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31.8.12

मुँह का कब्ज और डायरिया अर्थात् मनमोहन और दिग्विजय-ब्रज की दुनिया

मुँह का कब्ज और डायरिया अर्थात् मनमोहन और दिग्विजय-ब्रज की दुनिया 

मित्रों,इस दुनिया में यूँ तो लोगों के वर्गीकरण के कई आधार हो सकते हैं। उनमें से ही एक के अनुसार इस दुनिया में इस समय दो तरह के लोग रहते हैं-एक जो बहुत ज्यादा बोलते हैं और दिन-रात बेवजह भूँकते रहते हैं और दूसरी श्रेणी में ऐसे लोग आते हैं जो इतना कम बोलते हैं कि कभी-कभी तो खुदा के फजल से बंदों को ऐसा भी गुमाँ हो जाता है कि उसके मुँह में किबला जुबान है भी कि नहीं। इनमें से पहली जमात की रहनुमाई इन दिनों कर रहे हैं मध्य प्रदेश के पूर्व वजीरे आला,जब बोले तो गड़बड़झाला,ऊपर से नीचे तक माशाअल्लाह जहर का हाला,बकवासे आजम श्री दिग्विजय सिंह और दूसरी जमात के रहनुमा हैं चुप्पा सम्राट,घोटाला-पुरूष,यंत्र-मानव,कृत्रिम बुद्धि के पारावार,सोनिया गाँधी के प्रिय (कु)पात्र,अनर्थशास्त्र के परम-विद्वान,सल्तनते भ्रष्टाचार (हिंद) के मौजूदा वजीरे आजम श्री मनमोहन सिंह।
                मित्रों,इनमें से एक कहता है कि चाहे मुझे कितना भी छेड़ लो,कितनी भी गुदगुदी कर लो,कैसे भी आरोप लगा लो मैं तो बोलूंगा ही नहीं,मुँह खोलूंगा ही नहीं। जनाब फरमाते हैं कि उनकी चुप्पी के चलते ही हम जनता के सवालों की इज्जत-आबरू बची हुई है,अन्यथा ईधर उन्होंने मुँह खोला नहीं कि हमारे सवालों का बलात्कार ही हुआ समझिए। माना कि कभी-कभी चुप रहना बेहतर होता है लेकिन कोई हमेशा चुप ही रहे तो इसे गुण नहीं बल्कि अवगुण ही माना जाना चाहिए और फिर राजनीति तो वकालत की तरह बोलनेवालों का ही पेशा है। जनाब को जब चुप ही रहना था तो क्यों बने भारत के प्रधानमंत्री,किसके कहने पर बने,हमने तो नहीं कहा था? मान लीजिए आप एक अधिवक्ता हैं और कोई आलतू-फालतू-सा मुकदमा लड़ रहे हैं फिर भी आप जज से ऐसा तो नहीं कह सकते कि मैं तो चुप ही रहूंगा,मैं तो बोलूंगा ही नहीं। फिर तो आपसे जज यही कहेगा न कि मेरे बाप जब आपको चुप ही रहना था तो आप वकील बने ही क्यूँ? आपसे मैंने तो नहीं कहा था कि आप इसी पेशे में आईए। आपके बिना इस क्षेत्र में सुखाड़ की स्थिति तो नहीं थी कि आप आए और बहारें आईं। इतना सुनाने के बाद वह जज आपको बाईज्जत बाहर निकाल देगा।
           मित्रों,राजनीति कोई खाला का घर नहीं है कि कोई भी आकर कोई भी पद ग्रहण कर ले। राजनीति में जज होती है जनता और वकील होते हैं सत्ता पक्ष और विपक्ष। भारत में सत्ता पक्ष का नेतृत्वकर्ता होता है प्रधानमंत्री। तो हम भी लगे हाथों पूछ ही लेते हैं कि श्री मनमोहन सिंह जी से कि जब चुप्पी ही साधे रखनी थी तो रिटायरमेंट की इस नाजुक उम्र में घर में ही रहते राजनीति में क्यों आए? अच्छा होता घर में खाट पर पड़े-पड़े चुपचाप ताईजी की डाँट-फटकार सुनते रहते। यहाँ तो ताऊ घोटाले आप करेंगे तो जवाब भी आपको ही देना पड़ेगा। यहाँ तक कि ताईजी भी जवाब नहीं दे सकतीं। फिर दिग्विजय सिंह कौन होते हैं जवाब देनेवाले? क्या वे कोयला घोटाला होने के समय कोयला मंत्री थे या किसी तरह इस कुकर्म में मुलब्बिस थे? अगर नहीं तो फिर क्यों जनाब बेगाना शादी में अब्दुल्ला दीवाना बन रहे हैं। खुदा कसम दीवाने तो हमने भी कम नहीं देखे हैं लेकिन शौकिया दीवाना पहली बार देखा है। फटा देखा नहीं कि डाल दिया पाँव और एक नहीं दोनों। अभी तक तो भारत के लोगों को जब कभी-कभी डायरिया होता था तो उनको दस्त होते थे और जाहिर है कि डायरिया पेट में होता था मगर जनाब को तो बारहों मास मुँह का डायरिया हुआ रहता है।
                    मित्रों, काफी लंबी चुप्पी के बाद राघोगढ़ के साहिबे आलम ने अपना गंदा मुँह खोला है और जनाब जनाब ने मुँह क्या खोला है जमकर उल्टी की है। गंध मचा दिया है एकदम। जनाब ने सीधे-सीधे उस संवैधानिक संस्था के ऊपर निहायत बेहूदा और बेसिर-पैर के आरोप लगाए हैं जिसको कभी संविधान निर्माता डॉ. अंबेदकर ने भारत के सरकारी खजाने का पहरेदार कहा था। जनाब शायद यह चाहते हैं कि उनकी पार्टी की सरकार रोज-रोज घोटाले करती रहे और सीएजी इस ओर से आँखें मूँदे ले और अपना संवैधानिक जिम्मेदारी का पालन नहीं करे। हम उनसे पूछते हैं कि उनकी पार्टी की सरकार ऐसे गुनाह करती ही क्यों है जिससे सीएजी को उसकी कान पकड़ने और विपक्ष को उमेठने का मौका मिलता है? क्यों उनकी पार्टी की सरकार हमेशा साँप की तरह टेढ़े-मेढ़े रास्ते से चलती है? क्यों वह सीधी राह पर नहीं चलती? क्या जनाब दिग्विजय सिंह अन्तर्यामी हैं? क्या उनको यह पता चल जाता है कि कौन,कब,क्या सोंच रहा होता है? देश में कौन हत्या की योजना बना रहा है,कौन बलात्कार करनेवाला है या कौन बम फोड़ने की सोंच रहा है? अगर ऐसा है तो फिर उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी ही क्यों पड़ी? क्यों वे मुख्यमंत्री रहते हुए मध्य प्रदेश की जनता के मन को नहीं पढ़ सके? वैसे भी यह एक भविष्यगत प्रश्न है कि भारत के वर्तमान सीएजी श्री विनोद राय रिटायर होने के बाद क्या करेंगे? वे घर में बैठकर नाती-पोतों को गुलाटी खिलाएंगे या फिर चनाचूड़ का व्यवसाय करेंगे या फिर राजनीति करेंगे। उन्होंने अभी तक तो एक बार भी नहीं कहा कि उनकी राजनीति में अभिरुचि भी है। क्या बिना किसी प्रमाण के एक अतिमहत्त्वपूर्ण संवैधानिक संस्था पर बदबूदार कीचड़ उछालने से संविधान और संसद का सम्मान बढ़ता है? जब यही काम टीम अन्ना कर रही थी तब तो बतौर दिग्विजय ऐसा नहीं हो रहा था। वैसे दिग्विजय जी तो इस समय राजनीति में ऐसी अंधी गली आ फंसे हैं कि कम-से-कम उनको तो मान या अपमान से कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन देश और देश की जनता को तो संवैधानिक संस्था के अपमान से फर्क पड़ता है। क्या विडंबना है कि जिसे बोलना चाहिए वह चुप है और जिसके शब्दों से H2S गैस की तरह दुर्गन्ध आती है वह बस बोले ही जा रहा है,बस बोले ही जा रहा है। कोई है ऐसा जाबाँज,ऐसा हुनरमंद जिसके पास मनमोहन की जुबान पर लगे ताले की चाबी हो ताकि उसी ताले को खोलकर दिग्विजय की जुबान पर जड़ दिया जाए और चाबी को आमेजन दरिया में फेंक दिया जाए।

