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29.1.13

समलैंगिकता एक अभिशाप

क्या आपने कभी किसी जानवर को अपने समलिंगी के साथ सम्भोग करते देखा है । मुझे पता है कि आप कहेंगे कि नहीं । आप  क्या कहेंगे कि उसके पास बुद्धि नहीं है । विवेक नहीं है । उसको पता नहीं होता कि ऐसे भी होता है या हो सकता है ।  यदि ऐसा नहीं तो फिर आप क्या कहेंगे ? और यदि आप वही कहेंगे जो मैं कह रहा हूँ कि आप कहेंगे तो फिर क्या मनुष्य के पास इश्वर ने यह विवेक बुद्धि इसीलिए दी है कि वह कुछ ऐसा करे जिससे उसके विवेक बुद्धि पर ही प्रश्नचिह्न लग जाए । यदि इस ब्रह्माण्ड मे कोई एलियन आदि नहीं है और समस्त ब्रह्माण्ड में मनुष्य ही सबसे बुद्धिमान व्यक्ति है तो फिर बुद्धिमत्ता का यही अर्थ है कि मनुष्य ऐसा कुछ करता फिरे  जो उसके विवेक पर ही प्रश्नचिह्न लगा दे ।
ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि मैंने परसों दिनांक 27 जनुअरी का आई बी एन चैनल का एक प्रोग्राम देखा है जिसमे कुछ समलैंगिकों से बात कराई गई । उनके एकाकी एवं उपेक्षा भरे जीवन के बारे में बताया गया । प्राकृतिक रूप से तो निश्चित ही जो लोग इस प्रकार से बचपन से ही कुछ अलग सा महसूस करते हैं और नपुंसकों की तरह अलग थलग पद जाते हैं वे सहानुभूति के पात्र हैं क्योंकि इस पर उनका बस नहीं चलता । लेकिन यदि हम इंटर नेट की कुछ अश्लील वेब साइटों को खंगालने निकलें तो पता चलता है कि वहाँ पाशविक प्रवृति तक देखि जाती जाती है और पशु और मनुष्य के पारस्परिक संबंधों के भी उदाहरण मिल जाते हैं । कम से कम पशु तो इतना होशियार नहीं कि  उसे यह सब खुराफात सूझे तो फिर मनुष्य ही क्यों ? मनुष्य को ही यह सब क्यों सूझ रहा है । बहुत से समलैंगिको की बात से पता चला कि किसी के द्वारा अप्राकृतिक सेक्स किये जाने के कारण उनको भी बाद में ऐसी आदत पड़ गयी और वे भी समलैंगिक हो गए । मनुष्य को क्या अब जानवर से सीखना पड़ेगा कि  जीवन कैसे जीया जाता है ? क्या आपने किसी जानवर को कभी बिना मौसम या सीज़न के सेक्स करते देखा है । क्या उसके अन्दर ऐसे परिवर्तन पाए जाते हैं जब मनुष्य को लगे कि  वह जानवर बिना मौसम के भी  सेक्स के लिए आतुर है । मुझे तो नहीं लगा । हाँ , मनुष्य में यह कौशल है कि  वह अपने वैज्ञानिक प्रयोगों से कुछ ऐसा ईजाद कर दे कि  समयांतर पर जानवर में भी ऐसी विकृति आ जाए । आखिर मनुष्य तो मनुष्य है और उसकी बुद्धि जरूरत से कुछ ज्यादा ही नयी नयी चीजों को खोजने में लगी रहती है । लेकिनं हमें क्या ऐसी बुद्धिमत्ता की जरूरत है ?
