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16.5.12

priyasampadak

' प्रिय संपादक " [ 46167 /84 ] हिंदी मासिक
यह शीर्षक मेरे पास १९८४ से रजिस्टर्ड है | पुराना दिनमान पढ़ते , उसमे लिखते (सीखते) मेरे मन में यह सनक सवार हो गयी कि लोकतंत्र में लोक की आवाज़ को मुखर करती हुयी संपादक के नाम पत्रों की एक पत्रिका चलायी जानी चाहिए / चल सकती है | सो मैंने यह शीर्षक लेकर [संयोगवश यह मिल भी गया] इसे शुरू कर दिया | पर मैं परिवार के पालन के लिए गलत जगह सरकारी नौकरी में था | इसलिए इसे बहुत विस्तार देकर अपने सपनों के अनुकूल सफल न बना सका | कोई ग्लानि नहीं पर उल्लास को संतोष कहाँ ? मेरे मूल विश्वास में अब भी ज़रा भी कमी नहीं आई है कि ऐसा पत्र यदि संसाधनों और पत्रकारिता के कौशल के साथ डटकर चलाया जाय तो इसे दैनिक तक ले जाया जा सकता है और इसकी सफलता , जनतंत्र की सफलता होगी | कोई अभिमान नहीं पर आत्मविश्वास अवश्य है कि अभिव्यक्ति की आजादी के प्रति मैंने अप्रतिम आस्था अपने भीतर विकसित की , और मिशनरी तरीके से अपनी आमदनी से पत्र को हर संभव तरीके से चलाया , यहाँ तक कि हार्ट अटेक होने पर बिस्तर पर पड़े - पड़े पोस्ट कार्ड लिखकर भी [जिसकी चर्चा उस समय टी वी पर सुरभि कार्यक्रम में भी हुई ] | सार्वजनिक रूप से असफल होने पर फिर उसे अपने व्यक्तिगत रचनाओं का पत्र / किताब बना दिया जो अब भी छिटपुट चल रही है | पर यह तो कोई बात नहीं हुई , और ६६ की उम्र के बाद तो कुछ होना भी नहीं है | उसे अब बंद करना पड़ेगा ,जो मेरी मृत्यु से पूर्व ही मेरी मृत्यु होगी | इसलिए अब प्रस्ताव करना चाहता हूँ अपने तमाम मित्रों से कि कोई इसे ले ले और चलाये | कोई शुल्क नहीं | कोई आग्रह भी नहीं कि उसे मेरे कल्पित रूप में ही चलाया जाय | कैसे भी चले एक आस ,एक प्यास ज़रूर है कि वह अभियक्ति की आग और मशाल बने तो  कितना अच्छा हो ----
उसी तरह का एक और पत्र अंग्रेज़ी में READERS write [weekly ]भी है - A journal of letters to the editor . RNI -1991
एक और पंजीकृत पत्र है " संक्षिप्त सत्य प्रतिलिपि (हिंदी मासिक )" RNI -1991,
और आख़िरी है - " नास्तिक धर्मनिरपेक्षता ( हिंदी मासिक )" RNI -1991 
मेरा ईमेल पता है - priyasampadak@gmail.com  और मोबाइल नं.है - 09415160913 .धन्यवाद !        

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