी वाहन मालिक अब न जाने कितना किराया बढ़ा दें.कहीं ऐसा न हो कि अब डीजल गाड़ियों की यात्रा भी दाल-सब्जियों की तरह मुगेरी भाई की पहुँच से दूर हो जाए.फिर बेचारे कहाँ तक बिना जूता-चप्पल वाले पैरों को घसीटते चलेंगे?बात इतनी ही हो तो खुदा खैर करे.डीजल का दाम बढ़ने का मतलब है मालवाहक के किराये में भी मनमानी बढ़ोतरी.फिर बेचारे किस-किस वस्तु के उपयोग का त्याग करते चलेंगे.अगर इसी तरह ज़िन्दगी के लिए जरुरी वस्तुओं का एक-एक कर त्याग करते रहे तो बहुत जल्दी जिंदगी ही उनका त्याग कर देगी.
             मित्रों,मुंगेरी भाई ने कई साल पहले बिजली का कनेक्शन लगवाने के लिए बिहार राज्य विद्युत् बोर्ड में आवेदन किया था.मीटर भी जमा करवाया था लेकिन कई साल बीत जाने के बाद भी बेचारे को विद्युत् बोर्ड के महा (ना) लायक कर्मचारियों के शुभ दर्शन नहीं प्राप्त हुए हैं.सो बेचारे रात में ढिबरी जलाते हैं और इस तरह तनहाई में रात को धोखा देने का प्रयास करते हैं.लेकिन अब क्या होगा रामा रे?अब राशन के साथ-साथ किरासन भी बेचारे की पहुँच से बाहर होती जा रही है.ढंग से उनका नाम तो बीपीएल सूची में होना चाहिए था लेकिन गाँव के मुआं निमुंछिये मास्टरों की भ्रष्ट करतूतों के कारण बेचारे एपीएल में पड़े हुए हैं.ऐसा भी नहीं है कि उन्होंने इसे सुधरवाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया लेकिन कई वर्षों तक प्रखंड कार्यालय के चक्कर काटने के बाद भी जब काम नहीं बना तो छोड़ दिया खुद को खुदा के भरोसे.
             मित्रों,मुंगेरी भाई को रसोई गैस का मूल्य बढ़ने से कोई फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि श्रीमान के पास कभी इतना पैसा नहीं रहा कि जगे हुए या सोए हुए में गैस कनेक्शन लेने की सोंचते भी.वैसे वे इसका दाम बढ़ने से जनता को होनेवाली दुश्वारियों से पूरी तरह अनजान हों ऐसा भी नहीं है.अपने दिल से जानिए औरों के दिल का हाल कहावत के अनुसार वे चिंतित हैं कि गैस कनेक्शन रखने वालों का क्या होगा.इस महंगाई में वैसे ही जीवन-रक्षा कठिन है;अब और भी मुश्किल हो जाएगी.
          मित्रों,मुंगेरी भाई हर चुनाव में नियमित तौर पर मतदान करते आ रहे हैं;इस उम्मीद में कि इस बार तो बदलाव आकर रहेगा.नेताजी ने अपने मुंह से जो कहा है.आज उन्होंने जब अख़बारों में पढ़ा कि शरद पवार नाम के एक सम्मानित व वरिष्ठ मंत्री ने खुद ही चीनी का दाम बढ़वा दिया तो उन्हें खुद के आदतन मतदान करने पर शर्म आने लगी और गुस्सा भी.आजादी के समय से ही बेचारे सपने देखते रहे हैं.आपने उन्हें दूरदर्शन पर सपने देखते हुए देखा भी है.लेकिन लखना डाकू को पकड़ने का उनका सपना तो उनकी सपनीली दुनिया का काफी छोटा भाग है.उन्होंने कई बार देश के बदलने के सपने अहले सुबह में देखे.इस उम्मीद में कि लोग कहते हैं कि सुबह का सपना सच हो जाता है परन्तु सब व्यर्थ.इसलिए मुंगेरी भाई नहीं चाहते अब कोई भी सपना देखना किन्तु यह तो ऐसी शह है जिस पर उनका कोई नियंत्रण नहीं.स्वर्गीय पत्नी के प्यार में उन्होंने क्या-क्या नहीं छोड़ा?अब बेचारे अफीम और शराब को हाथ तक नहीं लगाते लेकिन पत्नी के लाख मना करने पर भी सपना देखना नहीं छोड़ पाए.अभी भी एक सपना देखने में लगे हैं.वे देख रहे हैं कि देश में राम-राज्य आ गया है.किसी को भी किसी प्रकार का दुःख नहीं है.सबके सब तन-मन से पवित्र हो गए हैं और उनका यानि मुंगेरी भाई का नाम बीपीएल में जुड़ गया है.मंत्रियों-अफसरों-भ्रष्ट कर्मचारियों ने अपनी सारी संपत्ति जनता में वितरित कर दी है और खुद दांतों के बीच में तिनका दबाकर वन को प्रस्थान कर गए हैं.चारों तरफ धर्म की ध्वजा फहराने लगी है.

Ganpati ji Hamare Ghar Slideshow

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पावली की पदोन्नति । Part- 1.


पावली की पदोन्नति । 
Part- 1.

सौजन्य-गूगल

बताइए ना, बेकसूर रुपया  कितना अखण्ड था?
पावली  छाप कहलाया  वह, पाखंडी  होते  ही ..!!"

पावली= कमअक्कल, बुद्धिहीन ।
                                                                         
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"क्यों दवेजी, आपको क्या लगता है? काले धन के विरुद्ध चल रहे आंदोलन के चलते, सरकार, ५०० और १००० रूपये के नोट रद्द कर  देगी?" अधिक मूल्य की नोट रद्द होने के भय से कांप रहे एक मित्र ने मुझ से सवाल किया ।

चेहरा गंभीर करके, किसी महान चिंतक की अदा में, मैंने उत्तर दिया,"पता नहीं, पर  इतना ज़रूर है कि, हमारे महान भारत में, काला धन और भ्रष्टाचार, अगले  ५०० या १००० साल तक, मिटने वाले नहीं है..!! चाहे  कोई  कितने ही आंदोलन क्यों न करें?"

ड़री हुई आवाज़ में, मित्र ने फिर सवाल किया," क्यों? आप ऐसा क्यों कहते हैं?"

मैंने उन्हें विस्तार से समझाया," देखिए,अण्णा हज़ारे, मानो सच्चे मन से लोक पाल बील को भले ही अमल में लाना चाहते हो पर, उनकी बढ़ती उम्र को ध्यान में रखते हुए,ज्यादा दिन तक उपवास करना, उनके स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं है और रही बाबा रामदेवजी की बात तो, ३० जून २०११ से चवन्नी (पावली) को चलन से हटा कर सरकार ने, आंदोलनकारीओं और देश की जनता को,अपनी शुद्ध नियत का परिचय करा दिया है..!! आज चवन्नी रद्द हुई है, कल को ५००-१००० के नोट भी रद्द हो सकते है? चवन्नी से ५००-१००० तक की सफर तय करने में, थोड़ा वक़्त तो लगता ही है ना?"

मित्र को लगा, उनकी गंभीर बात को मज़ाक में लेकर,   मेरी बातों से, मैं उन्हें उलझा रहा हूँ, अतः  मुझ से थोड़ा नाराज़ होकर, स्वतः कुछ बड़बड़ाते हुए, वह अपने रास्ते चल दिए ।

पर, मुझे ऐसा महसूस होने लगा मानो,`पावली-पावली-पावली` कहते हुए,   मेरे दिमाग पर, रद्द की गई चवन्नीओं को पिघलाकर बनायी गई, छोटी सी हथौड़ी  कोई पीट रहा है..!!

मेरे मन में, रह-रह कर एक ही सवाल उठ रहा है," चवन्नी रद्द करके सरकार ने चवन्नी का अधःपतन किया या उसकी पदोन्नति कि?"


हालाँकि, हमारे पड़ोसी शर्मा जी का मानना है कि," चवन्नी का प्रोमोशन कैसे हुआ? दवे जी, आप ही बताईए ना, आजकल चवन्नी में क्या मिलता है? चवन्नी में, सब्जी वाला, हरा धनिया-मिर्ची देने से भी इन्कार कर देता है..!!  क्या अण्णा हज़ारे जी और बाबा जी ने इतना बड़ा आँदोलन, चवन्नी रद्द कराने के लिए, आरंभ किया है? सच बात तो यह है कि, काला धन नाबूद करने के लिए, आंदोलन कर रहे सारे आंदोलनकारीओं को, सरकार ने ये संदेश दिया है कि, आपके इस फालतू आँदोलन की हैसियत, हमारे दिल में सिर्फ एक चवन्नीभर ही है..!! अब बताइए, ये तो पावली का  सरासर पतन हुआ है कि नहीं..!!"

दोस्तों, छोड़ो यार शर्मा जी को..!! वो तो कभी सकारात्मक सोचते ही नहीं है..!!

पर, मुझे तो लगता है कि, सरकार अब रद्द की गई सारी चवन्नीओं को पिघलाकर, उसे एक नये रूपये का रूप प्रदान करेंगी, इसका सीधा अर्थ यही हुआ कि, चवन्नी अब एक रुपया कहलाएगी?  पावली का एक रूपये में रूपांतर,उसका प्रोमोशन हुआ की नहीं? आपके चेहरे की मुस्कान बता रही है कि, आप मेरी बात से सहमत है..!! जनाब, अब आप ही बताइए, मेरी बात में दम है कि नहीं? हैं ना..!!

अरे, मैं तो ये भी मानता हूँ कि, पावली का प्रोमोशन करके सरकार ने, अपने हित में भी, एक बहुत बड़ा कदम उठाया है..!! अब आप पूछेंगे, कैसे?

वह ऐसे कि, काला धन और भ्रष्टाचार,पाकिस्तानी आतंकवाद, अमेरिका की दादागीरी के सामने घूटने टेकने वाली और मर्दानगीपूर्वक उनसे निपटने में अभी तक नाकामी का आरोप झेल रहे प्राइममिनिस्टर श्री मनमोहन सिंह जी और उनकी यु.पी.ए. सरकार को, सारा देश प्रकट या दबे स्वर में, `पावली छाप सरकार- पावली छाप सरकार` कह कर, उनका मज़ाक उड़ाते थे..!!

अब,ऐसे नारों से ख़फ़ा हो कर,थक-हार कर, सरकार ने, चलन से पावली को ही हटा दिया? मानो पूरे देशवासीओं को सरकार, ठेंगा दिखाते हुए, ये कह रही हो," हे..फटे दिमागवाले, निकम्मे-बेकार-नालायक आँदोलन कारी देशवासीओं, जाओं हमने चलन से पावली को ही मिटा दिया है, अब हमें `पावली छाप सरकार` कैसे कह पाएंगे? रामजी झूठ न बुलवाए..!! आज के बाद किसी को ये हक़ नहीं रहेगा कि, सारी सरकार को कोई `पावली छाप-पावली छाप सरकार` कहकर पुकारें? " 

वैसे, सरकार के पावली मिटाने के ऐतिहासिक फैसले का,समर्थन फ्रान्स की विख्यात कला संरक्षक लॅडी `मेरी एन.डी.विची` (१६९६-१७८०) ने भी किया है,

" The distance dosen`t matter; it is only the first step that is difficult." 

अर्थात्- दूरी कितनी लंबी है, इसका महत्व नहीं है, उस फ़ासले को मिटाने के लिए पहला कद़म उठाना, वही मुश्किल होता है..!!



