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13.3.12

ये पब्लिक है, जाति के सिवा कुछ नहीं जानती है!

दोस्तों, उत्तर-प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे देखकर तो अच्छे-अच्छों के होश उड़ गए।06 मार्च को घोषित हुए नतीजों के अनुसार युपी में मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी साबित हुई।समाजवादी पार्टी ने 403 सीटों में 224 सीटों पर विजय हासिल करते हुए पूर्ण बहुमत हासिल किया।मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने 80 सीटों पर विजय हासिल की और वह दूसरे नंबर पर रही।भाजपा 47 सीटों पर विजय हासिल करते हुए तीसरे नंबर पर रही, जबकि कांग्रेस और आरएलडी गठबंधन को 37 सीटों पर ही जीत नसीब हुई और वह चौथे नंबर पर रही।यूपी जैसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री अखिलेश सिंह यादव होंगे।पंजाब में अकाली दल-बीजेपी गठबंधन ने पूर्ण बहुमत हासिल किया और प्रकाश सिंह बादल एक बार फिर मुख्यमंत्री बनेंगे।गोआ में भाजपा ने कांग्रेस का सफाया करते हुए पूर्ण बहुमत हासिल किया।गोआ में श्री मनोहर पर्रिकर मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं।उत्तराखंड में कांग्रेस और भाजपा में से किसी ने भी पूर्ण बहुमत हासिल नहीं किया।70 सीटों में कांग्रेस को 32 सीटों पर जीत हासिल हुई, जबकि भाजपा को 31 सीटों पर जीत मिली।उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार बनना लगभग तय है।मणिपुर में कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत हासिल किया और वहाँ उसकी सरकार बनना तय है।
   दोस्तों, पता नहीं यूपी की जनता को लैपटौप और टैब्लेट कंप्यूटर की कितनी ज्यादा जरूरत पड़ गई कि उन्होंने सपा जैसे 'घोषित' गूंडों और भ्रष्टाचारियों की पार्टी को पूर्ण बहुमत दिला दी।यूपी में सपा का जीतना यह साबित करता है कि यूपी की जनता जाति के सिवा कुछ नहीं जानती है।सिर्फ अपनी जाति और जिसे वोट देना है उनकी जाति आपस में मेल खानी चाहिए, उसके बाद तो जनता उस उम्मीदवार की झोली वोटों से भर देती है, चाहे वह कितना भी बड़ा अपराधी, लूटेरा क्यों न हो।यूपी की जनता आँखों वाली अंधी है कि मुलायम सिंह यादव जैसे 'मशहूर' भ्रष्टाचारी की पार्टी को जीत दिलवा दी।
   यूपी चुनाव में एक चीज तो ठीक रही कि कांग्रेस को जनता ने भाव नहीं दिया।लाख उपाय लगाए कांग्रेस ने कि किसी तरह यूपी में 22 वर्षों का उसका वनवास खत्म हो जाए।कभी मुस्लिमों को आरक्षण के नाम पर लुभाया तो कभी चुनाव आयोग से ही भीड़ गए।इतना सब करने के बावजूद भी जनता ने कांग्रेस और कांग्रेस के 'युवराज' को तनिक भी भाव नहीं दिया।जनता ने कांग्रेस के दिग्गजों और खासकर राहुल गाँधी को तो वापस दिल्ली जाने का रास्ता दिखला दिया पर जनता समाजवादी पार्टी से भी कहीं ज्यादा बेहतर विकल्प चुन सकती थी।मुलायम सिंह यादव की सपा को चुनना तो अपने पाँव पर खुद ही कुल्हारी मारने जैसा है।