दिवाना दिल ।(गीत)


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दिवाना   दिल ।(गीत)



दिवाना  दिल  फिर,  मुकम्मल   जगह   ढूंढता   है ।



तुझे    भूलाने    की,   ठोस      वजह    ढूंढता   है ।




(मुकम्मल=  परिपूर्ण, जिसमें कोई कमी न हो)  



(जगह= आसरा;  ठोस= मज़बूत)




अंतरा-१.   




अहदे-वफ़ा  का  तुक, कभी  न  जाना  तुने  फिर  भी..!



मिज़ाज - ए - इश्क   पाया   किस   तरह,  ढूंढता   है..!



दिवाना   दिल    फिर,  मुकम्मल   जगह   ढूंढता   है ।




(अहदे-वफ़ा= वफ़ादारी का वादा;  तुक= मतलब)  



(मिज़ाज-ए-इश्क= प्यार का अहसास;  किसतरह= कैसे )




अंतरा-२.




निगाँहे  करम  के   किस्से,  सुने   जहाँ   ने  शौक़   से ।



ज़माना  रहरह  कर अब ,  नुक्स   बेवजह   ढूंढता   है ।



दिवाना   दिल    फिर,  मुकम्मल   जगह   ढूंढता   है ।




(निगाँहे  करम=प्यार;  नुक़्स=  ग़लती)




अंतरा-३.




बे-रहमतों  का  सबब  अभी तक,  ना  बताया   तुने..!



यहाँ,  ये   दिल  बावरा    बेसबब,  फ़तह    ढूंढता   है ।



दिवाना   दिल   फिर,  मुकम्मल   जगह   ढूंढता   है ।




(बेरहमत=निर्दयता;  सबब= कारण)




अंतरा-४.




महरूम रह जायेगा  दिल, अवन - गुल की  सेज  से..!



सुकूने    दिल    शायद,  नोकीली   सतह   ढूंढता   है ?



दिवाना   दिल   फिर,  मुकम्मल   जगह   ढूंढता   है ।




(महरूम= वंचित; अवन-गुल  की  सेज = प्यार के फूलों से सजी शय्या) 



(सुकूने  दिल= दिल का आराम; नोकीली= चुभती)



मार्कण्ड दवे । दिनांकः ३१-०८-२०१२.

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MARKAND DAVE
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देख कैसी सज रही है आज रजधानी गरीब

कर्ज देने आ रहा होगा कोई मेहमान एक

 हैरान हैं जो कह रहे थे, रेप छोटी वारदात

गुम है प्रेमी संग बेटी नेता की जवान एक

मुख्तसर-सी बात है ये आज दिल्ली के लिए

बस्ती हटाकर बना दिया मकान आलीशान एक

टोपी गिरी, नींदें उड़ी, होश भी फाख्ता हुए

फैसला किसने सुनाया, पढ़के संविधान एक

एहतियातन राह हमने आज खुद अपनी बदल ली

जा रहा था उस सड़क से कोई सियासतदान एक

क्या हुआ कि बोलती नेता की आज बन्द है

शायद हुआ है देश में ईमान से मतदान एक

-कुंवर प्रीतम

31 अगस्त 2012

30.8.12

पगथिया: समाज और हम

पगथिया: समाज और हम: ---------------------------------------------------------------------------------------------------- 27.08.2012 सेवा के नाम पर स्वार्थ क...

शिक्षक की खट्टी-मीठी बातें

समाज की कल्पना बिना शिक्षकों के अधूरी है. शिक्षक सिर्फ वही नहीं है जो आपको किताबी ज्ञान दे बल्कि जीवन के हर पड़ाव पर आपको सही राह दिखाने वाले भी शिक्षक ही होते हैं. हमारा पूरा जीवन ही शिक्षकों को समर्पित होता है लेकिन इसके बावजूद भी गुरु पूर्णिमा और शिक्षक दिवस जैसे विशेष दिनों को हम अपने गुरुओं को ही समर्पित करते हैं.


भारत में गुरु-शिष्य की परंपरा बहुत पुरानी है. भगवान कृष्ण के प्राचीन कथाओं से लेकर आज के हाइटेक जीवन में हमें हर तरफ शिक्षकों की महत्ता दिखाई देती है. भारत में गुरु और शिष्य का रिश्ता एक परंपरा के रूप में बंधा होता है. यहां गुरु अपना ज्ञान शिष्य को देता है तो शिष्य भी गुरु दक्षिणा देकर गुरु का ऋण चुकाने की परंपरा का निर्वाह करता है. गुरु द्रोणाचार्य के बिना अर्जुन को धनुष विद्या का ऐसा ज्ञान नहीं हो पाता तो वहीं अगर रामकृष्ण परमहंस ना होते तो भारतीय संस्कृति का वैश्विक महानाद करने वाले विवेकानंद को सही दिशा कौन देता?



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खल नेताजी की कमाई । (व्यंग)



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खल  नेताजी  की  कमाई । (व्यंग)



चले   न  चले   संसद  पर,  कमाई    रहती   भारी   है ।

संसद   से  सड़क  तक  देख, लड़ाई   होती   भारी   है ।


१.


इटली  कि   किटली   जब,  चूल्हे   पे   चढ़  जाती   है..!

अच्छे   अच्छों  को   उनकी, नानी   याद   दिलाती   है ।

चले   न  चले   संसद   पर,  कमाई    रहती   भारी    है ।


२.


चमचें    हाज़िर   है    कई,  पुरखों  की   लाज   रखने । 

हंगामा   मचाने    बस,  एक   इशारा   ही    काफ़ी   है ।

चले  न  चले   संसद   पर,  कमाई   रहती   भारी    है ।


३.


नेताजी  की   देख   सारी,  हमदर्दी   भी  जाली   है ।

बुरी   नज़रवाले   तेरी,  जुबान   कितनी  काली   है..!

चले   न  चले  संसद  पर, कमाई  रहती   भारी   है ।


४.


सब्र   कर, सपनों   में  तेरे  नानी,   तेरी  भी  आयेगी ।

बाप    के   बाद   अब,  बेटे   ने   भी   बाँह  चढाई   है ।

चले   न  चले  संसद  पर,  कमाई   रहती   जारी   है ।


५.


वोट  का  मोल  है  क्या,  अबोध  जनता  कब  जानेगी?

