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31.7.13

reenakari:  एकता में भिन्ताजिंदगी गुजरते जा रही है पर वक़्...

reenakari:  एकता में भिन्ता



जिंदगी गुजरते जा रही है पर वक़्...
:   एकता में भिन्ता जिंदगी गुजरते जा रही है  पर वक़्त ठहर  गया  सिमटा  सा एक पल  भवर बन गया  जीवन की कश्ती डूबती जा रही  ...

क्या जिला भाजपा में होगा नेतृत्व परिवर्तन?
क्या सुजीत या वेदसिंह ठाकुर होगें जिला भाजपा के नये अध्यक्ष
सिवनी। क्या जिला भाजपा में नेतृत्व परिवर्तन होने वाला है? यदि ऐसा हुआ तो किसके हाथ में आयेगी कमान?ये सवाल इन दिनों जिले के राजनैतिक क्षेत्रों में चर्चित है।
विधानसभा चुनाव की पूर्व संध्या पर जहां एक ओर सभी राजनैतिक दल अपने अपने प्रत्याशी चयन और चुनावी बिसात बिछाने में लगे हुये हैं वहीं दूसरी ओर प्रदेश की सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा में जिले में नेतृत्व परिर्वतन की खबरें चल रहीं हैं। नेतृत्व परिर्वतन की बात करने वाले नेता इस आधार पर यह बात कर रहें हैं कि इसीलिये भाजपा जिले में अभी तक प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया प्रारंभ नहीं कर रही है। जबकि कांग्रेस के एक राष्ट्रीय और एक प्रादेशिक पर्यवेक्षक जिले की चारों विधानसभा सीटों का दौरा कर प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया को चालू कर चुके हैं। 
वर्तमान में जिला भाजपा की कमान सिवनी के पूर्व विधायक एवं महाकौशल विकास प्राधिकरण के कबीना मंत्री का दर्जा प्राप्त कद्दावर भाजपा नेता के हाथों में हैं। फिर आखिर ऐसे क्या कारण है कि चुनाव के चंद महीनों पहले प्रदेश का भाजपा नेतृत्व जिले में नेतृत्व परिवर्तन की सोच रहा है।
यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि भाजपा के संगठन चुनाव के दौरान तत्कालीन अध्यक्ष सुजीत जैन की दोबारा ताजपोशी लगभग तय मानी जा रही थी। लेकिन उस वक्त नरेश दिवाकर ने अपने ही समर्थक सुजीत जैन के बजाय वरिष्ठ महिला नेत्री एवं लगातार चार बार जिला पंचायत सदस्य का चुनाव जीतने वाली गोमती ठाकुर का नाम आगे कर दिया था। लेकिन काल चक्र कुछ ऐसा घूमा कि नरेश भले ही सुजीत को रोकने में तो सफल हो गये पर गोमती ठाकुर के बजाय उन्हें खुद ही जिला भाजपा अध्यक्ष बनना पड़ा।
यह बात भी एक ओपन सीक्रेट है कि सिवनी से दो बार विधायक रहे नरेश दिवाकर अपनी टिकिट कटने का दंश भूल नहीं पाये थे और मविप्रा का अध्यक्ष बनने के बाद उन्होंने ताबड़ तोड़ सिवनी विस क्षेत्र के दौरे भी चालू कर दिये थे। भाजपा विधायक श्रीमती नीता पटेरिया और नरेश दिवाकर के इसी कारण मनमुटाव समय समय पर जगजाहिर होते रहें हैं। अभी नरेश दिवाकर इस बात के लिये जी तोड़ मेहनत कर रहें कि आगामी चुनाव में भाजपा से उन्हें ही विस की टिकिट मिले।
राजनैतिक विश्लेषकों का दावा है कि इसी कारण प्रदेश भाजपा का नेतृत्व जिले में परिवर्तन के बारे में विचार कर रहा हैं। प्रदेश के नेताओं का ऐसा मानना है कि प्रत्याशी चयन की प्रक्रिया ऐसे हालात में चालू करना उचित नहीं हैं जब जिले का अध्यक्ष स्वयं ही टिकिट का दावेदार हो।
भाजपायी हल्कों में चल रही चर्चाओं के अनुसार नरेश दिवाकर ने अध्यक्ष पद के लिये उन्हीं सुजीत जैन का नाम आगे बढ़ा दिया है जिसे उन्होंने ही दूसरी पारी नहीं खेलने दी थी। जिला भाजपा अध्यक्ष पद के लिये दूसरे सबसे ताकतवर दावेदार के रूप में दो बार जिलाध्यक्ष रह चुके वरिष्ठ नेता वेदसिंह ठाकुर का नाम सामने आया हैं। यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि इन दिनों भाजपा में कार्यकर्त्ताओं का एक खेमा लगातार बैठकें करके ब्राम्हण और जैन ेनताओं को भाजपा में मिल रहे अत्यधिक महत्व को लेकर उनके विरोध में लामबंद हो रहा है और प्रदेश नेतृत्व से यह मांग कर रहा है अन्य वर्ग के नेताओं को भी महत्व मिलना आवयक है अन्यथा उनमें उभर रहा असंतोष भाजपा के लिये नुकसानदायक होगा।
ऐसे हालात में प्रदेश भाजपा नेतृत्व जिले में नेतृत्व परिवर्तन करेगा या नही? और करेगा तो कमान किसे देगा? और नरेश दिवाकर सिवनी विस क्षेत्र से टिकिट ला पायेंगें या नहीं? यह सब कुछ तो फिलहाल भविष्य के गर्त में छिपा हुआ है?
सा. दर्पण झूठ बोले, सिवनी से साभार   

चुनावी साल में  वृक्षारोपण के शासकीय कार्यक्रम में  किसी शाही पर्यावरण मित्र  का अतिथि बनना सियासी हल्कों में  हुआ चर्चित
जिला मुख्यालय के पांच बार से जीतने वाले सिवनी विस क्षेत्र में इस बार एक नयी पहल प्रारंभ हुयी है। अपने आप को भाजपा का निष्ठावान कार्यकर्त्ता बताने वाले कई नेता बैठकों का दौर कर रहें हैं कि इस बार पार्टी का उम्मीदवार किसी भी ब्राम्हण या बनिये को नहीं बनाना चाहिये। कांग्रेस में भी नजारा  कुछ अलग नहीं है। सिवनी विस क्षेत्र के 38 में से 22 और बरघाट विस क्षेत्र से 19 में से 18 टिकटार्थी लामबंद हो गये हैं।  सिवनी में ये सभी टिकटार्थी स्वयं को ग्रामीण परिवेश का बता रहें हैं और उनका कहना है कि पार्टी पांच बार से यहां से चुनाव हार रही है और पांचों बार शहरी क्षेत्र के उम्मीदवारों को पार्टी ने प्रत्याशी बनाया था।  लेकिन कोई भी चुनाव जीत नहीं पाया।बरघाट के टिकटाथियों का कहना है कि पार्टी के खिलाफ दो बार चुनाव लड़ चुके अर्जुन काकोड़िया को प्रत्याशी नहीं बनाया जाना चाहिये। चुनावी साल में वृक्षारोपण के किसी शासकीय कार्यक्रम में कोई शाही पर्यावरण मित्र अतिथि बने और सियासी हल्कों में कोई चर्चा ना हो ये भला कैसे हो सकता है? ऐसा ही कुछ बीते दिनों इस जिले में हुआ है। अब देखना यह है कि ये सूबे के शहंशाह के नजदीकी शाही पर्यावरण मित्र चुनावी साल में अपनी आमद से कांग्रेस या भाजपा में से किस पार्टी का राजनैतिक प्रदूषण समाप्त करेंगें।
भाजपा में खुला ब्राम्हण बनिया विरोधी मोर्चा-आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर भाजपा में भी गतिविधियां तेज हो गयीं है। जिला मुख्यालय के पांच बार से जीतने वाले सिवनी विस क्षेत्र में इस बार एक नयी पहल प्रारंभ हुयी है। अपने आप को भाजपा का निष्ठावान कार्यकर्त्ता बताने वाले कई नेता बैठकों का दौर कर रहें हैं कि इस बार पार्टी का उम्मीदवार किसी भी ब्राम्हण या बनिये को नहीं बनाना चाहिये। इन नेताओं का यह कहना है कि भाजपा में पार्टी के जिला अध्यक्ष एवं सिवनी विस क्षेत्र के अधिकांश उम्मीदवार अभी तक इन दो वर्गों से ही रहे है। भाजपा के इस धड़े का यह भी कहना है कि स्व. पं. महेश शुक्ला,प्रमोद कुमार जैन कंवर साहब,स्व. चक्रेश जैन,सुदर्शन बाझल,सुजीत जैन और अब नरेश दिवाकर पार्टी के जिलाध्यक्ष है। पार्टी में अब तक सिर्फ दो बार वेदसिंह ठाकुर,कीरत सिंह बघेल और डॉ. ढ.ालसिंह बिसेन ही अन्य ऐसे नेता है जिन्हें पार्टी का अध्यक्ष बनाया गया है। इसी तरह सिवनी विस क्षेत्र से 85 में प्रमोद कुमार जैन,90 और 93 में स्व0 महेश शुक्ला, 98 और 2003 में नरेश दिवाकर और 2008 में नीता पटेरिया को पार्टी ने उम्मीदवार बनाया और जनता ने पांच बार यह सीट भाजपा की झोली में डाली है। भाजपा के इन नेताओं का यह कहना है कि इन कारणों से जनता में यह संदेश जा रहा है कि भाजपा ब्राम्हणों और बनियों की पार्टी बन कर रह गयी है। इससे पार्टी के अन्य कार्यकर्त्ताओं में अब उपेक्षा की भावना घर करने लगी है। इसलिये इस बार पार्टी को सिवनी से किसी अन्य वर्ग के नेता को पार्टी का उम्मीदवार बनाया जाना चाहिये। चुनाव के पहले भाजपा में उठ रही यह असंतोष की लपटें कितना नुकसान पहुंचाने वाली साबित होंगी? यह कहा जाना अभी संभव नहीं हैं। 
सिवनी और बरघाट में भी कांग्रेस के टिकटार्थी हुये लामबंद-कांग्रेस में भी नजारा कुछ अलग नहीं है। सिवनी विस क्षेत्र के 38 में से 22 और बरघाट विस क्षेत्र से 19 में से 18 टिकटार्थी लामबंद हो गये हैं। सिवनी में ये सभी टिकटार्थी स्वयं को ग्रामीण परिवेश का बता रहें हैं और उनका कहना है कि पार्टी पांच बार से यहां से चुनाव हार रही है और पांचों बार शहरी क्षेत्र के उम्मीदवारों को पार्टी ने प्रत्याशी बनाया था। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस ने 90 में स्व. ठा. हरवंश सिंह, 93 और 98 में आशुतोष वर्मा, 2003 में राजकुमार पप्पू खुराना और 2008 में प्रसन्न मालू को उम्मीदवार बनाया था और कोई भी जीत नहीं पाया था इसलिये इस बार ग्रामीण क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया जाये। इसी तरह बरघाट विस क्षेत्र में भी कांग्रस पांच बार से चुनाव हार रहीं है। लेकिन परिसीमन के बाद पिछले चुनाव से जिले की यह सीट आदिवासी वर्ग के लिये आरक्षित हो गयी है। लेकिन इस सीट से भी कांग्रेस की टिकिट के लिये 19 नेताओं ने आवेदन दिया है। इनमें से अर्जुन काकोड़िया को छोड़कर शेष 18  टिकटार्थी लामबंद हो गये हैं कि उनके अलावा 19 में से किसी को भी पार्टी टिकिट दे क्योंकि वे पार्टी के खिलाफ दो बार इसी क्षेत्र से चुनाव लड़ चुके हैं। 
केवलारी क्षेत्र में शाही पर्यावरण मित्र की आमद हुयी चर्चित-हर साल बारिश आती है। बारिश में हर साल वृक्षारोपण होता है। हर शासकीय या अशासकीय वृक्षारोपण के कार्यक्रम में कोई ना कोई अतिथि पर्यावरण मित्र भी होता है। लेकिन जब चुनावी साल में वृक्षारोपण के किसी शासकीय कार्यक्रम में कोई शाही पर्यावरण मित्र अतिथि बने और सियासी हल्कों में कोई चर्चा ना हो ये भला कैसे हो सकता है? ऐसा ही कुछ बीते दिनों इस जिले में हुआ है। जी हां हम बात कर रहें है छपारा के एक शासकीय कार्यक्रम में उपस्थित हुये एक शाही पर्यावरण मित्र की उपस्थिति की जो कि अखबारों की सुर्खी बना था। केवलारी विस क्षेत्र के छपारा कस्बे में आयोजित एक शासकीय वृक्षारोपण कार्यक्रम में  चुनावी मौसम में अचानक ही प्रगट हुये एक शाही पर्यावरण मित्र अपने आप को सूबे के शहंशाह के किचिन केबिनेट के खास मेम्बर का रिश्तेदार बता रहें हैं। केवलारी विधानसभा क्षेत्र में सूबे के शहंशाह से नजदीकी बता कर आमद देने वाले पर्यावरण मित्र किस पार्टी का राजनैतिक प्रदूषण दूर करेंगें और किसमें प्रदूषण फैलायेंगें? इसे लेकर क्षेत्र के सियासी हल्कों में तरह तरह की चर्चायें होने लगीं हैं। वैसे भी जिले का केवलारी विस क्षेत्र कांग्रेस का एक ऐसा मजबूत गढ़ है जहां से कांग्रेस सिर्फ दो चुनाव,1962 और 1990 में,ही हारी है। अन्यथा 1967 से 1985 तक के पांच विस चुनाव कांग्रेस की कु. विमला वर्मा और 1993 से 2008 तक के चार विस चुनाव कांग्रेस के स्व. हरवंश सिंह चुनाव जीते है। आगामी विस चुनाव में स्व. हरवंश सिंह के ज्येष्ठ पुत्र रजनीश सिंह कांग्रेस के प्रबल दावेदार है। यहां यह विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि सूबे के शहंशाह स्व. हरवंश सिंह को एक शासकीय समारोह के सार्वजनिक मंच से स्व. हरवंश सिंह को एक शानदार और जानदार राजनेता बता चुके हैं। अब देखना यह है कि ये सूबे के शहंशाह के नजदीकी शाही पर्यावरण मित्र चुनावी साल में अपनी आमद से कांग्रेस या भाजपा में से किस पार्टी का राजनैतिक प्रदूषण समाप्त करेंगें।
और अंत में -जिले के राजनैतिक रूप से सर्वाधिक महत्वपूर्ण रहा केवलारी विस क्षेत्र इस बार भी महत्वपूर्ण ही रहेगा। यहां से इस बार कांग्रेस के विधायक रहे स्व0 हरवंश सिंह के ज्येष्ठ पुत्र रजनीश सिंह टिकटि के प्रबल दावेदार हैं। इनके अलावा क्षेत्र के वरिष्ठ कांग्रेस नेता एवं पूर्व जनपद अध्यक्ष डॉ. वसंत तिवारी,जिला पंचायत के पूर्व उपाध्यक्ष शक्ति सिंह,ब्लाक इंका के पूर्व अध्यक्ष दिलीप दुबे, जिला इंका के उपाध्यक्ष जकी अनवर और क्षेत्र के वरिष्ठ कांग्रेस नेता एवं प्रदेश प्रतिनिधि मो. शफीक पटेल के पुत्र अतीक पटेल ने भी टिकिट की दावेदारी की हैं। हालांकि कांग्रेस में किसी भी विस क्षेत्र टिकिट मांगने वालों की यह संख्या सबसे कम हैं लेकिन सियासी हल्कों में यह इसलिये चर्चित हैं कि 20 साल में पहली बार इस क्षेत्र से टिकिट की मांग अन्य नेताओं ने भी की हैं। क्षेत्री विधायक रहे स्व. हरवंश सिंह के निधन के चंद महीनों बाद ही उनके गृह क्षेत्र में नेताओं की आवाज मुखर होना महत्वपूर्ण माना जा रहा हैंमु।”साफिर”
सा. दर्पण झूठ ना बोले
30 जुलाई 13