   दोस्तों, अब मैं आपको इन चुनावों की एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात बताने जा रहा हूँ- पांच राज्यों में चुने गए विधायकों में से एक-तिहाई विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। इनमें सबसे अधिक उत्तर प्रदेश के एमएलए हैं। इन सूबों के कुल 690 विधायकों में से 35 प्रतिशत यानी 252 विधायकों केखिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं। साल 2007 के मुकाबले यह 8% अधिक है।अगर हम यूपी की बात करें तो उत्तर प्रदेश में निर्वाचित 403 विधायक में से 189 यानी 47% के खिलाफ आपराधिक मामले चल रहे हैं। साल 2007 के मुकाबले 12% की वृद्धि है। इनमें से 98 के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। सबसे ज्यादा आपराधिक मामले वाले तीन विधायकों में हैं- समाजवादी पार्टी के बीकापुर से मित्रसेन यादव, जसराना से रामवीर सिंह और सकलडीहा के निर्दलीय सुशील सिंह। मित्रसेन पर 36 आपराधिक मामलेदर्ज हैं, जिनमें 14 हत्या से जुड़े हैं। सुशील के खिलाफ दर्ज 20 मामलों में 12 हत्या से जुड़े हैं। रामवीर के खिलाफ हत्या के 8 सहित 18 मामले दर्ज हैं। जिन 38 विधायकों पर हत्या के मामले चल रहे हैं, उनमें समाजवादी पार्टी के 18, बीजेपी के दो, बीएसपी के 5 और आठ निर्दलीय शामिल हैं।एक बात जानकर आपको और ज्यादा आश्चर्य होगा कि मुलायम सिंह ने इस बार जो उम्मीदवार खड़े किए थे उनमें 40% उम्मीदवारों के खिलाफ आपराधिक मामले दर्ज हैं।यह बात जानकर आपको सपा पर आश्चर्य नहीं होगा कि उसने खुलेआम अपराधियों को टिकट दिया, क्योंकि इस मामले में तो सपा को महारथ हासिल है।आश्चर्य अपने देश के कानून-व्यवस्था पर होता है कि यह कैसा कानून है कि कोई पार्टी खुलेआम अपराधियों को टिकट देती है और कानून सिर्फ तमाशा देखता है।क्या अपने देश में कानून सिर्फ आम लोगों के लिए ही है?वो अपराधी जो बेखौफ होकर चुनाव लड़ते हैं, कानून उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाती; यहाँ तक कि चुनाव लड़ने से रोक भी नहीं पाती, सिर्फ इसलिए कि उन अपराधियों के सर पर बड़े-बड़े भ्रष्टाचारियों का हाथ होता है।आश्चर्य हमें उस जनता पर भी आता है कि क्या सोचकर वो इन अपराधियों को लोकतंत्र के मंदिरों में भेज देते हैं।क्या उन्हें इतनी भी समझ नहीं कि कम-से-कम किसी अपराधी को वोट न दें?क्या उनमें इतनी भी समझ नहीं कि समाज के लुटेरों को वोट न दें?धिक्कार है उन मतदाताओं पर जो इन अपराधियों को चुनकर भेज देते हैं लोकतंत्र के मंदिर में पाप की घंटी बजाने।यह जातिवाद राजनीति का ही कमाल है कि चुनावी मैदान में इतने अपराधियों को उतारने के बावजूद भी जनता ने जात-पात के नाम पर 'घोषित' गूंडों की पार्टी को पूर्ण बहुमत दिला दी।
   दोस्तों, सपा आखिर गूंडों की पार्टी ऐसे ही नहीं कही जाती।चुनाव के नतीजे आते ही सपा के गूंडे-कार्यकर्ताओं ने अपना परिचय देना शुरू कर दिया।कहीं जीत के जश्न में इतने डूब गए कि फायरिंग में एक मासूम बच्चे की जान ले ली, तो कहीं दूसरे पार्टियों से जीते उम्मीदवार से झड़प की।अभी नतीजे आए ज्यादा समय भी नहीं हुआ था कि सपा के मशहूर गूंडों ने जनता को अपना ट्रेलर दिखा दिया।जनता ने जैसी अयोग्य और गूंडों, भ्रष्टाचारियों की सरकार चुनी है, जनता नतीजे भुगतने के लिए तैयार रहे।अभी तो जनता ने सपा के गूंडों का सिर्फ ट्रेलर देखा है, पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त।अभी तो सरकार बनी भी नहीं है और इतना भयानक ट्रेलर तो जनता देख चुकी है, जनता घबराए नहीं क्योंकि सपा को पूरी पिक्चर दिखाने के लिए तो अभी पाँच साल पड़े हैं।
