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26.4.12

ठकुराई बचे या कबीला


ठकुराई बचे या कबीला 
एक पांच सात सौ घरो का कबीला था .बड़ी संख्या में कबीले वाले अनपढ़ या कम पढ़े लिखे थे.कबीले 
की व्यवस्था कैसे चलती है उससे उनको कोई सरोकार नहीं था .थोड़े बहुत लोग जानकार थे वे या तो 
चुप थे या फिर उस व्यवस्था का अंग थे .कबीले का सरदार रामूला था और उसकी पंचायत में कबीले 
के छंटे हुये शातिर भी रामनामी ओढ़कर अपनी बात पर रामूला से मुहर लगवा ही लेते थे . 

    कबीले के शातिर पंच रामूला को बेवकूफ बनाकर उससे कबीलेवालो के लिए अप्रिय निर्णय करवा
लेते जिससे कबीले को नुकसान और पंचो को फायदा होता रहता .लोगो का रोष रामूला के प्रति बढ़ता 
रहता था मगर शातिर पंचो की बदोलत हर होली पर होने वाले सरदार के चुनाव में चुनाव रामूला ही 
जीत जाता था .रामूला की जीत का कारण होली के त्यौहार पर कबीलेवालो को भरपेट स्वादिष्ट खाना 
और शराब देना था .कबीलेवाले उस दिन छक कर खाते और रामूला को नया सरदार चुन लेते .

   सरदार चुने जाने के बाद शातिर पंच कबीले वालो पर नये-नये कर लगा देते और कर की जबरन 
वसूली करते .कर अदा न कर पाने वाले कबीलेवालो को पंचो के खेतो पर बिना मजदूरी के काम 
करना पड़ता था .धीरे-धीरे कबीले वालो की सम्पति कर भार के कारण घटती गयी और पंचो की 
आमद बढती रही .पंच अपनी बढ़ी हुई आय को दुसरे आस पास के कबीले की जमीन मकान खरीदने 
में लगा देते .
        कबीले की बदहाली बढती रही .कर कम वसूल होने से कबीले की व्यवस्था चलाने में रामूला 
को तकलीफ होने लगी .वह जब भी पंचायत बुलाता तो पंच उसको कबीले की जमीन बेचने की सलाह
 दे देते .रामूला भी कर से घटती आय से परेशान हो कबीले की जमीन बेच देता जिसे रामूला के पंच 
ओने पोने दामो में खरीद लेते.

     कबीले वाले कष्ट भरा जीवन जी रहे थे ,उनको अपनी बदहाली का कारण समझ नहीं आ रहा था 
कर नहीं चुकाने के कारण उन्हें अपनी जमीन की जगह पंचो की जमीन की निराई गुड़ाई करनी 
पड़ती थी जिससे उनके खेतो की बुवाई नहीं हो पाती और समय पर बुवाई नहीं होने के कारण खेतो
 में फसल नहीं होती .यह दुष्चक्र काफी सालो तक चलता रहा .रामूला कर की आमद कम देख कर
 गाँव की जमीन बेच देता .धीरे-धीरे कबीले की जमीन बिकती गयी और रामूला की आय इतनी कम
हो गयी कि होली का त्यौहार मनाने के लिए पैसे भी दुसरे कबीले के सरदारों से उधार लेना पड़ता .
दुसरे कबीले वालो ने रामूला की हालत देख कर्ज पर सूद बढ़ा कर लेने लगे .रामूला पर सूद की मार 
इस तरह पड़ी की उससे सूद भी चुकाया नहीं जाता .आखिर तंग आकर रामूला ने पुरे कबीले की सभा
 बुलाई और कबीले की दशा सबके सामने रखी और सबके सामने एक सवाल रखा -क्या मुझे ठकुराई 
बचानी चाहिए या कबीला ?

पंचो ने कहा -बिना ठाकुर के कबीले का कोई धणी धोरी नहीं रहेगा इसलिए ठकुराई बचे.

कबीलेवालो ने कहा- जब कबीले में कोई रहनेवाला ही नहीं बचेगा तो ठकुराई किस पर चलेगी.
  इसलिए ठकुराई जाये और नये को मौका मिले . 

रामूला पंचो और कबीलेवालो का उत्तर सुन कर्तव्य विमूढ़ हो गया और इस फेसले पर पहुंचा कि जब
तक सही उपाय नहीं सूझ जाता तब तक कबीले कि व्यवस्था सूद चुकाने और कर्ज लेने पर चलती 
रहेगी.

वह कबीला इसी दुष्चक्र में फँसा है..........कर्ज, सूद, लुट, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, महंगाई, आत्महत्या,
अनैतिकता का दुष्चक्र. 

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