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28.2.12

एक अनिश्चित बात कि मैं जिंदा हूं .....


एक अनिश्चित बात कि मैं जिंदा हूं .....
अबकी बारी मेंने कलम पकड़ी तो
ख्याल आया कि कुछ ऐसा लिखा
जाए जो अनिश्चित हो
तो एक बात याद आई
जो बात सबसे अनिश्चित है
कि
मैं अभी जिन्दा हूं
पर क्या मैं आगे भी जिन्दा रह पाऊंगी
क्या मैं इससे पहले जिन्दा थी
जब एक बूढी मां को मेरे सामने
उसका जवान बेटा घर से निकाल रहा था
या फिर तब...
जब स्कूल जाती एक लड़की का दुपट्टा
मंनचलों ने खींच लिया था
या फिर तब...
जब मेरे ही किसी रिश्तेदार ने
एक भारत की बेटी को
भारत मां की गोद में आने से पहले
मां की कोख में ही मार दिया था
या तब...
जब बिना गलती के भी
मेरे ही घर में नौकरों को फटकारा जाता था
क्योंकि सबको व्यर्थ में ही अपना गुस्सा
उतारना होता था
शायद नहीं
तब मैं जिन्दा तो थी पर मरे होने का आभास कर रही थी
पर अगर आज मैं यह सब लिख रही हूं तो
यह इसका प्रमाण है कि मैं अभी जिन्दा हूं
पर क्या मैं आगे ज्यादा दिन जिन्दा रह पाऊंगी
अंत में यही सवाल मुझे झकझोर देता है।

1 comment:

कौशलेन्द्र said...

आपकी कविता बताती है कि आप तब भी जिंदा थीं और आज भी जिंदा हैं और हमेशा रहें ये मेरी कामना है..