30.7.13

reenakari:  साथी चेहरा    जो कोई   ओझल हो गया ओड़  कर ओड...

reenakari:




 साथी
चेहरा    जो कोई   ओझल हो गया ओड़  कर ओड...
:   साथी चेहरा    जो कोई   ओझल हो गया  ओड़  कर ओडनी  उसका साथी भी सो गया  निर्जीव  सा रहा वो जीवधारियों में  एक के बाद...

मुहब्बत मिट नहीं सकती …………।

मुहब्बत मिट नहीं सकती …………। 

मुहब्बत अमर कहानी है, मुहब्बत मिट नहीं सकती।। 

मेरे दिल में - बसी हो तुम, तेरे दिल में - बसा हूँ मैं
तडफता मैं - अकेले में, तड़फती तुम - अकेले में  
तेरी मंजिल - है  मुझ से, मेरा मुकाम-है  तुम पर
जमाने के - हटकने से, मुहब्बत टल नही सकती ……

मेरा हर ख़्वाब तेरा है, तेरा हर ख़्वाब - है  मुझ से 
ना खुद को रोक पाती तुम, ना खुद को रोक पाया मैं  
तेरी हर साँस  मुझ से है: मेरी हर आस है तुम पर 
जमाने से - डर कर के, मुहब्बत रुक नहीं सकती ……. 

तुम्हारा साथ है पथ में, तो मंजिल दूर नहीं लगती
तुम्हारा प्यार है दिल में, तो साँसे थम नहीं सकती 
मुझे विश्वास तुम पर है, तुझे विश्वास है मुझ पर
जमाने के - बवन्डर से, मुहब्बत हिल नहीं सकती ……

सफर पर चल पड़ा था मैं, निभाया साथ तुमने भी  
कसम खायी थी  मेने भी, किया वादा है तुमने भी
मेरी तक़दीर तुम पर है, तेरी तजबीज है मुझ पर
ज़माने के बदलने से, मुहब्बत बदल नहीं सकती ……

मेरे रँग में - रँगी हो  तुम, तेरे रँग में - रँगा हूँ  मैं
मेरे बिन- तुम अधूरी हो, तेरे बिन- मैं अधुरा हूँ
तेरी धडकन -है मुझ से ,मेरी धडकन- है तुझ पर 
जमाने के- कड़कने से, मुहब्बत मिट नहीं सकती …… 

29.7.13

लाइलाज और जानलेवा लीवर कैंसर में बुडविग उपचार का चमत्कारी प्रभाव

Budwig Protocol Testimonial 

A mail from Liver Cancer Patient from Bangalore - 

Respected Dr. Verma,

Many many thanks for consulting my mother and showing us great healing path.

Mummy was feeling much better today. I think the coffee enema is the biggest contributor in her feeling well.
Q1. Should we give coffee enema, 1 morning and 1 evening, to reduce itching?


Q2. Sauerkraut Juice is ready. I put the solution in a mixie, and then strained it through a thin loin cloth. I have got 2 ltrs (picture is attached). We all tasted a few drops and it is wonderful. It has a rejuvenating taste. How much should mummy take at a time?

Thanks and regards,

xxx


28.7.13

21 जुलाई, 2013 को राजस्थान पत्रिका में

      21 जुलाई, 2013 को राजस्थान पत्रिका पूरे भारत में प्रकाशित    एक्सपर्ट एडवाइस

27.7.13

जागो हिन्दुओं जागो-ब्रज की दुनिया

मित्रों,आप सभी देश के मौजूदा हालात से अच्छी तरह से वाकिफ हैं। चाहे देश की उत्तरी,दक्षिणी,पूर्वी और पश्चिमी सीमाओं की सुरक्षा का सवाल हो या फिर देश की आंतरिक सुरक्षा का। चाहे देश की अर्थव्यवस्था का प्रश्न हो या विदेशी व्यापार का हर मोर्चे पर आज की तारीख में देश की हालत खस्ता है। चीन बार-बार हमारी सीमाओं में दाखिल होकर हमारी संप्रभुता को खुली चुनौती दे रहा है। कोई नहीं जानता कि वह गद्दार कब हमारे देश पर हमला कर दे और सच्चाई तो यही है कि अगर ऐसा हुआ तो इस बार हमें एक साथ चीन और पाकिस्तान दोनों से लोहा लेना पड़ेगा। इधर भारत-चीन सीमा पर हमारी तैयारी की हालत कदाचित 1962 से भी ज्यादा खराब है। जहाँ चीन ने भारत-चीन सीमा के समानान्तर रेल-लाइनों और सड़कों का जाल बिछा दिया है हमारी सड़कें सीमा से 40-50 किलोमीटर पहले ही समाप्त हो जाती हैं,रेल-लाइनों को बिछाने का प्रश्न ही नहीं उठता। पाकिस्तान तो हमेशा हमें नुकसान पहुँचाने की ताक में लगा रहता ही है,नेपाल,मालदीव,भूटान और श्रीलंका भी वर्तमान केंद्र सरकार की आत्मविनाशक विदेश नीति के कारण हमारे विश्वस्त मित्र नहीं रह गए हैं। बांग्लादेश की हमारे प्रति नीति भी दो राजनैतिक दलों के बीच पेंडुलम की भाँति झूलती रहती है।
                     मित्रों,क्या आपने कभी विचार किया है कि देश के इन हालातों के लिए कौन जिम्मेदार है? कहते हैं कि लोकतंत्र में यथा प्रजा तथा राजा का नियम काम करता है। हमारे लुटेरे छद्म धर्मनिरपेक्ष सियासतदानों ने पहले आरक्षण के नाम पर बहुसंख्यक हिन्दुओं को आपस में लड़वाया फिर पूरे भारत को अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक में बाँट दिया। आज हम हिन्दुओं की स्थिति इतनी बिगड़ गई है कि हमारे देश का प्रधानमंत्री लाल-किले से खुलेआम ऐलान करता है कि देश के संसाधनों पर पहला हक अल्पसंख्यकों का है। पारसी,इसाई,बौद्ध,जैन और सिक्खों की स्थिति तो पहले से ही हिन्दुओं से अच्छी है। तो फिर इसका तो यही मतलब हुआ कि ऐसा कहके और करके केंद्र सरकार सिर्फ मुसलमानों को खुश करना चाहती है। आज हम अपनी मातृभूमि-आदिभूमि हिन्दुस्थान में मंदिरों में लाऊडस्पीकर और घंटे-घड़ियाल तक नहीं बजा सकते (उदाहरण के लिए हैदराबाद का भाग्यलक्ष्मी मंदिर)। आज ही उत्तर प्रदेश के मेरठ में मंदिर में लाऊडस्पीकर बजाने पर मुसलमानों ने मंदिर पर हमला कर दिया जिसमें दो लोग मारे भी गए। ऐसा कब तक चलेगा? हमने तो कभी नहीं रोका उनको नमाज पढ़ने या अजान देने से फिर वो क्यों हम पर गोलियाँ चलाते हैं? इतिहास गवाह है कि दंगे चाहे भागलपुर में हुए हों या गुजरात में,शुरू हमेशा मुसलमान ही करते हैं।
                                      मित्रों, लाल किले से ऐसा कहकर और मुसलमानों के लिए अलग से विशेष योजनाएँ चलाकर हमारे ही वोटों से चुनी गई हमारी केंद्र सरकार ने हमें हमारे ही देश हिन्दुस्थान में द्वितीय श्रेणी का नागरिक बना दिया है। अंग्रेजों के जमाने से ही भारत में हिन्दुओं और मुसलमानों के लिए आपराधिक कानून या संहिता तो एक है लेकिन दीवानी कानून या नागरिक संहिता अलग-अलग हैं। यह घोर दुर्भाग्यपूर्ण है कि आजादी के बाद भी जो भी संशोधन और बदलाव हमारी सरकारों ने किए सिर्फ और सिर्फ हिन्दू उत्तराधिकार कानून और विवाह कानून में किए मुगलकाल से चले आ रहे तत्संबंधी इस्लामिक कानूनों को कभी छुआ तक नहीं गया। हिन्दू पुरूष एक विवाह करे और मुसलमान पुरूष चार फिर क्यों नहीं मुसलमानों की जनसंख्या ज्यादा तेजी से बढ़ेगी? बीच में स्व. संजय गांधी ने 1974-77 में जबरन नसबंदी के प्रयास भी किए लेकिन उनको भी दूसरी बार सत्ता में आने के बाद अपने कदम पीछे खींचने पड़े। मैं सर्वधर्मसमभाव पर अमल का दावा करनेवाली केंद्र सरकार से जानना चाहता हूँ कि क्यों सारे सुधार और संशोधन हिन्दुओं के विवाह और सम्पत्ति कानून में ही किए जाते हैं,मुसलमानों के कानूनों को क्यों नहीं बदला जाता है? ٍक्यों बार-बार सारे-के-सारे प्रतिबंध हिन्दुओं पर ही लादे जाते हैं? सुप्रीम कोर्ट ने भी वर्तमान और पूर्व की केंद्र सरकारों की इस प्रवृत्ति पर कई बार सवाल उठाए हैं। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कई बार सरकारों  को समान नागरिक संहिता लागू करने परामर्श दिया है लेकिन सब बेकार।
                               मित्रों,इसी तरह अंग्रेजों के जमाने से ही हिन्दू मंदिरों पर तो सरकार का कब्जा और नियंत्रण है मगर मस्जिदों,दरगाहों और कब्रगाहों पर शिया या सुन्नी वक्फ बोर्ड का। जब सरकार या दूसरों के पैसों से हज करना शरियत के अनुकूल नहीं है तो फिर क्यों केंद्र सरकार मुसलमानों को हज-सब्सिडी दे रही है और क्यों भारतीय मुसलमान इसका लाभ उठा रहे हैं? अमरनाथ या कैलाश-मानसरोवर-यात्रा पर हिन्दुओं को क्यों सब्सिडी नहीं दी जा रही है? क्यों हिन्दू मंदिरों के खजाने पर कोर्ट-कानून का डंडा चलता है और क्यों मुस्लिम दरगाहों की कमाई को सरकार के अधिकार-क्षेत्र से बाहर रखा गया है?
                                    मित्रों,हम यह भी जानना चाहते हैं कि कांग्रेस की तरफ से प्रधानमंत्री पद के अघोषित उम्मीदवार राहुल गांधी किस धर्म को मानते हैं? क्या वे हिन्दू-धर्म को मानते हैं? अगर वे किसी दूसरे धर्म को मानते हैं तो फिर क्या गारंटी है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद वे हिन्दुओं का खास ख्याल रखेंगे और अल्पसंख्यक-फर्स्ट की कुत्सित नीति पर नहीं चलेंगे? हम यह भी जानना चाहेंगे कि राहुल गांधी के गोहत्या के बारे में क्या विचार हैं? वे इसका समर्थन करते हैं या विरोध? क्या उन्होंने कभी गोमांस-भक्षण किया है या वे अब भी गोमांस खाते हैं? क्या सोनिया गांधी ने कभी गोमांस खाया है या अब भी वे उतने ही चाव से इसका सेवन करती हैं?
                                              मित्रों,हमारे गाँवों में एक कहावत बड़ी ही मकबूल है कि जो खाए गाय का गोश्त,वो हो नहीं सकता हिन्दुओं का दोस्त। अब आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि कौन हम हिन्दुओं का शुभचिंतक है और कौन नहीं? चाहे वो गोहत्या पर से कर्नाटक में पाबंदी हटानेवाला सिद्धरमैया हो या उत्तर प्रदेश में नए बूचड़खानों के लिए टेंडर मंगवानेवाला अखिलेश यादव,ये लोग कभी हिन्दुओं के दोस्त या हितचिंतक हो ही नहीं सकते। इतना ही नहीं हम प्रधानमंत्री की कुर्सी की तरफ काफी तेज कदमों से बढ़ रहे श्रीमान् नरेंद्र मोदी जी से भी स्पष्ट शब्दों में यह जानना चाहते हैं,बल्कि हम उनके मुखारविन्द से यह सुनना चाहते हैं कि वे प्रचंड बहुमत से प्रधानमंत्री बनने के बाद संसद से गोहत्या पर रोक लगाने का कानून बनवाएंगे।
                        मित्रों,जबकि 85 प्रतिशत मुसलमान पहले से ही आरक्षण के दायरे में हैं फिर भी मात्र 15 प्रतिशत अगड़े मुसलमानों को आरक्षण देने की जी-तोड़ कोशिश की जा रही है। क्या अगड़े मुसलमानों के पिछड़ेपन के लिए पिछड़ी जाति के हिन्दू जिम्मेदार हैं? फिर क्यों उनका कोटा कम करके अगड़े मुसलमानों को संविधान की खुलेआम अनदेखी करते हुए धर्म के आधार पर आरक्षण देने की नापाक कोशिश की जा रही है?
                                    मित्रों,हमारे छद्म धर्मनिरपेक्ष नेता आज देश पर मरनेवालों पर आँसू नहीं बहाते,उत्तराखंड में उनकी लापरवाही के चलते मारे गए हजारों बेगुनाह हिन्दुओं की लाशों पर भी आँसू बर्बाद नहीं करते बल्कि वे आँसू बहाते हैं मुस्लिम आतंकियों की मौत और गिरफ्तारी पर। क्या इसको सर्वधर्मसमभाव का नाम दिया जा सकता है? क्या इस तरह की आत्मघाती रणनीति अपनाकर देश से आतंकवाद का खात्मा किया जाएगा?
                                         मित्रों,कुल मिलाकर इस सारी मगजमारी का लब्बोलुआब यह है कि देश की दुर्दशा इसलिए हो रही है क्योंकि इस देश के बहुसंख्यक अर्थात् हिन्दू एक नहीं हैं। कम-से-कम हिन्दुओं को तो इस संकट-काल में देशहित में एक हो ही जाना चाहिए और अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर वो दिन दूर नहीं जब इस देश का एक नाम हिन्दुस्थान या हिन्दुस्तान न होकर चीन या पाकिस्तान हो जाएगा। आज नेफा से लेकर राजस्थान तक और कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक पूरे हिन्दुस्थान को कांग्रेस की लुटेरी और देशबेचवा सरकार ने अपनी शत्रुतापूर्ण नीतियों के चलते खतरे में डाल दिया है। चूँकि हमारा धर्म इस देश और पृथ्वी पर सबसे पुराना धर्म है इसलिए इस देश की अस्तित्व-रक्षा के प्रति अगर किसी की पहली जिम्मेदारी बनती है तो वो हम हिन्दुओं की। वैसे अगर दूसरे धर्मवाले देशभक्त भी इस परमपुनीत कार्य में अपना महती योगदान देना चाहें तो हम तहेदिल से उनका स्वागत करेंगे। और हिन्दुओं को भी एक कुछ इस तरह से होना चाहिए कि हमारे देश की एकमात्र बहुसंख्यकवादी राष्ट्रीय पार्टी भाजपा को अकेले ही दो-तिहाई बहुमत प्राप्त हो जाए और अल्पसंख्यकवादी देशबेचवा नेताओं की दाल चुनावों के बाद किसी भी सूरत में गलने नहीं पाए।
                       मित्रों,हम हिन्दू एक होंगे तो न केवल अपने देश में ही हमारे धर्माम्बलंबियों की स्थिति सुधरेगी बल्कि हमारे पड़ोसी देशों में भी हिन्दुओं की स्थिति में सुधार आएगा। तब पाकिस्तान में हिन्दुओं की बहु-बेटियों का दिन-दहाड़े अपहरण नहीं होगा और उनको अपनी मातृभूमि छोड़कर प्राण-प्रतिष्ठा बचाकर भारत नहीं भागना पड़ेगा। हमें हमेशा यह बात अपने जेहन में रखनी चाहिए कि दुनिया में भारत के अलावा ऐसा कोई दूसरा देश नहीं है जहाँ कि बहुसंख्यकों को द्वितीय श्रेणी का नागरिक बनकर रहना पड़ता हो। 

