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16.4.12

क्या अपने देश में कानून सिर्फ आम आदमी के लिए ही है?

दोस्तों, अरविंद केजरीवाल ने हमारे कुछ माननीय सांसदों के बारे में सच्चाई क्या बोली, सभी सांसद उन पर टूट पड़े।पहले राजनीति प्रसाद और रामकृपाल यादव और अब केंद्रीय मंत्री वीरभद्र सिंह और जगदंबिका पाल ने उन्हें विशेषाधिकार हनन नोटिस भेजा है।टीम अन्ना के खिलाफ सदन के चर्चा में शरद यादव ने बड़े जोर-शोर से भाग लिया।लालू यादव ने तो उन्हें मेंटल केस तक कह दिया।
   मुझे समझ नहीं आता कि आखिर अरविंद केजरीवाल ने ऐसा क्या गलत कह दिया कि हर ओर से उनका विरोध हो रहा है?उन्होंने तो सिर्फ सच्चाई बोली है।ऐसा नहीं है कि इससे पहले कोई यह जानता नहीं था कि संसद में अपराधी भी जाते हैं।जानते सभी थे लेकिन बोलने की हिम्मत किसी ने नहीं दिखाई थी।अरविंद केजरीवाल ने हिम्मत दिखाई तो सभी उनके पीछे पड़े हैं कि वे संसद का अपमान कर रहे हैं।यह बड़ा दुखद है कि लोकसभा अध्यक्ष महोदय मीरा कुमार ने भी अरविंद केजरीवाल को फटकार लगाई और कहा कि भविष्य में संसद के बारे में इस तरह की अपमानजनक टिप्पणियाँ बर्दाश्त नहीं की जाएँगी।हर ओर बस 'संसद का अपमान' का ढोल बजा हुआ है।क्या लोकसभा अध्यक्ष महोदय इस बात को झूठा साबित कर सकती हैं कि हमारे देश की सर्वोच्च संस्था में भी अपराधी जाते हैं?जो लोग भी यह मानते हैं कि अरविंद केजरीवाल संसद का अपमान कर रहे हैं क्या वह अरविंद केजरीवाल की बातों को झूठला सकते हैं?नहीं, झूठला कोई नहीं सकते लेकिन 'संसद के अपमान' का ढोल सभी पीठ रहे हैं।
   गौरतलब है कि इस समय लोकसभा के 543 सदस्यों में से 162 सदस्यों पर आपराधिक मामले दर्ज हैं।इन 162 में से 75 सदस्यों पर तो बेहद गंभीर मामले दर्ज हैं।कुछ सदस्यों के मामले में कहा जा सकता है कि उन पर जो मामले दर्ज हैं वे राजनीति से प्रेरित हैं।लेकिन इन 75 सांसदों का क्या?इन पर दर्ज बेहद ही गंभीर मामले तो बिल्कुल भी राजनीति से प्रेरित नहीं हो सकते।इन 75 सांसदों में से (जिनपर बेहद ही गंभीर मामले चल रहे हैं)13 कांग्रेस और 19 भाजपा से हैं।इन 162 आपराधिक मामलों वाले सदस्यों में 44 भाजपा और 42 कांग्रेस के हैं।अगर हम पिछले बार की तुलना में देखे तो इस बार लोकसभा में अपराधियों की संख्या में 17.2% की वृद्धि हुई है।पिछली बार जहाँ 128 लोकसभा सांसदों पर आपराधिक मामले दर्ज थे वहीं इस बार यह संख्या 162 हो गई है।तो क्या हम यह मान ले कि अगले बार लोकसभा में अपराधियों की बहुमत हो जाएगी?