एक समलेंगिक का कहना था कि  यह समलैंगिक होना भी पृकृति का ही एक स्वरुप है । नहीं , समलैंगिक होना प्रकृति का एक स्वरुप नहीं बल्कि प्रकृति का एक विकृत स्वरुप है । सेक्स को यदि सही मायने में समझा जाएगा तो यह वंश वृद्धि के लिए ही है । सिर्फ आनंद के लिए नहीं । लेकिन कालांतर में मनुष्य ने इसे वंश वृद्धि के बजाय आनंद का ही एक कारण मान लिया और विज्ञान ने नए नए प्रयोग करते हुए संतान उत्पत्ति में अवरोध उत्पन्न करने के नए नए उपकरण कंडोम जैसी चीजों को इजाद कर तथा संतानोत्पत्ति के नए नए टेस्ट ट्यूब बेबी आदि उपजाकर इसे कोरा  आनंद का कारण बनाने में कोई कोर कसर  नहीं छोड़ी है ।
जो मैं कह रहा हूँ वह शोध के आधार पर तो नहीं लेकिन मेरे पुख्ता विचारों पर आधारित है -
जो संताने बाल्यकाल से ही विकृति का शिकार हो जाती हैं उसके पीछे मनुष्य के मानस में पूर्व से ही या तो किसी पीढ़ी में किसी व्यक्ति के मानस में उपजे विकृत विचार या उसके कुकृत्य ही  कारण होते हैं । धीरे धीरे पीढ़ी दर पीढ़ी कुछ पीढ़ियों के बाद उत्पन्न संतानों में अपनी पूर्व पीढ़ियों के इस विकृत विचार के जींस या  फिर उसके माता पिता के इस प्रकार के अप्राकृतिक सेक्स के विचार ही कारण हो सकते हैं कि  संतानें इस प्रकार से अप्राकृतिक मैथुन का शिकार हो जाती हैं । उनमें समलैंगिकता उपज जाती है और वे समाज से अलग थलग हो जाते हैं । यह एक अभिशाप है और कोई भी माँ बाप कभी नहीं चाहेगा कि  उनके बच्चे इस स्थिति को देखें लेकिन यदि वे ऐसे हो भी जाते हैं । निश्चित तौर पर माँ बाप के मन और मानस में व्याप्त विकृति और सुकृति उसके बनते बिगड़ते स्वरुप के पीछे कारण है । इसलिए माँ बाप के लिए बहुत जरूरी है कि  वे अपने मन मानस को इस प्रकार से विकृत होने से बचाएं । यह बहुत जरूरी है कि माता पिता इस बात का भी पूरी तरह से ध्यान रखें कि यदि ऐसा कोई बच्चा है भी तो उसके  मन को कोई इस तरह की ठेस लगे ।
आजकल बच्चे माता पिता से दूरी होते देखकर या माता पिता के व्यस्त कार्यक्रमों से परेशान हैं । मोबाइल हाथ में हैं और इन्टरनेट भी । क्या क्या वे सीख सकते हैं यह सोचकर भी सिहरन हो जाती है । सरकार को जो सख्त कदम उठाने चाहिए वह अपने राजस्व के फेर में नहीं उठाती ।
समलैंगिकों का एक प्रश्न है कि  उनसे समाज दूरी बनाए रखता है । दूरी क्यों न बनाए ? आखिर अपने बच्चों को माँ बाप क्या समझायेंगे उनके बारे में ? स्वस्थ समाज के माँ बाप भी चाहते हैं कि  उनके बच्चे ऐसी बुराइयों से दूरी रखें । नपुंसकता जन्मजात है । समलैंगिकता भी जन्मजात होती है लेकिन समलैंगिकता समाज में क्रितिमतया भी जन्म ले रही है । सरकारी कृपा है । इन्टरनेट है न ।
मनुष्य प्राकृतिक नियमों को ध्वस्त कर रहा है  । सिर्फ अपने सुखों के लिए । सिर्फ भौतिक वस्तुओं में ही विकृतियाँ नहीं पैदा की जा रही हैं बल्कि मानस में भयानक विकृतियाँ पैदा की जा रही हैं जो ज्यादा खतरनाक है । माँ बाप के लिए आज की शिक्षा दीक्षा चुनौती बन कर कड़ी हो गयी है ।
सम्भलिये  और संभालिये ।

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