पर    तब  तक,   खल  नेता  की   जेबें  रहनी  भारी   है ।  

चले   न   चले    संसद   पर,  कमाई   रहती   जारी   है ।



मार्कण्ड दवे ।  दिनांकः ३०-०८-२०१२.

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MARKAND DAVE
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अंतर्राष्ट्रीय ब्लागर्स सम्मेलन में आकांक्षा-कृष्ण कुमार यादव को मिला 'दशक के श्रेष्ठ ब्लागर दंपत्ति' का ख़िताब

जीवन में कुछ करने की चाह हो तो रास्ते खुद-ब-खुद बन जाते हैं। हिन्दी-ब्लागिंग के क्षेत्र में ऐसा ही रास्ता अखि़्तयार किया कृष्ण कुमार यादव व आकांक्षा यादव ने। 2008 में अपना ब्लागिंग-सफर आरंभ करने वाले इस दम्पत्ति को परिकल्पना समूह द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर ’’दशक के श्रेष्ठ दम्पत्ति ब्लागर’’ के रूप में सम्मानित किया गया है। इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएं पद पर पदासीन कृष्ण कुमार यादव हिन्दी-साहित्य में एक सुपरिचित नाम हैं, जिनकी 6 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं । उनके जीवन पर एक पुस्तक ’बढ़ते चरण शिखर की ओर’ भी प्रकाशित हो चुकी है। आकांक्षा यादव भी नारी-सशक्तीकरण को लेकर प्रखरता से लिखती हैं । साहित्य के साथ-साथ ब्लागिंग में भी हमजोली यादव दम्पत्ति को 27 अगस्त, 2012 को लखनऊ में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय हिंदी ब्लागर सम्मेलन में 'दशक के श्रेष्ठ ब्लागर दम्पत्ति’ का अवार्ड दिया गया। मुख्य अतिथि श्री श्री प्रकाश जायसवाल केन्द्रीय कोयला मंत्री की अनुपस्थिति में यह सम्मान वरिष्ठ साहित्यकार उदभ्रांत, पूर्व पुलिस महानिरीक्षक शैलेन्द्र सागर आदि ने संयुक्त रूप से दिया।

गौरतलब है कि हिंदी ब्लागिंग का आरंभ वर्ष 2003 में हुआ और इस पूरे एक दशक में तमाम ब्लागरों ने अपनी
अभिव्यक्तियों को विस्तार दिया। पर कृष्ण कुमार-आकांक्षा यादव ने वर्ष 2008 में ब्लाग जगत में कदम रखा और 5 साल के भीतर ही सपरिवार विभिन्न विषयों पर आधारित दसियों ब्लाग का संचालन-सम्पादन करके कई लोगों को ब्लागिंग की तरफ प्रवृत्त किया और अपनी साहित्यिक रचनाधर्मिता के साथ-साथ ब्लागिंग को भी नये आयाम दिये। कृष्ण कुमार यादव जहाँ 'शब्द-सृजन की ओर' और 'डाकिया डाक लाया' ब्लॉग के माध्यम से सक्रिय हैं, वहीँ आकांक्षा यादव 'शब्द-शिखर' ब्लॉग के माध्यम से. इसके अलावा इस युगल-दंपत्ति द्वारा सप्तरंगी प्रेम, बाल-दुनिया और उत्सव के रंग ब्लॉगों का भी युगल सञ्चालन किया जाता है. उपरोक्त सम्मान की घोषणा करते हुए संयोजकों ने लिखा कि- ''कृष्ण कुमार यादव ने 'डाकिया डाक लाया' ब्लॉग के माध्यम से डाक विभाग की सुखद अनुभूतियों से पाठकों को रूबरू कराने का बीड़ा उठाया तो आकांक्षा यादव ने 'शब्द-शिखर' के माध्यम से साहित्य के विभिन्न आयामों से रूबरू कराने का। एक स्वर है तो दूसरी साधना। हिन्दी ब्लोगजगत में जूनून की हद तक सक्रिय इस ब्लॉगर दंपति ने हिंदी ब्लागिंग को कई नए आयाम दिए हैं.'' इन दम्पत्ति के ब्लागों को सिर्फ देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी भरपूर सराहना मिली। कृष्ण कुमार यादव के ब्लाग ’डाकिया डाक लाया’ को 94 देशों, ’शब्द सृजन की ओर’ को 70 देशों, आकांक्षा यादव के ब्लाग ’शब्द शिखर’ को 66 देशों और इस ब्लागर दम्पत्ति की सुपुत्री एवं पिछले वर्ष ब्लागिंग हेतु भारत सरकार द्वारा ’’राष्ट्रीय बाल पुरस्कार’’ से सम्मानित अक्षिता (पाखी) के ब्लाग ’पाखी की दुनिया’ को 94 देशों में देखा-पढ़ा जा चुका है।

गौरतलब है कि यादव दम्पति की सुपुत्री अक्षिता (पाखी) को पिछले साल हिंदी भवन, नई दिल्ली में 'श्रेष्ठ नन्हीं ब्लागर' सम्मान से सम्मानित किया गया था तो 14 नवम्बर, 2012 को विज्ञान भवन, नई दिल्ली में भारत सरकार द्वारा अक्षिता को आर्ट और ब्लागिंग के लिए 'राष्ट्रीय बाल पुरस्कार' भी प्रदान किया गया. मात्र साढ़े चार साल की उम्र में राष्ट्रीय बाल पुरस्कार प्राप्त कर अक्षिता ने जहाँ भारत की सबसे कम उम्र की बाल पुरस्कार विजेता होने का सौभाग्य प्राप्त किया, वहीँ पहली बार भारत सरकार द्वारा किसी ब्लागर को कोई राजकीय सम्मान दिया गया. फ़िलहाल अक्षिता गर्ल्स हाई स्कूल, इलाहाबाद में प्रेप में पढ़ती है.

उमानाथ बाली प्रेक्षागृह, कैसर बाग, लखनऊ में आयोजित इस अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन में न्यू मीडिया की संभावना एवं चुनौतियों को लेकर तमाम सेमिनार हुये। ’न्यू मीडिया के सामाजिक सरोकार’ विषय आधारित सेमिनार में मुख्य अतिथि के रूप में कृष्ण कुमार यादव ने ब्लागिंग को सामाजिक सरोकारों से जोड़ने की बात कही और एक माध्यम के बजाय इसके विधागत विकास पर जोर दिया।

इस दम्पत्ति को सम्मानित किये जाने के अवसर पर देश-विदेश के तमाम ब्लागर, साहित्यकार, पत्रकार व प्रशासक उपस्थित थे। प्रमुख लोगों में मुद्रा राक्षस, वीरेन्द्र यादव, पूर्णिमा वर्मन, रवि रतलामी, रवीन्द्र प्रभात , जाकिर अली ’रजनीश’, शिखा वार्ष्णेय, सुभाष राय इत्यादि प्रमुख थे।






