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3.1.13

मानव इन्द्रियाँ : निग्रह या दमन


मानव इन्द्रियाँ : निग्रह या दमन

हमें ज्ञान कराने वाली पाँच इन्द्रियाँ है-चक्षु (देखना),श्रोत्र (सुनना),घ्राण (सूंघना),
रसन (स्वाद),स्पर्शन(स्पर्श का अनुभव करना)इन पाँचो शक्तियों के अलग-अलग
अधिष्ठान अंग होते हैं -आँख,कान,नाक,जीभ,त्वचा।ये ज्ञानेन्द्रियाँ सूक्ष्म होने से
दिखाई नहीं देती है हम इनके अंग को देख सकते हैं।इन इन्द्रियों का सम्बन्ध
पञ्च महाभूतों से होता है-आकाश,वायु,अग्नि,जल और पृथ्वी।
इसी तरह पाँच कर्मेन्द्रियाँ होती है -हाथ,पेर,वाणी,लिंग और गुदा।

 प्रश्न यह उठता है कि हमें इन इन्द्रियों के साथ कैसे जीना चाहिए क्योंकि इन
इन्द्रियों के कारण ही धर्म,अर्थ,काम और मोक्ष रूपी पुरुषार्थ बने हैं।इन चारों
पुरुषार्थों के बिना संसार का सृजन नही हो सकता है।

क्या हम इन्द्रियों का दमन करके व्यवस्थित रूप से जी पायेंगे? भारतीय दर्शन
ने इन्द्रियों का दमन करने का नहीं बल्कि इनका निग्रह (control)करने का
निर्देश दिया है।क्योंकि दमन करने से घुटन एवं कुण्ठा पैदा होती है और जिस
कामना का दमन किया जाता है वह हमसे ही शक्ति प्राप्त करके और बलवती
होती जाती है।हम उससे मुक्त नहीं हो पाते बल्कि उसमें और उलझ जाते हैं
और अपनी उर्जा ख़त्म करते रहते हैं।

धृति: क्षमा दमोस्तेयं शौचमिन्द्रिय निग्रह: के अनुसार इन्द्रियों का निग्रह
करना चाहिए ,दमन नहीं।न करने योग्य कर्म को करने से रोक कर ,करने
योग्य कर्म में ही इन्द्रियों को लगाना और कार्यरत रखना 'निग्रह' है।इसी
को आत्म नियन्त्रण या निज अनुशासन का पालन करना कहते हैं।इन्द्रियों
का निग्रह करने में विवेक और धैर्य सर्वाधिक सहायक रहते हैं।मन को वश
में रखना ही इन्द्रिय निग्रह करना है।

यहाँ यह शंका प्रस्तुत की जा सकती है की मन को वश में रखना बहुत कठिन
होता है।किसी सुंदर वस्तु को देखकर आकर्षित हो जाना स्वाभाविक है।किसी
सुंदर स्त्री को देखने या उसके सम्पर्क में रहने और घनिष्ठता होने की स्थिति में
काम वासना सम्बन्धी विचार मन में आ ही जाते हैं।अब इस कामना का दमन
कैसे करे ?

इसका समाधान यह है कि दमन करने की जरूरत नहीं सिर्फ विवेक से काम
लेकर निग्रह करने की जरूरत है जैसे अपनी सुंदर युवा बहन और बेटी को
देखने और सम्पर्क में रहने पर भी मन में कामुक विचार नहीं आता क्योंकि
विवेक ऐसा विचार नहीं करने देता।मन तभी वश में रहकर उचित विचार
करता है जब विवेक से काम लिया जाए क्योंकि विवेक ही मन को सही विचार
करने की प्रेरणा देने और सही आचरण करने के लिए विवश करने की क्षमता
रखता है।विवेक के साथ धैर्य का होना भी जरूरी होता है क्योंकि धैर्य विवेक
का बल होता है।

हमारा मन हमारे अवचेतन मन में दबे संस्कारों और अतृप्त इच्छाओं से
प्रभावित और संचालित रहता है अत:जो अच्छे संस्कार वाले होते हैं उन्हें
इन्द्रिय निग्रह करने के लिए प्रयास नहीं करना पड़ता बल्कि ऐसा स्वभावत:
स्वयमेव होता रहता है ब्रह्मचार्य इसी स्वभाव और आचार विचार को कहते हैं।

महाराज शिवाजी मुगलों से युद्ध कर रहे थे उस युद्ध में मुगल राजा हार गये
थे।शिवाजी की सेना ने मुगल राजा के महल से युवा सुन्दरी को बंधी बना
लिया और उसे शिवाजी को भेंट देने के लिए अपने साथ ले आये।शिवाजी ने
उस सुन्दरी को देख सैनिको से पूछा -ये कौन हैं ?
सैनिको ने जबाब दिया- मुग़ल राजा युद्ध में हार गया और जान बचा कर
भाग गया हम उसके महल से इसे आपके लिए बंदी बना लाये हैं।

शिवाजी ने कहा -आप लोगों ने यह गलत किया है।यह नारी तो मेरे लिए
माँ के समान है ,आप इसे आदर सहित वापिस पहुँचा देवे।

यह एक अनुपम उदाहरण है इन्द्रिय निग्रह का। हमे समाज को और
नारी को देखने का नजरिया भी बदलना होगा।केवल दण्ड व्यवस्था से पूरा
काम बनने वाला नहीं है। 

इस लेख में कुछ अंश निरोगधाम "स्वास्थ्य रक्षक "अंक से लिए हैं।            

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