   ये आँकड़े हमारे देश के लिए खतरे की घंटी है।ये आँकड़े हमारे देश की जनता की घटिया मानसिकता दर्शाने के लिए काफी हैं।आखिर क्या सोचकर वे इन अपराधियों को वोट दे देते हैं?सभी समान रूप से दोषी हैं।सबसे पहले दोषी हैं वे राजनीतिक पार्टियाँ जो इन अपराधियों को देश की सर्वोच्च संस्था का टिकट दे देती हैं।और उसके बाद दोषी है इस देश की जनता जो बिना सोचे-समझे इन अपराधियों को वोट भी दे देती है।ये आँकड़े राजनीतिक पार्टियों की पोल खोलने के लिए भी काफी हैं।इन आँकड़ों से यह साफ साबित होता है कि कोई भी राजनीतिक पार्टी पाक-साफ नहीं है।हर राजनीतिक पार्टी में सिर्फ 'जाति और पैसा बोलता है'।भाजपा, जो कि खुद को राष्ट्रवादी पार्टी बताती है, क्या उसके पास जवाब है कि कैसे आपकी पार्टी से सबसे ज्यादा अपराधी सांसद हैं?जनता जवाब चाहती है कि आखिर इन राजनीतिक पार्टियों ने देश की सर्वोच्च संस्था के टिकट बँटवारे का क्या मापदंड बना रखा है जिसपर कि ये अपराधी भी खड़े उतर जाते हैं?वो जनता जवाब नहीं चाहती है जिनके आँखों पर जातिवाद की पट्टी बँधी है क्योंकि उस बेवकूफ़ जनता के सामने तो कितने भी बड़े अपराधी को खड़ा कर दो वो जाति के नाम पर वोट दे ही देगी, बल्कि वो जनता जवाब चाहती है जो सचमुच देश के बारे में थोड़ा भी सोचती है।हम अगर चाहे तो इन अपराधियों को वोट न देकर राजनीतिक पार्टियों की अक्ल ठिकाने लगा सकते हैं लेकिन हमने तो जैसे देश को बर्बाद करने की कसम खा रखी है।
   एक तरफ तो हमारे माननीय सांसद कोई ऐसा काम करते नहीं जिससे देश का भला हो और चाहते हैं कि सभी उनका सम्मान करे।तो क्या अब बंदूक की नोक पर लोगों के दिलों में सम्मान भरोगे?
   सभी राजनीतिक पार्टियाँ भ्रष्ट हैं।कोई भी आम जनता के लिए नहीं सोचता।सभी पार्टियाँ सिर्फ आम जनता का इस्तेमाल करती हैं और दुख की बात तो यह है कि हमारी आम जनता भी बेहद आसानी से मूर्ख बन जाती हैं।सभी राजनीतिक पार्टियों का एक ही सिद्धांत है 'लूटो और लूटने दो'।और ये सिद्धांत इन राजनीतिक पार्टियों को इतना प्यारा है कि उनके इस सिद्धांत के रास्ते में जो भी आता है उसकी बली चढ़ जाती है।
   जहाँ तक टीम अन्ना के द्वारा संसद के अपमान का सवाल है तो संसद के अपमान की तो कोई बात ही नहीं हुई।अरविंद केजरीवाल ने तो सिर्फ तथ्यों की जानकारी देकर जनता को जगाने की कोशिश की है।संसद का तो हम सभी सम्मान करते हैं।हम सभी उसे लोकतंत्र का मंदिर कहते हैं।लेकिन आज वह मंदिर अपवित्र हो चुका है जिसके दोषी भी हम खुद हैं और हमें ही मिलकर वापस संसद को पवित्र बनाना होगा।आखिर मंदिर की साफ-सफाई भी तो भक्त ही करते हैं उसी तरह अरविंद केजरीवाल ने लोकतंत्र के मंदिर की साफ-सफाई के लिए कोशिश की।संसद का अपमान करने के लिए पहले ही उसमें बैठे अपराधी कम हैं क्या जो किसी और पर संसद का अपमान करने का आरोप लगाते हो।मैं लोकसभा अध्यक्ष महोदय से पूछना चाहता हूँ कि क्या उस समय संसद का अपमान नहीं होता है जब ये राजनीतिक पार्टियाँ देश की सर्वोच्च संस्था के लिए अपराधियों को टिकट बाँट देती हैं?