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31.3.14

सियासत के रंग ।(गीत)


सियासत के रंग ।(गीत)

ये  सियासत के रंग  भी  बड़े अजीब  होते  हैं..!
अवाम  से ज्यादा  जहाँ, नेता  गरीब  होते  हैं ।

अन्तरा-१.

यहाँ - वहाँ, जहाँ - तहाँ, मिले जाने कहाँ - कहाँ..!
कलेजा  कतरने वालों के  हज़ार  मुरीद  होते  हैं..!
ये   सियासत के   रंग  भी  बड़े   अजीब  होते  हैं..!

मुरीद= अनुयायी


अन्तरा-२.

पेट में  दहकते  शोले, खेत में   चहकते  निवाले..!
मुँह  तक  आते-आते, सिर्फ वादे  करीब  होते  है ?
ये  सियासत के  रंग  भी   बड़े   अजीब  होते  हैं..!

अन्तरा-३.

सियासी  कूड़ेदान  में   तलाशे   सुकून   मगर..!
शान से  पाले अरमान, कायम  रकीब  होते  हैं..!
ये  सियासत के  रंग  भी  बड़े  अजीब  होते  हैं..!

कूड़ादान= डस्टबीन; रक़ीब = शत्रु, दुश्मन, वैरी,

अन्तरा-४.

जूझते  रहो, तुम  घुटते   रहो, बस  लूटते  रहो..!
दुनिया में सब के, अपने-अपने नसीब  होते  हैं ।
ये  सियासत के   रंग  भी   बड़े  अजीब  होते  हैं..!

घुटन=बेचैनी 

अन्तरा-५.

`नेताजी, तुम आगे  बढ़ो, हम तुम्हारे  साथ  है..!`
चीखने  वाले    सारे,   हराम - हबीब   होते   हैं ।
ये  सियासत के  रंग  भी  बड़े  अजीब  होते   हैं..!

हराम=छल-कपट,बदनीयत; हबीब = दोस्त,मित्र ।

मार्कण्ड दवे । दिनांक - ३१-०३-२०१४.


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कौन हैं कांग्रेस के समलैंगिक?-ब्रज की दुनिया


31-03-2014,ब्रजकिशोर सिंह,हाजीपुर। मित्रों, आपने ऩकलची बंदर की कहानी जरूर पढ़ी होगी परंतु हो सकता है कि आपको कहानी को जीने का अवसर नहीं मिला हो। अगर सचमुच में ऐसा है तो भी घबराने की कोई जरुरत नहीं है। बंदर को नकल करते हुए नहीं देखा तो क्या आप जब चाहे एक राजनैतिक दल को ऐसा करते हुए देख सकते हैं। आपने एकदम ठीक समझा है! मैं भारत की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की ही बात कर रहा हूँ। उसी कांग्रेस की जिसकी नीतियों में हमेशा मौलिकता की कमी रही है और जो हमेशा से विदेशी सरकारों की नकल करती रही है। इसकी सरकारों के मंत्री सरकार चलाने के गुर सीखने के लिए अक्सर विदेश जाते रहे हैं और फिर वापस आकर उन विदेशी नीतियों को बिना थोड़ा-सा दिमाग खर्च किए लागू करने लगते हैं जबकि भारत की स्थितियाँ अमेरिका-यूरोप से साफ इतर होती हैं। जाहिर है कि फिर उन आयातित योजनाओं का अंजाम वही होता है जो होना होता है।
मित्रों,नकल की यह कहानी पं. नेहरू के समय से ही कांग्रेसी नेताओं द्वारा बार-बार दोहराई जा रही है। बात सिर्फ आर्थिक नीतियों तक सीमित होती तो फिर भी गनीमत थी लेकिन अब कांग्रेस नेता जबर्दस्ती भारत के समाज को अमेरिकी-यूरोपियन समाज बना देना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि भारत में भी यौन-क्रांति की स्थिति उत्पन्न हो जाए। तभी तो बलात्कार की बाढ़ आने के बाद भी कांग्रेस सरकार ने सनी लियोन को भारत आने और फिल्में बनाने से नहीं रोका। तभी तो दिल्ली के रेप कैपिटल बन जाने के बाद भी भारत में अच्छे-अच्छों के दिमाग खराब कर देनेवाली पोर्न वेबसाईटों पर रोक नहीं लगाई गई। तभी तो समस्या मस्तिष्क-प्रदूषण से है लेकिन ईलाज कानून बनाकर किया जा रहा है। तभी तो जबसे केंद्र में माँ-बेटे का शासन कायम हुआ है बार-बार समलैंगिकता का समर्थन किया जा रहा है। तभी तो अभी कुछ महीने पहले जब सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिकता को सामाजिक अपराध कहा था तब कांग्रेस के युवराज ने झटपट समलैंगिकता का पक्ष लेते हुए इस पर भाजपा से उसके विचार पूछ लिए थे। तभी तो पार्टी के घोषणा-पत्र में भी समलैंगिकता को वैधानिकता प्रदान करने के नायाब व क्रांतिकारी वादे किए गए हैं।
मित्रों, कांग्रेस के युवराज और महारानी को यह मालूम नहीं है कि भारत भारत है नार्वे या इंग्लैंड नहीं जहाँ की जनसंख्या के 20-30 प्रतिशत लोग घोषित समलैंगिक हो चुके हैं और इस तरह बहुत बड़े वोटबैंक में तब्दील हो चुके हैं। मैं समझता हूँ कि भारत में अभी भी कुछ सौ या कुछ हजार से ज्यादा घोषित समलैंगिक नहीं हैं। फिर राहुल और सोनिया गांधी क्यों समलैंगिकता ही नहीं बल्कि वेश्यावृत्ति को भी वैधानिक मान्यता देने की हड़बड़ी में हैं? कांग्रेस में ऐसे कौन-से समलैंगिक लोग हैं जिनको खुश करने के लिए इस तरह के गंदे प्रयास किए जा रहे हैं? आखिर एक स्त्री एक स्त्री से और एक पुरुष एक पुरुष से विवाह करके समाज के लिए कौन-सा अमूल्य योगदान कर पाएगा? क्या ईश्वर ने हमें जो अंग जिस काम के लिए दिए हैं उसको उसी काम के लिए प्रयोग में नहीं लाया जाना चाहिए? क्या ऐसा नहीं करना प्रकृति के नियमों के साथ मजाक नहीं होगा? क्या कांग्रेसी मुँह से मलत्याग या गुदा से भोजन कर सकते हैं? अगर नहीं तो फिर अप्राकृतिक यौनाचार को मान्यता देने पर वे इतना जोर क्यों दे रहे हैं? क्या इन अश्लील,घोर भोगवादी और विनाशकारी प्रवृत्तियों को कानून बनाकर बढ़ावा देने से भारतीय समाज के ताने-बाने के बिखर जाने का खतरा उत्पन्न नहीं हो जाएगा? क्या कांग्रेस को उस भारतीय संस्कृति की कोई चिंता नहीं है,क्या उसको उस भारतीय संस्कृति पर गर्व नहीं है जिस पर गर्व करते हुए कभी इकबाल ने कहा था कि यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गए जहाँ से, अब तक मगर है बाकी नाम-ओ-निशाँ हमारा, कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी, सदियों रहा है दुश्मन दौरे जमां हमारा। (हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

