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30.12.12

माफ करना दामिनी! हम भी गुनाहगार हैं!


रूह कंपा देने वाली दरिंदगी का शिकार हुई दामिनी आखिर इस दुनिया से रूखसत हो गई। वह भी तक जब वह जीना चाहती थी। उसने लिखकर कहा था-‘माँ मैं जीना चाहती हूं।’ दुःख व गुस्से का गुबार हर भारतीय के दिल में है। पूरी घटना कोढ़ग्रस्त इंसानियत की ऐसी नंगी हकीकत है, जो हमेशा शर्मसार करती रहेगी। कड़वी हकीकत है कि लड़कियां महफूज नहीं हैं और लोग बेटियां पैदा करने से भी डरते हैं। आबादी के लिहाज से दुनिया में दूसरे नंबर वाले भारत में हालात ज्यादा शर्मनाक हैं। ऐसी घटनाओं पर अरब के सख्त कानून की जरूरत याद आती है। दुनिया में सबसे कम अपराध वहीं होते हैं। इस हकीकत का स्वीकार कर लेना चाहिए कि ऐसे लोगों को कानून का खौफ नहीं है?  कोई दोराय नहीं कि घटना ने युवा क्रांति की एक बड़ी अलख जगायी। पुलिस की दमनकारी प्रवृत्ति और सरकार की लीपापोती को सभी ने बहुत नजदीक से देखा। सवाल खड़े हैं क्या कानून बदलेगा? फिर किसी के साथ दरिंदगी नहीं होगी? लड़कियां सुरक्षित हो गईं? देखिए वक्त क्या जवाब देता है। दामिनी हमें माफ करना! बेहद दुःख के साथ सभी की तरफ से भावपूर्ण श्रृंद्वाजली!

2 comments:

प्रेम सरोवर said...

सामयिक पोस्ट। दामिनी चली तो गई लेकिन एक मुहिम हम सबको छेड़ने के लिए बाध्य कर गई। इस मुहिम की नितांत आवश्यता है। पोस्ट अच्छा लगा। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा।

प्रेम सरोवर said...

सामयिक पोस्ट। दामिनी चली तो गई लेकिन एक मुहिम हम सबको छेड़ने के लिए बाध्य कर गई। इस मुहिम की नितांत आवश्यता है। पोस्ट अच्छा लगा। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा।