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1.1.14

‘तनख्वाह प्लस नहीं, चैलेंजिंग हो जॉब’

जीवन के किसी भी पड़ाव में कभी भी हार नहीं माननी चाहिए, क्योंकि असफलताओं के पीछे ही सफलता छिपी रहती है, बस उसके भीतर झांककर सफलता की उस परछाई को पहचाने की जरूरत रहती है। वैसे भी कड़ी मेहनत की कोई सानी नहीं रहती और मेहनत करने वालों को कभी भी निराषा नहीं होती। मेहनत, न खुलने वाले ताले की ऐसी चाबी है, जिसकी बदौलत असफलता के हर अंधकार को दूर किया जा सकता है। समाज के उत्थान की दिषा में सेवा करने के लिए, ‘तनख्वाह प्लस जॉब’ की कोई अहमियत नहीं होती। जॉब ऐसा हो, जो ‘चैलेंजिंग’ हो और जिसके माध्यम से लोगों के हित में कार्य किया जा सके।
यह बातें सिविल सेवा परीक्षा यानी पीएससी में ‘अधीनस्थ लेखा सेवा अधिकारी’ के तौर पर चयनित अभिजीत षर्मा ने खास बातचीत में कही। अभिजीत को पीएससी की परीक्षा में 106 रैंक मिला है और यह उनका दूसरा प्रयास था। इस उपलब्धि से खुद अभिजीत एवं उनके परिवार तथा मित्रगण काफी उत्साहित हैं, क्योंकि उन्होंने पीएससी जैसी अहम परीक्षा के लिए भी कहीं से भी कोचिंग नहीं ली। उनकी मानें तो पीएससी परीक्षा की तैयारी में उन्हें सबसे अधिक मां श्रीमती पुष्पा षर्मा का सहयोग मिला। साथ ही छोटे भाई समेत परिवार के अन्य लोगों व मित्रगण ने भी उनका बढ़-बढ़कर उत्साहवर्धन किया, जिसके परिणाम स्वरूप आज पीएससी परीक्षा उत्तीर्ण करने का सपना साकार हो सका है।
बातचीत में अभिजीत ने बताया कि उनकी प्रारंभिक षिक्षा खरौद में मामा सुबोध षुक्ला ( अध्यक्ष, पानी पंचायत ) के घर रहकर, षिवरीनारायण के सरस्वती षिषु मंदिर में हुई। इसके बाद उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक्स में इंजीनियरिंग की परीक्षा उत्तीर्ण की। इस तरह बिलासपुर के चौकसे इंजीनियरिंग कॉलेज में 2006 में दो साल यानी 2008 तक लेक्चररषिप की और वहां अध्यापन के अनुभव के बाद उन्होंने बिलासपुर में ही दो साल बीएसएनएल में सेवाएं दीं। इस दौरान वे लगातार अपने आयाम को पाने के लिए कोषिष में लगे रहे और 2010 में एयरपोर्ट ऑथरिटी ऑफ इंडिया की विषेष परीक्षा उत्तीर्ण करते हुए एयरपोर्ट टैªफिक कंट्रोलर ( एटीसी ) के पद पर चयन हुए। फिलहाल, वे इसी पद पर वर्तमान में कार्यरत हैं और प्रथम नियुक्ति मुंबई में हुई। इसके चंद महीनों बाद से वे अब महाराष्ट्र के गोंदिया में एटीसी के पद पर सेवाएं देते आ रहे हैं।
अभिजीत ने अपनी पढ़ाई के बारे में बताया कि एटीसी के पद पर पदस्थ होने की वजह से समय कम मिलता था। साथ ही एटीसी का कार्य काफी जिम्मेदारी भरा है। साथ ही तनाव भी रहता है कि किसी तरह की चूक न हो जाए, इसके लिए सावधानी बरतने के लिए हमेषा सतर्क रहना पड़ता। बावजूद, वे हर दिन पीएससी की तैयारी में लगे रहते। वे बतातें हैं कि पीएससी की परीक्षा उन्होंने पहली बार 2008 में दी थी, इस दौरान वे मेंस की परीक्षा में पीछे हो गए। हालांकि, उन्होंने असफलता से हिम्मत नहीं हारी और उससे सबक लेते हुए एक बार फिर तैयारी षुरू की और नतीजा, उनके सपनों के लिहाज से रहा।
अभिजीत बताते हैं कि इलेक्ट्रॉनिक्स में इंजीनियरिंग करने के बाद वे कई और जॉब के लिए तैयारी कर रहे थे और इस दौरान उनकी नियुक्ति छग राज्य विद्युत मंडल में जेई तथा इंडियन टेलीकॉम और रिलायंस कंपनी में भी उंचे पद पर हुआ था, लेकिन मन ने तो कुछ और ठान रखा था। लिहाजा, वे इन नौकरियों को ज्वाइन नहीं किया और पीएससी परीक्षा की तैयारी में लग गए। इस दौरान एटीसी के तौर पर नियुक्ति हुई।
वे मानते हैं कि किसी भी जॉब को केवल तनख्वाह बेस पर नहीं करना चाहिए, उसके माध्यम से सामाजिक हित तथा समाज में जनचेतना लाने के दृष्टिकोण से क्या किया जा सकता है, ऐसी आषाभरी सोच होनी चाहिए। उनकी सोच ऐसी है, इसलिए वे सिविल सेवा परीक्षा के माध्यम से समाज के तबके लिए सेवा देना चाहते थे, जो एक तरह से पूरी हुई है, किन्तु उनकी नई उंचाईयों को छूने की आकांक्षाएं अभी पूरी नहीं हुई है। वे कहते हैं कि एयरपोर्ट ट्रैफिक कंट्रोलर के जिस पद पर वे कार्य कर रहे है, उसके लिहाज से ‘अधीनस्थ लेखा सेवा अधिकारी’ की तनख्वाह में काफी अंतर है, लेकिन उन्हें तनख्वाह के बजाय, जॉब में चैलंेज नजर आता है, उससे वे आकर्षित हुए हैं।
अंत में उन्होंने अपने संदेष में यही कहा कि हर व्यक्ति में कोई न कोई, गुण छिपा रहता है, बस उसे पहचानने की जरूरत रहती। किसी भी व्यक्ति को अपने गुणों को निखारने के लिए सतत प्रयत्नषील रहना चाहिए, इसके बाद सफलता निष्चित ही कदम चूमती है। असफलता की परछाई भी किनारे नहीं आती। यह भी सही है कि असफलता से कभी निराष होकर नहीं बैठना चाहिए, बल्कि असफलता के सहारे से सफलता को साधने की भरसक कोषिष करनी चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि सभी को समान अवसर मिलता है, किन्तु सफलता उसे ही मिलती है, जो अपनी योग्यता से उसकी पहचान कर लेता है।


