Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

3.2.12

भक्तों को भी कष्ट क्यों ! है कोई उत्तर !


why devotees also get problems ! भक्तों को भी कष्ट क्यों आते हैं .

आज कल मेरे मन में यह प्रश्न बहुत बार आता है . 


भक्तों को भी कष्ट क्यों आते हैं . 


  


कई लोगों से बात हुई , 


कई ने कहा : भगवान परीक्षा लेता है , 
इसमें दम नहीं , क्योंकि परीक्षा तो वो लेता है जो जनता नहीं है, मगर भगवान तो सर्वज्ञ हैं . 


कई कहते हैं पूर्व जन्मों के कर्म के कारण .
इसमें दम नहीं , क्योंकि हमारे शाश्त्रों के अनुसार , भगवान का नाम लेते ही सारे, करोडो जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं . 


और प्रहलाद , पांडव जैसे तो केवल भक्त हैं , भगवान के नजदीक् हैं , फिर भी कष्ट क्यों !
और चलो कारण पता नहीं चल पा रहा तो , यदि कोई उपाय हो तो भी बताएं . 


क्या कोई मेरी सहायता करेगा !


हरी बोल 
जय श्री कृष्ण 
============================


कुछ समय पहले भी ये अपील लिखी थी : 

जब भगवान कृपालु हैं तो दुनिया में कष्ट क्यों

  


प्रिय मित्रों ,


अभी , एक ग्रुप 
gita-talk@yahoogroups.com

में बड़ा ही दिमाग को आन्दोलित कर देने वाला प्रश्न  पढ़आ


 why lord gives lot of pain out of "His Mercy"


यानि भगवान इतना कष्ट क्यों देते हैं , कृपालु होकर भी , 

कुछ लोगों ने अपने अपने विचार लिखे, जो अंग्रेजी में हैं ,  फिर भी मैं वो  विचार यहाँ पेस्ट कर रहा हूँ. 


इस विषय में मेरे कुछ विचार निम्नलिखित हैं. 
=============================== 



दुःख के बारे में मेरे विचार : 


कई बार मेरा भी मन किया कि एस प्रश्न पर भगवान को घेरा जाये . 


पर जब भी इन कष्टों और उसकी कृपा में तुलना कि तो कष्टों में भी कृपा के दर्शन हुए , और मुकदमा सुनने से पहले ही ख़ारिज हो गया .


फिर भी ये तो जानना ही पड़ेगा कि आखिर दुःख हैं क्या ?


हमारे मन के विपरीत जो भी बात हो , वो हमें दुःख नज़र आती है , 


बच्चे को चोकलेट न दिलाएं तो दुःख है , जबकि माता-पिता को मालूम है कि कितनी चोकलेट कब दिलानी है . 


कई बार किसी के कार्य को देख कर हमें उस पर दया व् दुःख होता है : बच्चे का व्रण कटवाने के लिए 
माँ बच्चे को डाक्टर के पास ले जाती है और  व्रण कटते समय बच्चे का दुःख देखा नहीं जाता . 


बच्चे  के लिए माँ  रात में उठ कर खाना बनाती है  और हमें लगता है ये तो 
माँ के प्रति अत्याचार है , मगर वह अत्याचार तो  नहीं होता . 


इन परिपक्ष्य में तो दुःख के मायने पहले ढूढने पड़ेंगे , क्योकि दुःख-सुख तुलनात्मक हैं.




--------------------------------------------


मगर मेरा खुद का  supplementary (पूरक प्रश्न ) यह है , कि 


चलो औरों को तो विभिन्न कारणों से कष्ट मिलता है , पर भक्तों को भी क्यों . 


जैसे प्रहलाद गर्भ से ही भक्त थे , देवकी , वासुदेव उनके माता पिता थे , द्रोपदी उनकी संबन्धिनी भी थी 
पांडव उनके मित्र एवं संबंदी थे , और तो और सुदामा तो उनके हाथ में हाथ दाल कर घूमते थे , क्या भगवान का
स्पर्श भी उनके कष्ट दूर करने में असमर्थ था . 
 
इस ग्रुप के मोडरेटर ने बहुत सुंदर बात लिखी है कि कृपया वही लोग इस वार्ता में शरीक हों जो हिंदू धर्म के 
अनुसार , शाश्त्रनुसार ही लिख सकते हों .  
मन चाही बातें तो हज़ार , लाख हैं . 



2 comments:

Dr Dwijendra vallabh sharma said...

sukh dukh ko samaan maankar jo vyakti nishkaam bhaav se apne sabhi karm ishwar ko samarpit karte huye karta hai usko koi kasht nahi hota hai . sadhaaran bhakt aisa nahi kar paata aur wo dukh ko dukh maan baithta hai aur sukh se prasann ho jaata hai . geeta ka yahi saar hai.
likha hai -
sukh dukhe same kritwa
laabhaalaabhau jayaajayau .
tato yuddhaay yujyasw
naiwam paapamavaapsyasi ..

