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28.5.12

आज विनायक दामोदर सावरकरती है की jayanti hai



आज विनायक दामोदर सावरकरती है की जयं। हम में से कितनों को याद है।सावरकर का महत्व केवल इसलिये नही है कि उन्होने हिंदू महा सभा की स्थापना की या कालापानी की सजा काटी अपितु मदनलाल धींगरा,मैडम कामा,चंपक रमन पिल्लई या यो कहें उस दिनों विदेश में रह कर क्रांति  की अलख जगाने वालों में प्रथम पंक्ति में उनका नाम आता है।वीर सावरकर पर सांप्रदायिक होने का आरोप लगाने वालों को तो शायद ज्ञात भी न होगा कि १८५७ की क्रांति को अंग्रेजों ने तो सिपाही विद्रोह कहा था वे सावरकर ही थे जिन्होने २३ वर्ष की अवस्था मे विदेश में रहते हुये अल्प साधनों से १८५७ का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम  पुस्तक लिखकर मौलवी अहमदउल्ला शाह को उस संग्राम का सबसे बडा नायक सिद्ध किया।साहित्यकार,इतिहासकार,दार्शनिक,चिंतक आदि के उनके व्यक्तित्व के इतने आयाम हैं कि उनके हर पक्ष पर एक पुस्तक लिखी जा सकती है।आज़ाद भारत ने उनके इस योगदान का सम्मान करते हुये उन्हे गांधी की हत्या के बाद जेल में डालकर दिया।वे वीर सावरकर ही थे जिन्होने सुभाष बाबू को विदेश जाकर सशस्त्र क्रांति करने का सुझाव दिया था।जीवन के अंतिम दिनों मे जब जवाहरलाल नेहरू ने उन्हे से कहा कि वे सावरकर के लिये कुछ करना चाहते हैं तो उन्होने केवल १घंटा नियमित रूप से रेडियो पर बोलने की अनुमति मांगी जिसे नेहरू ने यह कहकर ठुकरा दिया कि यदि ऐसा हो गया तो देश में अराजकता फैल जायेगी।१९६२ के चीनी आक्रमण से क्षुब्ध सावरकर १९६५ के पाकिस्तानी आक्रमण से भीतर ही भीतर इतने टूट गये थे न ki अंततः अन्न-जल त्याग कर प्राण दे दिये।
मेरी अपनी निजी राय है कि उच्च कुलीन ब्राह्मण कुल में जन्म लेना,सदैव देश हित का चिंतन करना बिना लाग-लपेट के सच कहना विनायक दामोदर सावरकर के व्यक्तित्व के वे कमजोर पहलू हैं जिनके लिये उन्हें भुला दिया जाना ही समकालीन भारत के लिये उचित था।सावरकर यह देश आपको जन्म देकर अति लज्जित है,काश आप आरक्षित दलित या सांप्रदायिक मुसलिम होते------------------

1 comment:

हिन्दू जागृति said...

sahi kaha aapne bhai desh sharminda hai lekin hm sharminda hone ke alawa bhi kuch kar sakte hai !!! aisi mahan hasti ko bhul ke nehru aur gandhi ko sammman dena apne aap me bewkufi hai