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10.9.12

क्यों पैदा होते हैं असीम त्रिवेदी सरीखे कार्टूनिस्ट ?

असीम त्रिवेदी ने विवादित कार्टून को लेकर बवाल मचा है...असीम पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज कर दिया जाता है तो समाचार चैनलों से लेकर सोशल नेटवर्किंग साइटस तक सिर्फ ये ही मुद्दा छाया रहता है। सवाल खड़े उठते हैं कि क्या एक कार्टून बनाना देशद्रोह हो सकता है...क्या दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में किसी शख्स को अपनी बात को अभिव्यक्त करने पर देशद्रोह के आरोप में जेल में डाल देना ठीक है। देशद्रोह के जिस कानून के तहत असीम त्रिवेदी को जेल में डाल दिया जाता है वो कानून 152 साल पुराना है जिसे 1860 में उस वक्त बनाया गया था...जब हम ब्रिटिश हुकुमत के गुलाम थे और उस वक्त ब्रिटिश महारानी के खिलाफ बोलने वाले को राजद्रोह के तहत गिरफ्तार कर लिया जाता था। इन 152 सालों में बड़े बड़े बदलाव आए..1947 में हमें आजादी भी मिली...स्वतंत्र भारत में हर भारतीय को खुली हवा में सांस लेने का अधिकार मिला...अधिकार मिला अभिव्यक्ति का...अपनी बात को खुलकर कहने का...लेकिन अफसोस इस बात का है कि आजादी से पहले हम ब्रिटिश हुकुमत के गुलाम थे...वो लोग हमारा शोषण कर रहे थे...तो आज हमारे अपने ये सब करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते। असीम पर राजद्रोह का मुकदमा दर्ज होने के बाद जो नाटकीय घटनाक्रम हुआ उसे देखते हुए तो ये सोचने पर मजबूर होना पड़ता है कि क्या वाकई में 152 साल पुराना ये कानून आज प्रासंगिक है। क्या वाकई में असीम ने विवादित कार्टून बनाकर जो काम किया वो देशद्रोह की श्रेणी में आता है। ऐसा इसलिए भी लगने लगता है क्योंकि जिस तरह मुंबई पुलिस पहले राजद्रोह का मुकदमा दर्ज कर लेती है उसके बाद असीम की रिमांड की जरूरत न होने की बात कर सरेंडर करती है...औऱ असीम के कार्टून को लेकर और उस पर दर्ज देशद्रोह के मुकदमे को लेकर पुलिस की कानूनी सलाह लेने पर विचार करने की खबरें सामने आती हैं...उससे तो कम से कम यही लगता है। खैर 152 साल पुराना कानून 21वीं सदी में कितना प्रासंगिक है ये एक बड़ा मसला है...और निश्चित तौर पर इस पर बड़ी बहस की जरूरत है...लेकिन ऐसे वक्त पर ये सवाल उठाना बहुत जरूरी लगता है कि आखिर क्यों असीम जैसे कार्टूनिस्टों को ऐसे कार्टून बनाने की जरूरत पड़ती है...ये विचार उनके मन में क्यों आया। असीम का विवादित कार्टून सीधे तौर पर देश को चला रही सरकार पर प्रहार था और असीम ने अपने कार्टून के जरिए ये अभिव्यक्त करने की कोशिश की थी कि किस तरह भ्रष्टाचार देश को खा रहा है...और किस तरह सरकार में शामिल लोग भ्रष्टाचार में डूबे हैं। यानि की हमारे देश के नेता भ्रष्ट न होते...तो निश्चित तौर पर भ्रष्टाचार से त्रस्त जनता सड़कों पर न उतरती। हाल ही में अन्ना के आंदोलन की बात करें...बाबा रामदेव के आंदोलन की बात करें...कोयला घोटाले की भेंट चढ़े संसद के मानसून सत्र की बात करें तो सबकी जड़ के पीछे एक ही वजह थी भ्रष्टाचार। ऐसा में हमारे नेताओं को ये सोचना चाहिए इस पर मंथन करना चाहिए कि आखिर असीम त्रिवेदी को विवादित कार्टून बनाने की जरूरत क्यों पड़ी...भ्रष्टाचार के खिलाफ लोगों को आवाज़ उठाने की जरूरत क्यों पड रही है...बजाए इसके की बेवजह की बातों पर बयानबाजी करें औऱ अपने साथी राजनेताओं पर कीचड़ उछालें। राजनेता अगर इस पर मंथन करें और सिर्फ ये सोचें की देश की जनता का कल्याण कैसे होगा...देश से गरीबी, भूखमरी कैसे दूर होगी...देश से बोरोजगारी कैसे हटेगी...भारत विकासशील देश से विकसित राष्ट्र कैसे बनेगा तो शायद किसी असीम त्रिवेदी को किसी का कार्टून बनाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी...भविष्य में कोई और दूसरा असीम त्रिवेदी पैदा ही नहीं होगा...और कार्टून बनाने पर अपनी बात अभिव्यक्त करने पर किसी असीम त्रिवेदी सरीखे कार्टूनिस्ट पर देशद्रोह का मुकदमा दर्ज नहीं होगा। ये तय राजनेताओं को करना है...और राजनेताओं ने समय रहते इसे तय नहीं किया तो राजनेताओं को ये बात नहीं भूलनी चाहिए कि लोकतंत्र के त्यौहार यानि की चुनाव में फिर जनता तय करेगी कि उनके देश को चलाने के लिए उन्हें कैसा व्यक्ति चाहिए...कोई ऐसा व्यक्ति जिसके खिलाफ असीम त्रिवेदी जैसे कार्टूनिस्ट कार्टून बनाने पर मजबूर हों या फिर एक ऐसा व्यक्ति जो सिर्फ ये सोचे की भारत की तरक्की कैसे होगी...अंतिम पंक्ति में खड़े भारतवासी की तरक्की कैसे होगी।
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