30.3.14

निरन्तरता

निरन्तरता 

हथोड़े की पहली चोट खाकर बड़ी चट्टान ने भयँकर अटटहास किया और नन्हे से 
हथोड़े से व्यंग से पूछा -तेरे नन्हे से शरीर पर चोट तो नहीं लगी ना ,मुझ पर प्रहार 
करके तेरा अस्तित्व ही मिट जायेगा। 

हथोड़े ने जबाब दिया -मुर्ख चट्टान ,मैं जानता हूँ कि तुम बहुत बड़ी हो और मैं 
बहुत छोटा सा हूँ मगर मेरी छोटी चोटे जब निरंतर तेरे पर पड़ेगी तब तुम 
चकनाचूर हो जाओगी। इतना कहकर हथोड़े ने सतत चोट करना चालु रखा.कुछ 
समय बाद चोट खा -खा कर चट्टान चटखने लग गयी और अपना अस्तित्व खो 
बैठी। 

हर समस्या और मुश्किल आरम्भ में हमें डराने की कोशिश करती है उसकी 
विकरालता को देख कर हम खुद पर संदेह करने लग जाते हैं हम में से ज्यादातर 
हार मान कर ध्येय बदलने की क्रिया अपना लेते हैं यानि मुश्किलों को खुद पर 
हावी होने देते हैं। बहुत कम लोग खुद पर विश्वास रखते हैं और समस्या पर निरन्तर 
चोट करते हैं मगर जो लोग आत्म विश्वास के साथ सतत प्रयास करते हैं उनको 
हम सफल व्यक्ति कहते हैं। सतत प्रयास करते रहने से मुश्किलें आसान बन जाती 
है और हमें आगे बढ़ने का रास्ता दे जाती है। 