अब जब, फ्रांस की इतनी बड़ी हस्ती,`मेरी एन.डी.विची` ने, यु.पी.ए. सरकार के समर्थन में, उस  ज़माने  में अगर,  इतनी बड़ी बात कह  दी थीं तो फिर, उस  लेडी  के  कथन  का  मान रखते  हुए, हमारे महान देश के सभी फटे दिमाग वाले, निकम्मे-बेकार-नालायक आँदोलनकारी देशवासीओं को, अपना आँदोलन अब  यह समझ कर स्थगित कर देना चाहिए कि, सरकार ने अपनी सच्ची निष्ठा-मन सा जताते हुए, चवन्नी से, १००० रुपये के नोट रद्द करने, जैसी  मुश्किल सी लगने वाली सफर  की,  लं...बी, दू..री  को तय करने हेतु, आज चवन्नी रद्द कर के, जब पहला कदम सफलतापूर्वक  उठा ही लिया है तो, कल यही सरकार ५००-१००० के नोट भी निरस्त कर देगी..!! फिर इसी सफर में, निरस्त होने की बारी होगी  भ्रष्टाचार की, फिर आयेगा काला धन, फिर आतंकवाद, फिर पाकिस्तान, फिर आयेगा अमेरिका, फिर...?

फिर आगे क्या?  इस महान देश की, महान सरकार के बारे में,अच्छी-अच्छी बातें, क्या मैं  अकेले ही  थोड़े ही ना सोचूँ? आप, अपना खुद का दिमाग कब लड़ायेंगे..!!

वैसे, हमारे शर्मा जी कहते हैं," पावली रद्द होने से, भिख़ारीओं को बड़ी राहत पहुँचेगी..!!"

चौकन्ने हो हर, आसपास देखते हुए, मैंने उन्हें चेताया," या..र, ज़रा ध्यान से..!! कोई सुन लेगा, नेताओं को भिख़ारी का उप-नाम हम नहीं दे सकते,हमारा हाल भी बाबा जी और उनके समर्थकों जैसा हो सकता है..!!"

शर्मा जी ने कहा," मैं तो, उन सच्चे भिख़ारीओं के बारे में, कह रहा हूँ, जो मंदिर के बाहर बैठ कर सचमुच भीख माँगते हैं..!! उनको भीख में, कोई चवन्नी देता था तो उन्हें मानहानि सा महसूस होता था,अब  ज्यादा अपमानित होने से, वे लोग बच जाएंगे?" शर्मा जी की बात बिलकुल सही है । शर्मा जी तो भिखारीओं की बात करते हैं?

एकबार, मैं और शर्मा जी  रेस्त्रां में चाय-नाश्ता करने गये। डटकर नाश्ता करने के बाद  वेटर, एक प्लेट में चाय-नाश्ते का बिल लेकर आया और शर्मा जी के सामने रख दिया । बिल देख कर, कंजूस शर्मा जी ने जेब से बिल जितनी ही रकम निकाली और प्लेट में  रख दी । ये देख कर मैंने, शर्मा जी को जब टोका," शर्मा जी, वेटर को टिप भी देना चाहिए..!!" तब  शर्मा जी ने, प्लेट में अलग से, एक चवन्नी  टिप के तौर पर  रख दी..!!

अब तक चेहरे पर मधुर सी मुस्कान बिखेरते हुए, शांत सा विनयी दिखने वाला वेटर, चवन्नी की टिप देखकर शर्मा जी पर भड़क उठा और तिरस्कार के भाव धारण कर, अपने चेहरे को विकृत करते हुए, प्लेट से चवन्नी उठा कर शर्मा जी के हाथ में वापस थमा दी..!!

मुझे बहुत शर्म महसूस हुई, पर शर्मा जी ने बिना शर्माये, चवन्नी जेब में रखी और उठ कर रेस्त्रां से बाहर आ गए..!!

मेरे कहने का मतलब सिर्फ ये है कि,भिखारी हो,वेटर हो,व्यापारी हो या फिर, छोटा सा बच्चा, इस असहनीय महँगाई में,आजकल पावली इतनी पवित्र हो चुकी थीं कि,कोई भी समझदार,पापी देशवासी,अपने पापों से मलिन हुए  अपवित्र हाथ से, पवित्र पावली को छूने की हिम्मत तक नहीं जूटा पा रहा था?


वैसे, या...र..!! पावली का अधःपतन हुआ हो या पदोन्नति हुई हो, हमको अब क्या लेना-देना..!!

पर ये बात तो सच है कि, आज़ादी के तुरंत बाद, इन पावलीओं का भी एक ज़माना था..!!

अ..हा..हा..हा..!! सन-१९६० में, एक दिन रास्ते पर किसी की खोई हुए, एक चवन्नी मुझे अनायास मिल गई और सभी घरवालों से छिपा कर, उस चवन्नी से, मैंने चार दिन तक, जो जल्से किए थे..!! अ..हा..हा..हा..!! आज भी उसे, याद कर के मेरा दिल गदगद हो उठता है..!!

आपको जानना है? मैने उस चवन्नी से क्या-क्या खरीदा और फिर आगे क्या हुआ था?

तो फिर तैयार हो जाइए, इस आलेख की अगली कडी-पार्ट-२ में हमारी-आपकी रोचक चवन्नी-कहानी को हम आगे बढ़ाएंगे..!!

दोस्तो, मेरे हमउम्र कई विद्वान दोस्तों ने कभी न कभी इस पवित्र पावली को जरूर सहलाया होगा, आपको उस पवित्र पावली कसम है एक बार सब मिल ज़ोर से नारा लगाएं..प्ली..ज़..!!


`जय-जय पावली परमात्मन्..!! जय-जय हिन्दुस्तान..!! मेरा भारत महान?`

मार्कण्ड दवे । दिनांक-३०-०६-२०११.

parwaz परवाज़: कब तक तारे जमीन पर लाते रहेंगे या लगान चुकाते रहें...

parwaz परवाज़: कब तक तारे जमीन पर लाते रहेंगे या लगान चुकाते रहें...: "भाग डी. के बोस : डैडी मुझसे बोला तू गलती है मेरी ... आजकल युवाओं की जबान पर चढ़ा देल्ली बेल्ली का ये गाना सुर्ख़ियों में है.और इसको सुर्ख..."

parwaz परवाज़: ढूंढो रे साजना वो एक चुइंग-गम वाला

parwaz परवाज़: ढूंढो रे साजना वो एक चुइंग-गम वाला: "आज की ताज़ा खबर वित्त मंत्रालय में जासूसी ...सुबह से हर टी वी चेनल पर यही खबर सुनाई दे रही है सही भी है जब कांग्रेस के धुरंदर नेता प्रणव मुख..."

parwaz परवाज़: माँ मुझे घर याद आता है...

parwaz परवाज़: माँ मुझे घर याद आता है...: "माँ मुझे घर याद आता है... हर ख़ुशी में हर गम में प्यार ज्यादा हो चाहे कम में माँ मुझे घर याद आता है अब पता चला मुझे क्यों भर आती थी आँख..."

parwaz परवाज़: रेव पार्टी :अब तो शर्म भी शर्माने लगी है

parwaz परवाज़: रेव पार्टी :अब तो शर्म भी शर्माने लगी है: "अखबारों के वो क्लासिफाइड विज्ञापन तो आपको याद ही होंगे ' जिंदगी में मौज मस्ती के लिए हमसे जुड़े २० हजार से ३० हजार रूपए महिना कमाए संपर्क कर..."

"माँ धूमावती":-(श्रद्धा और प्रेम की भूखी)

अध्यात्म में सब कुछ अनुभव की ही बात होती है,जिसे समय से पूर्व बता देना कदापि उचित नहीं होगा एक साधक के लिए।मैं क्यों लिखता हूँ ब्लाग पर।यह सोचकर कि शायद मेरे अनुभव से प्रेरित होकर किसी को स्वयं का अनुभव लेने का मन करे और वह किसी भी एक साधना का मार्ग अपनाकर आगे बढ चले।मैं शिवशक्ति को "ॐ शिव माँ" इस नाम से क्यों पुकारता हूँ क्योंकि इस नाम का महत्व मेरे साधना की अनुभूति से संबधित हैं।अमर प्रेम की अमर कहानी,शिवशक्ति के सनातन प्रेम का संबध,त्याग,दया और करूणा की लीला हैं।

दशमहाविद्या रुपों के अंतर्गत "माता धूमावती" युगों युगों तक परम प्रेम की विरह वेदना,त्याग और ममता से भरी भूखी माँ है।किस चीज की भूख है इन्हें?वास्तव में जीव को शिव तत्व से ज्ञान प्राप्त कराकर शिव में मिला देना और सभी कुछ प्रदान कर देना यही इनकी ममतामयी भूख हैं।भूखी माँ हैं इसलिए भक्त को अपने आचार के हिसाब से धूमावती माता को खूब ढेर सारा भोग देना चाहिये ताकि माँ की कृपा बनी रहे।इनकी साधना बिना योग्य गुरू के कभी भूल से भी नही करनी चाहिये।मोह का जो नाश कर दे वही धूमावती हैं।हमारे जीवन में भाँति भाँति के मोह हैं।प्रेमिका,पत्नि का मोह,पद प्रतिष्ठा का मोह,संतान,धन,पद का मोह यहाँ तक की अपने शरीर का मोह,अंहकार का मोह,पापकर्म का मोह।जीवन के हर क्षेत्र में हम मोह से ग्रसित है,कारण हमारे अंदर दैविक शक्ति के साथ आसुरी शक्ति भी विद्यमान है इस आसुरी शक्ति के मोह का यह नाश करती है तभी हम अध्यात्म के डगर पर श्रद्धा से निर्भिक होकर पैर बढा पाते है।शत्रु संहार और दारिद्रय नाश के साथ ही भक्तों की रक्षा करती हैं।

उत्पति कथाः-
 इनकी उत्पति की कथा कुछ इस प्रकार है।एक बार भगवान शिव के अंक में अवस्थित माँ पार्वती भूख से पिड़ित होकर शिव से कुछ भोजन प्रबंध करने को कहने लगी,तब शिव ने कहा देवी प्रतिक्षा किजिये,शीघ्र भोजन की व्यवस्था होगी।परन्तु बहुत समय बीत जाने पर भी भोजन की कोई व्यवस्था नहीं हो सकी तब स्वयं भगवती ने शिव को ही मुख में रखकर निगल लिया,उससे उनके शरीर से धुआं निकला और शिव जी अपने माया से बाहर आ गये।बाहर आकर शिव ने पार्वती से कहा,मैं एक पुरूष हूँ और तुम एक स्त्री हो,तुमने अपने पति को निगल लिया।अतः अब तुम विधवा हो गई हो इस कारण तुम सौभाग्यवती के श्रृंगार को छोड़कर वैधव्यवेष में रहो।तुम्हारा यह शरीर परा भगवती बगलामुखी पीताम्बरा के रूप में विद्यमान था,लेकिन अब तुम धूमावती महाविद्या के रूप में जगत में पूजित होकर संसार का कल्याण करते हुए विख्यात होगी।

रुप और नामः-
 यह देवी भयानक आकृति वाली होती हुई भी अपने भक्तों के लिये सदा तत्पर रहती हैं।इन्हें ज्येष्ठा तथा अलक्ष्मी भी कहा जाता हैं।जगत की अमांगल्यपूर्ण अवस्था की अधिष्ठात्री के रूप में ये देवी त्रिवर्णा,विरलदंता,चंचलाविधवा,मुक्तकेशी,शूर्पहस्ता,कलहप्रिया,काकध्वजिनी आदि विशेषणों से वर्णित हैं।

