Bhadas ब्लाग में पुराना कहा-सुना-लिखा कुछ खोजें.......................

6.3.13

जो मौन रहते हैं वो क्या करते हैं..?


मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बने हुए 9 साल हो गए हैं लेकिन एक चीज मनमोहन सिंह के बारे में आज ही पता चली। खास बात ये है कि मनमोहन सिंह ने संसद में खुद अपने एक राज पर से पर्दा हटाया...वो भी अपना मौन तोड़कर। 2009 में प्रधानमंत्री की कुर्सी पर विराजमान होने के साथ ही ये राज गहरा गया था कि आखिर मनमोहन सिंह मौन ही क्यों रहते हैं..?
गंभीर होना एक अलग मसला है लेकिन देश से जुड़े अहम मसलों पर देश के प्रधानमंत्री की चुप्पी हमेशा से ही समझ से परे रही है। हालांकि इसके अपने – अपने हिसाब से मतलब निकालने के लिए देशवासी स्वतंत्र हैं और मतलब निकाले भी गए हैं लेकिन इसके बाद भी इस राज पर से पर्दा नहीं हट पाया कि मनमोहन सिंह को बोलने से पहले अऩुमति लेने पड़ती है या फिर ये पीएम की कुर्सी पर आसीन होने के एग्रीमेंट की एक शर्त है..! (जरूर पढ़ें- जब मनमोहन सिंह बने शोले के गब्बर सिंह !)
प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह का दूसरा कार्यकाल समाप्त होने को है ऐसे में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर अपने भाषण के दौरान मनमोहन सिंह ने मुख्य विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी पर निशाना साधते हुए अपनी मौनी छवि के राज पर से पर्दा हटाया। बकौल मनमोहन सिंह जो गरजते हैं वो बरसते नहीं हैं। लेकिन मनमोहन सिंह ने मुहावरे से अपनी मौनी छवि का राजफाश तो किया लेकिन ये समझ में नहीं आया कि जो गरजते हैं वो बरसते नहीं तो जो मौन रहते हैं वो क्या करते हैं..?”
मनमोहन सिंह को गरजते हुए तो मुझे याद नहीं आता कभी मैंने देखा होगा लेकिन ये भी सच है कि बरसते हुए भी कभी नहीं देखा, चाहे देश की राजधानी में दिल को दहला देने वाले गैंगरेप हो या फिर सीमा पर भारतीय सैनिकों का सिर कलम करने की पाकिस्तान की बर्बर कार्रवाई..! चाहे गैंगरेप के बाद राजपथ पर उमड़ा जनसैलाब हो या फिर हैदराबाद धमाके..!
हर बार तो प्रधानमंत्री मौन ही रहे...हां, जब जब मौन टूटा तो एक शेरो-शायरी जरूर उनके श्री मुख से सुनाई दी। फिर चाहे वो कोयला घोटाले पर अपनी खामोशी के सवाल पर उनका पढ़ा ये शेर हो- हजारों जवाबों से अच्छी है मेरी खामोशी, न जाने कितने सवालों की आबरू रखी या फिर भाजपा पर कटाक्ष करता मिर्जा गालिब का उनका ये दूसरा शेर- हमको है  उनसे वफा की उम्मीद, जो जानते नहीं हैं वफा क्या है
अपनी चुप्पी पर प्रधानमंत्री के खुलासे के बाद भाजपा ने भी खुद के ऊपर पढ़े मनमोहन सिंह के शेर का उधार तुरंत चुकता कर दिया। सुषमा स्वराज ने प्रधानमंत्री को जवाब देते हुए बशीर बद्र का शेर पढ़ा- कुछ तो मजबूरियां रही होंगी, यूं ही कोई बेवफा नहीं होता। सुषमा स्वराज ने मनमोहन पर एक शेर उधार भी कर दिया जिसका जवाब शायद कभी संसद में प्रधानमंत्री एक शायरी पढ़कर दें...शेर इस तरह है- तुम्हें वफा याद नहीं, हमें जफा याद नहीं। जिंदगी के दो ही तराने हैं एक तुम्हें याद नहीं, एक हमें नहीं
बहरहाल संसद में प्रधानमंत्री के मौन टूटने और मौन रहने के राज का खुलासे के बाद सता पक्ष और विपक्ष के बीच आरोप प्रत्यारोप का दौर खूब चला। मनमोहन सिंह ने जहां यूपीए के कार्यकाल को एनडीए से बहतर साबित करने में ही लगे रहे तो वहीं भाजपा ने यूपीए के 9 साल के कार्यकाल में ऊंगली उठाने का कोई मौका नहीं छोड़ा।
भाजपा और कांग्रेस  तो आरोप प्रत्यारोप की दौड़ में ही खूब आगे दिखाई दी लेकिन पीछे रह गई तो देश की 121 करोड़ जनता जिसके सवालों का चुनाव के वक्त तो खूब जिक्र होता है लेकिन संसद में जिक्र नहीं होता। ऐसे में देश का प्रधानमंत्री मौन रहे या फिर मौन तोड़े देश की हालत में...देश की जनता की हालत में तो सुधार होने की उम्मीद कम ही है।

deepaktiwari555@gmail.com

No comments: