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6.2.14

लक्ष्य ,दिशा और गति

लक्ष्य ,दिशा और गति 

हर व्यक्ति अपने जीवन में सफल होने कि इच्छा रखता है और प्रयत्न भी करता है
फिर क्या कारण है कि अधिकांश अपने जीवन में साधारण ही बने रहते हैं। क्या
इसे विधि का विधान मान लिया जाये ?वेद और शास्त्र इस विचार से सहमत नहीं
हैं। शास्त्र हमे चरैवेति का सिद्धांत सिखाते हैं ,कर्म का ज्ञान देते हैं फिर क्या कारण
है कि लोग पिछड़ जाते हैं।
                   लक्ष्य कैसा हो ?
  सफलता के लिए हर एक के लिए लक्ष्य का होना आवश्यक है ,लक्ष्य स्पष्ट होना
चाहिए और अलग-अलग ध्रुव के विकल्पों को साथ लेकर नहीं बनाना चाहिए। जैसे
यदि मैं डॉक्टर नहीं बन सका तो बड़ा इंजिनियर बन जाऊँगा। लक्ष्य अपनी रूचि के
आधार पर तय किया जाना चाहिए ,किसी का थोपा हुआ नहीं हो। लक्ष्य की प्राप्ति
में समय का सही प्रबंध होना चाहिए ,अगर लक्ष्य बड़ा है तो ज्यादा और छोटा है तो
कम लेकिन समयावधि जरुर होनी चाहिए।
                         हमारी दिशा क्या हो - लक्ष्य तय करने के बाद हमें अपनी
दिशा तय करना चाहिए ,अक्सर लोग अपने लक्ष्य को बना लेते हैं और उसका हर
जगह ढिंढोरा पीटते रहते हैं मगर क्रियान्वित नहीं कर पाते क्योंकि वो अपने लक्ष्य
की ओर मुँह करके चलना तो शुरू करते हैं लेकिन कुछ समय बाद फिर अपना
मुँह विपरीत दिशा में कर लेते हैं या लक्ष्य को बार-बार बदलते जाते हैं। लक्ष्य
पर चलने के लिए धैर्य की जरूरत होती है मगर लोग जल्द ही ऊबने लगते हैं या
अपने आत्मविश्वास को स्वयं ही कम कर लेते हैं और जिधर से चले थे उधर का
रुख कर लेते हैं

                    गति कैसी हो ?    -जब हम अपना लक्ष्य तय कर लेते हैं और दिशा
सही कर लेते हैं इसका मतलब अब हमें अपने लक्ष्य की ओर चलना है। कुछ लोग
अति उत्साह में आकर लक्ष्य की दिशा में तेज गति से भागने लगते हैं और कुछ
लोग लक्ष्य प्राप्ति में काफी समय हाथ में है यह सोचकर मंद गति से चल पड़ते हैं
मगर अफसोस   … ये दोनों ही लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाते हैं। जो लोग शुरू में
तेज गति रखते हैं वे जल्दी थक जाते हैं जैसे तेज बारिस से बचने के लिए दौड़
लगाने वाला जल्दी ही पूरा भीग जाता है और मंद गति से चलने वाले का भी यही
हाल होता हैं। हितोपदेश में हँस और कौए की कहानी है जो लम्बे लक्ष्य के लिए
उड़ते हैं ,कौआ शुरू में तेज चाल से उड़ता है और समुद्र के ऊपर से गुजरते समय
थक जाता है और समुद्र में डूब कर मृत्यु को प्राप्त होता है और हँस अपनी मध्यम
चाल से उड़ता हुआ मानसरोवर पहुँच जाता है। हमें अपनी गति मध्यम रखनी
चाहिए ताकि मार्ग की बाधाओं को धीरज से पर करते हुए समय पर लक्ष्य को
प्राप्त कर सके।        

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