चिंता नहीं ,लगातार प्रयास।       

संतोष की जगह खीझ पैदा करती है वैशाली जिले की सरकारी वेबसाईट-ब्रज की दुनिया

30-03-2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,कई साल पहले लालू जी बिहार में चीख-चीखकर कहा करते थे कि विकास करने से कहीं वोट मिलता है और यह आईटी-फाईटी क्या है। सत्ता बदली तो बदली हुए सरकार ने जनता को सूचना-क्रांति और इंटरनेट के जरिए सरकारी योजनाओें और जानकारियों तक आसानी से पहुँच बनाने की पहल शुरू की। प्रदेश के सभी जिलों की सरकारी वेबसाइटें बनाई गईं जिससे बहुत से जिलों की जनता को लाभ भी हुआ लेकिन दुनिया के सबसे पुराने गणतंत्र वाला वैशाली जिला इसका अपवाद ही बना रहा।
मित्रों,न जाने क्यों जबसे इस जिले की सरकारी वेबसाईट बनी है तभी से पिछले 8-10 सालों से इस वेबसाईट की सारी महत्त्वपूर्ण लिंक काम नहीं करती हैं। अर्थात् आप क्लिक करते-करते परेशान हो जाईएगा लेकिन वह लिंक नहीं खुलेगा। उदाहरण के लिए वेबसाईट पर District Vaishali welcomes you all,DISTRICT PROFILE,AT A GLANCE,MNREGA Yojna,IMPORTANT CONTACTS,Citizen Services/Online Registration,BPL SURVEY,IAY,SMS MONITERING SYSTEM,DPMC,RTI ACT,ASSET DECLARATION,PUBLIC UTILITY SERVICES,मतदाता जागरुकता अभियान जैसी दर्जनों जनता के काम आनेवाली लिंक हैं जो काम नहीं करतीं। परिणामस्वरुप जो जनता का जो काम घर बैठे हो जाना चाहिए उसके लिए उनको महीनों दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ते हैं और जो जानकारियाँ उनको इस वेबसाईट से घर बैठे मिल जानी चाहिए उसके लिए उनकों सैंकड़ों आरटीआई डालने पड़ते हैं। कदाचित् उसके बाद भी उनके कई काम नहीं हो पाते और वांछित जानकारी भी नहीं मिल पाती। विडंबना यह है कि इस समय राज्य के सूचना और जनसंपर्क मंत्री इसी जिले के रहनेवाले हैं।
मित्रों,वेबसाईट पर सबसे नीचे एक स्क्रॉल चलती रहती है जिसमें जिले में चल रही विभिन्न सरकारी गतिविधियों से संबंधित करीब एक दर्जन लिंकें हैं पूरी वेबसाईट में सिर्फ यही चंद लिंकें काम कर रही हैं। जाहिर है कि जिन लोगों के मजबूत कंधों पर इस वेबसाईट के चलाने की जिम्मेदारी दी गई है वे घोर लापरवाह और आलसी हैं। उन्होंने लिंकों की जगह कोरे शब्द डाल दिए हैं लिंकों के लिंक नहीं डाले। लिंक काम करेगा तो डाटा को बराबर अपडेट भी करना पड़ेगा न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी। लेकिन इस वेबसाईट के सारे महत्त्वपूर्णों लिंकों के काम नहीं करने के कारण वैशाली जिले के निवासियों की जिन्दगी जरूर बेसुरी हो गई है। जबसे वेबसाईट का निर्माण हुआ है तभी से यही हालत है और आश्चर्य की बात है कि जिले के किसी भी प्रशासनिक अधिकारी ने अबतक इस तरफ ध्यान ही नहीं दिया। लिंकों के काम नहीं करने से फायदा तो उनको भी है। जाहिर है कि SMS MONITERING और UTILITY SERVICES जैसी सेवाओं के लिंकों के काम करने पर उनकी जिम्मेदारी भी काफी बढ़ जाती जिससे वे फिलहाल बच जा रहे हैं।
मित्रों,बिहार में चाहे सूचना तकनीक से जनता को फायदा पहुँचाने की योजनाएँ हों या फिर कोई भी अन्य योजना यहाँ आकर वे दम तोड़ देती हैं। कारण बस इतना-सा है कि उनके क्रियान्वयन पर ध्यान नहीं दिया जाता। दुर्भाग्यवश इस समय बिहार के जो मुख्यमंत्री हैं वे देश के सबसे बड़े फोकसबाज नेता हैं। कागज पर तो वे सबकुछ कर दे रहे हैं लेकिन धरातल पर कुछ भी नहीं करते। मैं इस आलेख की एक कॉपी उनको भी भेजने जा रहा हूँ शायद वे इस दिशा में पहल कर ही दें और वैशाली जिले की वेबसाईट जिले की जनता को सिर्फ संतोष प्रदान करने लगे और भविष्य में उनके मन में आक्रोश और खींझ उत्पन्न न करे। मैं आपको वैशाली जिले की वेबसाईट का लिंक भी दे रहा हूँ जिससे आप खुद ही अनुभव करके जान जाईएगा कि राज्य में सुशासन कैसे काम कर रहा है-http://vaishali.bih.nic.in/
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

विस्थापित कश्मीरी और गूँगे नेता

विस्थापित कश्मीरी और गूँगे नेता 

विचित्र नाम है धर्म निरपेक्षता ,हमारे देश के वोट बैंक परस्त नेता इस लिबास से खुद
को ढके रहना पसँद करते हैं ,तुष्टिकरण के रास्ते पर बढ़ती हुयी धर्म निरपेक्षता गन्दा
नाला बन रही है और उसकी इस बदबू से हर कौम बेहाल है। कोई नेता अपनी वोट बैंक
को खुश करने के लिए किसी अन्य नेता को "नपुँसक "कहता है तो कोई जबरदस्ती
"धार्मिक टोपी "पहनाना चाहता है तो कोई नेता वोटबैंक को चरमपन्थ की ओर धकेलता
हुआ "आतँकी सोच" की आग बरसाता है। अपने को धर्म निरपेक्ष कहने वाली पुरानी पार्टी
किस प्रकार की सोच रखती है यह देश देख भी रहा है और भुगत भी रहा है। जब देश का
प्रधान भी वोटबैंक के मोह में राजधर्म भूल कर तुष्टिकरण वाली सोच को सरे आम यह
कह कर प्रगट करता है कि देश के संसाधनों पर पहला हक़ वोटबैंक वाले समूह का है
तो समानता की आशा खत्म हो जाती है।

 उत्तर प्रदेश के क्षेत्रीय दल,बिहार के क्षेत्रीय दल ,आसाम के क्षेत्रीय दल और बंगाल के
क्षेत्रीय दल सब के सब दोगली वाणी और दोगला आचरण रखते हैं। एक भारतीय से
सौतेला व्यवहार और दूसरे से वोटबैंक के कारण तुष्टिकरण का व्यवहार। इन प्रदेशो
में केवल दंगे ,गरीबी ,धार्मिक और सामाजिक कटुता की फसल पकती है। बहु संख्यक
में जातिगत फूट पैदा करना और वोटबैंक को विकास की मुख्य धारा से अलग -थलग
रख कर शासन चलाना यही इनकी नीति रही है।