प्रसंगः-
 दतिया में माता धूमावती की प्रतिष्ठा हुई,कारण सन १९६२ ई. में चीन देश द्वारा अपने देश पर आक्रमण करने से देश में संकट की घड़ी पैदा हो गयी।देश की आजादी शैशवास्था में थी।वहाँ के नेता माओत्सेतुङ्ग और चाऊएनलाई ने भारत से मित्रता कर हमें धोखा दिया था़।सच्चे देशभक्त की भाँति "श्रीस्वामी प्रभु" का हृदय राष्ट्र पर आई विपति को देखकर द्रवित हो उठा।
प्रभु ने राष्ट्र को निर्लिप्त रखकर उस महानतम विपत्ति से किस प्रकार बचाया जाये,इसका स्मरण करते हुये माँ का गुणगान किया।श्रीस्वामी जी ने एक शास्त्री को बुलाकर कहा कि देश पर संकट हैं और यह दैवीय उपाय से ही टाला जा सकता हैं।बड़े बलिदानों के बाद हमारा देश स्वतंत्र हुआ हैं,परन्तु शत्रु आक्रमण करके देश को फिर से गुलाम बनाना चाहते हैं।इन शत्रुओं की बर्बरता हमारे आर्य धर्म के लिए अत्यन्त घातक सिद्ध होगी।देश में न राम रहेगा न दास।देश में नास्तिकता घर कर जाएगी।शास्त्री ने जिज्ञासा की,क्या इसका कोई उपाय किया जा सकता है?प्रभो! श्री स्वामी जी ने उत्तर दिया,साधु शस्त्र लेकर तो लड़ नहीं सकते,पर जगदम्बा का प्रार्थना रूप अनुष्ठान अवश्य करा सकते हैं।इसके लिए सौ कर्मकाण्डी पण्डितों की आवश्यकता होगी,जो नित्य दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं अपने दैनिक जीवन में।जो अपने भजन का विक्रय न करते हों,जो शक्ति मन्त्र से दीक्षित हो।इसके लिए धन भी चाहिए।फिर चीन तो क्या ब्रह्माण्ड भी बदला जा सकता है।तुम कार्यक्रम की तैयारी करो।शास्त्री ने घर आकर विचार किया कि इसमें तो लाखों रूपये खर्च होंगे,धन कहाँ से आएगा? दूसरे दिन श्री महराज ने पूछा"क्या कार्यक्रम बना लिया हैं"?नहीं महराज जी अभी बना रहा हूँ।कहकर बात टाल दी।श्रीस्वामी जी ने कहा शीघ्रता से बनाओ।तीसरे दिन भक्त रामदास बाबा ने देखा महाराज जी व्यग्रता और बैचेनी से शिव मन्दिर के पास टहल रहे हैं।डरते डरते पास जाकर उन्होंने देखा कि महाराज जी का शरीर काँप रहा है नेत्रों में लाली छायी हैं,और मुँह से सिंह जैसी गर्जना निकल रही हैं।उन्होंने देखा कि श्री महाराज जी ने दाहिने हाथ की मुट्ठी को बाँधकर अपने सीने पर बड़े जोर से मारा जिससे बड़े धमाके की आवाज हुई।फिर सिंह गर्जनाकर बोले चीन अवश्य वापस जाएगा,चाहे मुझे इसके लिए अपना सर्वस्व ही क्यों न लगाना पड़े।इस देश का अन्न खाया हैं।रामदास बाबा से कहकर उस शास्त्री को बुलवा कर पूछा क्या तुमने कार्यक्रम बना लिया हैं?शास्त्री ने कहा महाराज बना रहा हूँ।यह सुनते ही महाराज जी ने कहा "तुम बड़े सुस्त हो,देश पर संकट आया है और तुम काम में देर कर रहे हो।"शास्त्री मन ही मन सोच रहे थे,चलो कार्यक्रम तो बना देते हैं होना जाना तो कुछ है नहीं क्योंकि खर्च का प्रबन्ध कहाँ से होगा।अभी यह बात सोच ही रहे थे कि देखा दवाईयाँ बनाने वाली कम्पनी "बैधनाथ भवन के मालिक पण्डित रामनारायण वैध स्वामी" दर्शन हेतु बड़ी व्यग्रता से अन्दर आ रहे हैं।वैध जी ने आते ही प्रणाम करके कहा प्रभो देश पर महान संकट आया है,क्या किया जाए?श्री स्वामी जी ने उत्तर दिया "उपाय तो है लेकिन धन की आवश्यकता पड़ेगी।" वैधजी ने शीघ्र उत्तर दिया मेरी अपनी सम्पूर्ण सम्पति जो आपकी कृपा से ही मुझे प्राप्त हुई है,राष्ट को समर्पित हैं। यह सुनकर शास्त्री सोचने लगे मुझे कितने दिन प्रभु के पास आते हुए हो गये लेकिन मैंने इन्हें पहचाना नहीं और बात को टालता रहा,वे लज्जित होकर शीघ्र ही कार्यक्रम बनाने में जुट गए।वैद्यजी ने धन और पण्डित सबका प्रबन्ध किया,अनुष्ठान प्रारम्भ हो गया।अनुष्ठान के मध्य में ही श्री सदाशिव स्वामी अनुष्ठान की सफलता की घोषणा कर दी।इस अनुष्ठान में त्रैलोक्य स्तम्भिनी भगवती बगलामुखी एवं भगवती धूमावती का आह्वान किया गया था।अनुष्ठान के दौरान जबकि अनिष्ठान प्रारंभ हुए करीब एक सप्ताह हुआ था श्री प्रभु ने अपने रात्री के एक स्वप्न का साधकजनों को विस्तृत विवरण दिया "रात्री को हमने स्वप्न में क्या देखा कि हम घूमते हुए उद्यान में पहुँचे जहाँ एक छोटा सा जलाशय भी है।समीप जाकर क्या देखते हैं,जलाशय के किनारे एक काले वर्ण की बुढिया बैठी है और उसके पास एक बालक भी खड़ा है।पास आने पर बुढिया अंग्रेजी में बोली "आई डोन्ट नो यू"।यह वचन सुनकर मैंने हाथ जोड़कर उसका अभिवादन किया,इतने में हमारी नींद टूट गई तब से हम यही सोच रहे हैं कि यह तो धूमावती देवी थी।हम हमेशा इनका स्मरण भी करते हैं फिर भी इन्होने यह क्यों कहा "आई डोन्ट नो यू" श्री महाराज के श्री मुख से यह शब्द बड़े ही प्यारे मालुम हुए।श्री स्वामी ने आगे कहा "मालुम होता है कि इस अनुष्ठान में हमने इनका योगदान नहीं लिया है शायद वे इसलिए असंतुष्ट हैं,हमें उनका भी योगदान इस अनुष्ठान में लेना होगा।फिर वैसा ही किया गया।भक्त गोपालदास जो वहाँ बैठे थे,श्री महाराज जी से आज्ञा माँगकर भगवती धूमावती के संस्मरण सुनाने लगे जो अनुष्ठान के समय में हुए थे।श्री प्रभु ने उनको आदेश दिया था कि भगवती धूमावती के चित्र से,जो दीपक के सामने स्थित है,यदि कोई अनुभव या मूक भाषा सुनाई दे तो वह तुरन्त आपको सुनाया जाए।ग्यारहवें दिन अर्धरात्री को आश्रम में निर्मित अखाड़े के पास एक भयानक तांत्रिक पशु की ध्वनि हुई।तुरन्त जाकर भक्तों द्वारा स्वामी जी को बताया गया और उन्होनें प्रसन्न मुद्रा में कहा आंरभ शुभ है जाओ अपना काम करो।पन्द्रहवें दिन चित्र से आदेश मिला मैं भूखी हूँ।यह भी प्रभु को बतलाया,तो उन्होनें पूरा विवरण सुनकर कहा,वह तो हमेशा भूखी रहती हैं,उनको बली देना अत्यन्त कठिन है।चावल,साबुत,उड़द,शुद्ध घी,गुड़ और दही सम्मिश्रण कर भोजन कराओ"।दूसरे दिन पुनःचित्र से संकेत मिला कि "भोजन पर्याप्त नहीं है,तब फिर श्री स्वामी की आज्ञा से घी चुपड़ी चार रोटी और बढा दी गई।अगली रात पुनः चित्र से संकेत मिला कि अभी जप कम हो रहा है,पाँच माला और बढाओ,तब उन्होनें पाँच माला का जप और बढाने का आदेश दिया।इक्कीसवें दिन जप करते हुए गोपालदास अर्धनिद्रित हो गए तभी भगवती धूमावती ने उनका हाथ पकड़ कर कहा,मेरे साथ मोटर में बैठकर चीन चलो।गोपालदास ने उत्तर में कहा कि,मैं अनुष्ठान कर रहा हूँ,अनुष्ठान छोड़कर मैं कैसे जा सकता हूँ,कृपा करके आप अकेली चली जाएँ।माता धूमावती कार में बैठ गयी,मोटर चलने की आवाज आयी और वे अदृश्य हो गयी।यह बात श्री प्रभु से कही,तो उन्होनें कहा,तुमने गलती की तुम्हें माँ के साथ जाना था,खैर!अब हमको जाना पड़ेगा।उसके दूसरी रात्री को जपकर्ताओं ने जप करते समय अर्धोन्मीलित नेत्रों से देखा कि भगवती धूमामाई चीनी सेना पर प्रहार कर रही है,परिणाम स्वरूप चीनी सेना में भगदड़ सी मच रही है और वह अपने देश को वापस जा रही हैं।बाद में पूर्णाहुति से पूर्व ही चीन ने युद्ध विराम की घोषणा कर दी।
 इन्हीं दिनों देवरिया के एक एक वकील साहब ने श्री स्वामी की आज्ञा से सन् १९६२ ई. में भगवती धूमावती के लिए एक छोटा सा मंदिर निर्मित करा दिया,क्योंकि माता धूमावती ने श्रीस्वामी से कहा "मैंने तुम्हारा काम किया हैं अब तुम भी मेरा काम करो" मेरा भी आश्रम में एक मंदिर बनवाओं,तब श्रीस्वामी ने माता धूमावती की प्रतिष्ठा कराकर भक्तों के लिए उनके दर्शन सुलभ बना दिया।श्रीस्वामी जी की एक शिष्या श्रीमती रेणु शर्मा नागपुर से गुरूदेव से मिलने आई,आकर प्रणाम कर बैठी ही थी कि एक कृशकाय वृद्धा श्वेत वस्त्र पहने और ललाट तक ओढनी ओढकर वहाँ आई।उसने आते ही स्वामी जी से प्रसाद देने के लिए निवेदन किया,प्रभु ने उस वृद्धा को प्रसाद दिया।प्रसाद लेकर वह मुड़कर वापस जाने लगी।वह कुछ ही कदम चली होगी कि श्री मुख से निकला "भगवती धूमावती प्रतिदिन एक बार यहाँ से प्रसाद लेने आती हैं"।उसी समय रेणु शर्मा ने पूछा,हे सर्वसाक्षी!अभी आप कह रहे थे कि धूमावती माता प्रसाद लेने आती हैं,अगर उनके आने का समय आप बता दें तो मैं उस समय आकर उनका दर्शन करूँ।आपने कहा उनके आने का कोई समय नहीं है,तभी रेणुशर्मा के मस्तिष्क में बिजली सी कौंधी कि यह बुढिया माता धूमावती तो नही थी और शीघ्रता से पलटकर पिछे की ओर देखा तो कोई भी नहीं था।रेणु शर्मा ने श्री स्वामी से पूछा कही यह बुढिया धूमावती माता तो नहीं थी,तो उन्होनें बहुत रहस्यमय वाणी में कहा ,हो सकता है,वो ही हो।