26.7.13

जानता हूँ क्या उचित है पर करने की इच्छा नहीं है !

जानता हूँ क्या उचित है पर करने की इच्छा नहीं है !

भारत आज जिस समस्या से पीड़ित है उसमे गरीबी मुख्य समस्या बन गई है। नीति
और शास्त्र कहते हैं कि भूखा व्यक्ति पुन्य और पाप के पचड़े में नहीं पड़ता है वह तो
पेट भरने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाता है कैसा भी पाप हो वह उसे करने
के लिए तैयार रहता है और इस महामारी का ईलाज आज तक कोई भी राजनीतिज्ञ
खोजने में असक्षम रहा है ,इसके कुछ कारण है -पद का लोभ, इच्छाशक्ति का
अभाव, निजी स्वार्थ, देश प्रेम की भावना में गिरावट।

           कोई भी सरकार इस पीड़ा को ढकना चाहती है और ढकने मात्र से फोड़ा ठीक
नहीं होता है उलटे उसमे मवाद पड जाती है। वर्तमान सरकार तो इस पीड़ा को ढकने
के लिए विरोधाभासी योजनायें और आंकड़े रचने में व्यस्त है ,सरकार एक बार यह
स्वीकार कर ले कि इस देश में वर्तमान में गरीबी विकराल रूप ले चुकी है और यह
घटने की जगह बढ़ रही है तो इसको ठीक करने के उपाय भी मिल जायेंगे लेकिन
सरकार में इच्छाशक्ति और सत्य को स्वीकार करने का साहस नहीं रहा है इसलिए
वह आंकड़ो का जाल बिछाती है और प्रजा के रोष को बढाती है।

          क्या जिसका पेट भरा है वह अपराध करेगा ?किसी भी कोम का गरीब व्यक्ति
जब पेट भरने के,रोजी रोटी कमाने के सभी रास्ते खुद के लिए बंद देखता है तो वह
अनैतिक और गेरकानुनी काम करने के रास्ते को सुगम समझ उस ओर मज़बूरी से
चलने को बाध्य हो जाता है।

    हम पढ़े लिखे और अपने को निपुण समझने वाले लोग गरीबी और उसकी मज़बूरी
को समझने में जब तक असफल रहेंगे तब तक विघटनकारी तत्वों को रोक पाने में
असफल रहेंगे। गरीब चाहे किसी भी धर्म का हो उसे योग्य राह नहीं मिलने पर भटक
जायेगा यह वास्तविकता है।

     गरीब लोग पेट भरने के लिए अपना मत भी बेचने में नही झिझकता और उसकी
कमजोरी का तुच्छ स्वार्थी नेता फायदा उठाते हैं। चुनावों के समय लालच देकर वोट
पा लेना उनको भी सुगम रास्ता लगता है।

        दूसरी बात बेरोजगारी की है। हमारी सरकार करोडो युवाओं को रोजगार देने में
फिस्सडी साबित हो रही है और गुणवत्ता युक्त शिक्षा देने में नाकारा साबित हो रही है
आज पढ़े लिखे लोग बेरोजगारी का दंश भोगते हैं और समाज के ताने सुनते हैं। उनके
हाथ में थमाई गई डिग्रियां उनका और उनके परिवार का पेट भरने में नाकामयाब हो
रही है और इसका परिणाम यह आता है कि युवा हताशा और निराशा से गैरकानूनी
काम करने को मजबूर हो जाता है।

        कानुन अपराध को रोकने के लिए दण्डका विधान करता है पर यह चिंतन कोई
नहीं करता है कि आपराधिक प्रवृति का उन्मूलन कैसे हो? क्या दण्ड से सुपरिणाम
पाए जा सकते हैं ? अगर यही सर्वश्रेष्ठ उपाय होता तो चरित्र और सदाचार का निर्माण
करना कहाँ जरूरी था ,सब चीजें दण्डसे व्यवस्थित हो जाती।

     स्वामी बुधानन्द ने अपनी पुस्तक में  समस्या का मूल कारण लिखा है -

      जानामि धर्मं न च मे प्रवृति:
      जानाम्यधर्मं न च मे निवृति:  (पाण्डवगीता )  

--मैं जानता हूँ की धर्म क्या है ,उचित क्या है ,अच्छा क्या है  परन्तु उसे करने में मेरी 
प्रवृति नही है और मैं यह भी जानता हूँ की क्या अनुचित है ,अधर्म है,बुरा है,पाप है ,
परन्तु उसे किये बिना रह नहीं पाता।

    आज देश के कर्णधार,शासक,पढ़े लिखे सभी यही तो कर रहे हैं। राजनीती वाला 
कानून सिखाता है ,अर्थशास्त्री नीतिदिखाता है, समाज सुधारक राजनीती के गुर 
पढाता है………………. फिर भी हम कल्याण की चाह रखते हैं यह बड़ा आश्चर्य है !            

25.7.13

किसानों को 2-3 रूपये का मुआवजा चेक

-2 रूपये में कैसे संवरेगी किसानों की तकदीर?
-ऐसी मदद पर कैसे गर्व किया जाये?
 ‘जय जवान, जय किसान’ वाले देश में बाढ़ पीढ़ित गरीब किसानों को मुआवजे के तौर पर 2 व 3 रूपये के चेक भी मिल रहे हैं। चौंकना लाजमी है। इतने रूपये में किसानों की तकदीर संवरेगी या वह अपनी बर्बाद फसल की भरपाई कर लेंगे यह मुमकिन तो नहीं है, लेकिन सरकार के हिसाब से है तभी वह कर भी रही है। यह मुआवजा उन किसानों को है जिनकी फसल प्राकृतिक आपदा के चलते खराब हो गई थी। मुआवजे के लिये किसानों ने 1 साल का लम्बा इंतजार भी किया। प्रकरण
हरियाणा प्रान्त के झज्जर जिले का है। कृषि प्रधान देश में किसानों की ऐसी मदद पर कैसे गर्व किया जा सकता है? शर्म भी आती है इस व्यवस्था पर। किसान हाथ में चेक लेकर हक्के-बक्के हैं क्योंकि वह समझ ही नहीं पा रहे कि चेक का क्या करें। चेक सरकारी बैंक के होते तो भी ठीक था। यह चेक प्राईवेट एक्सिस बैंक के हैं। अब जिन किसान का खाता नहीं है वह यदि इस बैंक में खाता खुलवाने पहुंच जाये तो उसे पांच हजार खाता खुलवाने के लिये चाहिए। 2 रूपये का चेक किसान तक पहुंचते हुए कितने खर्च हो गए
होंगे? क्या फायदा ऐसी राहत का? हां कागजी तौर पर एक कारनामा जुड़ गया कि हमने मदद की। यह घिनौने मजाक से ज्यादा कुछ नहीं हो सकता। शुक्र कीजिए देश के बाशिंदे आज भी जय जवान-जय किसान बोलते हैं ओर बोलते रहेंगे। हमें अपने किसानों पर गर्व है।

23.7.13

सच बोलना है पर घेरे के अन्दर

सच बोलना है पर घेरे के अन्दर 

जब एक बच्चे को अध्यापक बनाया तो बच्चा अध्यापक का स्वांग रच कर क्लास में
आया और बोला-अब मैं मास्टर बन चूका हूँ इसलिए मैं जो कहूँ उसे ध्यान से सुनो -
आज तक मेरे से पीछे वालों ने एक काम नहीं किया ,क्या आपको मालुम है ?