Unknown said...

सोने की ही परीक्षा ली जाती है उसे ही बार बार काटा ,पीटा,गलाया और तपाया जाता है .हीरे को ही खराद मशीन पर चढ़ाया जाता है
प्रश्न उठता है ऐसा क्यों होता है ,मेरे अनुभव से गुण परिक्षण का यही एक मार्ग होता है .भगवान् भक्तों को दुःख क्यों देते हैं ?
यह प्रश्न भक्त के लिए पैदा ही नहीं होता है , क्योंकि भक्त पर लोकिक दुःख प्रभाव नहीं डाल पाते हैं जो लोकिक सुख नहीं मिलने के
कारण दुखी है वह भक्त नहीं हो सकता है.वास्तव में दुःख ही ऐसा सुगम मार्ग है जिसके सहारे परम तत्व को शीघ्रता से पाया जा सकता
है ,दुःख वैराग्य को उत्पन्न करता है ,संसार की असारता को प्रमाणित करता है यदि दुःख नहीं होता तो परम तत्व को प्राप्त करने का
कोई परिश्रम भी नहीं करता .भक्त पर यदि प्रतिकूल परिस्थिति आती है तो उसके लिए वह स्थिति बढ़िया है क्योंकि उसका लक्ष्य उसके
करीब आ रहा है .भक्त इस मृत्यु लोक के सुख भोगने की लालसा नहीं रखता है वह तो इस मानव शरीर के जरिये मुक्ति की अभिलाषा
रखता है .
सज्जन व्यक्ति को भी भगवान् दुःख क्यों देते हैं ? यह कर्म से सम्बन्ध रखने के कारण भोगना पड़ता है .राग और द्वेष से कर्म का सम्बन्ध
होता है यह पूरा वृताकार चक्र है .हमें कर्म के विपाक की व्याख्या करने के लिए कर्म के बीज को देखना होगा .कभी कभी हमें लगता है की
कोई घटना आकस्मिक हो गयी.किन्तु कुछ भी आकस्मिक नहीं होता .उसके पीछे एक हेतु होता है .घटना के पीछे छिपा हुआ जो बीज है
वह कारण है .हमें कारण को ठीक से समझना होगा .संसार में दो प्रकार के पदार्थ होते हैं -विनाशी और अविनाशी ,शाश्वत और अशाश्वत
दोनों के आधार पर निष्कर्ष निकाले .जो परिणाम आज दृश्य हैं उसके पीछे प्रवृति है ,हम वर्तमान ,अतीत और भविष्य इन तीनो की
संघटना में जी सकते हैं और सत्य को पकड़ सकते हैं .केवल वर्तमान के द्वारा सत्य को नहीं पकड़ सकते.
दुःख और सुख आगन्तुक हैं ,वह सदा साथ नहीं रहता है .सदा साथ वाही रहता है जो स्थायी है .स्थायी वाही रह सकता है जो सहज है
जो आया हुआ है वह सहज नहीं रह सकता .कर्म सहज नहीं होता है,वह स्वभाव नहीं है .सहज है चेतना या आत्मा .आत्मा का जो
स्वभाविक गुण है वह है चेतन्य .कर्म आया हुआ है ,सहज नहीं है .वह एक दिन आता है ,सम्बन्ध स्थापित करता है और जब तक
अपना प्रभाव पूरा नहीं डाल देता ,तब तक बना रहता है .जिस दिन अपना प्रभाव डाल दिया उसकी शक्ति क्षीण हो जाती है और वह
चला जाता है .
भक्त कर्म का शोधन करता है और सज्जन को कर्मो का शोधन करना चाहिए .शोधन करने से प्रवृति के साथ होने वाले दोष को मिटा दे
प्रवृति के साथ राग और द्वेष की जो धारा जुड़ रही है उसे क्षीण कर दे .कर्मो में फल दान की शक्ति है जो स्वाभाविक है ,इसमें किसी दुसरे का
हस्तक्षेप नहीं है ,यह स्वत:चालित है .बुरे कर्म निश्चित रूप से बुरे फल देते हैं और अच्छे कर्म अच्छा फल देते हैं .यदि कर्मो का फल नहीं
भुगतना है तो कर्म से सम्बन्ध नहीं स्थापित करे ,तब हम हर परिवर्तन पर तठस्थ रह सकते हैं .इसलिए गीता में कहा -तू सभी कर्म
मुझे समर्पित कर दे ...............