दतिया में नित्य कुछ समय के लिए भगवती धूमावती का दर्शन होता हैं,वैसे शनिवार को विशेष दर्शन होता है, भक्त लोग सफेद पुष्प के साथ नमकीन,मिक्चर के साथ,पुड़ी,पकौड़ा प्रसाद अर्पण कर माता की कृपा प्राप्त करते है।माता धूमावती विधवा रूप में है,इसलिये सौभाग्यवती स्त्री को दर्शन करने का निषेध हैं।महाविद्या में धूमावती का विशिष्ट महत्व है।जीवन में रोग,पीड़ा सभी को मर्माहत कर देता है।जीवन का शांत भाव से मनन किया जाय तो पता चलता है कि अंहकार,एवं मोह के कारण हम सत्य से दूर हो चूके है।"क्या चाहिए हमे"? शिव की उपासना करने से गुरू प्राप्त होते है तभी जीवन का रहस्य समझ में आता है।श्री करपात्री जी को मैसुर के राजा ने गंगा किनारे का अपना सैकड़ों एकड़ भूमि,महल के साथ दान कर दिया तब श्री करपात्री जी ने द्वारकापीठ के शंकराचार्य को बुलाकर उन्हें सारी संपति दे दी,यही संत,साधक का लक्षण है।श्रीसाई बाबा शिरडी वाले जीवन भर भक्तों के लिए सभी कुछ प्रदान किये,स्वयं के कुर्ता में पैंबद लगा रहा और उनका नाम बेचकर दुसरे ने अरबों कमा डाला।कौन सच्चा संत है यह तो हमे सोचना चाहिए।
 गुरू गोरखनाथ,अवधूत दतात्रेय,श्रीस्वामी,श्रीरामकृष्ण परमहंस,श्रीसाईबाबा,स्वामी समर्थ,तैलंग स्वामी,वामाखेपा,अघोरी कीनाराम ,आचार्य श्रीरामशर्मा ये सभी परम संत,साधक,तथा स्वयं परमतत्व ही है।आज नकली साधक,संत से बजार पटा है,सभी सिद्ध बनते है परन्तु ये किसी काम के नही है कारण माता धूमावती ने सभी को मोह से ग्रसित कर दिया है।साधक को ज्यादा समय मिलता ही कहाँ जो शिविर लगाए,दीक्षा दे,ज्यादा भीड़ जुटाने वाले का लक्षय एक ही है कि मेरे भक्त ज्यादा लोग हो जाए और धनार्जन हो।दशमहाविद्या ब्रह्मविद्या है और इसके अधिपति शिव हैं।बिना शिव कृपा किसी के महाविद्या की साधना फलीभूत नहीं होती।मेरा मन जब तक कृपण है,गणितीय बुद्धि है तब तक साधना के क्षेत्र में प्रगति संभव नहीं हैं।ऐसी कोई समस्या नहीं है,जो धूमावती माता दूर न करे।भूख लगी हो उस समय शरीर का क्या हाल होता है,इसे कोई भी समझता है।शिव ने लीला की और परम प्रेमी पुरूष शिव को ही उदरस्थ कर लिया यह जीव के प्रति शिव का प्रेम ही है, तभी तो करूणा से भरी उग्र शक्ति धूमावती को हम बार बार नमस्कार करते है।माता हम सच्चे मन से आपको पकौड़ा,पकवान का भोग देकर आपकी स्तुति कर रहे है,हमारे,संतान,परिवार के साथ ही हमारे राष्ट की भी रक्षा करे,तभी तो दतिया में आप विराजमान है।आपकी जय हो,जय हो,जय हो।श्रीस्वामी सहित माता धूमावती को बार बार नमस्कार हैं।

महंगाई व प्रधानमंत्री के वायदे

राजकुमार साहू, जांजगीर, छत्तीसगढ़
प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने मार्च 2012 तक महंगाई दर में 6 प्रतिशत की कमी होने का एक बार फिर दावा किया है। दरअसल, प्रधानमंत्री जी प्रिंट मीडिया के कुछ प्रमुख संपादकों से बुधवार को मुखातिब हुए। यहां उन्होंने भ्रष्टाचार, लोकपाल बिल समेत अन्ना हजारे, बाबा रामदेव के आंदोलन के संबंध में अपनी बात रखी। साथ ही खुद को कमजोर प्रधानमंत्री कहे जाने को एक सिरे से खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि यह विपक्ष का दुष्प्रचार है, जबकि वे हर संभव कोशिश कर रहे हैं कि देश में कैसे विकास दर को बढ़ाया जाए और देश की प्रमुख समस्या भ्रष्टाचार तथा महंगाई से निपटा जाए।
संपादकों से हुई चर्चा में अन्य मुद्दों को फिलहाल छोडकऱ, महंगाई जैसी देश की गंभीर समस्या पर मंथन करना इसलिए भी जरूरी है कि प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह, बार-बार वादे पर वादे करते जा रहे हैं और महंगाई दर कम होने के बजाय बढ़ती जा रही है। ऐसा कोई माह नहीं जाता, जब कोई आवश्यक वस्तुओं के दाम में बढ़ोतरी नहीं होती और उसके बाद प्रधानमंत्री यही कहते नजर आते हैं कि महंगाई पर कुछ ही महीनों में लगाम ली जाएगी या फिर महंगाई दर में कमी आ जाएगी। मगर अफसोस, सरकार महंगाई की दर घटाने में असफल रही है तथा उल्टे महंगाई दर हर बार बढ़ती जा रही है। अब अकेले पेट्रोल के ही दाम को ले लीजिए, बीते नौ माह में 9 बार जहां कीमत बढ़ाई जा चुकी हैं, वहीं यूपीए-2 के बीते दो बरस में 23 बार बेहिचक पेट्रोल की दर में इजाफा किया गया है।
अब बात करते हैं, प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के महंगाई कम करने संबंधी वायदों की। अभी साल भर में प्रधानमंत्री ने ऐसे पांच अवसरों पर महंगाई पर काबू पाने के दावे किए थे, जिसकी पोल उस मियाद के खत्म होते ही खुल जाती है। सबसे पहले 15 अगस्त 2010 को दिल्ली के लाल किला की प्राचीर से उन्होंने अपने भाषण में महंगाई कुछ ही महीनों में कम करने का हवाला दिया था, इस समय लोगों के मन में विश्वास जगा कि चलो अब तो महंगाई डायन के डंक से मुक्ति मिलेगी, किन्तु उन्हें कहां पता था कि वह दावे खोखले ही साबित होंगे और सरकार की महंगाई रोकने की चाल, महज ढाक के तीन पात रह जाएगी।
दूसरी बार प्रधानमंत्री डा. सिंह ने 24 मई 2010 को महंगाई दर को 5-6 प्रतिशत तक लाने की बात कहते हुए दिसंबर 2010 तक हर हाल में महंगाई पर काबू पाने का आश्वासन, देश की अवाम को दिया था, मगर यह आश्वासन भी सिफर ही रहा और मध्यमवर्गीय परिवारों को महंगाई से झटके पर झटके लगते रहे।
तीसरी बार उन्होंने 23 नवंबर 2010 को देश की जनता को भरोसा दिलाते हुए महंगाई से निपटने की मंशा जाहिर की, वह भी कुछ महीनों बाद धरी की धरी रह गई। प्रधानमंत्री का यह डेटलाइन भी अधूरी रही, क्योंकि महंगाई रोकने सरकार पूरी तरह अक्षम साबित हुई और महंगाई दर में कई गुना वृद्धि हो गई।
चौथी बार प्रधानमंत्री डा. सिंह ने 20 दिसंबर 2010 को एक नई डेटलाइन तय की और मार्च 2011 तक महंगाई दर को 5 प्रतिशत तक लाने की ऐसी मंशा जताई कि देश की जनता को लगने लगा, इस बार तो सरकार ने महंगाई से निपटने पूरी कमर कस ली है, लेकिन वही पुराने हालात रहे और अर्थशास्त्री माने जाने वाले प्रधानमंत्री, महंगाई रोकने लाचार नजर आए और सरकार की ओर से कहा गया, जो वे अब तक कहते आ रहे हैं कि महंगाई, केवल भारत की समस्या नहीं है, बल्कि यह अंतर्राष्ट्रीय समस्या है, मगर सवाल यह है कि जब सरकार ऐसी सोचती है तो देश की जनता को बरगलाने की कोशिश क्यों करती है ? क्यों, सरकार महंगाई रोकने बार-बार एक नई डेटलाइन तय करती है ? यह बातें सरकार को स्पष्ट करना चाहिए। देश की सवा अरब जनता को सरकार की नीति के बारे में जानने का पूरा हक है।
अब पांचवीं बार प्रधानमंत्री जी ने पिं्रट मीडिया के संपादकों से चर्चा में उस बात को एक बार फिर दोहराई है, जिसे वे पिछले साल भर से कहते आ रहे हैं और महंगाई दर में कमी लाने एक नई डेटलाइन तैयार की है, वो है मार्च 2012। इस तरह महंगाई दर 6 प्रतिशत तक लाने की दुहाई दी गई है। यहां सवाल सरकार के समक्ष यही है कि आखिर महंगाई कैसे रूक पाएगी ? क्या इस बार प्रधानमंत्री अपने दावे पर खरे उतर पाएंगे ? क्या इस बार भी उनके दावे की हवा निकल जाएगी ? और कई बरसों से जारी महंगाई की समस्या जस की तस बनी रहेगी ? यह सब सवाल, देश की हर वो अवाम जानना चाह रही है, जो महंगाई की समस्या की मार से कराह रही है।
केन्द्र की यूपीए सरकार की इस दूसरी पारी में ही दर्जनों बार अलग-अलग वस्तुओं के दाम में बढ़ोतरी की गई है, जिससे आम लोग महंगाई की समस्या से दो-चार हो रहे हैं। सरकार द्वारा जिस तरह दावे पर दावे पर किए जा रहे हैं, वह दावे केवल कोरे ही साबित होते आ रहे हैं, इससे सरकार की आर्थिक नीति पर सवालिया निशान भी लग रहा है। प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह ने देश को महंगाई से निपटने पांचवीं बार भरोसा दिलाया है, अब इसमें उनकी नीति कितनी कारगर साबित होती है ? यह तो आने वाले समय में ही पता चलेगा, लेकिन इस बार प्रधानमंत्री के दावे खोखले साबित हुए तो देश की अवाम का भरोसा इस सरकार से उठ ही जाएगा ? क्योंकि आखिर कब तक देश, उस ख्याली पुलाव के सहारे जीती रहेगी, जो केवल आश्वासनों पर टिका हुआ है। कहीं देश की जनता को यह न लगे कि प्रधानमंत्री जी के वायदे, कोरे ही नहीं, बल्कि झूठे होते हैं।