29.8.12

बलात्कार की नई राजधानी बनता बिहार-ब्रज की दुनिया

मित्रों,अभी तक जिस तरह की घटनाएँ दिल्ली और मुम्बई में ही ज्यादा देखने को मिलती थी न जाने कैसे और क्यों अब बिहार में भी देखने को मिल रही हैं। बिहार में पिछले कुछ महीनों से महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाओं में अप्रत्याशित वृद्धि हो रही है। अगर आपके साथ कोई स्त्री है और आप बिहार की राजधानी पटना की सड़कों पर चहलकदमी कर रहे हैं तो सचेत रहिए आपके साथ कभी भी कुछ भी हो सकता है। अभी कल ही पटना के आलमगंज थाना क्षेत्र में बोलेरो पर सवार 7 लोगों ने अपने मामा और भाई के साथ मोटरसाइकिल से जा रही नाबालिग लड़की का अपहरण कर लिया। पटना में चलती कार में उठाई गई लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार के कई मामले पहले भी सामने आ चुके हैं। कल ही एक अन्य घटना में किऊल जंक्शन के प्लेटफॉर्म न. 5 पर खड़ी ट्रेन में ही 3 फटेहाल मनचलों ने छत्तीसगढ़ की एक लड़की की ईज्जत को तार-तार कर दिया। इसी तरह परसों भागलपुर के मेही आश्रम में दो साध्वी बहनों के साथ आश्रम के ही साधुओं ने ही सामूहिक दुष्कर्म की घटना को अंजाम दे दिया।
             मित्रों,ऐसी घटनाएँ बिहार में इन दिनों रोज-रोज ही घट रही हैं इसलिए इस आलेख में मैं कितने का जिक्र करूँ? क्या घर और क्या बाहर महिलाएँ कहीं भी सुरक्षित नहीं रह गई हैं। एक घटना में तो इसी 22 अगस्त को गया जिले में एक महिला जो वार्ड सदस्य भी है को पैसे के लालच में स्वयं उसके बेटे ने ही अपने चचेरे भाइयों के साथ मिलकर बाल काटकर और नंगा करके गांव में घुमा दिया। अब इससे ज्यादा जघन्य अपराध और क्या हो सकता है? क्या अमीर क्या गरीब,क्या अगड़े और क्या पिछड़े हरेक वर्ग के लोग महिला प्रताड़ना की घटनाओं में शामिल पाए जा रहे हैं। महिलाओं के प्रति सम्मान का भाव लोगों के मन से ही विलुप्त होता जा रहा है। न जाने कैसा उन्माद हरेक इन्सान के दिलो-दिमाग पर तारी होता जा रहा है?
               मित्रों,ऐसा क्यों हो रहा है न सरकार समझ पा रही है और न ही प्रशासन ही समझ पा रहा है। कानून का डंडा हरगिज नहीं रोक सकता ऐसी घटनाओं को। अगर ऐसा होना होता तो रोजाना के अखबार इस तरह की जघन्य घटनाओं की खबरों से भरे पड़े नहीं होते। खोट कानून में नहीं है अलबत्ता कानून लागू करनेवालों में जरूर कमी है। आखिर वे भी तो इसी समाज से आते हैं। लेकिन सबसे बड़ी गिरावट जो पिछले 20-25 सालों में आई है वह है हमारी सोंच में और सबसे बड़ा बदलाव आया है हमारी जीवन-शैली में। हमने वास्तविक भगवान को उसके आधिकारिक पद से अपदस्थ कर पैसे को ही भगवान बना दिया है और मान लिया है। पहले जब तक लोग भगवान को ही भगवान मानते थे तब तक उनके मन में हमेशा यह डर रहता था कि उनका भगवान उन्हें कभी-न-कभी किसी-न-किसी प्रकार से कुकर्मों के लिए दंडित करेगा। आज जबकि पैसे को ही भगवान बना दिया गया है तो जिनके पास पैसा है वे अपने-आपको ही भगवान समझने लगे हैं और यह मानने लगे हैं कि पैसा इन्सान की सारी कमियों को ढँक देता है। साथ ही जिनके पास नहीं है वे येन केन प्रकारेण शीघ्रातिशीघ्र ज्यादा-से-ज्यादा पैसा कमा लेना चाहते हैं। नतीजतन हमारा तेज गति से नैतिक क्षरण हो रहा है और हम जो करते हैं हमारे बच्चे वही सीखते हैं। संस्कृत में एक सूक्ति है-महाजनो येन गतः स पंथाः। अर्थात् महान या समाज के माननीय लोग जिस मार्ग पर चलते हैं अन्य लोग उसी का अनुशरण करते हैं। समाज के ऊपरी वर्ग का अगर नैतिक पतन होता है तो निचला तबका भी सर्वथा अप्रभावित नहीं रह पाता। समाज के नैतिक क्षरण को रोका जा सकता है लेकिन यह काम है बड़ा मुश्किल;इस उपभोक्तावादी और भोगवादी युग में तो और भी कठिन। इसके लिए समाज को और व्यक्ति को निरा भौतिकवाद से अध्यात्मवाद की ओर उन्मुख करना पड़ेगा। हमारी पाठ्य-पुस्तकों में तो आज भी नैतिक शिक्षा की सामग्री अटी-पटी पड़ी है लेकिन हमारे जीवन से,नित्य-कर्म से नैतिकता गायब-सी हो गई है। मैंने गायत्री परिवार से जुड़े ऐसे कई समृद्ध लोगों को देखा है जो दैनिक जीवन में परले दर्जे के धूर्त हैं। ऐसे में एक मार्ग एकला चलो रे का भी हो सकता है। अगर प्रत्येक व्यक्ति अकेले भी धर्म के मार्ग पर चलने का उद्यम करने को उद्धत होता है तो एक बार फिर से समाज का नैतिक उत्थान संभव है। फिलहाल ऐसा हो पाना संभव नहीं तो असंभव भी नहीं लगता भले ही कितना भी कठिन क्यों न हो। कोशिश करने पर हो सकता है निकट-भविष्य में बिहार का समाज नैतिक पतन के निम्नतम बिन्दु को छूने के बाद फिर से उत्थान की ओर महाप्रयाण करे। मेरे हिसाब से तो महान बिहार का महान समाज नैतिक पतन के निम्नतम बिन्दु तक पहुँच भी चुका है। 

चिथड़ेहाल आसरा - बुढ़ापा । (गीत)



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चिथड़ेहाल  आसरा - बुढ़ापा । (गीत)




कब से,  ढूँढ  रहा  है  आसरा, फ़टा-पुराना  मन ।


चिथड़ेहाल  हुआ  जब  से, ये  नया-नवेला  तन ।


(आसरा= छत्रछाया; नया-नवेला= अभूतपूर्व ​)




अंतरा-१.



गिन  कर   पाँव के   छालों  को, बता  सकते  हैं  सभी..!


हुई   होगी   ईहा   कितनी  कि, न  तन  मेरा  ना  मन..!


कब   से,  ढूँढ    रहा    है   आसरा,  फ़टा-पुराना  मन ।


(ईहा= जद्दोजहद, संघर्ष )



अंतरा-२.



जब  कभी  सोचता  हूँ, क्या  पाया, क्या  खोया  मैंने ?


यारों   से    झूठ   कहूँ   कैसे,  न  बदन  रहा  ना  धन ।


कब   से,   ढूँढ    रहा  है   आसरा,  फ़टा-पुराना  मन ।



अंतरा-३.



लगने  लगा  है अच्छा, अलम के  अंचल  में  छिपना ।


जी  भर  के  भिगो  ले  अंचल, न  शूल  है  ना  चुभन ।


कब  से,  ढूँढ    रहा    है   आसरा,  फ़टा-पुराना   मन ।


(अलम= पछतावा; अंचल =दामन,पल्लू)


अंतरा-४.


फिर  रहा  है  मारा -  मारा   और   कह   रहा   ये   मन ।


न  चाल, न  चलन, दे  करीम  एक   नया-नवेला  तन ।


कब    से,  ढूँढ   रहा    है    आसरा,  फ़टा-पुराना   मन ।


(चाल-चलन= आचार-व्यवहार; करीम=  परवरदिगार) 


मार्कण्ड दवे । दिनांकः२९-०८-२०१२.


