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5.1.13

बाप बड़ा न भैया, सबसे बड़ा..!


करूणानिधी के 18 सांसदों वाली द्रविड़ मुनेत्र कषगम पार्टी (द्रमुक) भले ही केन्द्र की यूपीए सरकार की बैसाखी बनी हुई हो लेकिन द्रमुक के उत्तराधिकार को लेकर करूणानिधी के दो बेटों की लड़ाई से द्रमुक पर ही संकट खड़ा हो गया है। द्रमुक के सर्वेसर्वा करूणानिधि ने भले ही अपने छोटे बेटे स्टालिन को पार्टी की बागडोर देने के संकेत दिए हों लेकिन करूणानिधि के बड़े बेटे एम. के. आलागिरी को अपने पिता का ये फैसला रास नहीं आ रहा है और अलागिरी ने पिता के इस फैसले के खिलाफ ताल ठोक दी है। अलागिरी ने ये कह दिया है कि पार्टी कोई मठ नहीं है जो इसके उत्तराधिकारी की नियुक्ति की जाए।
वैसे देखा जाए तो राजनीति में परिवारवाद नई बात नहीं है और हिंदुस्तान में ऐसे बड़े - बड़े उदाहरण मौजूद हैं जो ये साबित करते हैं कि राजनीति में प्रवेश करने का सबसे आसान रास्ता विरासत की सियासत ही है। देश की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस से बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है जहां पर परिवारवाद ही हावी है।
1991 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के बाद लगा था कि अब ये परंपरा टूटेगी लेकिन सोनिया गांधी ने पार्टी को नेतृत्व प्रदान कर न सिर्फ कांग्रेस को उबारा बल्कि परिवारवाद की परंपरा को भी आगे बढ़ाया...इसे एक बार फिर से सोनिया गांधी के सुपुत्र राहुल गांधी आगे बढ़ा रहे हैं। कांग्रेस के ही कई बड़े नेताओं के सुपुत्र जो कम समय में नाम कमा चुके हैं उनका पारिवारिक इतिहास पर नजर डालें तो ये तस्वीर और साफ हो जाती है। फिर चाहे माधव राव सिंधिया के सुपुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया हो या फिर राजेश पायलट के बेटे सचिन पायलट ये सब परिवारवाद की ही उपज हैं। करूणानिधि के बेटे भी इसी की उपज हैं लेकिन एक ही परिवार में पार्टी की सत्ता को लेकर आपस में तलवारें खिंच जाना रोचक हैं।
तमिलनाडु में द्रमुक की लोकप्रियता ही शायद करूणानिधि के दोनों बेटों के बीच पैदा हो रही दरार की मुख्य वजह ही है क्योंकि वर्तमान में केन्द्रीय मंत्री एम. के. आलागिरी तब तक ही मंत्री हैं जब तक केन्द्र में यूपीए की सरकार है, उसके बाद अलागिरी को पूछने वाला भी कोई नहीं होगा। अलागिरी को फिर से सत्ता का स्वाद भविष्य में तमिलनाडु में ही नसीब हो सकता है, वो भी तब जब द्रमुक तमिलनाडु में सत्ता पर काबिज हो और वो द्रमुक के सर्वमान्य नेता हो...लेकिन अलागिरी के पिता और फिलहाल द्रमुक के सर्वेसर्वा करूणानिधि का प्यार बड़े बेटे अलागिरी की बजाए छोटे बेटे स्टालिन पर ज्यादा छलक रहा है जो अलागिरी को रास नहीं आ रहा है।
जाहिर है अलागिरी की मंशा है कि करूणानिधि के बाद द्रमुक के सर्वेसर्वा वे खुद हों न कि स्टालिन। अलागिरी को द्रमुक के सर्वेसर्वा बनने के बाद भविष्य में कभी द्रमुक के सत्ता में आने के बाद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री की कुर्सी भी नजर आ रही होगी शायद इसलिए ही पिता के फैसले पर वे कहते हैं कि पार्टी कोई मठ नहीं है। खैर द्रमुक में पैदा हो रही दरार की असली वजह सब जानते ही हैं लेकिन बड़ा सवाल ये उठता है कि क्या सिर्फ राजनीतिक दल के सर्वेसर्वा की कुर्सी पर बैठकर ही जनता की सेवा या गरीबों का उत्थान किया जा सकता है..? क्योंकि करूणानिधी कहते हैं कि उनके बाद उनका छोटा बेटा द्रमुक की कुर्सी संभालने के बाद इस काम को करेगा यानि कि बिना कुर्सी के करूणानिधि के मुताबिक जनता की सेवा नहीं होती..!
करूणानिधि की इसी सोच को ही अब उनके बेटे आगे बढ़ा रहे हैं और जनता की सेवा के लिए पार्टी का सर्वेसर्वा बनने के लिए दोनों के बीच उजागर हुए मतभेद पूरी कहानी बयां कर रहे हैं कि उनके दिल में जनता की सेवा करने का जज्बा कितना गहरा है और कुर्सी को पाने की लालसा कितनी जोर मार रही है। जब तमिलनाडु में सत्ता में न रहते हुए द्रमुक के सर्वेसर्वा करूणानिधि के बेटों में पार्टी के उत्तराधिकार को लेकर तलवारें खिंच गई हैं तो अगर कभी भविष्य में द्रमुक सत्ता में आ गई तो फिर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए दोनों भाइयों में कितनी जूतम पैजार होगी इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।

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