नयी नयी राजनीति में आयी पलटू की सोच भी इन पार्टियों जैसी ही है ,वोटबैंक को
बनाने के चक्कर ये तो राष्ट्र विरोधी विचार भी खुल कर बकते हैं इनके पास कश्मीरी
विस्थापितों के दर्द के लिए शब्दों की सहानुभूति भी नहीं है मगर कश्मीर पर जनमत
संग्रह कराने की वकालात जरुर करते हैं।

बहुसंख्यक हित की रक्षा की बात करना आज कितनी पार्टियों को सुहाता है ?वोट बैंक
का अनुचित हित साधने के लिए ये सब तत्पर रहते हैं ?क्या विस्थापित हुए कश्मीरी
लोगों के लिए इन पार्टियों ने कभी कोई वादा भी किया है,कभी संवेदना भी जतायी है ?
क्या गुनाह था इनका जो आज भी अपने देश में विस्थापित की तरह जीना पड़ता है ?
देश के आतंकियों के जनाजे पर आँसू बहाने वाले तथाकथित निरपेक्ष नेताओं की
आँखे उस समय क्यों सूख जाती है जब विस्थापित कश्मीरियों के हक़ की बात आती है ?
ये मानवाधिकार की बातें करने वाले भद्र कहलाने का शौक रखने वाले लोग तुष्टिकरण
के पक्ष में घंटो बहस करते हैं मगर कश्मीरी विस्थापितों के हक़ की बात नहीं करते हैं।
प्रशांत भूषण जैसे लोग इन पण्डितों के दर्द को भूल कर कश्मीर पर क्या बयान देते हैं
यह हर राष्ट्रवादी को याद है।

इस चुनाव में हम राष्ट्र के लिए वोट करें ,विस्थापित भाइयों के दर्द को दूर करने के लिए
वोट करे,देश से घुसपैठियों को खदेड़ने के लिए वोट करे,आतँकवादी सोच से लड़ने के
लिए वोट करे,हर भारतीय को मुख्यधारा में लाने का मार्ग प्रशस्त करने के लिए वोट
करे ,शांति और सुरक्षा के लिए वोट करे,जिन लोगो ने देश को सिर्फ वादे दिए हैं हम
भी उन्हें सपना ही दिखाए और वोट विकास के लिए करे।             

27.3.14

हाथ की लकीरें । (गीत)


हाथ की लकीरें । (गीत)

हाथ  की  लकीरें, कितनी रूहानी  हो  गई..!
जिंदगी  पल - पल   जैसे, रूमानी  हो  गई ।

रूहानी= आध्यात्मिक;  रूमानी=रोमांच पैदा करने वाली

अन्तरा-१.

कहती है  फ़ितरत, बारबार मुझे कि देख..!
दास्तां- ए -मुहब्बत  बदगुमानी  हो  गई..!
हाथ की लकीरें, कितनी रूहानी हो  गई..!

फ़ितरत= स्वभाव, प्रकृति; बदगुमानी=गलतफहमी

अन्तरा-२.

अभी तो जवाँ  होने  लगी थी मुहब्बत  कि..!
तवारीख़ के चंद पन्नों पर कहानी हो गई..!
हाथ की  लकीरें, कितनी  रूहानी हो  गई..!

तवारीख़=इतिहास 

अन्तरा-३.

सुना  हैं, मेरी  शख्सियत  मिज़ाजी  हो  गई..!
देख  लो, दुनिया  कितनी  सयानी  हो  गई..!
हाथ की   लकीरें, कितनी   रूहानी  हो  गई..!

शख्सियत=व्यक्तित्व;  मिज़ाजी=चिड़चिड़ेपन का दौरा,
सयानी=चालाक ।


अन्तरा-४.

धुन्धली डगर, अजान सफर, बेजान नज़र? 
यही   बात   मेरे   होने की  निशानी  हो  गई?
हाथ की   लकीरें, कितनी  रूहानी  हो  गई..!

अजान=अपरिचित ।

मार्कण्ड दवे । दिनांक - २६/०३/२०१४.

