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12.3.12

जहां, दुकान आती है ग्राहकों के पास

शंकर जालान




कोलकाता। पापी पेट के लिए मेहनतकश और घूम-घूमकर फेरी करने वाले लोग क्या-क्या नहीं करते। वृहत्तर बड़ाबाजार के विभिन्न गलियों में इसकी अनोखी मिसाल देखने को मिलती है। कहीं माथे पर तो कहीं कंधों पर जिंदगी की दुकान चलती है। मजे की बात यह है कि लोग दुकानों के पास चलकर नहीं जाते, बल्कि दुकानें या दुकानदार खुद ग्राहकों के पास आते हैं। बड़ाबाजार के लगभग हर गली-कूचे में ऐसा नजारा देखने को मिल जाएगा। जहां रोजाना कंधे पर तराजूनुमा डाला या माथे पर पानीपुड़ी की टोकरी वाले समेत सैकड़ों लोगों को खाने-पीने की चीजें बेचते देखा जा सकता है। इनमें पानीपुड़ी, झालमुड़ी, समोसा, खस्ता कचौड़ी, पापड़, सुआली, दही बड़ा से लेकर पावरोटी, सैंडविच व टोस्ट तक शामिल हैं। धूम-धूमकर तराजूनुमा दुकान समोसा, कचौड़ी बेचने वाले सुशील कुमार ने बताया कि इन्हें तैयार करने से लेकर बेचने तक का सारा काम कंधों पर होता है। एक डाला में स्टोव पर गर्म कड़ाही चढ़ी रहती है, जिसमें दिनभर नमकीनें तली जाती हैं, तो दूसरे पर बड़ी सी परात रहती है जिसमें रखकर समोसा-कचौड़ी को बेचा जाता है।
उन्होंने बताया कि हम डोला लिए (दोपहर बारह बजे से रात दस बजे तक) घूमते रहते हैं। हमें अकेले ही पकाने से लेकर बेचने तक का सारा काम करना पड़ता है। उनके मुताबिक, कुछ फेरीवाले अपने साथ सहायक रखते हैं। उन्होंने बताया कि सुबह से घर पर पत्नी और दोनों बच्चियां तैयारी में जुट जाती है। कचौड़ी में बेसन भरना हो या समोसे में आलू परिवार के लोगों का पूरा साथ मिलता है।
किसी तरह के ग्राहक आपके बनाए समोसे व कचौड़ी खाते हैं? इसके जवाब में उन्होंने बताया कि ग्राहकों की कमी नहीं है। दुकानदार, माल ढोने वाले मजदूर से लेकर विभिन्न वर्ग के लोग उनके ग्राहक हैं। उन्होंने बताया कि कई ग्राहक उनके समोसे व कचौड़ी के मुरीद हैं। कई दुकानदार तो रोज के ग्राहक बन गए हैं।
राजाकटरा, पोस्ता, बड़तल्ला स्ट्रीट, दिगंबर जैन टेंपल रोड, सर हरिराम गोयनका स्ट्रीट, कलाकार स्ट्रीट, चाइना मार्केट, कैनिंग स्ट्रीट, बागड़ी मार्केट, पगिया पट््टी, सत्यनारायण पार्क, कॉटन स्ट्रीट समेत आसपास के विभिन्न इलाके में इस तरह के फेरीवाले को देखा जा सकता है। इससे जुड़े अमरकांत ने बताया कि वह ओडीशा के कटक के रहने वाला है और पिछले पांच वर्षों से यहां के गली-कूचे में घूम-घूमकर समोसा-कचौड़ी बेच रहे हैं। इससे रोजाना कितने की कमाई हो जाती है? इसके जवाब में अमरकांत ने बताया कि औसतन रोज 250 से 300 रुपए तक की कमाई हो जाती है।
इसी तरह एक अन्य फेरीवाले ने बताया कि उनकी दुकानदारी दोपहर बारह बजे से शुरू होती हैं, क्योंकि उस समय तक बाजार पूरी तरह खुल जाते हैं और इन बाजार से खरीदारी करने ग्राहक अच्छी-खासी संख्या में आते हैं, लिहाजा उनके द्वारा बनाए गए समोसा व कचौड़ी के लिए ग्राहकों की कमी नहीं है। रात आठ-नौ बजे तक सारी चीजें बिक जाती हैं। कंधा जब थक जाता है तो वे डाला को उतारकर स्टैंड के सहारे खड़ा कर देते हैं। उन्होंने बताया कि बरसात के दिनों में परेशानी होती है, क्योंकि सिर पर छत नहीं होती। ज्यादा बारिश होने पर दुकानदारी बंद भी करनी पड़ती है।
स्थानीय एक ग्राहक ने कहा कि ये फेरी वाले बहुत उनके जैसे बहुत से से लोगों के लिए नाश्ते की दुकान है। इन फेरीवालों के पास सभी चीजें हमेशा गर्म मिलती हैं, जो खाने में स्वादिष्ट लगती हैं। उन्होंने बताया कि समोसा व कचौड़ी इनके पास तीन रुपए में मिल जाती हैं, जिसकी कीमत दुकानों में पांच से छह रुपए के बीच है।

2 comments:

mridula pradhan said...

badi achchi jankari di......

Roshi said...

rochak jaankari mili.......