   दोस्तों, मैं अब जो आपको बताने जा रहा हूँ उसके बाद तो आपके होश उड़ जाएँगे।नवभारत टाइम्स नाम के मशहूर अखबार ने अपनी वेबसाइट पर इन विधानसभा चुनावों से पहले एक सर्वे करवाया था जिसमें वह अपने पाठकों को पाँचों राज्यों के कुछ नेताओं में से मुख्यमंत्री चुनने का विकल्प देता था।नवभारत टाइम्स के इस सर्वे में यूपी के कुछ चुनिंदा मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवारों में सर्वाधिक पाठकों ने उमा भारती को वोट दिया था।उनके आगे सभी फ़ीके पड़ गए थे।उन्हें 65% वोट प्राप्त हुए थे।और उनके बाद मायावती को पाठकों ने दूसरे नंबर पर रखा था।अखिलेश यादव जो अभी मुख्यमंत्री बनने वाले हैं, उन्हें तो मात्र 1% पाठकों ने वोट दिया।नवभारत टाइम्स के इन नतीजों से साफ है कि मुलायम और अखिलेश की पिता-पुत्र की पार्टी पढ़े-लिखे और समझदार लोगों की पसंद बिल्कुल भी नहीं है।अगर सपा पढ़े-लिखोँ की पसंद होती तो अखिलेश को 100% नहीं तो कम से कम 50% वोट भी तो आते।लेकिन नहीं उनमें तो सिर्फ 1% पाठकों ने ही मुख्यमंत्री बनने की आशंका जताई।सपा सिर्फ कम पढ़े-लिखे और जातीय समीकरण के आधार पर वोट देने वालों की ही पसंद है।सपा सिर्फ उनकी पसंद है जो वोट तो देते हैं लेकिन वोट की महत्ता को नहीं समझते।समझते हैं तो सिर्फ जाति की महत्ता।
   अखिलेश यादव को हर ओर से मुख्यमंत्री बनने की ढेरों बधाईयां आ रही हैं।हर कोई उन्हें शुभकामना दे रहा है कि वह राज्य अच्छे तरीके से चलाएँ।अगर अखिलेश यादव सचमुच एक अच्छे मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं तो उन्हें पहले अपने पार्टी के नेता, कार्यकर्ताओं पर नियंत्रण रखना चाहिए।अगर सपा के नेताओं में बदलाव नहीं आया तो मुझे नहीं लगता कि यूपी जैसा बड़ा राज्य अखिलेश ढंग से चला पाएँगे।और वैसे भी, जिस राज्य की विधानसभा में लगभग आधे विधायक दागी हैं, उस राज्य का आने वाले दिनों में क्या हाल होगा यह तो हम समझ ही सकते हैं।
   यूपी की जनता ने अपनी मूर्खता से आज राज्य को उस मोड़ पर खड़ा कर दिया है कि यूपी जैसा भारत का महत्वपूर्ण राज्य आज गूंडों के द्वारा चलने को मजबूर है।इसके दोषी मुलायम और अखिलेश नहीं हैं, इसकी दोषी सिर्फ जनता है।संविधान ने हमें इतना बड़ा अधिकार दिया कि हम अपनी सरकार खुद चुने और हम हैं कि जात-पात के नाम पर अपने राज्य और देश को गलत हाथों में सौंपकर बेड़ा गर्क कर रहे हैं।खैर, जिस जनता को राजनाथ सिंह और उमा भारती से ज्यादा भरोसा मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव पर हो, उस जनता का कुछ नहीं हो सकता।
   उत्तराखंड में पहली बार किसी मुख्यमंत्री ने एक सशक्त लोकायुक्त लाया और जनता ने उसे भी हरा दिया।बी.सी. खंडुरी जी जैसे ईमानदार नेता का हारना यह साबित करता है कि हमारे मतदाताओं को भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ने वाला भी पसंद नहीं है।उन्हें पसंद है तो सिर्फ अपनी जाति के लोग फिर चाहे वह कितना भी बड़ा अपराधी क्यों न हो।  
   बिहार की जनता को देशभर में ऐसे ही बदनाम किया जाता है।आज एक मतदाता की हैसियत से बिहार की जनता देशभर में सर्वश्रेष्ठ है।कम से कम विकास के नाम पर हमारे श्री नीतिश कुमार को वोट तो देती है।पूरे देश की जनता को सीख लेनी चाहिए बिहार की जनता से।
   खैर यूपी चुनावों के नतीजों के बाद राज्य में एक बदलाव तो जरूर नजर आएगा- पिछले पाँच वर्षों से 'कोई' 'लूटती' थी, तो शायद अगले पाँच वर्षों तक 'कोई' 'लूटेगा'।   
             

1 comment:

Shalini kaushik said...

bilkul sahi kaha aapne ek ek shabd aapka satyata kee kasauti par khara utarne vala hai.sapa ko chunne vali janta aaj bhale hi ghee ke diye jala le par kal yahi diye uska ghar jalayenge ye vah khud hi dekh legi.
ye vanshvad nahin hain kya