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27.8.13

ek nayee kavita

आधी रात को दिखते हैं बाबूजी
बिलकुल बाबूजी की तरह
पट्टे के पाजामे और कई छेदों वाली
पीली सी बनियान में
हाथ कमर के पीछे बांधे
वो तेज तेज नापते
छोटे से बरामदे की सरहद बुदबुदाते हुए
मुन्ना क्यों नहीं लौटा अब तक ?
आज मांगना ही है शादी के लिए गहना-रूपया
आखिर वही तो है बडकी का इकलौता भैया ....
...अम्मा तो अक्सर दिखती है
बाबूजी के पैर दबाती
दीदी की शादी की बात चलाती
सहसा किसी बात पर
दोनों के बीच पसरता सन्नाटा
सीलिंग फैन की चिचियाती आवाज़
ढँक लेती सिसकियाँ
फिर आँखें पोंछती अम्मा
ठाकुरजी की ओर जाती दिखती है
और मेरी आँखों के कोरों से
कोई टीस पिघलती है ....
आधी रातों के खाबों की
यही बात एक अखरती है
भूलने वाली मामूली यादें
बार-बार उभरती हैं
-विवेक मृदुल

2 comments:

Unknown said...

मन के भाव कभी तो व्यक्त करने का मौका मिलना चाहिये।,

कभी मेरे ब्लोग"Unwarat.com" पर आइये। पढ़ने पर अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।

विन्नी,

विवेक मृदुल said...

THANX...AVASHYA PADHUNGA...AAP KO MERI YE KAVITA KAISEE LAGEE MADAM? PLEASE JARUR BATAIYEGA...KARAN ABHI MAI APNI SAMBHAVIT PUSTAK KE LIYE CHAYAN PRAKRIYA SE GUJAR RAHA HUN...SO AAP JAISEE SUDHEE MARGDARSHAK KI SALAH MERE LIYE KEEMTI HIOGI. THANX