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8.4.12

सांप को दूध पिलाने की कवायद !

सांप को दूध पिलाने की कवायद !

मदारी की बीन पर थिरकते सांप को देख हम ठिठक कर रुक गए थे .रुके भी यह पक्का करने को
की जो सांप थिरक रहा है वह असली है या नकली .हम मदारी के पास गए और बोले-यह सांप
असली है या नकली ?

मदारी बोला - "माय-बाप,यह सांप असली है" और फिर उसने प्रमाण देने के तोर पर उसे टोकरी से
निकाला और जमीन पर छोड़ दिया ,सांप रेंगने लगा .यह तो पक्का हो चूका था कि सांप असली है.

हमने मदारी से पूछा -"तुम्हे इस सांप से कुछ खतरा तो नहीं है" !

मदारी ने कहा- "पहले आप यह बतलायें कि आपको ऐसा क्यों लगा कि मुझे सांप से खतरा हो
सकता है"
.
हमने कहा- "मदारी ,तुमने जो सांप पकड़ा है वह अजगर नहीं कोबरा नाग है .ऐसे ही नाग को
पकड़ने कि कवायद में हमारे यहाँ अमंगल होते रहे हैं" .

मदारी बोला- वह तो मैं भी जानता हूँ कि सांप को पकड़ने और पालने में जोखिम रहता है
परन्तु मैं हमारे फिस्सडी नेताओं कि तरह नहीं हूँ कि उन्हें सांप बार-बार दंस मारता है और वे
बेचारे जहर उतरवा कर फिर बाम्बी में हाथ डाल देते हैं ...


हमने मदारी से पूछा - "यह बात तो तुम ठीक कह रहे हो मगर फिर तुम्हारे पास ऐसा क्या जादू 
टोना है जिससे सांप तेरे को दंस नहीं मारता और नेता को मारता है ".


मदारी जोर से हँसा और बोला- बाबू,भले ही मुझे देश चलाना नहीं आता है मगर सांप को पकड़ने 
में मैं नेताजी से बेहतर हूँ .मैं कभी सांप की बाम्बी में हाथ नहीं डालता हूँ ,बाम्बी के पास बैठकर 
बीन बजाता हूँ ,सांप को मदहोश करके फन को पकड़ लेता हूँ और फिर तुरंत उसका मुंह खोलकर
जहरीले दांत उखाड़ लेता हूँ ,सारा जहर निकल जाने के बाद इसे टोकरी में बंद कर मेरी बीन की
धुन पर नचाता हूँ......

".......लेकिन इतनी सी बात क्या नेताजी नहीं समझते हैं" .मेने मदारी की बात काटते हुए पूछा .

मदारी बोला-"समझते हैं भी और नहीं भी" .यह जानते हुए भी कि सांप उन्हें दंस मारेगा फिर भी
अपने को संत के रूप में दुनिया को दिखाने का करतब जो दिखाना है इसलिए जानबूझ कर
सांप सेवा करते हैं और समझते नहीं भी हैं क्योंकि सांप हर बार उन्हें दंस मारता है और वे पुरे
कुनबे के साथ तोबा-तोबा पुकारते हैं ,दर्द से तड़फते हैं,मगर दर्द ठीक होने के बाद फिर सांप से
दोस्ती करने कि भूल करते हैं .

हमने मदारी से पूछा- तुम तो रात -दिन सांप के साथ रहते हो ,तुम्हारे वंशज भी सपेरे रहे हैं
क्या तुमने तेरे दादा-परदादा के मुंह से कभी सुना है कि सांप को दूध पिलाने के बाद सांप के
शरीर में अमृत पैदा हो जाता है .

मदारी कान पकड़ कर बोला- नहीं सा'ब,ऐसा कैसे हो सकता है ,सांप कि प्रकृति जैसी है वैसी
ही रहने वाली है .उसे कटोरे भर-भर कर दूध पिलाने पर भी वह जहर ही उगलता है .

हमने  उससे पूछा -क्या यह बात नेताजी नहीं समझते हैं ?

मदारी बोला-यह हम क्या जाने बाबू.अगर नेताजी को हम कुछ बोला तो भी क्या वो हमारी
सुनेगा .सांप को दूध पिलाकर अमृत पाने कि कवायद बरसों से होती आई है ,हम लोग उनकी
कवायद चुपचाप देखते हैं मगर नेताजी कि तरह विश्वास नहीं करते हैं.हमने तो एक ही सत्य
पाया है अब तक कि दूध पीने के बाद भी सांप जहर ही उगलता है इसलिए सांप को नचाने से
पहले जहरीले दांत तोड़ देने चाहिए .' दुष्ट के साथ दुष्टता और मानव के साथ मानवता' यही
नीति है ,यही सत्य है .

मदारी कि बात सुनकर हम घर लौट आये और दूरदर्शन  पर सांप को दूध पिलाने तथा जहर की
जगह अमृत बरसने कि कवायद सुनने लगे.                

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