प्रषासनिक क्षेत्र में सेवा देने की है रूचि
अभिजीत अपनी सफलता से गदगद तो हैं, किन्तु उनकी मानें तो उनका लक्ष्य, प्रषासनिक क्षेत्र में सेवा देने की है, इसलिए वे आने वाले दिनों में अपनी कोषिषों को जारी रखेंगे और एक दिन प्रषासनिक क्षेत्र की सेवाओं में चयनित होकर ही रहेंगे। वे कहते हैं कि पीएससी में 106 रैंक के लिहाज से उनका चयन डीएसपी के पद पर हो जाता, लेकिन वे पुलिस विभाग में नही जाना चाहते। प्रषासन में कार्य करने की रूचि है, किन्तु इसके लिए उन्हें अभी और इंतजार करना पड़ेगा। खैर, वे उंचाईयों को प्राप्त करने के लिए कमर कस चुके हैं और निष्चित ही उनके मन की आषाएं जरूर पूरी होंगी, क्यांेंकि कहा भी जाता है कि ‘कोषिष करने वालांे की कभी हार नहीं होती’।


समाज षास्त्र से लहराया परचम
इलेक्ट्रॉनिक्स से इंजीनियरिग और स्कूल में विज्ञान की पढ़ाई के बाद पीएससी में समाज षास्त्र लेकर सफलता अर्जित करना किसी चुनौती से कम नहीं थी। इस चुनौती को अभिजीत ने स्वीकार किया और निरंतर अध्ययन करते परीक्षा उत्तीर्ण किया तथा उस मिथक को भी तोड़ दिया, जिसमें कहा जाता है कि किसी प्रतियोगी परीक्षा को, बिना कोचिंग के उत्तीर्ण नहीं किया जा सकता। अभिजीत कहते हैं कि एटीसी की नौकरी करते पढ़ाई के लिए बहुत कम समय मिलता है, उसी समय का सदुपयोग कर महती परीक्षा में उत्तीर्ण होकर खुद को साबित किया और सभी के सहयोग से मिले अवसर को भुनाने में भी कामयाब रहा।

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