इस देश में तो हद हो रही है।अरविंद केजरीवाल जैसे एक (आम)आदमी सच्चाई बोलकर लोगों को जगाने की कोशिश करते हैं तो उन पर मुकदमे चल रहे हैं और ये राजनीतिक पार्टियाँ जो खुलेआम लोकतंत्र का मजाक बना रही है, इनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।आखिर इस देश में ऐसा क्यों है?क्या इस देश में सच्चाई बोलने की भी कोई सजा है?क्यों इस देश में कानून सिर्फ आम जनता के लिए ही है?मैं सुप्रीम कोर्ट से यह सवाल करना चाहता हूँ कि क्या इस देश की जनता यह उम्मीद नहीं कर सकती कि इन राजनीतिक पार्टियों पर भी कार्रवाई हो जो खुलेआम हमारे लोकतंत्र के मंदिर को गंदा कर रहे हैं?क्या इस देश के कानून में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जो इन अपराधियों को चुनाव लड़ने से रोक सके?आज तक संसद में इस बात पर चर्चा नहीं हुई कि संसद में अपराधी भी बैठे हैं।अरविंद केजरीवाल ने लोगों का ध्यान इस ओर खींचना चाहा तो ये सांसद जबर्दस्ती संसद के अपमान का ढोल पीटने लगे।चुकी टीम अन्ना ने राजनीतिक पार्टियों की पोल खोल दी तो इन पार्टियों ने दूसरा ही चर्चा छेड़ दिया ताकि अरविंद केजरीवाल द्वारा उठाया गया संवेदनशील मुद्दा दब जाए।क्या हमारी राजनीतिक पार्टियाँ देश को यह भरोसा नहीं दिला सकती थी कि आगे से वे किसी भी अपराधी को टिकट नहीं देंगे?हमारे माननीय सांसदों ने टीम अन्ना पर संसद में चर्चा छेड़ कर बड़ा ही हास्यास्पद दृश्य उत्पन्न कर दिया।टीम अन्ना तो संसद में चर्चा का कोई मुद्दा ही नहीं है, चर्चा का मुद्दा तो उनके द्वारा उठाया गया गंभीर मामला होना चाहिए।राशिद अल्वी ने कहा कि कानून बनाने का अधिकार सिर्फ सांसदों को ही है।अगर कानून सांसद बनाते हैं तो उनके लिए शर्म की बात होनी चाहिए कि उन्होंने कैसा कानून बनाया कि देश की सर्वोच्च संस्था के लिए भी अपराधियों को टिकट दे दिया जाता है।और दुख की बात तो ये है कि अगर कानून में त्रुटि है तो हमारे सांसद उसे दूर नहीं करना चाहते बल्कि अपनी गलती छुपा रहे हैं और दूसरों पर जबर्दस्ती कीचड़ उछाल रहे हैं।अगर संविधान ने सांसदों को कानून बनाने का अधिकार दिया है तो उसी संविधान ने हमें भी अपनी बात खुलकर कहने का अधिकार दिया है।लेकिन नहीं, हमारे सांसद सिर्फ अपने अधिकार को ही अधिकार मानते हैं, आम आदमी के अधिकार की तो किसी को परवाह ही नहीं है।लोकसभा अध्यक्ष महोदय ने जिस तरह से अरविंद केजरीवाल को फटकार लगाई, उससे तो यही पता चलता है कि हमारी सरकार चाहती है कि पूरा देश गाँधी जी के तीन बंदर बन जाएँ लेकिन दूसरे अर्थ में- 'सबकुछ देखो, सबकुछ सुनो लेकिन कुछ मत बोलो।यह सरकार संविधान द्वारा दिए गए हमारे अधिकारों को तोड़-मरोड़ रही है और हमें संविधान का पाठ पढ़ा रही है कि कानून बनाने का अधिकार सिर्फ उन्हें ही है। 
