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16.2.14

सेवा की मिसाल ‘नारायण सेवा समिति’

जांजगीर-चांपा ( छत्तीसगढ़ ) के षिवरीनारायण की नारायण सेवा समिति, ‘मानव सेवा’ की मिसाल बन गई है। षिवरीनारायण में माघी पूर्णिमा से हर साल शुरू होने वाले प्राचीन मेले में हजारों की संख्या में पहुंचे श्रद्धालुओं को नारायण सेवा समिति द्वारा प्रसाद स्वरूप भोजन कराया जाता है। भूखे व्यक्तियों की सेवा को ‘नारायण सेवा’ मानकर यह परिपाटी शुरू की गई थी, जो 16 बरसों से जारी है। हर साल 10 हजार से अधिक श्रद्धालु भोजन करते हैं। लोट मारकर भगवान नर-नारायण के दर्षन के लिए पहुंचने वाले भक्तों को दो दिनों तक भोजन कराया जाता है। इसकी सफलता के लिए कई समाजसेवी के साथ ही, स्कूली छात्र-छात्राएं जुटे रहते हैं।  नारायण सेवा समिति के अध्यक्ष राजेष अग्रवाल का कहना है कि 1998 में षिवरीनारायण के कुछ समाजसेवी अमरनाथ यात्रा पर गए थे। इस दौरान वहां दूरस्थ इलाकों से भगवान के दर्षन करने पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को भोजन कराने की परिपाटी की जानकारी मिली। इसके बाद षिवरीनारायण में भी इस परिपाटी को माघी पूर्णिमा के अवसर पर शुरू की गई, जो आज भी जारी है।
नारायण सेवा समिति के कई सदस्य दो दिनों तक पूरी तन्मयता के साथ जुटे रहते हैं, वहीं षिवरीनारायण के कई उत्साही युवक भी समाजसेवा की भावना से लबरेज होकर भोजन परोसने से लेकर श्रद्धालुओं की अन्य सेवा में जुटे रहते हैं। लोट मारकर मंदिर के पट तक पहुंचने वाले लोगों को भोजन का कूपन दिया जाता है और उन्हें पास ही भोजन स्थल की जानकारी दी जाती है। इस तरह भगवान ‘नर-नारायण’ के दर्षन के बाद श्रद्धालु, भोजन प्राप्त करने पहुंचते हैं। 
माघी पूर्णिमा से शुरू होने वाले षिवरीनारायण मेले की पहचान काफी प्राचीन है। अविभाजित मध्यप्रदेष के समय से ही षिवरीनारायण का 15 दिवसीय मेला, सबसे बड़ा मेला रहा है। छग के निर्माण के बाद भी षिवरीनारायण मेले की वही पहचान आज भी कायम है। महाषिवरात्रि तक मेले में रोजाना लाखों की संख्या में भीड़ जुटती है।   षिवरीनारायण की महत्ता इसलिए भी है कि इस धार्मिक नगरी को पुरी के भगवान जगन्नाथ का ‘मूल स्थान’ माना जाता है और किवदंति है कि भगवान जगन्नाथ, माघी पूर्णिमा को एक दिन षिवरीनारायण में विराजते हैं, इसलिए भगवान के दर्षन के लिए भक्तों को सैलाब उमड़ पड़ता है। माघी पूर्णिमा पर चित्रोत्पला महानदी के त्रिवेणी संगम में स्नान के बाद श्रद्धालु, भगवान नर-नारायण के दर्षन करने पहुंचते हैं। हजारों भक्त ऐसे होते हैं, जो भगवान के द्वार तक लोट मारते पहुंचते हैं और आषीर्वाद प्राप्त करते हैं। खास बात यह भी रहती है कि दूर-दूर से लोट मारकर आने वाले भक्तों के चेहरों में थकान कहीं नजर नहीं आती, इसे वे भगवान की कृपा ही मानते हैं।


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