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केजरीवाल को मोदी द्वारा पाक का एजेंट कहे जाने पर हुए हल्ले के सन्दर्भ में यह समझा जाना बहुत जरूरी है कि ये आप वाले किस प्रकार अघोषित पाक एजेंट साबित हो रहे हैं । पाकिस्तान आखिर भारत में क्या चाहता है ? पाक भारत में अस्थिरता फैलाना चाहता है । अपनी रैलियों में केजरीवाल पूछते हैं कि ये स्थिरता पर वोट मांगे जा रहे हैं तो ये स्थिरता क्या है । स्थिरता की  जरूरत ही क्या है ? इस देश को एक ईमानदार सरकार चाहिए न कि स्थिरता । वाह , जो केजरीवाल खुद तो भाग गए उनपचास दिन की  सरकार के बाद और वे यह दावा करते हैं कि इस देश को स्थिरता के बजाय ईमानदार सरकार चाहिए । सही है लेकिन केजरीवाल के मुह से अच्छी नहीं लगती । पाक भी तो यही चाहता है कि भारत में स्थिरता नहीं आनी  चाहिए क्योंकि स्थिरता से भारत मजबूत होगा ।
केजरीवाल कहते हैं कि मई अराजक हूँ । पाकिस्तान क्या चाहता है ? भारत में अराजकता ? तो भाई यह तो पाक की  ही इच्छा पूरी हुई । आखिर केजरीवाल किसके उद्देश्यों को पूरा कर रहे हैं ? पाक के न ।
पाक क्या चाहता है कि कश्मीर पर उसका अधिकार हो जाए । तो उसका यह उद्देश्य भी केजरीवाल पूरा कर रहे है । इनकी अपनी साईट पर कश्मीर को भारत का हिस्सा ही नहीं दिखाया गया । भारत का नक्शा कश्मीर रहित दिखाया गया हालांकि पोल खुलने के बाद इन्होने फ़टाफ़ट हटा लिया । प्रशांत भूषन जब तब हरकत करते ही रहते हैं ।
पाक क्या चाहता है ? कश्मीर पर जनमत संग्रह । ये भी चाहते हैं कि कश्मीर पर जनमत संग्रह हो ।
पाक क्या चाहता है ? भारत में नक्सल समस्या बरकरार रहे । ये भी नक्सलियों को सपोर्ट करते ही हैं ।
पाक क्या चाहता है कि भारत कभी भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं से न निपट सके और तंगहाल रहे । ये भी मोदी
पाक मोदी से नाखुश है मगर केजरीवाल से खुश है । वहाँ के अख़बार इन केजरीवाल की प्रशंसा में रंगे  पड़े हैं । यानि यदि ये पाक को खुश करने में लगे हैं तो फिर हमारे शत्रु को खुश करने वाला क्या कहलायेगा ।
इन्हे सबसे सवाल पूछने का शौक है पर जवाब देने का नहीं ।
क्या कमाल है । यूं पी ए  को यह हराना चाहते हैं । एन डी  ए  को आने नहीं देना चाहते । खुद सत्ता में आना नहीं चाहते । हो गयी न अराजकता । पाक की  इच्छापूर्ति  ।
हाफिज सईद  जैसे लोग इनसे और हमारे गृहमंत्री रक्षामंत्री आदि से बड़े खुश हैं क्योंकि इनकी बातें उनकी मदद गार ही साबित होती हैं । सो समझिये इनके इरादों को । 
विरोध के द्वारा और यू पी ए  को बनाये रखकर यही हाल देश का करना चाहते हैं ।
मजेदार बात यह है कि यू पी ए  सत्ता में है लेकिन इनकी लड़ाई मोदी से हो गयी है । ये सारा ध्यान देश व यूं पी ए  के भ्रष्टाचार से हटाकर मोदी और गुजरात पर ले जाना चाहते हैं और मोदी और गुजरात को बदनाम कर के पाक के नापाक उद्देश्यों को पूरा करना चाहते हैं ।
इसलिए मोदी कहें या न कहें , ये देश के शत्रुओं की  ही मदद कर रहे हैं । इनके लोग कह रहे हैं कि नक्शे में तो किन्ही अन्य कारणों से कश्मीर को हाईलाइट नहीं किया गया । लेकिन इनके भारत नक़्शे में कश्मीर है ही नहीं । और यदि कोई अन्य कारण था तो हटा क्यों लिया ।
इसलिए केजरीवाल नापाक साबित हो गए हैं जिनका नाम लेने पर अन्ना  तक को कहा पड़ा कि शुभ शुभ बोलें ।  इसलिए केजरीवाल को समझना बहुत जरूरी है । वे पाक के ही मदद गार साबित हुए है ।

छद्म निरपेक्षता के अलावा सब सलामत

छद्म निरपेक्षता के अलावा सब सलामत 

जब भी हिन्दुस्थान में चुनाव आते हैं देश के अकर्मण्य नेताओं को धर्मनिरपेक्षता की
याद सताती है। सबको साम्प्रदायिकता से भय लगता है ,परन्तु कोई राजनेता स्पष्ट
नहीं करता है कि उसको किस साम्प्रदायिकता से खतरा है।

विश्व का हर धर्म दया ,करुणा और मैत्री का सन्देश देता है और मानवीय सहयोग की
भावना से ओतप्रोत है। इस देश में हर धर्म सलामत है ,हर आस्था सलामत है सिवाय
छद्म निरपेक्षता के।

मानव -मानव में भेद का पाठ इस देश को किस राजनीति ने सिखाया ?क्या पक्षपात
करके राजनीतिज्ञों ने हिन्दू प्रजा का दिल नहीं दुखाया ,आज कितने राजनीतिज्ञ ऐसे
बचे हैं जो खुले मंच से इस देश को हिन्दुस्थान कहते हैं या हिन्दुस्थान जिंदाबाद का
नारा देते हैं ,हमारे बौने राजनीतिज्ञों से तो अच्छे वो पडोसी देश हैं जो हमारे देश की
पहचान "हिन्दुस्तानी सल्तनत "से करते रहे हैं। जब इस देश का प्रधान सरे आम
मानव -मानव में भेद धर्म देख कर करता है तो हिन्दुस्तानियों का माथा शर्म से झुक
जाता है। हिन्दू अपने धर्म पर गर्व करे ,अपनी हिंदुत्व की संस्कृति पर गर्व करे तो
इसमें अँधे राजनेताओं के पेट में दर्द क्यों होता है ,हिन्दुस्थान पर राज करने की इच्छा
भी है और हिंदुत्व से परहेज भी।