बच्चे बोले -नहीं मालुम।

मास्टर बोला-आज तक देश के सामने किसी ने सच नहीं बोला  ………………

बच्चों ने जम कर तालियाँ बजाई तो मास्टरजी बोले -..............लेकिन अब सच बोलना
है।

बच्चे मायूस हो गए। उनमे से एक बोला- सर ,किसी ने हेराफेरी पर बात की तो सही
नाम उगल दूँ ?

दूसरा बच्चा बोला-कोई पिछली चोरी पर बात करे तो क्या सही सही बयान कर दूँ ?

तीसरा बोला- कोई घोटाले की रकम किसके पास है पूछे तो बता दूँ ?

चौथा बोला- आज तक के फर्जीवाड़े का ढोल पीट दूँ ?

पाँचवा बोला - क्या रिश्ते नाते के झूठ भी उघाड़ कर रख दूँ ?

मास्टरजी बोले -……चुप ! सच बोलना है पर घेरे के अन्दर रहकर।

बच्चे बोले -मतलब ?

मास्टरजी ने समझाया - तुम्हारे से कोई अपराध हो गया तो घेरे में आकर सच
बता देना ताकि उसका तोड़ ढूंढ़ लिया जाए अगर घेरे में झूठ बोला तो झूठा
कहलाओगे। समझ गए

बच्चे बोले -हाँ जी।

मास्टर जी ने आज की क्लास शांतिपूर्वक खत्म कर दी।     

सावन में डाक से घर बैठे पायें काशी विश्वनाथ और महाकाल का प्रसाद - कृष्ण कुमार यादव, निदेशक डाक सेवाएँ


सावन के मौसम में शिव की आराधना के लिए तमाम तैयारियां हो रही हैं. कहीं उनका दरबार सज रहा है तो कहीं आनलाइन आरती का प्रबंध किया जा रहा है. पर अब देश के किसी भी कोने में बैठे शिवभक्त काशी विश्वनाथ मंदिर, बनारस और महाकालेश्वर मंदिर, उज्जैन का प्रसाद भी घर बैठे ग्रहण कर सकेंगें. डाक विभाग यह सौगात लेकर आया है.

यह जानकारी देते हुए इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएँ कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि डाक विभाग और काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट के बीच हुए एक एग्रीमेण्ट के तहत काशी विश्वनाथ मंदिर का प्रसाद डाक द्वारा भी लोगों को उपलब्ध कराया जा रहा है। इसके तहत साठ रूपये का मनीआर्डर प्रवर डाक अधीक्षक, बनारस (पूर्वी) के नाम भेजना होता है और बदले में वहाँ से काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट के सौजन्य से मंदिर की भभूति, रूद्राक्ष, भगवान शिव की लेमिनेटेड फोटो और शिव चालीसा प्रेषक के पास प्रसाद रूप में भेज दिया जाता है।

निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि काशी विश्वनाथ मंदिर के अलावा उज्जैन के प्रसिद्ध श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर का प्रसाद भी डाक द्वारा मंगाया जा सकता है। इसके लिए प्रशासक, श्री महाकालेश्वर मंदिर प्रबन्धन कमेटी, उज्जैन को 151 रूपये का मनीआर्डर करना पड़ेगा और इसके बदले में वहाँ से स्पीड पोस्ट द्वारा प्रसाद भेज दिया जाता है। इस प्रसाद में 200 ग्राम ड्राई फ्रूट, 200 ग्राम लड्डू, भभूति और भगवान श्री महाकालेश्वर जी का चित्र शामिल है। निदेशक श्री यादव ने बताया कि इस प्रसाद को प्रेषक के पास एक वाटर प्रूफ लिफाफे में स्पीड पोस्ट द्वारा भेजा जाता है, ताकि पारगमन में यह सुरक्षित और शुद्ध बना रहे। 


22.7.13

सफलता और इच्छाशक्ति

सफलता और इच्छाशक्ति 

इस विश्व में अरबों लोग निवास करते हैं उनमें कुछ सफल कुछ संघर्षरत और बड़ी संख्या
में असफल लोग जीवन जीते हैं,प्रश्न यह उठता है कि बड़ी संख्या में लोग असफल जीवन
क्यों जीते हैं ?क्या उनका जन्म असफल बनकर व्यतीत करने हेतु हुआ है या फिर वे लोग
सफल होना नहीं चाहते ? कौन ऐसा व्यक्ति है जो सफल जीवन जीना नहीं चाहता,कोई भी
नहीं।तो फिर असफल होने का कारण क्या ?हमारे अन्दर द्रढ़ इच्छा का अभाव।

               सफलता की इच्छा और सफलता के लिए दृढ इच्छाशक्ति में गहरा अंतर है।
एक मशीन को चलाने के लिए मोटर उचित हॉर्स पावर की होनी आवश्यक है यदि मशीन
की आवश्यकता से कम HP की मोटर है तो मशीन काम नहीं कर पाएगी।ठीक इसी तरह
हर काम को सफलता से पूरा करने के लिए उचित इच्छा शक्ति का होना बहुत जरुरी है।

           सामान्य इच्छा और दृढ इच्छाशक्ति  

यदि कोई परीक्षार्थी इस आशय से परीक्षा की तैयारी करता है कि मुझे तो उत्तीर्ण होना है
तो उसके साथ अनुत्तीर्ण होने की सम्भावना भी जुड़ जाती है क्योंकि उत्तीर्ण होने के लियॆ
मानक अंक 36 % ही है और इस कारण उसकी तैयारी भी बहुत सीमित है।कम तैयारी
अपूर्णता का परिचायक है इसलिए असफलता की सम्भावना भी प्रबल हो जाती है।दृढ
इच्छा शक्ति वाला परीक्षार्थी परीक्षा की तैयारी अधिक से अधिक अंक अर्जित करने के
दृष्टिकोण से करता है इसलिए उसमे असफल होने की गुंजाइश नहीं रहती है।

             हारा हुआ मन ,अधुरा मन और आत्मविश्वास से लबालब मन ये तीन स्थितियाँ
हम सबके पास हर समय विद्यमान होती है,यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम किसी
काम की शरुआत किस मन के साथ करते हैं।हारा हुआ मन यह दिखाता है कि हम जिस काम
को करने जा रहे हैं उस काम के प्रति हम निषेधात्मक विचार रखते हैं और उस काम को करने
की तत्परता और तैयारी भी नहीं कर रखी है।किसी काम को करने से पहले ही हम सोच ले कि
इसमें सफलता नहीं मिलेगी तो उस काम के प्रति हमारी रूचि और श्रद्धा खत्म हो जाती है और
परिणाम भी हमने जो सोचा है वह तुरंत मिल जाता है
       
       अधुरे मन की स्थिति हमे संशय में डाले रहती है।काम को करने से पहले यदि हम
अनिश्चय में रहते हैं और सफलता के बारे में शंकित रहते हैं तो परिणाम भी कभी संतोष
जनक नहीं मिलते।इस स्थिति में मन नाना प्रकार के विकल्पों में उलझा रहता है इससे
एकाग्रता प्रभावित होती है ,परिणाम स्वरूप हम जीवन में संघर्षरत जीवन जीते हैं।

        आत्मविश्वास से भरा मन यह दर्शाता है कि हम हर काम को चुनौती के रूप में स्वीकार
करते हैं और उसे हर हाल में पूरा करना ही है इसी लक्ष्य को ध्यान में लेकर उस काम को
कैसे पूरा करना है ,के सूक्ष्म विश्लेष्ण में लग जाते हैं।किसी भी काम को करने से पहले
हम पूरी तैयारी कर लेते हैं तो हमारे मन में उत्साह और विश्वास का संचार लगातार होता
रहता है और हम बड़ी बाधाओं को भी पार कर जाते हैं

इच्छाशक्ति की उत्पत्ति कैसे होती है        

   स्वामी विवेकानंद कहते हैं "मनुष्य की यह इच्छा शक्ति चरित्र से उत्पन्न होती है और
वह चरित्र कर्मों से गठित होता है।अतएव,जैसा कर्म होता है इच्छाशक्ति की अभिव्यक्ति
भी वैसी ही होती है"

अगर हमारे कर्म दिव्य है तो हमारा चरित्र भी दिव्य होगा और चरित्र दिव्य है तो इच्छाशक्ति
भी दृढ होगी।अगर हमारी महत्वाकांक्षा बड़ी है तो उसे पूरा करने के लिए दृढ इच्छा शक्ति की
जरुरत पड़ेगी क्योंकि बड़े लक्ष्य को पाने के लिए जो रास्ता है उसमे बहुत सी बाधाएं और
विपदाएं निश्चित रूप से होती हैं इन बाधाओं और विपदाओं से लम्बे समय तक मुकाबला
करना है इसलिए दृढ इच्छाशक्ति जरुरी है।हर असफलता हमे अपने लक्ष्य के करीब ले जाती
है।बार -बार आने वाली विपदा यह इंगित करती है की इस रस्ते पर आगे बढ़ते रहे यही वो
रास्ता है जो लक्ष्य तक ले जाएगा। विपदाओं के बाद भी हमारा होसला ,उत्साह और जीवट
बना रहे इसलिए दिव्य इच्छाशक्ति का होना जरुरी है।  
                

वो आँखें !!

 वो आँखें !!


21.7.13

संचार के सिद्धांत: संचार प्रक्रिया (Communication Process)

संचार के सिद्धांत: संचार प्रक्रिया (Communication Process):      ¥æçη¤æÜ ×ð´ ¥æÁ ·¤è ÌÚUãU â´¿æÚU ×æŠØ× ÙãUè´ ÍðÐ §â·ð¤ ÕæßÁêΠ ×æÙß â´¿æÚU ·¤ÚUÌæ ÍæÐ ßÌü×æÙ Øé» ×ð´ â´¿æÚU ×æŠØ×æð´ ·¤è çßçߊæÌæ ·...

सारा शहर गवाह मेरी खुदकुशी का है

पहचान है सदियों की, मगर अजनबी सा है,
उसका हरेक दांव, तेरी दोस्ती सा है।
कातिल ने मुझे कत्ल किया अब के इस तरह,
सारा शहर गवाह मेरी खुदकुशी का है।।

मैं तोड़ तो दूं रस्म, मगर टूटती नहीं,
दुनिया में मेरा दिल अभी सौ फीसदी का है। 

भटकूंगा भला कब तक बेगाने से शहर में, 
ये घर किसी का है, तो वो छप्पर किसी का है। 

मां बाप की परवाह न जमाने का कोई खौफ
लगने लगा है देश ये 21वीं सदी का है।

पाकिस्तान से ’भागा था मिल्खा’ और वहीं से मिला ’फ्लाईंग सिख’ का खिताब !

भारत पाकिस्तान के बटवारे के दंश को दोनों मुल्कों के इतिहास, साहित्य, लोकगीतों और अब फिल्मों के माध्यम से संजो कर रखा जाता रहा है । जहाँ आक्रमण, बार्डर और लक्ष्य जैसी फिल्में सीधे तौर पर दोनों मुल्कों की सेनाओं के टकराव को दिखाती हैं वहीं अब फिल्मों की एक जमात ने उस टकराव को खेल के मैदानों तक ला खड़ा किया हैं ।

’चक दे इण्डिया’ में भारत के एक मुसलमान हाकी खिलाड़ी के पाकिस्तान के खिलाड़ी से मैच के बाद हाथ मिलाने पर देश-द्रोही करार दिया जाना दिखाया । इस खिलाड़ी का कैरियर लगभग तबाह हो गया था । जिसे फिर से महिलाओं की हाकी टीम के कोच के रूप में आने के लिये काफी मशक्क्त करनी पड़ी । और जब तक महिलाओं के हाकी का विश्व खिताब जीत नहीं लिया उसका "गद्दार" का तमगा हटा नहीं ।

फिल्म में मिल्खा की जो कहानी दिखायी गयी उससे मालूम हुआ कि उनको ’फ्लाईंग सिख’ का खिताब पाकिस्तान के तत्कालीन सैन्य शासक ने दिया था । किसी भी कामयाबी के लिये कड़ी मेहनत, लगन और जज्बे की जरूरत के महत्व को यह फिल्म रेखांकित करती है ।

गुरू, उस्ताद और मौलवी के महातम को भी बखूबी दिखाया गया है । पर एक बात जो दिल को छू गयी वह थी कि सिर्फ ’एक मग दूध और दो कच्चे अण्डों’ पर अंतराष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ी तैयार किये जा रहे थे  ।  सोनम कपूर की अदाकारी में दिल्ली 6 वाला खिलंदड़ी अन्दाज बरकरार दिखा । फरहान अख्तर एथलीट कम और बाडी बिल्डर टाइप ज्यादा लगे ।

