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5.2.12

एक और झटका

भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे लोकसेवकों के खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से दी गई व्यवस्था यही बताती है कि अभी भ्रष्ट अधिकारी किसी न किसी स्तर पर संरक्षण पा रहे थे। सुप्रीम कोर्ट ने न केवल यह स्पष्ट किया कि भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत शिकायत दर्ज कराना किसी भी नागरिक का संवैधानिक अधिकार है, बल्कि लोकसेवकों के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति संबंधी निर्णय को एक समय सीमा में भी बांध दिया। यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि शीर्ष अदालत ने यह साफ किया कि यदि अधिकतम चार माह की समय सीमा के अंदर मुकदमे की अनुमति का फैसला नहीं होता तो यह माना जाएगा कि अनुमति मिल गई है। इस फैसले का महत्व इसलिए है, क्योंकि भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे ऐसे अधिकारियों की संख्या बढ़ती जा रही है जिनके खिलाफ मुकदमा दर्ज करने की अनुमति नहीं मिलती। कुछ मामलों में तो केंद्रीय सतर्कता आयोग और केंद्रीय जांच ब्यूरो के अनुरोध के बावजूद उन अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति नहीं दी जाती जो प्रथमदृष्ट्या भ्रष्टाचार में लिप्त नजर आ रहे होते हैं। यह निराशाजनक है कि सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में इसलिए दखल देना पड़ा, क्योंकि 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले में पूर्व केंद्रीय दूरसंचार मंत्री ए.राजा के खिलाफ मुकदमे की मंजूरी के लिए दिए गए सुब्रमण्यम स्वामी के आवेदन का प्रधानमंत्री ने 16 महीने तक जवाब नहीं दिया। इससे भी निराशाजनक यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री कार्यालय को इसके लिए दोषी ठहराया कि उसने प्रधानमंत्री के पास भेजे गए राजा के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति देने संबंधी आवेदन को रोके रखा। सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर सरकार की प्रतिक्रिया कुछ भी हो, प्रधानमंत्री कार्यालय पर प्रतिकूल टिप्पणी कोई अच्छी स्थिति नहीं। भले ही सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को अपने लिए कोई झटका मानने से इंकार कर रही हो, लेकिन सच्चाई यही है कि शीर्ष अदालत ने एक बार फिर उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया है और इसके लिए वही जिम्मेदार है। इस पर संतोष नहीं किया जा सकता कि 2 जी स्पेक्ट्रम घोटाले के लिए जिम्मेदार ए. राजा जेल में हैं, क्योंकि यह तथ्य अपनी जगह मजबूत है कि उनके खिलाफ मुकदमा चलाने की मंजूरी 16 महीने बाद भी नहीं दी गई और केंद्रीय सत्ता तब हरकत में आई जब सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री कार्यालय के रवैये की आलोचना की। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला केंद्रीय सत्ता के उन दावों को कमजोर करने वाला है जिसके तहत यह कहा जाता है कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने के लिए प्रतिबद्ध है। यदि वास्तव में ऐसा है तो फिर क्या कारण है कि विभिन्न केंद्रीय मंत्रालय चालीस से अधिक शीर्ष नौकरशाहों के खिलाफ मुकदमा चलाने की अनुमति देने में आनाकानी कर रहे हैं और वह भी तब जब केंद्रीय सतर्कता आयोग इसके लिए चिट्ठी जारी करने में लगा हुआ है? सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह संसद को यह सुझाव दिया कि उसे भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 19 में संशोधन पर विचार करना चाहिए उससे आम जनता को यही संदेश जा रहा है कि भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के मामले में संसद को जो कुछ करना चाहिए वह नहीं हो पा रहा है। इस संदर्भ में इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि संसद देश को वचन देने के बावजूद लोकपाल विधेयक पारित करने में असफल रही।

साभार:-दैनिक जागरण

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