यह देश तभी सलामत रहेगा जब हम अपने -अपने धर्म पर गहरी निष्ठा और गर्व रखेँगे।
हिन्दू  अपने धर्म के प्रति निष्ठावान बने ,मुस्लिम अपने धर्म के प्रति निष्ठावान बने ,ईसाई
अपने धर्म के प्रति आस्थावान बने क्योंकि सब धर्म मानवता की भलाई के लिए बने हैं ,
हम सबको धर्म के मूल सिद्धान्त को कस कर पकड़ लेना है जो परोपकार से जुड़ा है। इस
देश में धर्म कभी विवाद उत्पन नहीं करते हैं ,विवाद उत्पन करते हैं सत्ता के भूखे
राजनीतिज्ञ,इन लोगों को सत्ता चाहिए और सत्ता के लिए अच्छे हथियार की जगह ओछे
हथियार के रूप में एक धर्मावलम्बी को दूसरे धर्मावलम्बी से लड़ाते हैं और ये निकृष्ट
खेल आजादी के पहले से अभी तक खेल रहे हैं। आज हर संसदीय क्षेत्र में चुनाव लड़ने
वाला उम्मीदवार जाती और धर्म की अंक गणित देख कर पर्चा भरता है ,क्यों ?हम
भारतीय नागरिक भी इसी निगाह से चुनाव की गणित का अभ्यास करते हैं ?हम
मतदान भी जातिगत और धर्म के आधार पर करते हैं ,क्यों ? जब तक विकास के मुद्दे
को हासिये पर धकेलते रहेंगे तब तक हम अभावग्रस्त जीवन ही जियेंगे।

इस देश में हर धर्म सलामत है इसमें शंका का कोई स्थान नहीं है। विश्व का हर धर्म
सही राह पर आगे बढ़ना सिखाता है इसमें किसी को शँका नहीं है। हम अपने -अपने
धर्म पर गर्व करे इसमें किसी को ऐतराज नहीं है। ऐतराज है तो सिर्फ भ्रष्ट बुद्धि वाले
राजनीतिज्ञों को ,क्योंकि जैसे ही हम मानव धर्म को मुख्य मान लेँगे तो उनकी चूलें
हिल जायेगी। आओ ,इस बार हम विकास के लिए मिलकर मतदान करे,हम गरीबी
को मात देने के लिए मतदान करे,उज्जवल भारत के लिए मतदान करे। निर्भीक बने
और निर्भीक सरकार चुने।   
    

26.3.14

धुर्त राजनीतिज्ञों से बच के रहना हिन्दुस्तानियों

धुर्त राजनीतिज्ञों से बच के रहना हिन्दुस्तानियों 

हर पाँच साल बाद भारत में चुनावी महाभारत खेला जाता है और गरीब भारतीय
शास्त्री और वाजपेयी के समय को छोड़ हर बार धुर्त राजनीति में फँस जाता है ।
हिन्दुस्थान अपनी असल पहचान को तरस गया। राजनीतिज्ञों ने बुरी तरह से
भारतीयता को घिस दिया ,मानव -मानव के बीच विद्वेष का जहर घोल दिया।
हिन्दू धर्म के लोगों को आपस में लड़ाया और बाँटा। मुस्लिम समाज को मुख्य
धारा से अलग रखा। भारतीयों को आपस में धर्म ,जाति और संस्कृति के बहाने
लड़ाया ,आपस में भय और शंका के माहौल में रहने को विवश किया। इससे देश
पिछड़ गया मगर धुर्त राजनीतिज्ञ कुबेर बन गये।

अब से आने वाले हर पाँच साल का चुनाव भारी परिवर्तन लाता जायेगा क्योंकि
आने वाला वक्त शिक्षित भारतीयों का आ रहा है जिसके पास ज्ञान है ,श्रम है ,
तथ्य को परखने की ताकत है। लोक लुभावन योजनाओं की घोषणाएँ करने
वाले राजनीतिज्ञ हासिये पर आते जायेंगे मगर शिक्षित भारतीयों को हर पल
जागरूक रहना होगा क्योंकि अभी से कुछ शिक्षित लोग धुर्त राजनीतिज्ञों के
चरण चाटने लग गये है ,समाजसेवियों की छवि का सहारा लेकर उत्पात के
मार्ग पर देश को ले जाना चाहते हैं ।

इस बार परिवर्तन हो रहा है ,स्पष्ट दिखता है और उसके पीछे जो ऊर्जा लगी
है वह युवा भारत है जो काम चाहता है ,विकास चाहता है ,रोजगार के अवसर
चाहता है। युवा भारत माला ,टोपी या क्रॉस के नाम पर झगड़ नहीं रहा है और
ना ही इस अंक गणित पर वोट करता है,युवा भारत अब अपने भविष्य को
उज्जवल देखना चाहता है इसलिए वह भ्रष्ट तंत्र के खिलाफ लड़ भी रहा है और
विकास का साथ दे रहा है। युवा भारत एक बार विश्वास करके धोखा खा सकता
है पर मौका मिलते ही, तुरंत, बिना लाग लपेट के धुर्त नेताओं को मुख्य राजनीति
के पथ से बाहर धकेल देता है ,बराबर झाड़ पोंछ के साफ कर देता है।

