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17.2.12

अब तो कुछ बोल ओ स्त्री......!!






उसके लिए......
जो बरसों से कुछ बोली नहीं है......
जो बस अपने पति....
अपने बच्चों के लिए जीती है....
जो उससे ज्यादा कभी सोचती भी नहीं....
उसकी चिंता के दायरे में बस उसका परिवार है....
और बाकी सब कुछ बिखरा जा रहा है....
उसकी गैरमौजूदगी में.....
अगर वो बोले....
अगर वो सामने आये....
तो बदल सकता है बहुत कुछ.....
क्यूंकि वो सिर्फ आधी आबादी नहीं है..!!
वो आने वाली नयी आबादी का स्त्रोत है....
वो आदि है.....वो अंत है......
फिर भी उसके भरम का कोई नहीं अंत है.....!!
अगर वो अपने इस भरम से बाहर निकल सके....
अगर वो अपने आँचल को क्षतिज तक फैला दे
तो ढंक जाए आकाश...ढँक जाए अनंत.....
और वो सब घट जाए,जो नहीं घटा है अब तक....
आदमी की फितरत बदल जाए....
धरती की सूरत बदल जाए....!!

अब तो कुछ बोल ओ स्त्री......!!

1 comment:

dinesh aggarwal said...

स्त्री शब्द को सार्थक करती खूबसूरत वंदनीय रचना...
नेता- कुत्ता और वेश्या (भाग-2)