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MARKAND DAVE
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Health Camp

निःशुल्क चिकित्सा शिविर


बड़े हर्ष के साथ सूचित किया जा रहा है कि दिनांक- 09 सितंबर 2012, दिन- रविवार को अमर वीर इण्टर कालेज, धानापुर में अदनान वेलफेयर सोसाइटी के तत्वाधान में निःशुल्क चिकित्सा शिविर का आयोजन किया गया है।
चिकित्सा शिविर में अति विशिष्ट चिकित्सकों की टीम द्वारा मरीजों का निःशुल्क परीक्षण किया जाएगा। शिविर में जनरल फिजिशियन, अस्थि रोग, नेत्र रोग, स्त्री व प्रसूत रोग, बाल रोग एवं दंत व मुख कैंसर रोग विषेषज्ञ चिकित्सक मौजूद रहेंगे।
आप समस्त क्षेत्रवासयिों से अपील की जाती है कि भारी संख्या में पहुंच कर चिकित्सा शिविर का लाभ उठायें।

अधिक जानकारी के लिए सम्पर्क करें-
08896653900, 9807765879

चिंता-ता चिता-चिता कोई चिंता नाय !!

[1]
सुनो....सुनो.....सुनो....सुनो....
सब कोई मेरी खामोशी को सुनो 
मैं कुछ नहीं बोलूंगा 
चाहे तुम सब कुछ भी कहो 
चाहे तुम मुझे हरामी कहो 
या कहो कुछ भी और 
कि मैं चोरों का हूँ सरदार 
चाहे कहो कि मैं हूँ मक्कार 
तुम चाहो तो मुझे 
देश द्रोही भी कह सकते हो 
मगर मैं किसी से कुछ नहीं कहूंगा 
क्योंकि अगर मैंने कुछ भी कहा 
तो हो जायेंगे बहुत जने बेनकाब !!
मेरी जबान अगर खुल गयी तो 
निकल जाएगी कईयों की जान 
इसीलिए 
मेहरबान-कदरदान-मेजबान-मेहमान 
आप इस नाचीज़ को चाहे जो कह लो 
बन्दा मुस्कुराता ही रहेगा 
ना आपको कुछ कहेगा ना मैडम को 
जो जैसा चल रहा है वैसा ही चलेगा 
कुछ ना बदला है ना बदलेगा 
आप सब भी ऐसा ही कुछ करो ना 
मेरी तरह निर्लिप्त हो जाओ ना सब कुछ से 
फिर देखना आप सब कि कैसी शान्ति होती है 
आप सब शान्ति ही चाहते हो ना ?
घबराओ मत,हम जो कुछ भी कर रहे हैं 
जल्द ही आप सब देखना 
मरघट जैसी शान्ति छा जाएगी सब तरफ !! 
[2]
तो बोलो,
चिंता-ता चिता-चिता कोई चिंता नाय 
चिंता-ता चिता-चिता कोई चिंता नाय !!
दुनिया बड़ी खिलाड़ी,हम रह गए अनाडी
काहे को लेते हो टेंशन ओ मेरे प्यारे भाय 
जितना भी लूटे ये देश को तो लूट लेने दो ना 
वैसे भी तो खायेगा कोई,इनको ही खाने दो ना
जब कुछ भी नहीं है तुम सबकी अपनी औकात 
तब काहे को करते हो हल्ला,मरते तो हो तुम बेबात 
सब मिल के नाचो गाओ और सारे मिल के बोलो 
चिंता-ता चिता-चिता कोई चिंता नाय 
चिंता-ता चिता-चिता कोई चिंता नाय !!
गाडी में चलते हैं सिकंदर,हम रह गए हैं बन्दर 
मोटे चूहे खोदे देश को और हम तो हैं छुछुंदर
हम होते जाते भीतर और सारा माल उनके अन्दर 
चाहे वो खोदे खाने,या बेचें वो स्पेक्ट्रम 
जब है ही नहीं कुछ भी आवाज़ में तुम्हारी दम 
काहे को भईया फोड़ते हो नारों के ये फालतू बम
सारे ही आओ मिल कर सब आज मौज मनाओ 
देश की इस हालत का तुम भी मजाक उड़ाओ
चिंता-ता चिता-चिता कोई चिंता नाय  
चिंता-ता चिता-चिता कोई चिंता नाय !!
आओ ओ मेरे बच्चों इक कथा तुम्हें सुनाऊं 
परियों के लोक में आज मैं तुम्हें ले जाऊं 
क्या करोगे तुम भी जानकर अपने वतन की हालत 
तुम भी बनाते रहना बस अपनी खुद की ही सेहत
मरती हो गर इंसानियत तो मर जाने दो तुम उसको 
डार्लिंग तुम्हारी बैठी है बस किस करो तुम उसको 
पापा-मम्मी तुम्हारे,तुम्हारा कैरियर आगे बढाएं
कोई दुल्हन या दामाद लाकर परिवार आगे बढाएं 
तुम भला कौन हो वतन के और क्या है वतन तुम्हारा 
और है भी क्या भला कुल मिलाकर इतिहास हमारा 
आओ चलें करें कोई पार्टी रेव और नंग-धडंग गायें 
और जो करे हमारी निंदा उसे गोली मार गिराएं
चिंता-ता चिता-चिता कोई चिंता नाय  
चिंता-ता चिता-चिता कोई चिंता नाय !!
सोचता तो हूँ कि एकांगी सोच ना हो मेरी,किन्तु संभव है आपको पसंद ना भी आये मेरी सोच/मेरी बात,यदि ऐसा हो तो पहले क्षमा...आशा है कि आप ऐसा करोगे !!

28.8.12

लो क सं घ र्ष !: प्रेम और सौहार्द्र का विकास भी होगा



दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का उदघाटन करते वरिष्ठ साहित्यकार उद्भान्त, साथ मे शिखा वार्श्नेय,गिरीश पंकज,रणधीर सिंह सुमन और रवीन्द्र प्रभात

दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का उदघाटन करते वरिष्ठ साहित्यकार उद्भान्त, साथ मे शिखा वार्श्नेय,गिरीश पंकज,रणधीर सिंह सुमन और रवीन्द्र प्रभात

आज से 75 साल पहले सन 1936 में लखनऊ शहर प्रगतिषील लेखक संघ के प्रथम अधिवेषन का गवाह बना था, जिसकी गूंज आज तक सुनाई पड़ रही है। उसी प्रकार आज जो लखनऊ में ब्लॉग लेखकों का अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित हो रहा है, इसकी गूंज भी आने वाले 75 सालों तक सुनाई पड़ेगी।

उपरोक्त विचार बली प्रेक्षागृह, कैसरबाग, लखनऊ में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी ब्लॉगर सम्मेलन के उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए प्रतिष्ठित कवि उद्भ्रांत ने व्यक्त किये। सकारात्मक लेखन को बढ़ावा देने के उद्देष्य से यह सम्मेलन तस्लीम एवं परिकल्पना समूह द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में पूर्णिमा वर्मन (षारजाह) रवि रतलामी (भोपाल), षिखा वार्ष्णेय (लंदन), डॉ0 अरविंद मिश्र (वाराणसी), अविनाष वाचस्पति (दिल्ली), मनीष मिश्र (पुणे), इस्मत जैदी (गोवा), आदि ब्लॉगरों ने अपने उद्गार व्यक्त किये। कार्यक्रम को मुद्राराक्षस, शैलेन्द्र सागर, वीरेन्द्र यादव, राकेष, शकील सिद्दीकी, शहंषाह आलम, डॉ. सुभाष राय, डॉ. सुधाकर अदीब, विनय दास आदि वरिष्ठ साहित्यकारों ने भी सम्बोधित किया।