बड़े -बड़े महारथी इस बार चुनावी मैदान से भाग कर चोर दरवाजे को खटखटा
रहे हैं ,बड़े -बड़ों की नींद हराम हो रखी है,यह सब मोदी के कारण नहीं हुआ है ,
मोदी ने तो सिर्फ युवाओं को जखजोरा है ,जागृत किया है ,स्वाभिमानी भारत
का सपना मोदी ने दिखाया और युवा उसे साकार करने में जुटा है। अब वादे
नहीं चलने वाले,नारे नहीं चलने वाले ,छद्मवाद या धुर्तता नहीं चलने वाली,यह
चुनाव युवा भारत संचालित कर रहा है जिसे ताकतवर नेता का चयन करना
आता है ,झूठे समाचार ,सडी-गली अफवाहें,भ्रम और मायाजाल का तिस्लिम
ख़त्म हो चूका है। भारत इस बार से ठोस इरादों वाले ऊर्जा सम्पन्न लोगों को
चुनेगा ,इस बार उनकी हार तय है जो केवल नारे देते हैं या कर्त्तव्य छोड़ भाग
खड़े होते हैं। युवा भारत धुर्त नेताओं के जाल से बचा रहे, यही अहम है।            

25.3.14

जागो वतन खतरे में है-ब्रज की दुनिया


25-03-2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,किसी शायर ने क्या खूब कहा कि "ले आई जिन्दगी हमें कहाँ पर कहाँ से, ये तो वही जगह है गुजरे थे हम जहाँ से।"  शायर ने कहा तो था यह खुद के बारे में लेकिन दुर्भाग्यवश यह शेर हमारे देश भारत की वर्तमान स्थिति पर भी खूब खरा उतर रहा है। हमारा देश एक बार फिर से सन् 1962 में पहुँच गया। तब तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने देश की सुरक्षा को जानबूझकर खतरे में डाला था। पहले 1948 में पाकिस्तान और बाद में 1962 में चीन से भारत को मुँह की खानी पड़ी।  हाल ही में युद्ध के समय नई दिल्ली मे उस वक्त विदेशी पत्रकार के रूप में तैनात मैक्सवैल द्वारा प्रकाशित की गई पुस्तक "इंडियाज चाइना वार" के अनुसार नेहरू जानते थे कि चीन भारत पर हमला करने वाला है लेकिन उन्होंने जानते हुए भी इस दिशा में कोई कदम नहीं उठाया। नतीजा यह हुआ कि भारत के सैनिकों को बिना गोली-बारूद के ही जंग के मैदान में उतार दिया गया। खुद मेरे मामा स्व. अरविन्द कुमार सिंह कई महीनों तक बंदूक लिए अरूणाचल के जंगलों में छिपे रहे और पेड़ के पत्ते खाकर जान बचाई।
मित्रों,एक बार फिर से भारतीय सेना के लिए गोला-बारुद की भारी कमी हो गई है। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार इस समय हमारी सेना के पास इतना भी गोला-बारुद शेष नहीं बचा है कि हम 20 दिनों तक लड़ सकें। उसी रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि भारत सरकार ने इस दिशा में जो कदम उठाए हैं उसके अनुसार अपेक्षित परिणाम आने में कम-से-कम 5 साल लगेंगे। भगवान न करे इस बीच अगर चीन और पाकिस्तान ने संयुक्त मोर्चाबंदी करके एकसाथ भारत पर हमला कर दिया तो देश की रक्षा कैसे हो पाएगी? क्या देश की सुरक्षा को खतरे में डालना हमारी वर्तमान केंद्र सरकार का आपराधिक कदम नहीं है और इस देशद्रोह के लिए इसमें शामिल सभी संबद्ध मंत्रियों को सजा नहीं दी जानी चाहिए? अगर कोई सैनिक या सैन्य अधिकारी युद्ध के दौरान गलतियाँ करता है तो उसका कोर्ट मार्शल कर दिया जाता है तो क्या उन लोगों को जिन्होंने जानबूझकर देश की सेना को कमजोर किया है को सजा नहीं मिलनी चाहिए?
मित्रों,मैं पहले भी इस केंद्र सरकार पर अपने आलेखों में आरोप लगा चुका हूँ कि इसने जानबूझकर न केवल देश की अर्थव्यवस्था को बल्कि देश की सुरक्षा को भी कमजोर किया है। यह वैसी ही बात है जैसे कि मेड़ खेत को खाने लगे। मैंने यह आरोप भी लगाए थे कि केंद्र सरकार में शामिल लोग एक साथ चीन,अमेरिका और पाकिस्तान के एजेंट हैं। वास्तव में देश पर इस समय ऐसे लोगों का शासन है जो चाहते हैं कि देश टूट जाए,समाप्त हो जाए। नहीं तो क्या कारण है कि हमारे समुद्रों में खड़े-खड़े ही एक-के-बाद-एक युद्धपोत और पनडुब्बियाँ डूबते जा रहे हैं? मैं नहीं मानता कि रक्षा मंत्री एके एंटनी ईमानदार व्यक्ति हैं। अगर ऐसा है भी तो वे मनमोहन सिंह की तरह के ईमानदार हैं जिनकी नाक के नीचे बेईमान जमकर लूट मचाए हुए हैं और श्रीमान इस्तीफा देने तक की जहमत नहीं उठा रहे हैं जबकि भारत के नौसेना अध्यक्ष कई हफ्ते पहले ही इस्तीफा दे चुके हैं।
मित्रों,जैसा कि मैंने आलेख की शुरुआत में ही कहा था कि हम फिर से 1962 में पहुँच गए हैं। ऐसा हुआ कैसे? आज हम शत-प्रतिशत साक्षरता के काफी निकट पहुँच चुके हैं फिर हमने ऐसे अयोग्य और देशद्रोहियों के हाथों में देश को सौंप कैसे दिया? तो क्या सिर्फ पढ़ा-लिखा होने से ही कोई कौम समझदार नहीं हो जाती? क्या भारत की जनता आज भी उतनी ही मूर्ख नहीं है जितनी कि वह 1962 में थी? पढ़ी-लिखी तो दिल्ली की जनता भी थी फिर लंपट-देशद्रोही-अराजकतावादी-सीआईए एजेंटों के हाथों में पिछले साल दिल्ली की सत्ता कैसे सौंप दी? क्या एक देशद्रोही पार्टी कांग्रेस को हटाकर दूसरी देशद्रोही पार्टी के हाथों देश को सौंप देना बुद्धिमानी कही जाएगी? भूलिए मत कि तब भी एक मेनन भारत-चीन दोस्ती के तराने गा रहा था और अब भी एक मेनन वैसे ही तराने गा रहा है। मैं नहीं जानता कि इस मेनन और इस मेनन में कोई सीधा रक्त संबंध है या नहीं लेकिन मैं इतना जरूर जानता हूँ कि उस नेहरू और इस राहुल गांधी के बीच जरूर सीधा रक्त संबंध है। मेनका गांधी ने एकदम सही सवाल उठाया है कि सोनिया अपने मायके से तो कुछ भी लेकर नहीं आई थी फिर वो कैसे दुनिया की सबसे अमीर छठी महिला बन गई? क्या देश की बर्बादी और सोनिया की समृद्धि के बीच कोई सीधा संबंध नहीं है?
मित्रों,जागिए नहीं तो फिर कभी चैन से सो नहीं पाईएगा। संकट अब सिर पर आ गया है। देश की सुरक्षा खतरे में है,देश खतरे में है। देश के दुश्मनों को पहचानिए और आनेवाले चुनावों में सिर्फ और सिर्फ एनडीए को वोट दीजिए क्योंकि आपने दिल्ली के विधानसभा चुनावों में भी देखा है कि एनडीए गठबंधन को वोट न देने का सीधा मतलब होता है कांग्रेस को वोट देना। क्योंकि चुनावों के बाद बाँकी सारे दल फिर से एकसाथ हो जाते हैं देश को लूटने के लिए। क्योंकि बाँकी किसी भी दल को कोई मतलब नहीं है कि देश बचेगा या देश का नामोनिशान मिट जाएगा। भूल जाईए कि आपके क्षेत्र से एनडीए का उम्मीदवार कौन है क्योंकि अब प्रश्न हमारे आपके लोकसभा क्षेत्र भर के विकास का नहीं है बल्कि अब प्रश्न-चिन्ह लग गया है भारत और भारत के वजूद पर,अस्तित्व पर। (हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