पाकिस्तान से विभाजन के वक्त जान बचा कर ’भागने’ पर मिल्खा के उपर चुभने वाली टिप्पणी पाकिस्तान के कोच ने की ।  निश्च्य ही फिल्म के कुछ भाग को हटाकर इसे कुछ छोटा किया जा सकता था ।  यह भी एक पीरीयड फिल्म है और कुछ glitches रह जातें है ।  चूंकि मिल्खा सिंह आज भी स्वयं जीवित हैं इसलिये यह माना जा सकता है कि उनके ऊपर बनीं फिल्म "भाग मिल्खा भाग" पर उनकी स्वीकृति भी है । 

और हाँ भविष्य में मैं एक फिल्म भारत - पाकिस्तान के क्रिकेट वर्ल्ड कप फाईनल पर भी देखना चाहूँगा ।  कोई फिल्म अगर आई-पी-एल आदि में मैच फिक्सिंग पर भी बने तो क्या कहना । मधुर भण्डारकर खेमें से हो तो बेहतर ।

20.7.13

वर्ल्ड कप फेम पूनम पांड-ब्रज की दुनिया

मित्रों,क्या आप बहुत बड़ी खिलाड़ी पूनम पांडे को जानते हैं? अगर नहीं जानते तो जान लीजिए। वे ऐसी-वैसी खिलाड़ी नहीं हैं बल्कि विश्व कप विजेता खिलाड़ी हैं। मैंने तो आज भी अखबार में पढ़ा है। क्या कहा मेरा ही सामान्य ज्ञान कमजोर है और उन्होंने कभी कोई वर्ल्ड कप नहीं जीता। परंतु ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई बिना वर्ल्ड कप जीते ही वर्ल्ड कप फेम हो जाए या कहलाने लगे? क्या कहा उन्होंने वर्ल्ड कप नहीं जीता था बल्कि वर्ल्ड कप के समय अपने नंग-धड़ंग होने के वादे को पूरा किया था। अरे भाई तो इसमें कौन-सी बड़ी बात है,हम्माम में तो सभी नंगे होते ही हैं? क्या कहा वे कैमरे के आगे पूरी तरह से नंगी हो गई थीं और फिर बाद में वीडियो को सार्वजनिक भी कर दिया था। लीजिए मैं तो उनको कुछ और ही समझ रहा था वो क्या कहते हैं कि खिलाड़ी। अब समझा कि वे खिलाड़ी हैं ही नहीं बल्कि उन्होंने तो जमाने के सामने नंगा होने का वर्ल्ड कप जीता है। वैसे मैंने कई बार सड़कों पर विक्षिप्त पुरूष-महिलाओं को नंगे घूमते देखा है तो कहीं यह पूनम पांडे भी पागल तो नहीं है? अरे तू समझता क्यों नहीं है भाऊ पूनम पांडे पागल नहीं है वो तो दूसरों को पागल बनाती है रे।
                   मित्रों,वास्तव में यह अश्लील सत्य है कि इस समय पूरी दुनिया में अश्लीलता और नंगेपन का विश्व कप चल रहा है। आदमी खुद तो नंगा हो ही रहा है उसने प्रकृति को भी नंगा करके रख दिया है जंगल काटकर। लेकिन यहाँ हम आदमी और उसकी आत्मा के नंगेपन तक ही सीमित रहेंगे वरना बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी। पहले भारत इस विश्वकप से बाहर था लेकिन अब संचार-क्रांति और अपसंस्कृतिकरण की कृपा के चलते वो भी इस महाआयोजन में शामिल ही नहीं हो गया है वरन् धूम मचा रहा है। कहिए तो सभी पूर्व खिताब विजेता क्लिंटनों और बर्लस्कोनियों को प्रतियोगिता से बाहर ही कर दिया है। अब इस विश्वकप का मतलब ही अखिल भारतीय कप रह गया है। क्या बूढ़े,क्या जवान और क्या किशोर हर कोई हर किसी से बाजी मार लेना चाहता है। जहाँ पहले नंगा शव्द गालियों में शुमार होता था अब उसने बदलते युगधर्म में पर्याप्त प्रतिष्ठा अर्जित कर ली है। बाजारवाद का जमाना जो ठहरा। पहले कहावत थी कि हम्माम में सभी नंगे हैं अब गर्व से हम कह सकते हैं कि बाजार में सभी नंगे हैं क्योंकि बाजार में तो सिर्फ पैसा बोलता है न भाई। पैसा है तो अनैतिकता भी नैतिकता है वरना नैतिकता भी अनैतिकता।
                                        मित्रों,अभी-अभी दो-तीन दिन पहले ही दिल्ली से सटे गुड़गाँव में लगभग 100 होनहार किशोरों को सेक्स एंड पार्टी का आनंद लेते गिरफ्तार किया गया। आप खुद ही अनुमान लगा सकते हैं कि हमारा समाज किस तरह एकदम सही दिशा में अग्रसर हो गया है। अभी दो-तीन दिन पहले ही राजस्थान से एक बेहद शोचनीय मामला सामने आया। एक पिता ने अपनी 5 बेटियों के साथ कई महीने तक बलात्कार किया,उनको जबर्दस्ती ब्लू फिल्म दिखाया और परिणामस्वरूप कई-कई बार गर्भपात भी करवाया। तो क्या भविष्य में हमारी बेटियाँ अपने घरों में भी सुरक्षित नहीं रह जाएंगी? परंतु हमारी बेटियाँ तो वे भी हैं जो पूनम पांडे,सन्नी लियोन की तरह इस विश्वकप में खुद ही कपड़ों को तिलांजली देकर शामिल हो गई हैं और समाज तो दिक्भ्रमित कर रही हैं।
                          मित्रों,इसी बीच सर से पाँव तक और उससे भी कहीं ज्यादा आत्मा तक नंगी केंद्र सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट को साफ-साफ शब्दों में बता दिया है कि वो अच्छे कहलानेवाले सरकार-विरोधी हजारों वेबसाइटों को तो जब चाहे तब बैन कर सकती है लेकिन अश्लील वेबसाइटों को कतई नहीं क्योंकि उसके मतानुसार ये वेबसाइटें हजारों सदियों से असभ्य रहे भारत का संस्कृतिकरण कर रहीं हैं। आजादी से पहले जहाँ ऐसा करना अंग्रेजों के लिए ह्वाईट मेन्स बर्डेन था अब इटली से अवतरित सोनिया गाँधी के लिए भारी बोझ बन गया है।
                         मित्रों,समझ में नहीं आता कि नंगई का वर्ल्ड कप किसे प्रदान किया जाए? जहाँ ओलंपिक में हमारे देश को पदकों के लाले पड़ जाते हैं यहाँ तो एक-से-एक प्रतियोगी मौजूद हैं। हमारे नेताओं को जिन्होंने घोटाला करने और जनता को धोखा देने में,झूठ बोलने और बरगलाने में और साथ-साथ कैमरे की उपस्थिति या अनुपस्थिति में नंगा होने में विश्व ही नहीं,ब्रह्माण्ड रिकार्ड बनाया हुआ है? या फिर अपने यहाँ के अधिकारियों को दे दिया जाए जिन्होंने संवेदनहीनता और घूस-कमीशनखोरी में पत्थरों और पशुओं तक को मीलों पीछे छोड़ दिया है। या फिर उन न्यायाधीशों को जो पैसे या लड़की लेकर न्याय के बदले अन्याय करते हैं। या फिर आम जनता को जिसने 16 दिसंबर जैसे कई महाक्रूर घटनाओं को अंजाम दिया है और जिनके मन-मस्तिष्क पर पूरी और बुरी तरह से अश्लीलता के वाईरस का कब्जा हो गया है,जिन्होंने देशभक्ति समेत समस्त नैतिक मूल्यों की एक बार में ही सामूहिक अंत्येष्टि कर दी है और अवशेषों को उपभोक्तावाद और बाजारवाद के गंदे गटर में ससम्मान प्रवाहित कर दिया है।
                              मित्रों,नंगई के विश्वकप के लिए नामांकन सालोंभर चलता रहता है। बहुत मारामारी है यहाँ। लालू, नीतीश, मुलायम, सोनिया, चांडी, राहुल, राघवजी, सन्नी लियोन, शरद पवार,पूनम पांडे आदि ने तो अपना नाम दर्ज करवा भी लिया है। आपने अपना नामांकन करवाया या नहीं? नहीं?? तो जल्दी करवाईए,आजकल नंगई बेस्ट कैरियर ऑप्शन बन गया है। जमकर पैसा बनाईए और अगर महेश भट्ट ने चाहा तो आपको फिल्मों में भी मौका मिल सकता है। अंदरखाने की एक बात बताऊँ आपको। आप पहले वादा करिए कि आप भी मेरी तरह किसी की नहीं बताएंगे-महेश भट्ट ने अपनी अगली अनाम फिल्म के लिए राघवजी और अभिषेक मनु सिंघवी को साईन कर भी लिया है। अब तो आप समझ ही गए होंगे कि इस दुनिया और भारत के सबसे तेजी से उभरते सुनहरे क्षेत्र में कितनी मारामारी है। जल्दी करिए,जल्दी भरिए मित्रों,नहीं तो आप कप की रेस में काफी पीछे छूट जाएंगे/जाएंगी और तब कितना भी नंगा होने के बाद भी आपके पास सिर्फ एक ही विकल्प बचेगा खुद को कोंसने का और हाथ मलने का।

पगथिया: धर्मनिरपेक्षता से साक्षात्कार .............

पगथिया: धर्मनिरपेक्षता से साक्षात्कार .............:  समय - आप कौन हैं ?
 मैं धर्मनिरपेक्षता हूँ मगर मेरा जन्म कब हुआ मैं इस बारे में कुछ नहीं जानत...

18.7.13

galee galee gaddaar

रोना अपने देश का  यारों है बेकार ,
नज़र  आ रहे आजकल गली गली गद्दार .
गली गली गद्दार भ्रष्ट  नेता अधिकारी ,
जनता चोर चुहाड़ जात पर मोहर मारी .
यह हम सब का काम चलो सबको समझायें
जात नहीं सद्गुण पर अब सरकार बनाएँ  .
 

डाकघरों से आज से मिलेंगे उत्तर प्रदेश पुलिस भर्ती फार्म

पुलिस भर्ती के आवेदन फार्म 18 जुलाई, 2013 से चयनित डाकघरों में मिलने शुरू हो जायेंगे। इस संबंध में जानकारी देते हुए इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएं श्री कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि उत्तर प्रदेश के 169 डाकघरों से फार्म मिलेंगे, जिनमें इलाहाबाद परिक्षेत्र के 24 डाकघर शामिल हैं। यह फार्म 18 जुलाई से 20 अगस्त, 2013 तक बिक्री किये जायेंगे।

इस संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुए निदेशक डाक सेवाएं श्री कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि डाकघरों के द्वारा दो अलग-अलग तरह के फार्म बिक्री किये जायंेगे। प्रथम प्रकार के आवेदन-पत्र (खाकी रंग का लिफाफा) ऐसे अभ्यर्थियों को निःशुल्क वितरित किये जाएंगे जिन्होंने उ0प्र0 पुलिस भर्ती परीक्षा-2011 के लिए उस समय आवेदन किया था तथा दूसरे प्रकार के आवेदन-पत्र (सफेद रंग का लिफाफा) अन्य अभ्यर्थियों को रू 200/- शुल्क लेकर वितरित किये जायेंगे। श्री यादव ने यह भी कहा कि निःशुल्क आवेदन पत्र को प्राप्त करने हेतु आवेदक को एक अनुरोध-पत्र व घोषणा पत्र भी देना होगा, जिसका प्रारूप डाकघरों में नोटिस बोर्ड पर चस्पा कर दिया गया है। निशुल्क दिये जाने वाले खाकी रंग के लिफाफे के अन्दर नारंगी रंग का ओएमआर आवेदन पत्र होगा व खाकी रंग का वापसी लिफाफा होगा, जबकि सशुल्क आवेदन पत्र का लिफाफा सफेद रंग का होगा और लिफाफे के अन्दर ओएमआर आवेदन पत्र का रंग मजेन्टा होगा व वापसी लिफाफे का रंग सफेद होगा। 

डाक निदेशक श्री यादव ने बताया कि संबंधित काउंटर सहायक द्वारा फार्म के सेट के साथ पावती पर्ची की 2 प्रतियाँ डाकघर के नाम व तारीख की मोहर लगाकर अभ्यर्थी को दी जायंेगी, जिसका उपयोग फार्म को वापस करते समय अभ्यर्थी द्वारा किया जायेगा। फार्म भरकर उसी डाकघर में वापस किया जायेगा जहाँ से वह खरीदा गया है। किसी भी स्थिति में दूसरे डाकघर द्वारा फार्म स्वीकार नहीं किया जायेगा। एक अभ्यर्थी को केवल एक ही फार्म दिया जायेगा।