29.6.11

सैंया बने भैया


मेरठ के आरती-नितीश प्रकरण ने रिश्तों की एक नई परिभाषा की व्युत्पत्ति की। रिश्ता, सात्विक भावनाओं व निश्छलता का। आरती ने सत्य के आँचल की छांव में अपने और विनीत के सम्बन्ध को नितीश के सम्मुख स्वीकार किया और नितिश ने भी सन्तुलित व्यक्तित्व का परिचय देते हुए आरती के साथ एक नवीन पवित्र रिश्ते की डोर बाँधी। समाजशास्त्री इस नव-परिवर्तन को स्वीकार न कर सामाजिक कुप्रभाव की संभावनाएँ व्यक्त कर रहे हैं। परन्तु पिछले कुछ आंकडों का विश्लेषण करने पर ऑनर किलिंग की बढ़ती घटनाओं का यह समाधान तलाशने की बाध्यता ऑनर किलिंग के जनकों ने ही उत्पन्न की है। बेटियों को शिक्षित कर उन्हंे प्रत्येक अधिकार प्रदान करने की रीत में एक कड़ी अभी भी टूटी हुई है, उन्हंे अपने योग्य जीवन साथी के चयन की स्वतंत्रता। यही कारण है कि आरती को माता-पिता की आज्ञा का अनुसरण करते हुए नितीश का हमसफर बनने के लिए विवश होना पड़ा। परन्तु क्या इस मजबूरी के रिश्ते का बोझ वे दोनों जीवन पर्यन्त ढो पाते? क्या एक-दूसरे के प्रति निष्ठा व सम्पर्ण की आस्था उनमें उत्पन्न हो पाती? ऐसी परिस्थितियों में नितिश का यह निर्णय एक मिसाल है। उसके सुलझे मस्तिष्क व व्यापक सोच का स्वागत किया जाना चाहिए। और अभिभावकों को विचारना चाहिए कि वर्तमान में तलाक, हत्या, भाग जाना, ऑनर किलिंग जैसी बढ़ती घटनाआंे में वृद्धि न हो इसके लिए बच्चों के मित्र बन उनके करियर के साथ-साथ विवाह सरीखे विषयों पर भी खुलकर बात करें और उनमें स्वयं के हित-अहित पर मनन करने की योग्यता विकसित करें। साथ ही अभिभावकों को भी व्यवहारगत जड़ता का त्याग करते हुए बच्चों के सही निर्णयों को सहर्ष स्वीकार कर शुष्क सम्बन्धों को जीवन्त करने का प्रयास करना चाहिए। परिवर्तन ही संसार का नियम है और पारस्परिक सामंजस्य इस नवीन परिवर्तन को एक सार्थक परिणाम प्रदान कर सकता है।

ओमेगा-6 वसा अम्ल की वेदना सुन कर मैंने उनका शपथ पत्र लिखा

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद हम देख रहें हैं कि कुछ बीमारियां जैसे हृदय रोग, मोटापा, मधुमेह, डिप्रेशन, आर्थाइटिस और कैंसर आदि का प्रकोप साल दर साल बढ़ता ही जा रहा है। अब तो इन बीमारियों ने महामारी का रुप ले लिया है। इसके कारण जानने के लिए वैज्ञानिकों ने अनुसंधान किये और निम्न तथ्य सामने आये।

• द्वितीय विश्व युद्ध के समय से रसायनिक उर्वरक और कीटनाशकों का प्रयोग बहुत बढ़ा है।

• द्वितीय विश्व युद्ध के पहले बाजार में मिलने वाले खाद्य पदार्थ मक्खन, घी या नारियल के तेल द्वारा बनाये जाते थे। लेकिन बाद में सस्ते तेलीय बीजों से बने घातक ट्रांसफैट युक्त रिफाइण्ड तेल और मार्जरीन, जो तेलों को हाइड्रोजनीकरण करके बनाये जाते हैं, का प्रयोग बढ़ता गया और सभी पैकेट बन्द खाद्य पदार्थ बनाने वाले संस्थान मक्खन या नारियल के तेल के स्थान पर मार्जरीन, जिसे भारत में वनस्पति घी कहा जाता है, का प्रयोग धड़ल्ले से करने लगे हैं।

• हमारे भोजन में ओमेगा-3 वसा अम्ल की मात्रा निरंतर कम होती जा रही है और ओमगा-6 वसा अम्ल की मात्रा काफी ज्यादा हो गई है। जहाँ पहले दोनों वसा अम्लों का अनुपात 1:2 या 1:4 हुआ करता था वह अब 1:40 या 1:80 हो गया है। ऐसा होने से शरीर में इन्फ्लेमेशन और बीमारियां पैदा करने वाले प्रोस्टाग्लेन्डिन-2, ल्यूकोट्राइन्स और थ्रोम्बोक्सेन का निर्माण ज्यादा हो रहा है। और ऐसी धारणा बन गई है कि ओमेगा-6 ही बीमारियों का मुख्य कारण है। इस तरह वैज्ञानिक, चिकित्सक और मीडिया ओमेगा-6 वसा अम्ल को बेड बॉय या खलनायक कहने लगे हैं। जबकि यह यथार्थ नहीं है। सामान्यतः जिस तरह ओमेगा-3 शरीर के लिए अच्छे और शोथहर प्रोस्टाग्लेन्डिन-3 बनाते हैं उसी तरह ओमेगा-6 भी अच्छे और शोथहर प्रोस्टाग्लेन्डिन-1 बनाते हैं। परन्तु यदि शरीर में ओमेगा-3 की अल्पता है और ओमेगा-6 ज्यादा है तो डेल्टा-5-डीसेचुरेज एंजाइम को ई.पी.ए. के निर्माण के लिए पर्याप्त आइकोसा टेट्रानोइक एसिड उपलब्ध नहीं होता है और डी.जी.एल.ए. बहुतायत में विद्यमान होने से डेल्टा-5-डीसेचुरेज एंजाइम डी.जी.एल.ए. को एरेकिडोनिक एसिड ए.ए.में परिवर्तित कर देता है। कोक्स एंजाइम इस ए.ए. से शरीर को क्षति पहुंचाने वाले शोथ कारक प्रोस्टाग्लेंडिन-2 का निर्माण करता है। अतः शरीर को क्षतिग्रस्थ करने वाले प्रोस्टाग्लेंडिन-2 के निर्माण के लिए जिम्मेदार मानव का विकृत आहार विहार है न कि ओमेगा-6 वसा अम्ल।

ओमेगा-6 वसा अम्ल ने सारी व्यथा मुझे सुनाई और अपनी पीड़ा से मुझे अवगत कराया और मानव समाज को विधिवत एक शपथ पत्र लिखने की इच्छा जाहिर की। जिसे मैंने उनके लिए लिपिबद्ध किया है। आप भी इस शपथ पत्र का ध्यान से अवलोकन करें और मानव हितार्थ ओमेगा-6 वसा अम्ल द्वारा दिये गये सुझावों पर अमल करें ताकि आप और आपका परिवार आजीवन स्वस्थ रहे।


टेढ़ी नजर

राजकुमार साहू, जांजगीर, छत्तीसगढ़
1. समारू - प्रधानमंत्री ने प्रिंट मीडिया के प्रमुख संपादकों से चर्चा की।
पहारू - दिखाना चाह रहे हैं कि मेरी उछल-कूद में कोई कमी है तो बताओ।


2. समारू - खटारा गाड़ी में शहीद के शव मामले में छग के मुख्यमंत्री की सफाई।
पहारू - जिम्मेदार अफसरों पर कार्रवाई की जहमत कहां उठा सकते हैं।


3. समारू - आरबीआई ने चवन्नी के सिक्के को बंद कर दिया।
पहारू - अब कोई चवन्नी छाप नहीं होगा।


4. समारू - प्रधानमंत्री ने साल भर में पांचवीं बार महंगाई कम होने का दावा किया है।
पहारू - झूठा तेरा वादा....झूठा तेरा वादा... मारी गई जनता...।


5. समारू - छग के आरटीओ में कामबंद करने की चेतावनी दी गई है।
पहारू - कर्मचारी नेता के खिलाफ कार्रवाई तो महंगी पड़ेगी, ही।

साथ मरने की कसम खा लो जो खाई जाए..........

वन्दे मातरम बंधुओं,

प्यार सेहरा में रहे या की गुलिस्ताँ में रहे,
प्यार की तान ही सुननी है सुनाई जाए........

चार सू दिखती हैं लाशें यहाँ चलती फिरती,
जो पुर सुकून लगे शैय वो ही दिखाई जाए.........

वाद रुखसत के मेरी मैयत पर,
बड़ी महंगी है कोई चादर ना चड़ाई जाए.......

राह से भटके है जो भाई अपने,
राह पुर अमन की उनको है बताई जाए........

साथ जीने की कसम खाना बड़ा मुश्किल है,
साथ मरने की कसम खा लो जो खाई जाए..........

सरहदों के पार भी रहते तो इन्सां ही हैं,
हुक्मरानों को सिखाओ जो ये बात सिखाई जाए...........
पैसा जन्नत में किसी काम नही आयेगा,
हरेक सौदे पे कमिशन क्यों फिर खाई जाये ...........

विश्व गुरु जबकि रहा दुनियां में मेरा हिन्दोस्तां,
प्यार ओ तहजीब की अलख फिर से जगाई जाए........

संस्कारों पे अपने जो चलेंगे हम सब,
खून की नदी ना फिर धरती पे बहाई जाये.......


हाल बेहाल हुआ नाशाद वतन "दीवाना",
आओ मिल जुल के कोई बात बनाई जाए.........

टेढ़ी नजर -

राजकुमार साहू, जांजगीर, छत्तीसगढ़
1. समारू - महंगाई ने आर्थिक बजट बिगाड़ दिया है।
पहारू - ‘आम आदमी के साथ हाथ‘ वाली सरकार पर और विश्वास करो।


2. समारू - बाबा रामदेव ने कहा है कि वे कायर नहीं है।
पहारू - सच है, नहीं भागते तो पुलिस का कोपभाजन बनना पड़ जाता।


3. समारू - छग कांग्रेस में नए जिलाध्यक्षों की घोषणा जल्द होने वाली है।
पहारू - फिर क्या है, कलह भी जल्द आने वाली है।



4. समारू - भाजपा के मध्यप्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा ने बढ़ती महंगाई को लेकर मौत मांगी है।
पहारू - देश में भला इससे बढ़कर राजनीति हो सकती है।


5. समारू - छग के रायगढ़ में शहीद के शव को कचरा वाहन में लाया गया।
पहारू - किसी मंत्री के साथ ऐसा होता तो पहाड़ सिर पर उठा लेते।