मंचासीन डॉ सुभाष राय,सुश्री शिखा वार्ष्नेय,वरिष्ठ साहित्यकार उद्भ्रांत, कथा क्रम के संपादक शैलेंद्र सागर, डॉ अरविंद मिश्रा, गिरीश पंकज आदि
मंचासीन डॉ सुभाष राय,सुश्री शिखा वार्ष्नेय,वरिष्ठ साहित्यकार उद्भ्रांत, कथा क्रम के संपादक शैलेंद्र सागर, डॉ अरविंद मिश्रा, गिरीश पंकज आदि
वक्ताओं ने अपनी बात रखते हुए कहा कि इंटरनेट एक ऐसी तकनीक है, जो व्यक्ति को अभिव्यक्ति का जबरदस्त साधन उपलब्ध कराती है, लोगों में सकारात्मक भावना का विकास करती है, दुनिया के कोने-कोने में बैठे लोगों को एक दूसरे से जोड़ने का अवसर उपलब्ध कराती है और सामाजिक समस्याओं और कुरीतियों के विरूद्ध जागरूक करने का जरिया भी बनती है। इसकी पहुँच और प्रभाव इतना जबरदस्त है कि यह दूरियों को पाट देता है, संवाद को सरल बना देता है और संचार के उत्कृष्ट साधन के रूप में उभर कर सामने आता है। लेकिन इसके साथ ही साथ जब यह अभिव्यक्ति के विस्फोट के रूप में सामने आती है, तो उसके कुछ नकारात्मक परिणाम भी देखने को मिलते हैं। ये परिणाम हमें दंगों और पलायन के रूप में झेलने पड़ते हैं। यही कारण है कि जब तक यह सकारात्मक रूप में उपयोग में लाया जाता है, तो समाज के लिए अलादीन के चिराग की तरह काम करता है, लेकिन जब यही अवसर नकारात्मक स्वरूप अख्तियार कर लेता है, तो समाज में विद्वेष और घृणा की भावना पनपने लगती है और नतजीतन सरकारें बंदिषें का हंटर सामने लेकर सामने आ जाती हैं। लेकिन यदि रचनाकार अथवा लेखक सामाजिक सरोकारों को ध्यान में रखते हुए इस इंटरनेट का उपयोग करे, तो कोई कारण नहीं कि उसके सामने किसी तरह का खतरा मंडराए। इससे समाज में प्रेम और सौहार्द्र का विकास भी होगा और देष तरक्की की सढ़ियाँ भी चढ़ सकेगा।

परिकल्पना ब्लॉग दशक सम्मान
दशक के ब्लॉगर: (१) पूर्णिमा वर्मन (२) समीर लाल समीर (३) रवि रतलामी(४) रश्मि प्रभा (५) अविनाश वाचस्पति
दशक के ब्लॉग: (१) उड़न तश्तरी: ब्लॉगर समीर लाल समीर (२) ब्लोग्स इन मिडिया: ब्लॉगर बी एस पावला (३) नारी: ब्लॉगर रचना (४) साई ब्लॉगः ब्लॉगर डॉ अरविंद मिश्र (५) साइंस ब्लोगर असोसिएशन: ब्लॉगर डॉ अरविंद मिश्र डॉ जाकिर अली रजनीश
दशक के ब्लॉगर दंपति:
कृष्ण कुमार यादव और आकांक्षा यादव

तस्लीम परिकल्पना सम्मान-2011

मुकेश कुमार सिन्हा, देवघर, झारखंड ( वर्ष के श्रेष्ठ युवा कवि) , संतोष त्रिवेदी, रायबरेली, उत्तर प्रदेश (वर्ष के उदीयमान ब्लॉगर), प्रेम जनमेजय, दिल्ली (वर्ष के श्रेष्ठ व्यंग्यकार ),राजेश कुमारी, देहरादून, उत्तराखंड (वर्ष की श्रेष्ठ लेखिका, यात्रा वृतांत ), नवीन प्रकाश,रायपुर, छतीसगढ़ (वर्ष के युवा तकनीकी ब्लॉगर),अनीता मन्ना,कल्याण (महाराष्ट्र) (वर्ष के श्रेष्ठ ब्लॉग सेमिनार के आयोजक),डॉ. मनीष मिश्र, कल्याण (महाराष्ट्र) (वर्ष के श्रेष्ठ ब्लॉग सेमिनार के आयोजक),सीमा सहगल(रीवा,मध्यप्रदेश) रू रश्मि प्रभा ( वर्ष की श्रेष्ठ टिप्पणीकार, महिला ), शाहनवाज,दिल्ली (वर्ष के चर्चित ब्लॉगर, पुरुष ), डॉ जय प्रकाश तिवारी (वर्ष के यशस्वी ब्लॉगर),नीरज जाट, दिल्ली (वर्ष के श्रेष्ठ लेखक, यात्रा वृतांत),गिरीश बिललोरे मुकुल,जबलपुर (मध्यप्रदेश) (वर्ष के श्रेष्ठ वायस ब्लॉगर), दर्शन लाल बवेजा,यमुना नगर (हरियाणा) (वर्ष के श्रेष्ठ विज्ञान कथा लेखक),शिखा वार्ष्णेय, लंदन ( वर्ष की श्रेष्ठ लेखिका, संस्मरण), इस्मत जैदी,पणजी (गोवा) (वर्ष का श्रेष्ठ गजलकार),राहुल सिंह, रायपुर, छतीसगढ़ (वर्ष के श्रेष्ठ ब्लॉग विचारक),बाबूशा कोहली, लंदन (यूनाइटेड किंगडम) (वर्ष की श्रेष्ठ कवयित्री ), रंजना (रंजू) भाटिया,दिल्ली (वर्ष की चर्चित ब्लॉगर, महिला),सिद्धेश्वर सिंह, खटीमा (उत्तराखंड) (वर्ष के श्रेष्ठ अनुवादक), कैलाश चन्द्र शर्मा, दिल्ली (वर्ष के श्रेष्ठ वाल कथा लेखक ),धीरेंद्र सिंह भदौरोया (वर्ष के श्रेष्ठ टिप्पणीकार, पुरुष),शैलेश भारतवासी, दिल्ली (वर्ष के तकनीकी ब्लॉगर),अरविंद श्रीवास्तव, मधेपुरा (बिहार) (वर्ष के श्रेष्ठ ब्लॉग समीक्षक),अजय कुमार झा, दिल्ली (वर्ष के श्रेष्ठ ब्लॉग खबरी),सुमित प्रताप सिंह, दिल्ली (वर्ष के श्रेष्ठ युवा व्यंग्यकार),रविन्द्र पुंज, यमुना नगर (हरियाणा) (वर्ष के नवोदित ब्लॉगर), अर्चना चाव जी, इंदोर (एम पी) (वर्ष की श्रेष्ठ वायस ब्लॉगर),पल्लवी सक्सेना,भोपाल (वर्ष की श्रेष्ठ लेखिका, सकारात्मक पोस्ट) ,अपराजिता कल्याणी, पुणे (वर्ष की श्रेष्ठ युवा कवयित्री ) ,चंडी दत्त शुक्ल, जयपुर (वर्ष के श्रेष्ठ लेखक, कथा कहानी ),दिनेश कुमार माली,बलराजपुर (उड़ीसा) वर्ष के श्रेष्ठ लेखक (संस्मरण ),डॉ रूप चंद शास्त्री मयंक (खटीमा) वर्ष के श्रेष्ठ गीतकार, सुधा भार्गव,वर्ष की श्रेष्ठ लेखिका, डॉ हरीश अरोड़ा, दिल्ली ( वर्ष के श्रेष्ठ ब्लॉग समीक्षक ) आदि

