ढोल गँवार शुद्र पशु नारी .................
"ढोल गँवार शुद्र पशु नारी ,सकल ताड़ना के अधिकारी" रामचरित मानस की ये चौपाई सुन्दरकाण्ड
से है जब श्री राम को असहाय वेश में देख समुद्र को अपने ऊपर घमंड हो गया था और श्रीराम की
विनय को ठुकरा कर रास्ता नहीं दे रहा था तब बाबा तुलसी प्रसंगवश इस सत्य को लिखते हैं,इस
चौपाई पर बहुत सी आलोचनाए हमने पढ़ी हैं लेकिन आज का आदमी शाब्दिक अर्थ लेकर तुलसी
को नारी विरोधी करार दे देते हैं जबकि तुलसी तो पुरे रामचरित में नारी का गुणगान करते हैं .नारी
को रामचरित के प्रथम मंगलाचरण में श्रद्धा और जगजननी के रूप में मानने वाले तुलसी क्या कोई
भूल कर बैठे थे जो नारी को ताड़ना का अधिकारी कह दिया .नहीं ये तुलसी की भूल नहीं है ताड़ना के
विभिन्न अर्थ हैं सिर्फ मारना या प्रताड़ित करना नहीं है .
मेने यह विषय सामयिक घटना के फलस्वरूप उठाने की कोशिश की है .घटना गौहाटी के
व्यस्त इलाके की है .एक मदिरालय में जन्मदिन की पार्टी में कुछ लड़के और लडकियां गए थे
और वहां दारू पी थी ,पब में उनका आपस में झगड़ा हो गया और उन्हें वहां से निकाल दिया गया था
पब के बाहर कुछ ढोल गंवार या शुद्र लोगो ने उस लड़की को अपमानित किया और वस्त्र फाड़ दिए .
तुलसी ने ऐसे ही लोगो को शुद्र कहा है क्या ऐसे लोग पुरस्कृत होने चाहिए?
विडियो में इस घटना को कुछ लोग चुपचाप देख रहे हैं मगर प्रतिकार नहीं कर रहे हैं ,तुलसी
ऐसे लोगो को पशु के रूप में देखते हैं ,पशु में बुद्धि नहीं होती इसलिए उनसे काम लेना हो तो हाथ में
डंडा होना चाहिए ताकि उसे डराया जा सके या पशु हिंसक हो जाए तो उसे प्रताड़ित किया जा सके .
जो लोग इस घटना को देख रहे थे क्या वे पशु तुल्य नहीं है? क्या हम उन्हें मानव कह
सकते हैं ?
जो दुसरो की भावना का सम्मान न कर सके जो किसी निरीह की वेदना को न समझ सके वो
धिक्कार के ही योग्य है ,ऐसे लोग को सभ्य समाज प्रताड़ित करे या धिक्कारे तो ही अच्छा है .ढोल
का स्वर पीटे जाने पर ही निकलता है तब ही वह सार्थक है .
जो आततायी इस घटना को अंजाम दे रहे थे वो पीटे जाने के योग्य हैं या फिर पूजे जाने के ?
चोथे पात्र के रूप में नारी है ,नारी में माँ का स्वरूप होता है ,नारी में भगिनी का स्वरूप होता है
नारी श्रद्धा का रूप है नारी देवी का रूप है नारी करुणा का रूप है नारी शक्ति है, नारी सहधर्मिणी है
नारी जब विकृत राह पर बढ़ने लग जाए ,नारी जब लज्जा रूपी भूषण को त्यागने लग
जाए नारी जब कामुक प्रदर्शन की वस्तु बन जाए ,नारी जब स्वार्थ में अंधी हो जाए ,नारी जब
अच्छे -बुरे की पहचान भूल जाए ,नारी जब बेशर्म बन मदिरा पान में मस्त हो जाए क्या तब
उसे सही दिशा का भान कराने के लिए उसे कठोर वचन कहकर तिरस्कृत की जानी चाहिए
या नारी होने के कारण वह जो भी विकृति समाज में फैलाना चाहती है उसे सहर्ष सहमती दे
देनी चाहिए ?
क्या शराब सेवन के लिए मदिरालय में जाने वाली नारी देवी के रूप में स्थापित हो पायी है?
गौहाटी की घटना के विडियो में जो भी दिख रहे थे वे सभी पात्र इस सभ्य समाज के
लिए भयावह है .
5 comments:
kaun sa sabhya samaj ? bharat ka prajatantra sabhyata ka shatru hai .
isne araajakataa ka wo mahaul paidaa kiyaa hai ki ladakiyan jab apanee mataon kee kokh mein bhee surakshit naheen to sadakon par kyaa hongee ?
Dr. pandeji ,जब से हमारे देश में गर्भपात को कानूनी जामा पहना कर सही ठहराया गया है तब से समाज में विकृति आने लगी है .यह कांग्रेस की सरकार का कारनामा था जब भारत में गर्भ के लिंग का परिक्षण शुरू हुआ था और प्रजा पहले अनजाने में और फिर जानबूझ कर भ्रूण ह्त्या करने पर उतारू हो गयी ,अब हम विकृतियों के दलदल में फंसते जा रहे हैं लिव इन रिलेशनशिप ,सम-लैंगिग संबंधो के प्रति सहानुभूति पूर्वक विचार ये सब समाज में असंतुलन ही पैदा करेंगे .
नारी को स्वतंत्रता के नाम पर स्वछंदता देकर खुले आम जितना शोषण अब हो रहा है वह किसी से छिपा तो नहीं है .आपका टिप्पणी देने के लिए आभार .
uttam aur sahi chintan !
काश आप इससे पहले की चोपाई भी पढ़ लेते तो तुलसी को गाली न देते,
I & GOD अशोकजी, आपने इस आलेख को पढ़ा ही नहीं है और तुलसी को गाली देने की टिप्पणी कर दी .मेने तुलसी को गाली नहीं दी है बल्कि तुलसी ने ऐसा क्यों लिखा है इस पर चौपाई का भावार्थ लिखा है .कृपया ठीक से लेख का अध्ययन करने की मेहरबानी करे.आभार
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