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9.12.13

त्रस्त जनता तख्ता पलट देती है, यही जनतंत्र है!

-वक्ती ताकत के अहंकारी गिरते जरूर हैं।
-जनता के दर्द को समझने की जरूरत।
-नितिन सबरंगी
दिल्ली चुनाव के हालिया नतीजे बहुत कुछ साबित कर गए। एक आईना भी बनकर आये जिसमें पार्टियां अपने चेहरे को देख रही हैं। यह साबित हुआ कि जनतंत्र की ताकत ही सबसे बड़ी होती है। कोई दोराय नहीं कि जनता त्रस्त थी। केवल दिल्ली ही नहीं पूरे देश का एक सा हाल है महंगाई से हर कोई हलकान है। आम आदमी को जिंदगी बसर करने के लिये जरूरी सामान भर चाहिए होता है, लेकिन घोटाले करके उनकी भरपाई महंगाई का बोझ डालकर की जाती रही। जनता दर्द से कराहती रही किसी को ख्याल नहीं आया बल्कि उलटा मजाक बनाया गया। लोकसभा चुनावों के नतीजे ओर भी चौंकाएंगे। शायद राजनीति से चश्मे से सबसे पहले वोट का ताज नजर आता है पिफर उसके बाद शतरंज के मोहरों के रूप में लोगा की जरूरतंे, गरीबी, उनके हालात ओर मजबूरियों के वह गर्म ढेर जो मेहरबानियों की बूंदों के लिये हमेशा तरसते हैं। लोकतंत्र की ताकत ही बड़ी है। नेताओं को सत्ता के गुरूर, मनमानी, भ्रष्टाचार के कीर्तिमान, झूठे किले खड़े करके सिंघासन सजाने की गलतफहमी से निकल जाना चाहिए। आम जरूरत की सभी चीजों ने होश उड़ा दिए। आम आदमी पार्टी को जो सीटे मिली हैं वह इस बात का प्रमाण हैं कि जनता सत्ताधारियों से नाराज है। वह ओर ठगी का शिकार नहीं होना चाहती। यह गलतफहमी भी निकल गई कि सबकुछ धन-बल से नहीं चलता। शराब से ओर धन का खेल इस चुनाव में भी हुआ। बड़े-बड़े दिग्गज पटखनी खा गए। सोचने की जरूरत है क्यों? जिस दर्द को कांग्रेस अब समझने की बात कर रही है वह पहले ही समझ लिया जाता। अरविंद केजरीवाल आम जनता के बीच हीरो सरीखे हो गए। जनता चिल्लाती रही ओर कभी आवाज नहीं गई? चुनावी नतीजे अन्य पार्टियों के लिये भी सबक हैं। वह अपना रवैया सुधारें वरना जनता को असली मौका मिलेगा। त्रस्त जनता तख्ता पलट कर देती है। यह भी निर्विवाद सच है कि वक्ती ताकत ओर रसूख के अंहकारी सवार एक दिन गिरते जरूर हैं। सत्ता के गुरूर में जनता का दर्द दिखायी न दे, तो अंजाम वही होता है जो जनता चाहती है।

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