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6.12.12

माया-मुलायम के कितने मुंह ?


मायावती और मुलायम सिंह...कुछ भी हो दोनों चीज बड़ी गजब हैं...दोनों लोकसभा में एफडीआई पर सरकार के फैसले का विरोध करते हुए वोटिंग के दौरान सदन से गैरहाजिर रहकर सरकार की राह आसान करते हैं....तो  राज्यसभा में मायावती सरकार के पक्ष में वोट करने का ऐलान करती हैं...आखिर 24 घंटे में ऐसा क्या हो गया कि जो मायावती एक दिन पहले एफडीआई पर सरकार के फैसले का विरोध कर रही थी अचानक से सरकार की हां में हां मिलाते हुए साथ खड़ी दिखाई देती हैं...सीबीआई का डर तो इसे पहले दिन ही कहा जा रहा था और सुषमा के ऐसा कहने पर ही मायावती राज्यसभा में सुषमा स्वराज पर जमकर बरसी और इन आरोपों को निराधार ठहराने लगी। मायावती ने तो उल्टा भाजपा पर आरोप लगा दिया कि 2004 चुनाव से एक साल पहले भाजपा ने ऑफर दिया था कि बसपा उनके साथ मिलकर आम चुनाव लड़े...और ऐसा करने से मना करने पर भाजपा ने सीबीआई का दुरुपयोग उनके खिलाफ किया। हो सकता है माया की बात सच हो...लेकिन यहां पर भी सवाल है कि माया ने आज ये राज क्यों खोला ? 24 घंटे में माया का पलटना सारी कहानी खुद ब खुद बयां कर रहा है कि क्यों लोकसभा में एफडीआई पर सरकार के खिलाफ जहर उगलने वाली बसपा राज्यसभा में सरकार के साथ हो ली...ये सीबीआई का डर नहीं है तो और क्या है ? मुलायम सिंह भी इससे जुदा नहीं हैं...बहस से पहले तो सपा सांसद राज्यसभा में सरकार के खिलाफ वोट करने का दम भर रहे थे...लेकिन अचानक से सपा के सुर बदल गए और सपा वोटिंग के दौरान सदन से गैर हाजिर रहने की बात करने लगी। खास बात ये है कि सपा ने राज्यसभा में अपने स्टैंड पर राज्यसभा में अपने पत्ते उस वक्त तक नहीं खोले जब तक बसपा ने अपना रुख साफ नहीं किया। लेकिन जैसे ही बसपा ने सरकार के पक्ष में मतदान करने का ऐलान किया...सपा ने भी अपना रूख साफ कर दिया। सपा शायद ये जान गई थी कि बसपा के सरकार के साथ होने से सरकार की राह आसान हो गई है...ऐसे में अब सरकार के खिलाफ वोट करना सरकार से दुश्मनी ही मोल लेना होगा...ऐसे में क्यों न वोटिंग में सदन से गैर हाजिर रहा जाए...इससे एफडीआई का विरोध की बात भी सही हो जाएगी...और सरकार से भी दुश्मनी नहीं होगी। सपा लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी सदन से गैर हाजिर रहकर सरकार को फायदा ही पहुंचा रही है तो बसपा ने सरकार के पक्ष में मतदान की बात कहते हुए सरकार के आगे आत्मसमर्पण ही कर दिया। एफडीआई पर भले ही सरकार संख्याबल के आधार पर लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी विजयी होती दिखाई दे रही हो...लेकिन लोकसभा और राज्यसभा में एफडीआई पर बहस में न सिर्फ सरकार की नैतिक हार हुई है बल्कि इसने राजनीतिक दलों(सपा और बसपा) का दोगलापन भी उजागर कर दिया है कि कैसे अपने हितों के लिए राजनीतिक दल किसी भी हद तक जा सकते हैं...साथ ही ये भी कि कैसे सरकार अपने फैसले को सही ठहराने के लिए अपने फैसले के पक्ष में वोटिंग कराने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है...इसके लिए उसे चाहे सीबीआई का सहारा ही क्यों न लेना पड़े।

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