निदेशक डाक सेवाएं श्री कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि फार्मों की बिक्री हेतु व्यापक प्रबन्ध किये गये हैं एवं सशुल्क व निशुल्क आवेदनों हेतु अलग-अलग काउंटर चलाये जायेंगे।  उन्होंने कहा कि वाराणसी के वाराणसी प्रधान डाकघर, वारणसी कैंट प्र0 डा0, बी एच यू उपडाकघर, संत रविदास नगर के भदोही मुख्य डाकघर, ज्ञानपुर उपडाकघर, चन्दौली मुख्य डाकघर, मिर्जापुर के मिर्जापुर प्रधान डाकघर, चुनार उपडाकघर, राबर्ट्सगंज उपडाकघर, शक्तिनगर उपडाकघर, गाजीपुर के गाजीपुर प्रधान डाकघर, मोहम्मदाबाद युसुफपुर उपडाकघर, सैदपुर उपडाकघर व जौनपुर के जौनपुर प्रधान डाकघर व मडि़याहूं मुख्य डाकघर के माध्यम से फार्मों की बिक्री की जायेगी। डाकघरों से पुलिस भर्ती फार्म के सुचारू वितरण एवं सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए आवश्यक पुलिस बल की तैनाती हेतु भी पुलिस अधिकारियों को लिखा गया है।








मिडडेमिल बना मौत की थाली-ब्रज की दुनिया

मित्रों,कल की ही तो बात है। घड़ी में दोपहर के एक बज रहे थे। धर्मासती प्राथमिक विद्यालय,जिला-सारण (बिहार) की घंटी घनघना उठी। बच्चे शोर मचाते हुए पंक्तिबद्ध होकर बैठ गए। मिडडेमिल योजनान्तर्गत चावल,दाल और सब्जी परोसी जाने लगी। न जाने क्यों आज सब्जी कुछ ज्यादा ही तीखी और अलग स्वादवाली थी। रसोईया मंजू को विश्वास नहीं हुआ तो उसने भी चखकर देखा। एक पंक्ति उठी और अभी दूसरी पंक्ति को भोजन परोसा भी नहीं गया था कि भोजन कर चुके बच्चों के पेट में भयंकर दर्द होने लगा। कुछ तो तत्काल ही बेहोश भी हो गए। पूरे गाँव में कोहराम मच गया। दो बच्चों ने चंद मिनटों में वहीं पर देखते-ही-देखते दम तोड़ दिया। बाँकियों को मशरख के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र ले जाया गया और कुछ बच्चों को मशरख के ही निजी अस्पतालों में भर्ती कराया गया। परंतु वहाँ न तो सुविधाएँ ही थीं और न तो डॉक्टर कुछ समझ ही पा रहे थे। तब तक 5 अन्य बच्चे दुनिया को अलविदा कह चुके थे। शाम के 6 बजे जीवित बचे 40 बच्चों को मशरख से हटाकर छपरा,सदर अस्पताल में भर्ती करवा दिया गया लेकिन वहाँ की तस्वीर भी कोई अलग नहीं थी। वहाँ न तो कोई डॉक्टर ही उपस्थित था और न तो जहर काटने की दवा ही उपलब्ध थी,ऑक्सीजन का तो सवाल ही नहीं उठता। सूर्यास्त तक अस्पताल में मौत तांडव करने लगा और 9 अन्य बच्चों ने भी दम तोड़ दिया। रात के नौ बजे स्थिति बिगड़ती देख जिंदा बचे 30 बच्चों को पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल भेज दिया गया जहाँ वे करीब 12 बजे पहुँचे। तब तक रास्ते में भी 4 बच्चों की साँसें थम चुकी थीं। बाद में पीएमसीएच में भी 7 बच्चों ने दम तोड़ दिया। लाशों की गिनती 27 मौतों के बाद भी अभी थमी नहीं है और कई बच्चों की हालत गंभीर बनी हुई है। दुर्भाग्यवश रसोईया मंजू देवी ने भी चूँकि उस भोजन को चखकर देखा था इसलिए वे भी पीएमसीएच में दाखिल हैं लेकिन उसके भी दो बच्चे इस घटना में काल-कवलित हो गए हैं। कल ही राज्य सरकार ने मामले की जाँच के लिए कमिश्नर और आईजी की जाँच कमिटी बना दी थी जो अब तक भी गाँव नहीं पहुँची है। अलबत्ता सुबह-सुबह पुलिस जरूर गाँव में आई थी और लोगों के सख्त विरोध के बाबजूद बर्तन और तैयार भोजन समेत सारे प्रमाण अपने साथ ले गई। इस बीच बिहार के शिक्षा मंत्री ने एक प्रेस वार्ता में कहा है कि उनका पुलिसिया जाँच में विश्वास नहीं है क्योंकि वे मानते हैं कि पुलिस पक्षपाती होकर काम करती है। इस मामले की जाँच से तो सरकार ने पुलिस को अलग कर दिया लेकिन उन बाँकी हजारों मामलों का क्या जिनका अनुसंधान बिहार पुलिस कर रही है?
                                 मित्रों,इतनी बड़ी संख्या में इन नौनिहालों की मौत के लिए जिम्मेदार कौन है? केंद्र
सरकार ने तो योजना बना दी,आवंटन भी कर दिया लेकिन उसे सही तरीके से लागू कौन करवाएगा? क्यों एफसीआई के गोदाम से ही 50 किलो की बोरी में 45 किलो अनाज होता है? फिर कैसे स्कूल तक पहुँचते-पहुँचते रास्ते में ही बोरी का वजन घटकर 30-35 किलो हो जाता है? क्यों स्कूलों के शिक्षक पढ़ाना छोड़कर दिन-रात मिडडेमिल योजना में से पैसे बनाने और आपस में बाँटने की जुगत में लगे रहते हैं? क्यों मिडडेमिल प्रभारी अधिकारियों को सड़े और फफूंद लगे चावल-दाल नजर नहीं आते? कल धर्मासती में भोजन में जहर कहाँ से आ गया? जाहिर है कि रसोईये न तो नहीं मिलाया क्योंकि अगर वो ऐसा करती तो न तो उसको खुद खाती और न ही अपने दोनों बच्चों को ही खिलाती। अगर सरसों तेल जहरीला था तो कैसे और क्यों जहरीला था? चूँकि खाद्य-सामग्री प्रधानाध्यापिका के पति की दुकान से खरीदी जाती थी जो राजद का दबंग नेता भी है इसलिए हो सकता है कि उसने राजनैतिक फायदे के लिए जानबूझकर सरसो तेल में जहर मिला दिया हो या गलती से वहीं पर तेल जहर के संसर्ग में आ गया हो। हो तो यह भी सकता है कि प्रधानाध्यापिका के दरवाजे पर ही तेल में जहर मिल गया हो क्योंकि वहाँ खाद्य-सामग्री के साथ-साथ कीटनाशक और रासायनिक खाद भी रखा हुआ था। अगर यह मान भी लिया जाए कि इस घटना के पीछे कोई राजनैतिक साजिश थी तो भी प्रधानाध्यापिका तो सरकारी अधिकारी थीं उन पर निगरानी रखना तो सरकार का काम था। इतना ही नहीं इस योजना की निगरानी के लिए राज्य में अधिकारियों व स्थानीय निकाय के जनप्रतिनिधियों की एक लंबी फौज मौजूद है फिर राज्यभर में बराबर इस तरह की घटनाएँ कैसे घटती रहती हैं,क्या सुशासन बाबू जवाब देंगे? बाद में जब सहारा,बिहार संवाददाता पंकज प्रधानाध्यापिका मीना देवी यादव जिनके पति अर्जुन यादव इलाके के जानेमाने राजद नेता भी हैं के दरवाजे पर पहुँचे तो पाया कि एक टोकरी में आलू रखा हुआ है था जो पूरी तरह से सड़ चुका था और जानवरों के खाने के लायक भी नहीं था। प्रश्न तो यह भी उठता है कि उक्त स्कूल में पिछले 3 सालों से भोजन की देखभाल करनेवाली समिति भी भंग है और संबद्ध अधिकारी कान पर ढेला डाले हुए हैं।
                        मित्रों,क्या उन बच्चों को गाँव से सरकारी हेलिकॉप्टर भेजकर सीधे पटना नहीं लाया जा सकता था। क्या सरकारी हेलिकॉप्टर सिर्फ मुख्यमंत्री की जागीर होती है? अगर नहीं तो फिर ऐसा क्यों नहीं किया गया? स्वास्थ्य मंत्रालय तो इस समय मुख्यमंत्री के पास ही है फिर सरकारी अस्पतालों में इंतजाम की इतनी भारी कमी क्यों है और अव्यवस्था और गैरजिम्मेदारी का माहौल क्यों है? क्यों अभी तक मुख्यमंत्री ने अभी तक पीएमसीएच,सदर अस्पताल,छपरा या धर्मासती गाँव का दौरा नहीं किया? वे जब पैर में फ्रैक्चर होने बाबजूद सांस्कृतिक कार्यक्रम को देखने जा सकते हैं तो प्रभावित गाँव क्यों नहीं जा सकते हैं? कहीं भी पुलिस फायरिंग में लोग मारे जाएँ या नरसंहार में या किसी दुर्घटना में क्यों मुख्यमंत्री लोगों को सांत्वना देने नहीं जाते? क्या उनको राज्य की जनता की कोई चिंता भी है? क्या उनको आनन-फानन में मुआवजा और जाँच समिति की घोषणा करने के बदले बचे हुए बीमार बच्चों को जल्दी-से-जल्दी पीएमसीएच लाने का इंतजाम नहीं करना चाहिए था? क्या दो-दो लाख रूपए प्रति मृतक बाँट देने से मरे हुए बच्चे जीवित हो जाएंगे?
                                           मित्रों,अभी पूरे गाँव में शोक का माहौल है। किसी-किसी परिवार ने तो एकसाथ अपने 5-5 नौनिहाल खोए हैं। पूरे गाँव में किसी भी घर में चूल्हा नहीं जल रहा है। कल तक जहाँ किलकारियाँ गूँजा करती थीं आज चीत्कारें आसमान का भी सीना चीर दे रही हैं। कल तक स्कूल के सामने स्थित जिस तालाब किनारे के जिस मैदान में बच्चे कबड्डी खेला करते थे आज उसी मैदान में वे 27 बच्चे सोये हुए हैं,गीली और नम मिट्टी की चादर ओढ़कर। गाँववाले अभी भी उसी मैदान में जमा हैं,हाथों में कुदाल लिए इंतजार में कि न जाने अगली बारी किसके बच्चे की हो और न तो इस समय 18 मंत्रालय संभाल रहे सुशासन बाबू का ही कहीं पता है और न तो जिले के जिलाधिकारी का ही। उत्तराखंड की ही तरह बिहार में भी पूरा-का-पूरा तंत्र लापता हो गया लगता है। दिल्ली में योजनाएँ बनाईं जाती हैं जनता का कुपोषण दूर करने के लिए और लागू करने में व्याप्त भ्रष्टाचार और लापरवाही उसे जानलेवा बना देती है। क्या केंद्र सरकार द्वारा योजना बना देने से ही और राशि का आवंटन कर देने से उसके कर्त्तव्यों की इतिश्री हो जाती है? अगर राज्य सरकारें उनको ठीक तरह से लागू नहीं करे तो उन्हें इसके लिए कौन बाध्य करेगा?
                                       मित्रों,क्या कभी बिहार के हालात को बदला जा सकेगा? मिश्र गए,लालू भी गए और अब नीतीश भी चले जाएंगे लेकिन क्या कभी भ्रष्टाचार राज्य से जाएगा? क्या कभी तंत्र की लोक के प्रति संवेदनहीनता समाप्त होगी? या फिर गरीबों को पढ़ाई की आस ही छोड़ देनी होगी? निजी विद्यालयों की मोटी फीस तो वे भरने से रहे,बच्चों के खाली पेट को भर सकना भी जानलेवा महँगाई ने असंभव बना दिया है तभी तो वे मुफ्त की शिक्षा और भोजन के लालच में बच्चों को सरकारी स्कूल भेजते हैं। अगर बार-बार इसी तरह मिडडेमिल जान लेता रहा तो क्या वे बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेजने का जोखिम उठाएंगे? क्या वे अपने बच्चों की पढ़ाई छुड़वाकर उनको मजदूरी में नहीं लगा देंगे यह सोंचकर कि जिएगा तो बकरी चराकर भी पेट भर लेगा?
                                       मित्रों,एक बात और! मैं हमेशा से इस तरह की भिक्षुक-योजनाओं के खिलाफ रहा हूँ जिनका वास्तविक उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ अपने वोट-बैंक को बढ़ाना है। देना है तो सरकार बच्चों के माता-पिता को योग्यतानुसार काम दे मिडडेमिल का घटिया भोजन खाकर और घटिया शिक्षा पाकर सरकारी स्कूलों से पास होनेवाले विद्यार्थी भविष्य में करेंगे भी तो क्या करेंगे? कैसा होगा उनका भविष्य? मेरा यह भी मानना रहा है कि शिक्षकों को शिक्षा के अलावा और किसी भी काम में नहीं लगाना चाहिए। शिक्षक पढ़ाए या भोजन बनवाए और उसकी गुणवत्ता जाँचे? इस बीच बिहार के मधुबनी में भी 15 बच्चे मिडडेमिल खाकर बेहोश हो गए हैं। इतना ही नहीं पूरे उत्तर भारत पश्चिम बंगाल से राजस्थान तक से मिडडेमिल की हालत खराब होने के समाचार लगातार हमें मिलते रहते हैं। गुजरात ने जरूर भोजन का शिक्षक द्वारा चखना अनिवार्य किया हुआ है और इस आदेश का अनुपालन भी होता है। जिस तरह कि पूरे उत्तर भारत में इस योजना में अफरातफरी और भ्रष्टाचार व्याप्त है उससे तो यही लगता है कि अच्छा होता कि बच्चों को बिस्कुट वगैरह डिब्बाबंद पौष्टिक खाद्य-पदार्थ दे दिया जाता या फिर घर ले जाने के लिए कच्चा अनाज ही दे दिया जाता। इस बीज बिहार के मुजफ्फरपुर और कई अन्य स्थानों से ऐसे समाचार भी मिल रहे हैं कि कई स्कूलों में आज बच्चों ने मिडडेमिल खाने से ही मना कर दिया है।

काश! ऐसा होता ......................