अन्ना हजारे को अक्ल आ गई ठिकाने

सारे राजनीतिज्ञों को पानी-पानी पी कर कोसने वाले, पूरे राजनीतिक तंत्र को भ्रष्ट बताने वाले और मौजूदा सरकार को काले अंग्रेजों की सरकार बताने वाले गांधीवादी नेता अन्ना हजारे की अक्ल ठिकाने आ ही गई। वे समझ गए हैं कि यदि उन्हें अपनी पसंद का लोकपाल बिल पास करवाना है तो लोकतंत्र में एक ही रास्ता है कि राजनीतिकों का सहयोग लिया जाए। जंतर-मंतर पर अनशन करने से माहौल जरूर बनाया जा सकता है, लेकिन कानून जंतर-मंतर पर नहीं, बल्कि संसद में ही बनाया जा सकेगा। कल जब ये कहा जा रहा था कि कानून तो लोकतांत्रिक तरीके से चुने हुए जनप्रतिनिधि ही बनाएंगे, खुद को जनता का असली प्रतिनिधि बताने वाले महज पांच लोग नहीं, तो उन्हें बड़ा बुरा लगता था, मगर अब उन्हें समझ में आ गया है कि अनशन और आंदोलन करके माहौल और दबाव तो बनाया जा सकता है, वह उचित भी है, मगर कानून तो वे ही बनाने का अधिकार रखते हैं, जिन्हें वे बड़े ही नफरत के भाव से देखते हैं। इस कारण अब वे उन्हीं राजनीतिज्ञों के देवरे ढोक रहे हैं, जिन्हें वे सिरे से खारिज कर चुके थे। आपको याद होगा कि अपने-आपको पाक साफ साबित करने के लिए उन्हें समर्थन देने को आए राजनेताओं को उनके समर्थकों ने धक्के देकर बाहर निकाल दिया था। मगर आज हालत ये हो गई है कि समर्थन हासिल करने के लिए राजनेताओं से अपाइंटमेंट लेकर उनको समझा रहे हैं कि उनका लोकपाल बिल कैसे बेहतर है?
इतना ही नहीं, जनता के इस सबसे बड़े हमदर्द की हालत देखिए कि कल तक वे जनता को मालिक और चुने हुए प्रतिनिधियों को जनता का नौकर करार दे रहे थे, आज उन्हीं नौकरों की दहलीज पर मालिकों के सरदार सिर झुका रहे हैं। तभी तो कहते है कि राजनीति इतनी कुत्ती चीज है कि आदमी जिसका मुंह भी देखना पसंद करता, उसी का पिछवाड़ा देखना पड़ जाता है। ये कहावत भी सार्थक होती दिखाई दे रही है कि वक्त पडऩे पर गधे को भी बाप बनाना पड़ता है।
आइये, अब तस्वीर का एक और रुख देख लें। जाहिर सी बात है कि विपक्षी नेताओं से मिलने के पीछे अन्ना का मकसद ये है कि यदि उनका सहयोग मिल गया संसद में उनकी आवाज और बुलंदी के साथ उठेगी। मगर अन्ना जी गलतफहमी में हैं। माना कि सरकार को अस्थिर करने के लिए, कांग्रेस के खिलाफ माहौल बनाने के लिए विपक्षी नेता अन्ना को चने के झाड़ पर चढ़ा रहे हैं, मगर जब बात सांसदों को लोकपाल के दायरे में लाने की आएगी तो भला कौन अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारेगा। यह तो गनीमत है कि अन्ना जी जिस मुहिम को चला रहे हैं, उसकी वजह से उनकी जनता में इज्जत है, वरना वे ही राजनीतिज्ञ बदले में उनको भी दुत्कार कर भगा सकते थे कि पहले सभी को गाली देते थे, अब हमारे पास क्यों आए हो?
जरा अन्ना की भाषा और शैली पर भी चर्चा कर लें। सभी सियासी लोगों को भ्रष्ट बताने वाले अन्ना हजारे खुद को ऐसे समझ रहे हैं कि वे तो जमीन से दो फीट ऊपर हैं। माना कि सरकार के मंत्री समूह से लोकपाल बिल के मसौदे पर मतभेद है, मगर इसका अर्थ ये भी नहीं कि आप चाहे जिसे जिस तरह से दुत्कार दें। खुद को गांधीवादी मानने वाले और मौजूदा दौर का महात्मा गांधी बताए जाने पर फूल कर कुप्पा होने वाले अन्ना हजारे को क्या ये ख्याल है कि गांधीजी कभी घटिया भाषा का इस्तेमाल नहीं करते थे। उनके सत्य-आग्रह में भाषा का संयम भी था। यदि कभी संयम खोया भी होगा तो उनकी मुहिम अंग्रेजों के खिलाफ थी, इस कारण उसे जायज ठहराया जाता सकता है। मगर अन्ना ने तो मौजूदा सरकार को काले अंग्रेजों की ही सरकार बता दिया। ऐसा कह के उन्होंने अनजाने में पूरी जनता को काले अंग्रेज करार दे दिया है। जब ये सरकार हमारी है और हमने ही बनाई है तो इसका मतलब ये हुआ कि हम सब भी काले अंग्रेज हैं। मौजूदा सरकार कोई ब्रिटेन से नहीं आई है, हमने ही लोकतांत्रिक तरीके से चुनी है। हम पर थोपी हुई नहीं है। कल हमें पसंद नहीं आएगी तो हम दूसरों को मौका दे देंगे। पहले भी दे ही चुके हैं। सरकार से मतभेद तो हो सकता है, मगर उसके चलते उसे अंगे्रज करार देना साबित करता है कि अन्ना दंभ में आ कर भाषा का संयम भी खो बैठे हैं। असल बात तो ये है कि वे दूसरी आजादी के नाम पर जाने-अनजाने देश में अराजकता का माहौल बना रहे हैं।
वे पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को ईमानदार बता कर इज्जत दे रहे थे, मगर अब जब बात नहीं बनी तो उन्हें ही सोनिया की कठपुतली करार दे रहे हैं। हालांकि यह सर्वविदित है कि सरकार का रिमोट कंट्रोल सत्तारुढ़ संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की अध्यक्ष सोनिया गांधी के हाथ में है, उसमें ऐतराज भी क्या है, फिर गठबंधन का अध्यक्ष होने का मतलब ही क्या है, मगर अन्ना को अब जा कर समझ में आया है। तभी तो कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह तो सीधे और ईमानदार आदमी हैं लेकिन रिमोट कंट्रोल (सोनिया गांधी) समस्याएं पैदा कर रहा है। कल उन्हें आरएसएस का मुखौटा बताए जाने पर सोनिया से ही उम्मीद कर रहे थे कि वह कांग्रेसियों को ऐसा कहने से रोकें और आज उसी सोनिया से नाउम्मीद हो गए।
बहरहाल, मुद्दा ये है कि उन्हें अपना ड्राफ्ट किया हुआ लोकपाल बिल ज्यादा अच्छा लगता है, और हो भी सकता है कि वही अच्छा हो, मगर उसे तय तो संसद ही करेगी। कम से कम अन्ना एंड कंपनी तो नहीं। यदि संसद नहीं मानती तो उसका कोई चारा नहीं है। ऐसे में यदि वे 16 अगस्त से फिर अनशन करते हैं तो वह संसद के खिलाफ कहलाएगा। सरकार की ओर से तो इशारा भी कर दिया गया है। उनके अनशन के हश्र पर ही टिप्पणियां आने लगी हैं। खैर, आगे-आगे देखिए होता है क्या?
आखिर में एक बात और। जब भी इस प्रकार अन्ना अथवा बाबा के बारे में तर्कपूर्ण आलोचना की जाती है तो उनके समर्थकों को बहुत मिर्ची लगती है। उन्हें लगता है कि लिखने वाला या तो कांग्रेसी है या फिर भ्रष्टाचार का समर्थक या फिर देशद्रोही। जिस मीडिया के सहारे आज देश में हलचल पैदा करने की स्थिति में आए हैं, उसी मीडिया को वे बिका हुआ कहने से भी नहीं चूकते। ऐसा प्रतीता होता कि अब केवल अन्ना व बाबा के समर्थक ही देशभक्त रह गए हैं। उनसे वैचारिक नाइत्तफाक रखने वालों को देश से कोई लेना-देना नहीं है।
-तेजवानी गिरधर, अजमेर

निरमा बाबा की चौथी आंख


                                                               

.  अष्टावक्र


एक दिन सुबह सुबह पत्नी ने मेरे हाथो से झाड़ू लेकर गर्मागरम चाय की प्याली रख दी । आसन्न खतरे को भांप कर मै सर्तक हो गया । श्रीमती ने कहा सुनो आज कल मेरा समय खराब चल रहा है क्यो न किसी अच्छे बाबा की शरण मे चलें | मै मन ही मन भुनभुनाया झाड़ू पोछा मै कर रहा हूं और समय इनका खराब चल रहा है । श्रीमती ने निरमा बाबा की जानकारी दी बड़े पहुंचे हुये बाबा हैं टीवी चैनलो मे छाये रहते हैं । मैने बहुत समझाया कि बाबा लोगो का चक्कर बेकार है भाई केवल टोपी देते हैं अरे उनमे ऐसी शक्तियां होती तो खुद का भला पहले करते काहे गरीबो से पैसे लेने की दरकार होती और ये टीवी वाले भी इनको नैतिकता से कोई लेना देना थोड़े है जिससे पैसा मिला उसको दिखा दिया । लेकिन समझाना व्यर्थ था पूरे तीन हजार रूपये बाबा के बैंक खाते मे जमा करके बाबा से उनके एक शिविर मे मिलने का नंबर लगा ।



पहुंचा तो देखा सैकड़ो की भीड़ थी संपर्क स्थल पर एक दादा टाईप के भक्त ने मनी रिसीट की जांच की और ससम्मान लाईन मे लगा दिया । नियत स्थान पर पहुचते ही मैने नजर घुमाई चारो ओर भक्ती का सागर हिलोरे मार रहा था वही कुछ मेरे टाईप के असंतुष्ट भी थे जो कि बलपूर्वक लाये गये थे । बाबा का कार्यक्रम शुरू हुआ सबसे पहले लाटरी लगी वाले अंदाज मे कुछ भक्तो ने बाबा का गुणगा्न शुरू किया किसी की लड़की की शादी बाबा के आशीर्वाद से हुई थी किसी का व्यापार रतन टाटा की तरह चमक गया था लाईने ऐसी बोल रहे थे कि मानो स्वयं कादर खान ने लिखी हो मैने मन ही मन अनुमान लगाया कम से कम 3000 प्रतिदिन लेते होंगे । उधर पत्नी ने विजयी निगाहो से मुझे देखा मानो मुझे उसका उपकार मानते हुये रात को आधा घंटा अतिरिक्त हाथ पैर दबाने का निर्देश दे रही हो ।

