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29.3.13

बिहार में पुलिस को रंगदारी नहीं देनेवालों की खैर नहीं-ब्रज की दुनिया


मित्रों,हम बिहारियों के शब्दकोश में बिहार पुलिस के कई पर्यायवाची दर्ज हैं। कोई इन्हें सरकारी कुत्ता कहता है तो कोई सरकारी दामाद। इन्हें कुत्ता इसलिए नहीं कहा जाता है क्योंकि यह जनता की रक्षा करती है बल्कि इसलिए कहा जाता है क्योंकि यह जनता को काट खाती है और सरकारी दामाद इसलिए क्योंकि इनको मुफ्तखोरी की बहुत बुरी आदत होती है। लालू राज में भी ऐसा देखने आता रहा है कि कभी-कभी मुफ्त में सामान नहीं देने पर ये लोग ठेले-रेहड़ीवालों की कभी कानून के डंडे से और कभी बेंत के डंडे से पिटाई कर देते हैं लेकिन तब ऐसा शायद ही कभी हुआ हो कि कोई थानेदार रंगदारी नहीं देने पर अपनी सर्विस रिवाल्वर को किसी मजलूम पर खाली ही कर दे। परन्तु सुशासन की रामराजी सरकार में ऐसा भी होने लगा है।

          मित्रों,ताजी घटना में रंगदारी में शराब नहीं देने पर नीतीश कुमार के गृह जिले नालंदा में थानेदार ने दुकान के सेल्समैन की सरेबाजार गोली मारकर हत्या कर दी है। यह घटना जिले के थरथरी थाने के अस्ता-खरजम्मा बाजार में सोमवार 25 मार्च की रात करीब दस बजे हुई। मृतक के मौसेरे भाई संजय यादव ने एफआईआर में कहा है कि थरथरी थाने का थानेदार रामप्रवेश सिंह सोमवार की रात गश्ती के दौरान दुकान पर आया और मनोज (अब मृतक) से दो कार्टन शराब देने को कहा। शराब देने से मना करने पर उसने तत्काल मनोज को गोली मार दी और फिर पुलिस जीप में बैठकर भाग गया।
         मित्रों,मैं पहले भी अर्ज कर चुका हूँ कि इन दिनों बिहार में घटनेवाली 90% आपराधिक घटनाओं के लिए नीतीश सरकार की दोषपूर्ण आबकारी या शराब नीति जिम्मेदार है। बिहार में अधिकतर अपराध या तो शराब के लिए हो रहे हैं या फिर शराब के नशे में संपन्न किए जा रहे हैं। दुर्भाग्यवश पूरे बिहार को शराबी बनाकर भी नीतीश सरकार शुतुरमुर्गी मुद्रा अख्तियार किए हुए है। अभी कल-परसों में ही हमारे राज्य में होली के सुअवसर पर बिहार के आबकारी विभाग द्बारा बेची जा रही विषैली मुँहफोड़वा या रंथी एक्सप्रेस शराब को पीने से कई दर्जन लोगों की जान जा चुकी है।
               मित्रों,जहाँ तक सुशासन में पुलिस द्वारा जनता की की जा रही अमूल्य सेवाओं का प्रश्न है तो इससे तो हम इतने अभिभूत हैं कि सोंचकर ही हमारा दिल बैठा जा रहा है। पिछले सात सालों में हमारी सुशासनी सरकार ने बिहार पुलिस का चेहरा ही बदल कर रख दिया है। उसने पहले जिस तरह अहैतुकी कृपा करके शराब की दुकानों पर शराब पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है लिखवा दिया था उसी तरह अब उसने राज्य के तमाम थानों पर आदर्श थाना लिखवा दिया है। माबदौलत (पगले आजम?) समझते हैं कि जब थाने का नाम ही आदर्श थाना होगा तो वहाँ पदस्थापित पुलिसकर्मी और अधिकारी खुद ही शर्म के मारे गलत काम नहीं करेंगे और इस प्रकार बिहार में स्वतः राम-राज्य कायम हो जाएगा।
                मित्रों,मेरा तो चिरकाल से यह भी मानना रहा है कि यदि बिहार में नौकरशाही के चरम स्वरूप बिहार पुलिस नामक संस्था को समाप्त ही कर दिया जाता तो यह यहाँ की जनता पर सरकार का सबसे बड़ा उपकार होता। पिछले कई दशकों से बिहार पुलिस बिहार का सबसे बड़ा आपराधिक गिरोह बनी हुई है। लालूराज तक तो यह जनता को सिर्फ लूटती ही थी परन्तु अब तो यह जान से मारने भी लगी है। आगे-आगे देखिए कि यह लोकसेवक संस्था प्रदेश की कथित मालिक जनता के साथ/जनता के लिए और क्या-क्या करती है।

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