काश! ऐसा होता ......................

विभिन्न लोक लुभावन योजनाओं में सरकार जनता के धन को खर्च करती है।अरबो 
रुपया मनरेगा ,सस्ता अनाज,खाद्य सुरक्षा,मीड डे मील,निशुल्क दवाइयों पर खर्च 
होता है मगर उसका पूरा फायदा गरीब जनता को नहीं मिलता है,सब योजनाओं में 
खूब धांधली और गपले चलते हैं और गरीबों के नाम पर चलने वाली योजनाओं में 
बेफाम लूट चलती है।सरकार हर योजना को ठीक से संचालन भी नहीं कर पाती है।
क्यों नहीं सरकार इन लोक लुभावन योजनाओं को खत्म करके गरीबो के हित के 
लिए चल रही सभी योजनाओं पर खर्च की जाने वाली राशी को डाकघर के मार्फत
गरीबों के घर तक मासिक रूप से रोकड़ के रूप में पहुँचाने की व्यवस्था कर दे ताकि
गरीबों के हाथों में पूरा रूपया भी पहुंचे और गपले घोटाले भी बंद हो जाए।        

15.7.13

काल्पनिक कुत्ता


काल्पनिक कुत्ता

एक चोपाल पर दो गाँव वाले बैठे थे।करने धरने को कुछ काम नहीं था ,आपस में
बतीया करके भी थक गए तो उनमे से एक बोला - देख फकीरा ,अपन दोनों बातें
करते -करते उब गए हैं इसलिए कुछ करते हैं।

उसकी बात सुन फकीरा बोला-ऐसा करे दयाला  ,अपन आपस में झगड़ पड़े।आपस 
में लड़ेंगे तो और लोग भी इकट्टे हो जायेंगे।

उसकी बात सुन दयाला बोला -बात तो तेरी जँचती है ,मगर बिना बात कैसे लड़ेंगे।

फकीरा बोला -लड़ने का तरीका ....................

दयाला बोला -देख,मैं लड़ने का तरीका बताता हूँ ....इतना कहकर दयाला ने जमीन
पर अंगुली से एक चोरस आकृति बनाई और बोला-फकीरा ,ये मेरा खेत है और
एक और आकृति बनाकर बोला -यह पास वाला तेरा खेत है।

फकीरा बोला -मान लेता हूँ।

उसके बाद दयाला ने कहा -तेरे खेत में फसल मेरे से ठीक पनप रही है परन्तु मेरे
खेत में फसल कम पनप रही है।

फकीरा बोला -तेरे किस्मत ही खराब है तो मैं क्या करू।

इस पर ताव देते हुए दयाला बोला -खेत मेने बनाया ,फसल तेरी ज्यादा पनप
रही है यह बात मेने कही और तू मेरी ही किस्मत को ख़राब बता रहा है।

फकीरा बोला -हाँ,पास -पास में खेत और तेरे फसल कम तो इसको तेरी फूटी
किस्मत ही तो कहूंगा।

दयाला ने गुस्से में कहा -तूने मेरी किस्मत को फूटा कहा ना ,अब ले मैं अपने
खेत में बंधी दोनों भेंसे,चारों गायें तेरे खेत में छोड़ देता हूँ।मेरे जानवर तेरा खेत
उजाड़ देंगे और तेरी किस्मत भी फूट जायेगी।

अब तो फकीरा  भी गुस्से में आकर चिल्लाया  -मेरी फसल को बर्बाद करने वाले,क्या
मेने हाथों में चूड़ियाँ पहन रखी है तेरा एक भी जानवर मेरे खेत से सलामत बाहर
नहीं जायेगा।

दयाला उसे चिल्लाता देख ताव में आ गया और बोला -अगर मेरे एक भी जानवर के
हाथ लगाया तो तेरी हड्डियाँ तोड़ दूँगा।

उसे ताव में देख अब तो फकीरा भी लाल हो गया और पास में पड़े डंडे से एक मार दी।
बस अब तो दोनों गुथमगुथा हो गए।उनको झगड़ते देख लोग इकट्टा हो गए और उनको
अलग किया।एकत्रित भीड़ से एक बुजुर्ग बोला -दोनों तो दोस्त हो ,फिर लड़ क्यों पड़े?

बुजुर्ग की बात का उत्तर देते हुए फकीरा बोला -दादा ,ये मेरे खेत में अपने जानवर
छोड़ने की धमकी दे रहा था।

बुजुर्ग बोला -मगर तेरे पास खेत था कब और दयाला  के पास तो बकरी ही नहीं है फिर
जानवर कहाँ से आ गए।

दयाला बोला -दादा ,हम तो बैठे बैठे थक गये तो काल्पनिक खेल खेलने बैठ गए थे।

                 यही हाल तो इस देश की राजनीति का हो गया है।एक ने उदाहरण दिया
और विपक्षी उस काल्पनिक कुत्ते का पोस्टमार्टम करने लगे,देश का मीडिया,अखबार
उस काल्पनिक कुत्ते पर घंटो बहस करने लगे और पन्ने भरने लगे।वाह ....क्या खेल है
देश चलाने वालों का!!!               
                      

खाद्य-सुरक्षा के नाम पर दे दे रे बाबा-ब्रज की दुनिया

मित्रों,दिवाने तो आपने बहुत-से देखे होंगे मैंने भी देखे हैं। मैंने लोगों को लंगोट में फाग खेलते हुए भी देखा है और खूब देखा है मगर अल्लाहकसम मैंने आज तक किसी लंगोटधारी को दानी बनते हुए नहीं देखा है। मगर यहाँ तो बिल्कुल ऐसा ही हो रहा है। जिन लोगों ने देश को देशी-विदेशी पूंजीपतियों के हाथों गिरवी रख दिया है और जनता को लगातार महँगाई की चाबुक से मार-मारकर लहूलुहान कर दिया है वही बेईमान और मक्कार लोग आज खाद्य-सुरक्षा कानून लाकर खुद के दुनिया का सबसे बड़ा दानी होने का स्वांग रच रहे हैं।
             मित्रों,पहले घोटाले कर-करके,कर-करके देश के खजाने को लूट लिया,टैक्स और महँगाई बढ़ाकर जनता को भिखारी बना दिया और अब जब सरकार का खर्च भी नहीं निकल पा रहा है,भीख देने को भी जब पास में पैसे नहीं बचे हैं तो सरकार के दो-दो बड़बोले मंत्री जा पहुँचे हैं अमेरिका कटोरा लेकर लेकिन अमेरिका ठहरा विशुद्ध बनिया सो वो क्यों बिना कुछ लिए नाक पर मक्खी भी बैठने दे?
                मित्रों,अगर इन लुटेरों को जनता के लिए अपने निजी धन में से एक पैसा भी खर्च करना पड़े तो ये कदाचित् वो भी न करेंगे। लेकिन खजाना तो जनता का है खाली रहे या भरा इनके बाप का क्या? इन्होंने तो पिछले 9 सालों में अपने निजी कोष में इतना माल भर लिया है अब इनकी सात पीढ़ियों को हाथ-पाँव हिलाने की जरुरत ही नहीं पड़ेगी। यह देश का दुर्भाग्य है कि बावजूद इसके इन लुटेरों का लूट से मन ही नहीं भर रहा है और ये लोग लगातार तीसरी बार दिल्ली के तख्त पर बैठने की जुगत भिड़ा रहे हैं।
                   मित्रों,वो कहते हैं न कि सत्ता बड़ी बुरी शह है।  सत्ता की लत पड़ जाती है क्योंकि उसमें नशा भी है अफीम और हीरोइन से भी बहुत ज्यादा। हमारे कांग्रेसी नेताओं को यकीन ही नहीं हो रहा है कि वो लोग 2014 में सत्ता से बाहर भी हो सकते हैं। कलम के जादूगर रामवृक्ष बेनीपुरी ने कहा था कि अमीरी की कब्र पर उपजी हुई गरीबी की घास बड़ी जहरीली होती है सो विपक्ष में बैठने की सोंचकर ही सोनिया गांधी एंड फेमिली के हाथ-पाँव में सूजन आने लगी है। सरकारी खजाने में रोज के खर्च के लिए भी पैसा है नहीं और भूतपूर्व त्यागमूर्ति सोनिया अम्मा को पूरे देश के उन गरीबों को जो उनके और उनके परिवार के भ्रष्टाचार की वजह से भी गरीब हैं,भोज देना है। उनको न जाने कैसे यह मतिभ्रम हो गया है कि भारत के लोग भूखे,भिखारी और परले दर्जे के कामचोर हैं। वो काम करना ही नहीं चाहते इसलिए उनको काम नहीं दो बल्कि बिठाकर पैसे दे दो और रोटी दे दो फिर चाहे देश को खा जाओ,बेच दो,गुलाम बना दो वे बेचारे अहसानों तले इस कदर दबे रहेंगे कि किंचित भी बुरा नहीं मानेंगे।
                     मित्रों,आपने भी कहीं-न-कहीं किसी-न-किसी सरकारी दफ्तर में यह लिखा हुआ देखा होगा कि शीघ्रता को भी समय चाहिए लेकिन सोनिया जी ने आजतक नहीं देखा। मान लीजिए कि आपको गंगा नदी पर एक पुल बनाना है तो उसमें कम-से-कम 5-7 साल तो लग ही जाएंगे। पहले जमीन का सर्वेक्षण होगा फिर पाया बनेगा तब ऊपर का काम शुरू होगा। कंक्रीट के जमने में समय तो लगेगा ही। अब अगर आप चाहेंगे कि वही पुल 6 महीने में बन जाए तब तो उस पुल का भगवान ही मालिक है। परन्तु इतनी छोटी-सी बात महाभ्रष्ट-देशबेचवा सोनिया गांधी एंड फेमिली के शातिर दिमाग में घुस ही नहीं पा रही है। वो आमादा हैं कि हम तो इसी साल 20 अगस्त से देश के लोगों को भिक्षा (भोजन) की गारंटी दे देंगे। जबकि इसके लिए पहले सही जरुरतमंदों का पता लगाना चाहिए था,फिर पीडीएस को ठीक-ठाक करना चाहिए था,फिर योजना की मॉनिटरिंग और अन्य प्रकार की व्यवस्थाएँ की जानी चाहिए थी तब जाकर अधिकार देना था वरना कागजी अधिकारों और गारंटियों की तो इस देश में पहले से ही बहुतायत है। वैसे गारंटी देने में इस परिवार का भी कोई जवाब नहीं है,इसने सबसे पहले जनता को सूचना की गारंटी दी हालाँकि अब अपनी ही पार्टी को इसकी मार से बाहर करने के लिए छटपटा रही है,फिर इसने 100 दिन के काम की गारंटी दी,फिर लगे हाथों शिक्षा की गारंटी भी दे दी और अब भीख की गारंटी देने जा रही है। हमारे प्रदेश बिहार की जनता तो सूचना के लिए मारी-मारी फिर रही है पर सूचना मिलती नहीं अलबत्ता कृष्ण-जन्मस्थली की तीर्थयात्रा का पुनीत अवसर जरूर मिल जा रहा है। आपके राज्य की आप जानिए। काम की गारंटी ने मुखियों को करोड़पति होने की गारंटी जरूर दे दी है और मजदूरों को या तो पता ही नहीं है कि उनका नाम मनरेगा में दर्ज है या तो उनको बैठे-बिठाए आधा ही पैसा मिल पा रहा है। शिक्षा के अधिकार का तो कहना ही क्या? इस पर तो अभी तक अमल शुरू हुआ ही नहीं है और शायद कभी होगा भी नहीं और अब आ गया है बिना किसी पूर्व तैयारी के एक और महान अधिकार भिक्षा का अधिकार। वास्तव में यह गरीबों के लिए भोजन की गारंटी नहीं है बल्कि वर्तमान परिस्थितियों में यह पीडीएस के जुड़े मंत्रियों,अधिकारियों,कर्मचारियों व दुकानदारों के करोड़पति होने की गारंटी है। क्या सोनिया एंड फेमिली बताएगी कि भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी जनवितरण प्रणाली के माध्यम से यह कानून कैसे पारदर्शी तरीके से लागू हो पाएगा? क्या वे लोग जल्दीबाजी करके यह नहीं चाहते हैं कि इस योजना का 12 आना से भी ज्यादा बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचारियों की जेब में पहुँच जाए?
                              मित्रों, जब देश की बीपीएल जनता को पहले से ही हर महीने सस्ता अनाज दिया जा रहा है तो फिर नाम बदलकर उसी तरह की नई योजना लाने का क्या प्रयोजन? यह तो वही बात हुई कि एक ही बार बनी हुई सड़क का शिलापट्ट बार-बार बदल-बदलकर अलग-अलग नेता बार-बार उद्घाटन करें। विपक्ष तो विपक्ष खुद कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों के हाथ-पाँव भी खजाने की बुरी सेहत को देखते हुए इस योजना के बारे में सोंचकर ही फूले जा रहे हैं। मगर सोनिया गांधी एंड फेमिली को देश और देश के खजाने से क्या लेना-देना? उनको तो बस एक गेम चेंजर प्लान चाहिए जो अकस्मात् जनता की याद्दाश्त को इस कदर धुंधली कर दे कि वे उनकी सरकार में हुए सारे रिकार्डतोड़ महाघोटालों को भुला दें। वे यह भी भूल जाएँ कि कांग्रेस ने अपनी आवारगी से किस तरह उनकी घरेलू पारिवारिक अर्थव्यवस्था के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था को भी चमकते चांद से टूटा हुआ तारा बना डाला है और एक बार फिर से उसकी झूठ और फरेब की काठ की हाँडी में सत्ता की परम स्वादिष्ट खिचड़ी को वोटों की मीठी आँच देकर पक जाने दें।