पूरा पढ़ने के लिये http://aruneshdave.blogspot.com/2011/03/blog-post_22.html

मानवता-सौहार्द-नैतिकता-भाई चारे की शिक्षा देते संत-डॉ कल्बे सादिक

अरविन्द विद्रोही बाराबंकी के कर्बला में मजलिस ए गम में शामिल होने का निमंत्रण वरिष्ट पत्रकार रिजवान मुस्तफा के द्वारा मुझे प्राप्त हुआ तो अपने सामाजिक सरोकार व पत्रकारिता के धर्म का पालन करने हेतु मैं वहा पहुच गया |तक़रीबन दोपहर १२ बजे इस्लामिक - शिया धर्म गुरु डॉ कल्बे सादिक समारोह स्थल पर आये, मंच पर आते ही उन्होंने उपस्थित जनों से मुखातिब होते हुए कार्यक्रम में देरी से आने के लिए माफ़ी मांगी | आज के दौर में जहा पर लोग अपनी बड़ी गलतियो पर सामाजिक-सार्वजनिक रूप से माफ़ी नहीं मांगते है,उस दौर में एक प्रख्यात हस्ती,एक धर्म गुरु द्वारा जन सामान्य से कार्यक्रम के प्रारंभ में ना आ सकने की माफ़ी मांगना,यकीन मानिये मैं तो हतप्रभ रह गया |और तो और देर से आने की पूर्व सूचना भी धर्म गुरु डॉ कल्बे सादिक ने आयोजक रिजवान मुस्तफा को दे दी थी |उसके बाद भी माफ़ी | आह ! विनम्रता की प्रतिमूर्ति - तुझे मेरा प्रणाम , उसी पल मैंने मन ही मन उन्हें अपना अभिवादन प्रेषित किया | मुझे आभास हुआ की आज यह समारोह कुछ विशिष्ट सन्देश प्राप्ति का स्थल बनेगा | अपने संबोधन में डॉ कल्बे सादिक ने धर्म क्या है ,पर सरल व मृदु वचनों में कहा कि धर्म वो है जो आपको गलत रास्ते पर जाने से बचाए | आज धर्म को बचाने की बात होती है,कोई इन्सान धर्म कैसे बचा सकता है? धर्म तो आपको बचाने ,सही रास्ता दिखाने के लिए है | धर्म के नाम पर मतभेद ख़त्म करने की अपील करते हुए धर्म गुरु डॉ कल्बे सादिक ने कहा कि आज यहाँ कर्बला में शिया - सुन्नी, हिन्दू सभी धर्म के मानने वाले मौजूद है | मैं हज़रत साहेब को मानने वालो से पूछना चाहता हूँ कि हज़रत साहेब से जंग क्या हिन्दू ने लड़ी थी? बैगैर ज्ञान के मनुष्य जानवर से भी बदतर होता है | खुदा,परमेश्वर जो भी कहिये उसने सबसे बुद्धिमान मनुष्य को बनाया है और यह मनुष्य अपने कर्मो से अपने को सबसे नीचे गिरा लेता है | ज्ञान व विज्ञानं इन्सान व इस्लाम के फायदे के लिए है | ज्ञान हासिल करना नितांत जरुरी है | कई घटनाओ का हवाला देते हुए डॉ कल्बे सादिक ने कहा कि जुल्म के खिलाफ लड़ने वाला ही सच्चा मुसलमान होता है , जुल्म करने वाला मुसलमान हो ही नहीं सकता | आतंकवाद के सवाल पर धर्म गुरु डॉ कल्बे सादिक ने कहा कि मैं यह जिम्मेदारी लेता हूँ कि हज़रत मोहम्मद साहेब को मानने वाला कभी भी दहशत गर्त हो ही नहीं सकता , जो दहशत गर्त हैं और जो बेगुनाहों का खून बहाते है उनसे पूछा जाये यकीनन वो जुल्मी यजीद को मानने वाले ही होंगे | मोहम्मद साहेब को मानने वाला जुल्मी हो ही नहीं सकता | बहकावे और उकसाने वाली कार्यवाहियो से बचे रहने तथा अमन चैन की पैरोकारी करने की अपील करते हुए डॉ कल्बे सादिक ने एक वाकया सुनाया | उन्होंने बताया की यह बात हज़रत साहेब के दौर की है | एक अरबी उस मस्जिद में पाहुजा जिसे खुदा की इबादत के लिए रसूल ने अपने हाथो से तामीर की थी | उस अरबी ने मस्जिद में पेशाब करना शुरु कर दिया , वहा रसूल के साथ मौजूद सेवक ने उस अरबी को रोकना चाहा,रसूल ने सेवक से कहा - जरा ठहरो , उसे कर लेने दो पेशाब | वहा गन्दगी फैला कर वह अरबी वापस चल दिया , अब रसूल ने कहा मस्जिद में जो गन्दगी इसने पेशाब करके फैलाई है , उसको पानी से धो कर साफ़ कर दो | कई बाल्टी पानी डाल डाल कर वहा सफाई करवाई खुद रसूल ने | अरबी वहा आया था खलल पैदा करने के मकसद से व मार पीट के इसदे से | रसूल के इस प्रकार के व्यव्हार से वह अरबी भी रसूल का मुरीद हो गया | यह वाकया सुना कर डॉ कल्बे सादिक ने कहा कि यह है हज़रत मोहम्मद साहेब का चरित्र | इस छमा और विनम्रता की राह पर चल कर रसूल ने इस्लाम को विस्तार दिया था और आज आप मुसलमान क्या कर रहे हो ? यह सोचिये...हिन्दुओ के त्यौहार होली में रंग अगर मस्जिद की दीवारों पर पड़ जाये तो आप उत्तेजित हो जाते हो | अरे..होली का रंग तो पाक होता है, दीवारों पर चूना लगा कर दीवारों को फिर से चमका सकते हो लेकिन आप लोग तो इंसानों को चुना लगा सकते हो लेकिन मस्जिद की रंग लगी दीवारों पर चूना नहीं लगा सकते हो | इस्लाम जुल्म के खिलाफ लड़ने का , आपसी भाईचारे का , विनम्रता का सन्देश देता है | धर्मगुरु डॉ कल्बे सादिक ने मुसलमानों से कहा कि आप कि पहचान क्या है ? आज आप समाज में लम्बे कुरते , ऊँचे पायजामे , लम्बी दाढ़ी , टोपी से पहचाने जा रहे है | जिस जगह मीनारे, गुम्बद , मस्जिद होती है - लोग कहते है यहाँ मुसलमान रहते है | आज आपका बाहरी व्यक्तित्व आपकी पहचान बन चुका है | इस्लाम व मुसलमान का वास्तविक रूप सामने लाने की जरुरत है | डॉ कल्बे सादिक ने बताया कि सही मायने में मुसलमान बस्ती वो है जहा पर कोई मांगने वाला ना हो सब देने वाले हो | मस्जिद खुदा का घर होता है | वह पाक जमीन पर बननी चाहिए | किसी दुसरे की जमीन पर जुल्म जबरदस्ती के जोर से मस्जिद बनाने से वो खुदा का घर नहीं हो जाता | जुल्मी शासक लोग धर्म का इस्तेमाल अपने गुनाहों और जुल्मो को छिपाने के लिए धर्म का बेजा इस्तेमाल करते रहे है | ऐसे जुल्मी कभी भी खुदा के बन्दे नहीं हो सकते | जनाब डॉ कल्बे सादिक ने इस पर भी एक वाकया सुनाया | उन्होंने कहा कि अगर एक जरुरत मंद का मकान बनवा दिया जाये तो खुदा उसको अपना आशियाना मानता है | जरुरतमंदो की मदद करना खुदा के बताये राह पर चलना है | नेक कामों से इस्लाम का विस्तार हुआ , आज नेकी की राह पर सभी को चलने की जरुरत है | समाज में और विशेष कर मुसलमानों में शिक्षा की कमी पर धर्म गुरु डॉ कल्बे सादिक ने बार बार चिंता व्यक्त की | उन्होंने कहा कि विश्व हिन्दू परिषद् के नेता प्रवीण भाई तोगड़िया ने कहा है कि हर मस्जिद के बगल में मंदिर बनाया जायेगा, मैं उनसे अनुरोध करता हूँ कि वे हर मस्जिद के बगल में विद्या मंदिर की स्थापना जरुर करवा दे | जिससे हिन्दुओ के साथ साथ मुसलमान बच्चे भी शिक्षा ग्रहण करे और ज्ञान कि रौशनी में भारत की तरक्की में अपना योगदान करे | अंत में अपनी वाणी को विराम देने के पहले इस्लामिक शिया धर्म गुरु डॉ कल्बे सादिक ने कहा कि बैगैर ज्ञान के इन्सान व देश - समाज की तरक्की नामुमकिन है | इसलिए ज्ञान हासिल कीजिये | समापन के अवसर पर कर्बला की जंग के वाकये को याद करते व दिलाते हुए धर्म गुरु ने सवाल किया कि यह जंग क्या हिन्दुओ से लड़ी गयी थी ? अरे ..वो यजीद और उसके लोग थे,और वो भी पांचो वक़्त के नमाज़ी ही थे ..जिन्होंने रसूल के नवासे को प्यासा ही मार डाला था | यह बात जन समुदाय को उद्वेलित कर गयी | लोगो की सिसकियाँ रुदन में तब्दील हो चुकी थी , इसी समय डॉ कल्बे सादिक ने कहा कि खुदा ना करे कभी ऐसा हो, लेकिन अगर कही फसाद हो जाये और आप मुसलमान किसी हिन्दू बस्ती में अपने परिवार व बच्चो के साथ पीने का पानी मांगोगे तो यह मेरा यकीन है कि हिन्दू फसाद भूल कर आपको अपने घर में पनाह देंगे, पानी - खाना देंगे , लेकिन इतिहास गवाह है कि उन यजीद के मानने वालो ने प्यासा ही मार डाला था | कर्बला का वह दर्दनाक मंज़र सुनकर रुदन कर रहे जन समुदाय का ह्रदय जुल्म के खिलाफ लड़कर शहीद हुए कर्बला के वीरो को अपने श्रधा सुमन अर्पित करने लगा था | इन्सान मात्र से प्रेम ,शिक्षा ग्रहण करने की सलाह , जरुरत मंदों की मादा , अन्याय - जुल्म से लड़ने की सीख़ देते हुए इस्लामिक शिया धर्म गुरु डॉ कल्बे सादिक ने अपनी वाणी को विराम दिया |

प्राकृतिक, शुद्ध, सात्विक और शाकाहारी नमक – सैंधा नमक

साल्ट शब्द का मतलब

साल्ट Salt लेटिन शब्द साल Sal से बना है, जो सोल Sol से लिया गया है और सोल Sol शब्द Sole का पर्याय है। सोल Sole का मतलब है नमक तथा पानी का घोल और सोल sole लेटिन भाषा में sun या सूर्य को कहते हैं। पौराणिक दृष्टि से sole का मतलब तरल सूर्य का प्रकाश Liquid Sunlight है, या सौर ऊर्जा का तरल रेखागणितीय रूपाँतर जो जीवन के सृजन और पोषण की क्षमता रखता है। सम्भवतः यही इस पृथ्वी पर फैले समन्दर में जीवन की उत्पत्ति का रहस्य है।
केल्टिक भाषा में साल्ट को hall कहा गया है, जो जर्मन शब्द heiling से प्रेरित है। heiling का मतलब holy है जो heil से बना है जिसका मतलब है whole या well-being या health और hall का अभिप्राय ध्वनि या sound (जर्मनी में schall) भी है। schall शब्द hall का लम्बा उच्चारण है, जर्मनी में जिसका मतलब प्रतिध्वनि या गुँजन है। गुँजन में vibration होती है। क्या केल्ट यह जानते थे कि नमक में सारे तत्वों की गुँजन होती है। Hall भी जर्मन शब्द heil (जर्मन में Health) की ही गुँजन है। वे ऊर्जाहीन शरीर में hall या नमक द्वारा ऊर्जा के प्रवाह को सन्तुलित करना भी जानते थे। साल्ट को हेलाइट halite भी कहते हैं, यह भी दो केल्टिक शब्दों hall यानी नमक और lit यानी लाइट या सरल शब्दों में कहें तो लाइट वाइब्रेशन। हिमालय से निकले प्राकृतिक, शुद्ध, जैविक, पूर्णतः शाकाहारी और पवित्र नमक है (सैंधा नमक) में वे सारे 94 तत्व होते हैं जिनसे हमारा शरीर बना है, या वे सारे तत्व जो उस समन्दर में थे जहाँ जीवन की उत्पत्ति हुई। व्रत और उपवास में सैंधा नमक ही प्रयोग किया जाता है। रोचक तत्थ्य यह भी है कि हमारा रक्त भी सोल Sole है इसमें भी वे सारे तत्व हैं जो उस समन्दर में थे, जहाँ से जीवन की उत्पत्ति हुई थी।

सफेद सोने से सफेद जहर का सफर

एक ओर जहाँ कहा जाता है कि नमक के बिना जीवन अकल्पनीय है और इसे सफेद सोना कहा गया है और आज हम नमक खाने से कई रोगों के शिकार हो रहे हैं, मर रहे हैं। यह कैसा विरोधाभास है, यह क्या माजरा है। चलिये मैं आपको वास्तविकता बतलाता हूँ। जो परिष्कृत Refined नमक या टेबल सॉल्ट आज हम खा रहे हैं वह प्राचीन काल में प्रयुक्त होने वाले नमक (सैंधा नमक) से बिलकुल भिन्न है, वह नमक है ही नहीं वह सिर्फ सोडियम क्लोराइड है। नमक में तो वे सभी 94 तत्व होते हैं जिनसे हमारा शरीर बना है।