तस्लीम परिकल्पना विशेष ब्लॉग प्रतिभा सम्मान-2011

कुँवर कुसुमेश, लखनऊ, प्रीत अरोड़ा, चंडीगढ़, सुनीता शानू, दिल्ली, कनिष्क कश्यप, दिल्ली, निर्मल गुप्त, मेरठ, मुकेश कुमार तिवारी, इंदोर,अल्का सैनी,चंडीगढ़,प्रवीण त्रिवेदी, फ़तहपुर आदि



वटवृक्ष का लोकार्पण : वायें से सुश्री शिखा वार्ष्नेय,डॉ अरविंद मिश्रा, डॉ सुभाष राय, श्री शैलेंद्र सागर,श्री उद्भ्रांत, श्री गिरीश पंकज,ज़ाकिर अली रजनीश,रणधीर सिंह सुमन व अन्य

वटवृक्ष का लोकार्पण : वायें से सुश्री शिखा वार्ष्नेय,डॉ अरविंद मिश्रा, डॉ सुभाष राय, श्री शैलेंद्र सागर,श्री उद्भ्रांत, श्री गिरीश पंकज,ज़ाकिर अली रजनीश,रणधीर सिंह सुमन व अन्य

इस अवसर पर देष के कोने-कोने से आए 200 से अधिक ब्लॉगर, लेखक, संस्कृतिकर्मी और विज्ञान संचारक भी उपस्थित रहे। कार्यक्रम में तीन चर्चा सत्रों (न्यू मीडिया की भाषाई चुनौतियाँ, न्यू मीडिया के सामाजिक सरोकार, हिन्दी ब्लॉगिंगः दषा, दिषा एवं दृष्टि) में रचनाकारों ने अपने विचार रखे। इस अवसर पर कार्यक्रम के संयोजक रवीन्द्र प्रभात ने ब्लॉगरों की सर्वसम्मति से सरकार से ब्लॉग अकादमी के गठन की मांग की, जिससे ब्लॉगरों को संरक्षण प्राप्त हो सके और वे समाज के विकास में सकारात्मक योगदान दे सकें।

इस अवसर पर ‘वटवृक्ष‘ पत्रिका के ब्लॉगर दषक विषेषांक का लोकार्पण किया गया, जिसमें हिन्दी के सभी महत्वपूर्ण ब्लॉगरों के योगदान को रेखांकित किया गया है। इसके साथ ही साथ कार्यक्रम के सह संयोजक डॉ0 जाकिर अली रजनीष की पुस्तक ‘भारत के महान वैज्ञानिक‘ एवं अल्का सैनी के कहानी संग्रह ‘लाक्षागृह‘ तथा मनीष मिश्र द्वारा सम्पादित पुस्तक ‘हिन्दी ब्लॉगिंगः स्वरूप व्याप्ति और संभावनाएं‘ का भी लोकार्पण इस अवसर पर किया गया।

कार्यक्रम के दौरान ब्लॉग जगत में उल्लेखनीय योगदान के लिए पूर्णिमा वर्मन, रवि रतलामी, बी एस पावला, रचना, डॉ अरविंद मिश्र, समीर लाल समीर, कृष्ण कुमार यादव और आकांक्षा यादव को ‘परिकल्पना ब्लॉग दशक सम्मान‘ से विभूषित किया गया।

इसके साथ ही साथ अविनाश वाचस्पति को प्रब्लेस चिट्ठाकारिता शिखर सम्मान, रश्मि प्रभा को शमशेर जन्मशती काव्य सम्मान, डॉ सुभाष राय को अज्ञेय जन्मशती पत्रकारिता सम्मान, अरविंद श्रीवास्तव को

“लखनऊ में स्थापित होगा डॉ राम मनोहर लोहिया ब्लॉगर पीठ, इस आशय का प्रस्ताव संयोजक रवीन्द्र प्रभात ने सभा पटल पर रखा जिसे ध्वनि मत से पारित कर दिया गया। साथ इस अवसर पर रवीन्द्र प्रभात ने ब्लॉगर कोश बनाने की बात कही ।”

केदारनाथ अग्रवाल जन्मशती साहित्य सम्मान, शहंशाह आलम को गोपाल सिंह नेपाली जन्मशती काव्य सम्मान, शिखा वार्ष्णेय को जानकी बल्लभ शास्त्री स्मृति साहित्य सम्मान, गिरीश पंकज को श्रीलाल शुक्ल व्यंग्य सम्मान, डॉ. जाकिर अली रजनीश को फैज अहमद फैज जन्मशती सम्मान तथा 51 अन्य ब्लॉगरों को ‘तस्लीम-परिकल्पना सम्मान‘ प्रदान किये गये।

स्वप्न संसार


* प्रेम कल्पना लोक , स्वप्न संसार है | जबकि विवाह ज़िन्दगी का यथार्थ | यथार्थ में सपने नहीं चलते | अच्छा हुआ जो मेरा सपना यथार्थ में नहीं तब्दील हुआ |

* मैं कोई सौन्दर्य प्रसाधन इस्तेमाल नहीं करता | यहाँ तक कि दाढ़ी बनाने के लिए भी शीशा देखने की ज़रुरत नहीं होती मुझे | पर नहाने के बाद अगल बगल थोड़ा पावडर लगाने की आदत है मेरी | क्या यह विलासिता की श्रेणी में आता है
* औरतें सुंदर तो बहुत होती हैं | अच्छी भी लगती हैं | लेकिन दुःख बहुत देती हैं |
* किसी को याद है मुमताज को शाहजहाँ से कितने बच्चे जनने पड़े थे ? शायद दर्ज़न भर | यह प्रेम विवाह का नतीजा था | भुगतना ज्यादा तो मुमताज को पड़ा | थोड़ा शाहजहाँ को भी ज़रूर, ताजमहल तीमार करवाने में |

दो धर्म मनुष्य के

* अब दो धर्म बनते हैं मनुष्य के | जैसा वी एम तारकुंडे ने महात्मा गाँधी पर लिखते हुए उसका शीर्षक दिया था = SECULAR AND RELIGIOUS MORALITY  | उसी तरह दो धर्म मनुष्यों द्वारा धारण किये जायेंगे | सारे किताबी , ईश्वरवादी , परलोकवादी  धार्मिक नैतिकतावादी होंगे , और नास्तिक इहलोक वादी , बुद्धिवादी , विज्ञानवादी , लोग सेक्युलर होंगे |     