13.7.13

खुद को धर्म निरपेक्ष कहने वाले साम्प्रदायिक धर्म के देवों की पूजा क्यों करते हैं

खुद को धर्म निरपेक्ष कहने वाले साम्प्रदायिक धर्म के देवों की पूजा क्यों करते हैं 

क्या धर्म साम्प्रदायिक होता है ?किस धर्म ग्रन्थ में लिखा कि दुसरे अन्य धर्म हल्के या हिन
हैं ?क्या वेद ऐसा कहते हैं या कुरान  या बाईबल ?संसार का कोई धर्म मानवता में द्वेष करने
का सन्देश नहीं देता है फिर साम्प्रदायिकता की उपज कहाँ से हुयी ?आपस के धर्मों में और
धर्मावलम्बियों में द्वेष की भावना क्यों फैलाई जा रही है ? आपस में धर्मों के नाम पर लड़ाई
करवाने में किसका हित है ?

   एक शब्द का हमारे देश में खूब जोर से इस्तेमाल किया जाता है -कट्टरपंथ या चरमपंथ ?
विश्व का ऐसा कौनसा धर्म ग्रन्थ है जिसमे लिखा है अमुक धर्म का पालन विश्व की जनता
करे ?सभी धर्म स्वधर्म का पालन करने और मानवता  की सेवा का ही सन्देश देते हैं।

  हर धर्म या पंथ परहित चिंतन और उदार भावनाओं का पोषण करता है चाहे वह वेद हो या
कुरान या बाईबल।धर्म का अर्थ है मानवता की भलाई के विचारों का पोषण करना और उन्हें
आचरण में लाना।अभी पवित्र रमजान चल रहा है और हर मुस्लिम बंधू खुदा से इबादत
करके यही दुआ माँगता है कि मनुष्य मात्र का भला हो ,इस भाव में यदि किसी को चरमपंथ
या कट्टरपंथ लगता है तो इस देश को यह कट्टरपंथ स्वीकार होना चाहिए,यदि जैन धर्म के
इन पवित्र महीनों में सद्भाव के प्रवचन दिए जाते हैं और इसमें भी कट्टरपन किसी को दीखता
है तो यह कट्टरपन उचित है यदि श्रावण मास में हिन्दुओ के महादेव जो मानवता की रक्षा के
लिए गरल तक पी जाने का आचरण करने का सन्देश देते हैं तो यह कट्टरपन पुरे विश्व की
आवश्यकता है और विश्व को यह कट्टरपन की वास्तव में अब जरुरत है।

    गीता में श्री कृष्ण अपना मत रखते हैं कि स्वधर्म का पालन करों यदि हम मनुष्य हैं तो
मानव धर्म का पालन राग द्वेष छोड़ कर अविरत करते रहे।श्री कृष्ण ने यह नहीं कहा था की
सब मनुष्य अपने अपने धर्म को छोड़कर किसी एक धर्म का अवलम्बन करे ?क्या यीशु ने
धर्म की कोई अनर्थकारी परिभाषा दी है ,नहीं दी है ,उन्होंने सेवा का सन्देश दिया।यदि यह
बात किसी को चरमपंथ की पोषक लगती है तो कोई क्या करे।

     इस देश का दुर्भाग्य है कि यहाँ के तुच्छ नेता ही विभिन्न धर्मो में द्वेष की भावना उत्पन्न
करते है और उसका  पोषण या तुष्टिकरण करते हैं।क्या कारण है कि वे लोग बाहर में  धर्म
निरपेक्षता की बातें करते हैं और दफ्तर,घर या सार्वजनिक जगहों पर जिस धर्म को ही वे
साम्प्रदायिक ठहराते हैं उसी धर्म के देवों की पूजा अर्चना या जियारत करते हैं ?केवल पद
की भूख के लिए एक दुसरे को लड़ाना और द्वेष फैलाना ही उनका काम रह गया है।क्या
किसी धर्म विशेष के लोगों को अनुचित प्रलोभन देकर निरपेक्ष कहलाया जा सकता है ?
नहीं ,अगर बाप एक पुत्र को विशेष सुविधा दे और दुसरे पुत्र को आवश्यक सुविधा से वंचित
रख दे तो यह कृत्य उस बाप की निरपेक्षता नहीं पक्षपात ही कहलायेगा।

          इस देश का मुस्लिम यदि यह कहे कि मैं राष्ट्रवादी मुस्लिम हूँ और मुझे इस पर
गर्व है तो यह बात पुरे देश के लिए गर्व करने की है और यदि एक हिन्दू या अन्य धर्म में
आस्था रखने वाला यह कहे कि मुझे राष्टवादी हिन्दू होने में राष्ट्रवादी इसाई होने में गर्व है
तो यह बात इस देश के सोभाग्य का चिन्ह है।

          धर्म की मनमानी व्याख्या करने वाले कुत्सित मानसिकता वाले राजनीतिज्ञ क्या
हम सबका भला कर पायेंगे या धर्म की मनमानी व्याख्या करनेवाले धर्म गुरु मानवता का
भला करने में समर्थ हैं?

         गलती इस देश की प्रजा की भी है ,शायद वह अनजाने में अनुचित तुष्टिकरण को
सही देख लेती है क्योंकि बार बार बोला जाने वाला झूठ भी सच लगने लगता है मगर सही
क्या और गलत क्या इसमें जब भी संदेह हो जाता है तो उसका सही उत्तर बाहर ढूंढने की
जरुरत नहीं है उनके अपने धर्म ग्रन्थ का अध्ययन उन्हें सही या गलत का रास्ता दिखाने
में पूर्ण रूप से सक्षम हैं।                 

12.7.13

देश में सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन लाने में डाक विभाग की अहम भूमिका - कृष्ण कुमार यादव



वाराणसी (पश्चिम) डाक मंडल अन्तर्गत नवीनीकृत प्रोजेक्ट ऐरो औराई व ज्ञानपुर उपडाकघर का लोकार्पण इलाहाबाद परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएं श्री कृष्ण कुमार यादव द्वारा 11 जुलाई 2013 को शिलापट्ट के अनावरण द्वारा किया गया। इस अवसर पर डाक निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव ने डाकघर में उपलब्ध सेवाओं का अवलोकन किया एवं प्रतीकात्मक रूप में स्पीड पोस्ट बुक कराकर शुभारंभ भी किया। 

    मुख्य अतिथि के रूप में निदेशक डाक सेवाएं श्री कृष्ण कुमार यादव ने अपने सम्बोधन में कहा कि प्रोजेक्ट ऐरो डाक विभाग की एक महत्वाकांक्षी परियोजना है, जिसका लक्ष्य डाकघरों का चेहरा पूर्णरूप से बदलना है। इसके तहत चयनित डाकघरों की कार्यप्रणाली को सभी क्षेत्रों में सुधार एवं उच्चीकृत करके पारदर्शी, सुस्पष्ट एवं उल्लेखनीय प्रदर्शन के आधार पर और आधुनिक बनाया जा रहा है। श्री यादव ने कहा कि डाक वितरण, डाकघरों के बीच धन प्रेषण, बचत बैंक सेवाओं और ग्राहकों की सुविधा पर जोर के साथ नवीनतम टेक्नोलाजी, मानव संसाधन के समुचित उपयोग एवं आधारभूत अवस्थापना में उन्नयन द्वारा विभाग अपनी ब्राण्डिंग पर भी ध्यान केन्द्रित कर रहा है। ये प्रयास न सिर्फ डाकघरों को उन्नत बनाएंगे बल्कि देश में सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन लाने में भी डाक विभाग की भूमिका में अहम वृद्धि होगी। 

    डाक निदेशक श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि प्रोजेक्ट एरो के माध्यम से डाक विभाग अपनी मूल सेवा डाक वितरण पर विशेष रूप से जोर दे रहा है। डाक वितरण के तहत प्राप्ति के दिन ही सभी प्रकार की डाक चाहे वह साधारण, पंजीकृत, स्पीड पोस्ट या मनीआर्डर हो का उसी दिन शतप्रतिशत वितरण व डिस्पैच, लेटर बाक्सों की समुचित निकासी और डाक को उसी दिन की डाक में शामिल करना, डाक बीटों के पुनर्निर्धारण द्वारा वितरण को और प्रभावी बनाना एवं डाक वितरण की प्रतिदिन मानीटरिंग द्वारा इसे और भी प्रभावी बनाया जा रहा है। इसी प्रकार बचत बैंक सेवाओं  को पूर्णतया कम्प्यूटराइज्ड कर उनकी शतप्रतिशत डाटा फीडिंग और सिगनेचर स्कैनिंग भी कराई जा रही है, ताकि मैनुअली ढंग से कार्य संपादित करने पर होने वाली देरी से बचा जा सके। प्रोजेक्ट ऐरो के तहत बैंकिंग, धन भेजना, सूचनाओं के आदान-प्रदान की सुविधा एक ही खिड़की पर उपलब्ध होगी। उन्होंने बताया कि औराई व ज्ञानपुर उपडाकघर कोर बैंकिंग साल्यूशन के तहत फेज 1बी में शामिल किये गये हैं, तदनुसार कालान्तर में यहाँ भी आनलाइन बैंकिग सेवायें उपलब्ध हो सकेंगी। 

 निदेशक डाक सेवाएं श्री कृष्ण कुमार यादव ने यह भी बताया कि प्रोजेक्ट ऐरो के अन्तर्गत लुक एंड फील में उत्तर प्रदेश में 189 डाकघर व इलाहाबाद परिक्षेत्र में 25 डाकघर नवीनीकृत हो चुके है। इनमें वाराणसी के वाराणसी प्रधान डाकघर, कैंट प्रधान डाकघर, बी एच यू डाकघर, मुगलसराय डाकघर, भदोही डाकघर, चन्दौली डाकघर, चकिया डाकघर के साथ-साथ अब  ज्ञानपुर व औराई उपडाकघर भी शामिल हैं 
     
            डाक अधीक्षक वाराणसी (पश्चिम) श्री आर एन यादव ने अतिथियों का स्वागत किया एवं कहा कि औराई व ज्ञानपुर डाकघरों के उन्नयन से नागरिकों को काफी सहूलियत होगी एवं उन्हें डाक विभाग की आधुनिक सेवाओं का लाभ मिल सकेगा। इन डाकघरों के प्रोजेक्ट एरो के अन्तर्गत कायाकल्प होने के साथ ही दूर-दराज ग्रामीण अंचलों में इसके लेखान्तर्गत स्थित शाखा डाकघरों की कार्यप्रणाली में भी काफी पारदर्शिता आयेगी।

            इस अवसर पर सहायक डाक अधीक्षक आशीष श्रीवास्तव, आर के श्रीवास्तव, पोस्टमास्टर औराई श्री सुरेन्द्र प्रताप सिंह, पोस्टमास्टर ज्ञानपुर श्री डी के राय, डाक निरीक्षक श्री अर्जित सोनी, संजय सिंह, सहायक अभियन्ता लक्ष्मी शंकर मिश्रा, सिस्टम मैनेजर आर के श्रीवास्तव, सहित तमाम अधिकारी, कर्मचारी, जन प्रतिनिधि, मीडियाकर्मी, बचत अभिकर्ता व नागरिकगण उपस्थित थे।