   क्या अब देश की यह हालत हो गई कि देश की इज्जत, मान-सम्मान संसद में बैठे 162 अपराधी तय करेंगे?टीम अन्ना की 'सच्चाई' पर जिस तरह से हमारे सांसदों ने प्रतिक्रिया दी उससे तो यही लगता है कि हमारे सांसद उन 162 अपराधियों की इज्जत को देश की इज्जत से जोड़कर देखते हैं।संसद का सम्मान तो सभी करते हैं लेकिन हम उन सांसदों का सम्मान कैसे कर सकते हैं जो अपराधियों की इज्जत को भी खुद के और संसद के इज्जत से जोड़कर देखते हैं?क्या अब इस देश में सांसदों की सच्चाई भी कोई नहीं बोल सकता?क्या संसद में पहुँच जाने पर लोगों के सभी पाप धूल जाते हैं?क्या संसद में पहुँच जाने पर कोई भगवान बन जाता है जिसपर कोई कुछ बोल भी नहीं सकता?अरविंद केजरीवाल ने बड़ा ही संवेदनशील मुद्दा उठाया जिसपर संसद में चर्चा होनी चाहिए और कानून बनना चाहिए कि आज के बाद कोई भी अपराधी चुनाव में खड़ा न हो सके लेकिन हमारे सांसदों ने हवा की दिशा को कहीं और ही मोड़ दिया।
   टीम अन्ना पर सवाल उठाने से पहले राजनीतिक पार्टियाँ अपने गिरेबान में झाँक कर देखे।संसद के लिए जिस तरह से खुलेआम अपराधियों को टिकट दिया जाता है वह इस बात का सबूत है कि हमारे देश के कानून में कितनी त्रुटि है और हमारी राजनीतिक पार्टियाँ उन त्रुटि को दूर करने की बजाए फायदा उठा रही हैं।लालू यादव और मुलायमसिंह यादव भी टीम अन्ना पर प्रहार कर रहे हैं।कम से कम उन्हें तो नहीं बोलना चाहिए।पूरा देश उनके बारे में सच्चाई जानता है, यह बात अलग है कि जातिवाद और धर्मवाद के नाम पर यूपी की जनता ने फिर से मुलायमसिंह यादव को हीरो बना दिया।जहाँ तक शरद यादव का सवाल है तो उन्होंने भी अपनी पहचान खुद ही खो दी।हर चोर जन लोकपाल का विरोध करते हैं जिसमें अब शरद यादव का भी नाम आ गया है।जब शरद यादव के बारे में टीम अन्ना ने 'चोर की दाढ़ी में तिनका' कह दिया तो वे भड़क उठे और अपनी ईमानदारी के किस्से सुनाने लगे।अगर सचमुच शरद यादव ईमानदार हैं तो आखिर उन्हें जन लोकपाल का विरोध करने की क्या जरूरत पड़ गई?टीम अन्ना ने कभी भी शरद यादव को चोर नहीं कहा लेकिन जब वे इस तरह से जन लोकपाल का विरोध करेंगे तो सभी के मन में सवाल उठेंगे कि आखिर आज तक एक ईमानदार नेता समझे जाने वाले शरद यादव जन लोकपाल का विरोध क्यों कर रहे हैं।शरद यादव ने अपनी ही बातों से अपनी पहचान इस कदर खो दी है कि अब इस देश की जो भी समझदार जनता है वो लालू, मुलायम, पासवान और शरद यादव में कोई अंतर नहीं समझेंगे।
   आखिर उस देश की कानून-व्यवस्था का क्या हाल होगा जहाँ कानून बनाने में 162 अपराधियों की भी भागीदारी है?अपराधियों से भरी संसद देश के उद्धार के बारे में कैसे सोच सकती है?मैं मतदाताओं से अपील करता हूँ कि अपराधियों को बिल्कुल वोट न दे।चाहो तो वोट ही न दो लेकिन अपराधियों को तो बिल्कुल भी वोट मत दो।इन राजनीतिक पार्टियों को सबक सिखाओ ताकि ये अपराधियों को टिकट देकर लोकतंत्र का मजाक न उड़ाएं।
जय हिन्द! जय भारत!     
  

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