27.8.12

प्रधानमंत्री जी ये कैसे बोल...खोल दी अपनी ही पोल


प्रधानमंत्री जी ये कैसे बोल...खोल दी अपनी ही पोल

वैसे तो हमारे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह साल में दो ही बार हिंदी में बोलते हैं (अंग्रेजी में भी कभी कभी बोलते हैं) 15 अगस्त और 26 जनवरी को...अभी 15 अगस्त बीते ज्यादा दिन नहीं हुए हैं...लेकिन सोमवार को संसद भवन के बाहर अचानक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को कोयला घोटाले पर बोलते हुए देखा वो भी हिंदी का शेर बोलते हुए देखा तो यकीन नहीं हुआ कि 26 जनवरी से पहले इतनी जल्दी मनमोहन सिंह के श्रीमुख से हिंदी में बोल निकलेंगे। खैर प्रधानमंत्री बोले तो सही...लेकिन प्रधानमंत्री शायद ये नहीं समझ पाए कि उनके ये बोल उनकी ही पोल खोल गए। दरअसल कोयला घोटाले पर अभी तक चुप्पी साधे बैठे मनमोहन सिंह ने कुछ इस अंदाज में बयां किए अपने जज्बात...प्रधानमंत्री ने कोयला घोटाले पर कहा कि...'हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी, न जाने कितने सवालों की आबरू रखी'मौनी बाबा (हाल ही में बाबा रामदेव का दिया मनमोहन सिंह को नाम) के नाम से भी मशहूर हो चुके हमारे प्रधानमंत्री साहब ने खुद इस शेर को बोलकर ये साबित कर दिया कि उन्हें मौनी बाबा क्यों कहा जाता है। इस शेर के साथ ही अपने दिए बयान से भाजपा पर भी कोयला घोटाले के लिए सवाल खडे करने पीएम ने खुद पर ही कई सवाल खडे कर दिए। 1 लाख 86 हजार करोड़ जैसे बड़े कोयले घोटाले पर प्रधानमंत्री ने अपनी चुप्पी का हवाला देकर ये साबित कर दिया कि वो इस मुद्दे को लेकर कितने गंभीर हैं। रही सही कसर पूरी कर दी प्रधानमंत्री के उस बयान ने जिस पर उन्होंने कैग रिपोर्ट को तथ्यविहीन बताकर कैग के अस्तित्व पर ही सवाल उठा दिया। मैंने कहीं पढ़ा था कि संविधान निर्माता बाबा भीमराव अंबेडकर ने संविधान सभा की बहस के दौरान कहा था कि कैग इस देश का सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी होगा...क्योंकि वह यह तय करेगा कि जनता का पैसा उसी तरह से खर्च हो रहा है कि नहीं जैसा जनादेश संसद को मिला है...यानि कि सरकार जनता के पैसे का दुरूपयोग तो नहीं कर रही है...ऐसे में हमारे देश के प्रधानमंत्री कैग पर सवाल खड़ा करते हैं तो देश के लिए इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है। चार दिनों तक संसद में हंगामा होने के बाद सामवोर को जब प्रधानमंत्री के संसद में बयान देने की खबर आयी तो सभी को लगा था कि शायद मनमोहन सिंह कोयला घोटाले पर बनी भ्रम की स्थिति को दूर करने के साथ ही अपने ऊपर लगे आरोपों का करारा जवाब देंगे...लेकिन प्रधानमंत्री अपनी छवि से बाहर नहीं निकल पाए और वही बयान देकर वापस लौट गए जो कैग रिपोर्ट आने के बाद से ही सरकार के कारिंदे मीडिया के सामने दे रहे थे। प्रधानमंत्री ने एक शेर सुनाकर अपनी मजबूरी भी जनता के सामने पेश कर दी कि विपक्ष कितना ही हल्ला मचा ले...वे नहीं बोलने वाले....ऐसा लगता हो जैसे बोलने की मनाही है हमारे प्रधानमंत्री को अब कौन मना करता होगा...ये यहां लिखने की जरूरत मैं नहीं समझता। खैर ये तो रही हमारे मजबूर और कमजोर प्रधानमंत्री (कोयला घोटाले के बाद तो यही लगता है) की...कोयला घोटाले पर हल्ला मचाने वाली भाजपा भी इस मुद्दे पर दूध की धुली नहीं प्रतीत होती है। भाजपा शासित राज्यों के तत्कालीन मुख्यमंत्रियों पर भी प्रधानमंत्री को खत लिखकर कोल ब्लॉक की नीलामी न करने का अनुरोध करने के आरोप लग रहे हैं...सोमवार को भोपाल में तो बकायदा कांग्रेसियों ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए मुख्यमंत्री के इस्तीफे तक की मांग कर डाली...यानि जो तीर भाजपा ने केन्द्र सरकार पर चलाया है...इसके जवाब में भाजपा शासित मुख्यमंत्रियों को भी ऐसे ही तीर का सामना करना पड रहा है। रविवार को टीम केजरीवाल ने भी भाजपा पर कोयला घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाकर उसे भी कांग्रेस की पंक्ति में खड़ा करने का प्रयास किया था। प्रधानमंत्री तो अपने बयान और विशेष हिंदी के शेर से सरकार की सफाई तो पेश नही कर पाए उल्टा अपने ऊपर ही सवाल खड़े कर अपनी ही पोल खोलकर चल दिए हैं...लेकिन अब सवाल ये है कि कोयले के मुद्दे पर सरकार को घेरने के साथ ही इस मुद्दे को लेकर संसद ठप करने वाली भाजपा अपने पर लगे इन आरोपों से खुद को पाक साफ कैसे साबित करती है।

deepaktiwari555@gmail.com

अन्जान हूँ मैं । (गीत)


(The Show Must Go on.)


(GOOGLE IMAGES)




अन्जान  हूँ   मैं । (गीत)




साँसों    के     भारी    कोलाहल    से,   परेशान   हूँ   मैं..!

उसकी  सहर   मिटाने   को,  बहुत   बे-उनमान  हूँ   मैं ।

(सहर= मायाजाल; बे-उनमान =सामर्थ्यहीन) 


अंतरा-१.


अनचाहे  ग़मों  से  भर  गया  है,   कूड़ादान   दिल   का..!

ग़म  भी  है इतने,  सब  की   नज़र  में  धनवान  हूँ   मैं..!

साँसों    के     भारी    कोलाहल    से,   परेशान   हूँ   मैं..!

(कूड़ादान= कचरा डालने का डिब्बा) 


अंतरा-२.


ज़िदगी  कुछ  इस  क़दर  व्यस्त कर दी  ज़मानेभर ने..!

कि  मेरे  ही  दिल  के  बंद  अलार  से, पशेमान  हूँ   मैं ।

साँसों    के     भारी    कोलाहल    से,   परेशान   हूँ   मैं..!

(बंद अलार= हृदयहीनता; पशेमान=  दुःखी,शर्मिंदा)


अंतरा-३.


कैसे,  क्या और   क्यों    लिखूँ     मैं     फ़लसफ़ा   मेरा ?

जब  की  खुरदरी, कोरी  क़िताब  का  बे-उनवान  हूँ  मैं..!

साँसों    के     भारी    कोलाहल    से,   परेशान   हूँ   मैं..!

(फ़लसफ़ा= दृष्टिकोण; खुरदरी= कष्टदायक; कोरी   क़िताब = नाकाम ज़िंदगी; बे-उनवान = अनामी शिर्षक)


अंतरा-४.


साँसों   के   शोरोगुल   से   निजात   पाऊँ   तो    कैसे?

खुद   अपने   आप   से,  अभी  तक, अनजान   हूँ   मैं ।

साँसों    के     भारी    कोलाहल    से,   परेशान   हूँ   मैं..!

(शोरोगुल= कोलाहल; निजात= छुटकारा )

मार्कण्ड दवे । दिनांकः२७-०८-२०१२.