हमारे पूर्वज नमक की महत्ता को समझते थे। जहाँ भी उन्हें नमक मिला, उसकी हिफाजत खजाने की तरह की। नमक के लिए लड़ाइयाँ लड़ी गई। प्राचीन काल में रोम के सिपाहियों को पगार में नमक दिया जाता था। Salary शब्द भी salt शब्द से ही बना है। जीवित रहने के लिए नमक सोने से ज्यादा अहमियत रखता था। इसीलिए इसे सफेद सोना White Gold कहा जाता था।

आज का टेबल सॉल्ट समुद्र के गन्दे पानी से बनाया जाता है, जिसमें मरी हुई, सड़ी हुई मछलियाँ और अन्य जीव-जन्तु होते हैं। कारखाने में इस पानी से सिर्फ सोडियम क्लोराइड अलग कर लिया जाता है। बाकी बहुमूल्य तत्व अलग कर दिये जाते हैं। नमक बनने के समय से लेकर आपकी रसोई तक के सफर में नमी के कारण यह खराब न हो, इसमें डलियाँ न बने, इसलिए इसमें कुछ ऐन्टी-केकिंग रसायन जैसे सोडियम एल्यूमीनोसिलिकेट, सोडियम या पोटेशियम फेरोसायनाइड आदि मिलाये जाते हैं। हमारे देश में सोडियम एल्यूमीनोसिलिकेट का प्रयोग होता है। ये सब शरीर के लिए घातक विष हैं। एल्यूमीनियम हमारे मस्तिष्क और नाड़ियों को क्षतिग्रस्त करता है और एल्झाइमर जैसे रोग पैदा करता है। रतन टाटा बड़े चतुर व्यवसाई हैं। वे विज्ञापनों में फ्री फ्लोइंग बता कर अपने टाटा नमक की बड़ी तारीफ करते हैं, ताकि कभी कोई पूछ ले कि आप नमक में ऐन्टी-केकिंग रसायन क्यों मिलाते हो तो वे चट से सफाई दे सकें कि नमक को फ्री फ्लोइंग बनाने के लिए। आहारशास्त्री इस तरह के सोडियम क्लोराइड को सफेद ज़हर की संज्ञा देते हैं।

भारत में नमक का महत्व

हमारे यहाँ नमक पर कई कहावतें बनी हैं जैसे जले पर नमक छिड़कना, नमक-मिर्च लगाना, नमक का कर्ज चुकाना, आटे में नमक के बराबर आदि। नमक हराम और नमक हलाल फिल्में आपने जरूर देखी होंगी। नमक का हमारे जीवन में इतना महत्व है कि लोग नमक का नाम लेकर कसमें खाते रहे हैं और यह माना जाता है कि जो आपका नमक खा ले वह आपके साथ गद्दारी नहीं कर सकता। शोले में कालिया भी नमक का वास्ता देकर ही गब्बर से अपनी जान बचाने के लिए गुहार करता है और कहता है, "सरदार, मैंने आपका नमक खाया है!"। ऑकारा फिल्म का “जबां पे लागा लागा रे नमक इस्क का” गीत पर बिपाशा बासु के ठुमके सबको याद होंगे। नमक स्त्रियों की सुन्दरता के लिए भी पहली आवश्यकता है। आप मदर इन्डिया में राजकुमार का वह डायलोग नहीं भूले होंगे, जिसमें उन्होने नर्गिस के गाल चख कर तारीफ़ में कहा था, “तुम तो बड़ी नमकीन लग रही हो, लगता है जैसे सारे गाँव का नमक तुम्हीं में आ गया हो।” अमिताभ का ये गीत आज भी लोगों के कानों में गूँज रहा है, ... समन्दर में नहा कर तुम बड़ी नमकीन लग रही हो।

सन् 1930 की उस घटना को कौन भारतीय भूल सकता है, जब क्रूर अंग्रेजी हुकूमत ने नमक पर भारी कर लगा दिया था। कोई भी न तो इसे बना सकता था और न ही सरकार के अलावा किसी और से ख़रीद सकता था। तब महात्मा गाँधी ने नमक आँदोलन किया था और हजारों लोगों की विशाल भीड़ को साथ लेकर 12 मार्च 1930 को साबरमती से डाँडी तक 238 कि.मी. पैदल चल कर अपने लिए मुट्ठी भर नमक बनाया और नमक कानून की धज्जियाँ उड़ा दी थी। यह एक ऐसा सफल आंदोलन था जिसने न सिर्फ ब्रिटेन बल्कि सारे विश्व को स्तब्ध कर दिया था। जिस नमक पर तानाशाही अंग्रेजी हुकूमत भी टेक्स नहीं लगा सकी, स्वतंत्र भारत में आज उसी नमक पर 4% वेट टेक्स कर लगा कर सोनियाँ जी आज महात्मा गाँधी की याद में डाँडी यात्रा करके लौटी  हैं। वाह री सोनिया मैं तुम्हें इसके सिवा क्या कहूँ कि सौ चूहे खाकर बिल्ली हज़ करने निकली है।

अधिक नमक शरीर पर एक बोझ है

हमारे शरीर को रोज 4-5 ग्राम  नमक की  आवश्यकता होती है। हम में से अधिकतर लोग नमक की कमी से ग्रसित हैं, हालाँकि हमारा शरीर सोडियम क्लोराइड की आवश्यकता से ज्यादा मात्रा के बोझ से पीड़ित है। हम रोज औसतन 12 से 21 ग्राम टेबल साल्ट या सोडियम क्लोराइड खा रहे हैं, जब कि हमारे गुर्दे रोज मात्र 5.29 से 7.77 ग्राम सोडियम क्लोराइड का उत्सर्जन कर सकते हैं। इससे ज्यादा सोडियम क्लोराइड हमारे शरीर के लिए एक कोशिकीय विष के समान है, हृदय, गुर्दों और सभी अंगों पर एक बोझ है और शरीर जल्दी से जल्दी इससे छुटकारा पाने की कौशिश करता है। सोडियम क्लोराइड की इस ओवर डोज़ को शरीर पानी में मिला कर, उसमें सोडियम तथा क्लोराइड को ऑयनाइज़ कर निष्क्रिय करने का प्रयास करता है। इस प्रक्रिया में कोशिकाओं से उत्कृष्ट पानी बाहर निकल जाता है और कोशिकाएँ निर्जलीकृत (डिहाइड्रेट) होकर मरने लगती हैं। इस तरह टेबल साल्ट के ज्यादा सेवन से शरीर में सूजन आ जाती है, यानी ऊतकों में अम्लीय पानी इकट्ठा हो जाता है। इसलिए चिकित्सक नमक कम खाने की सलाह देते हैं।

सामान्य परिष्कृत (Refined) या टेबल सॉल्ट सेवन करने के घातक परिणाम

साधारण नमक में 97.5% सोडियम क्लोराइड और 2.5% रसायन जैसे आयोडीन, ऐन्टी-केकिंग एजेन्ट्स, पोटेशियम आयोडाइड, सोडियम-बायोकार्बोनेट, ऐल्यूमीनियम लवण, सोडियम-मोनो-ग्लूटामेट MSG आदि मिलाये जाते है, जो अस्वास्थ्यप्रद और शरीर के लिए घातक हैं।

उसे बनाते समय 1200 डिग्री F तापमान पर गर्म किया और सुखाया जाता है जिसके कारण उसकी आणविक संरचना बिगड़ जाती है।

इसमें वे  सभी 84 तत्व  जिनसे हमारा  शरीर बनता है और जो  हमारे लिए बहुत आवश्यक हैं, सोडियम क्लोराइड छोड़ कर बाकी को अलग कर दिया जाता है। साधारण रिफाइन्ड नमक प्रयोग करने से शरीर में इन तत्वों की कमी के कारण कई रोग होने की संभावना रहती है। इसे सफेद और उजला बनाने के लिए ब्लीचिंग एजेन्ट भी मिलाये जाते हैं, ये भी शरीर के लिए हानिकारक हैं।

नमक से इश्क़ बीमारियों को दे दावत

नमक से इश्क़ बीमारियों का कारण बन सकता है। नमक के प्रति बढ़ता चटोरापन हमें उच्च रक्तचाप, दिल का दौरा और कैंसर जैसी गंभीर बीमारियों का शिकार बना सकता है। नमक में मौजूदा सोडियम से ब्लड प्रेशर बढ़ता है जिससे मोटापा, हृदय रोग और स्ट्रोक का जोखिम बढ़ जाता है। उच्च रक्त चाप के दस मरीजों में से तीन की बीमारी का कारण नमक का अधिक सेवन होता हैं। अधिक नमक खाने के कारण दुनिया भर में हर साल 70 लाख लोग मरते हैं। यहीं नहीं ज्यादा नमक खाने से कैंसर और किडनी में पथरी जैसी बीमारियां भी हो सकती हैं। दरअसल, अधिक नमक खाने से शरीर हड्डियों से अधिक कैल्शियम खींचता हैं जिससे हड्डियां कमजोर हो सकती हैं। छह देशों में एक लाख 75 हजार लोगों पर किये गये 13 अध्ययनों के विश्लेषण से पता चलता है कि रोजाना पांच ग्राम अधिक नमक खाने के कारण स्ट्रोक का खतरा 23 प्रतिशत और हृदय वाहिका रोग का खतरा 17 प्रतिशत बढ़ता है।

अन्तिम सन्देश

यह तो आपने समझ ही गये होंगे कि कि अब रिफाइन्ड नमक को छोड़ कर प्राकृतिक सैंधा नमक प्रयोग करना है। लेकिन नमक की मात्रा को तो हमें सिमित करना ही होगा। औसतन हमें 6 ग्राम नमक प्रति दिन सेवन करना चाहिये। इसमें आपके भोजन में छुपे हुए नमक की मात्रा भी शामिल है। अंत में मैं आपको नमक कम खाने के कुछ रहस्य भी समझा देता हूँ। भोजन को स्वादिष्ट बनाने के लिए नमक को कम कर काली मिर्च, नीबू, सिरका, टमाटर, प्याज, लहसुन, धनिया, पुदीना, मसाले आदि का प्रयोग करें। सब्जियाँ, सूप या अन्य व्यंजन बनाते समय ग्रहणियाँ ध्यान रखें कि नमक हमेशा व्यंजन पकने के बाद आखिर में डालें। व्यंजन में नमक कम डालने पर भी अपेक्षाकृत ज्यादा नमकीन व स्वादिष्ट लगेगे। बाजार में उपलब्ध सारे खाद्य पदार्थों में खूब नमक डाला जाता है (नमक को वे प्रिजर्वेटिव की तरह प्रयोग करते है) इसलिए हमें इनका प्रयोग कम से कम करना चाहिये। कच्ची सब्जियाँ और फल ज्यादा खाँये और उन पर ऊपर से नमक भी नहीं छिड़कें। डिब्बा बंद भोजन प्रयोग करते समय डिब्बे का नमकीन पानी, तरल फैंक दें। कुछ दिनों तक आप नमक कम खायेंगे तो कम नमक खाने की आदत पड़ जायेगी।

Dr. O.P.Verma

M.B.B.S.,M.R.S.H.(London)
President, Flax Awareness Society
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