23.3.14

कोई बुराई नहीं है हर हर मोदी में । 
दिग्विजय सिंह के बयान के बाद जिस प्रकार से शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी हर हर मोदी के विरोध में उतर आये हैं वह बहुत ही हास्यास्पद सा मामला है । ये वही शंकराचार्य हैं जिनसे जब एक पत्रकार ने यह पूछ लिया था कि यदि नरेंद्र मोदी प्रधानमन्त्री बनते हैं तो ……… इतना कहते ही इन्होने उस पत्रकार महोदय के मुह पर एक थप्पड़ मार दिया था । यही वे शंकरचार्य हैं जिन्होंने सोनिया गांधी के अमेरिका में इलाज के दौरान भारत में उनके स्वास्थ्य  लाभ के लिए यज्ञ करवाया था । इसमें कोई बुराई नहीं है लेकिन जिस पद पर वे बैठे हैं उसमे उनके हर कार्य पर नजर राखी ही जायेगी । यदि शंकराचार्य  दिग्विजय सिंह जी की  टिपण्णी से पहले यह सब कह देते तब तो बात समझ आती लेकिन अपने राजनैतिक शिष्य की  आपत्ति के बाद शंकराचार्य को होश आना कि यह तो गलत है , विषय को ही संदिग्ध बना देता है । 
खैर , आइये , बात करें , हर हर मोदी की ।
जो बेकार की  बातें की  जा रही हैं उनका निस्तारण किया जाना जरूरी है । 
क्या डॉक्टर भगवान् होता है ? यदि नहीं तो क्या डॉक्टर को भगवान् कहना भगवान् का अपमान नहीं है ? यदि हाँ तो क्या खराब डॉक्टर को हम भगवान् मानेंगे या नहीं ? इस झगड़े में पड़ना चाहेंगे आप ? नहीं न ? तो फिर हर हर मोदी में क्यों ?
क्या जनता जनार्दन होती है ? जनार्दन यानि विष्णु । जनता को भी नेता की  निगाह में भगवान् का दर्जा दिया गया है । तो क्या यह भगवान् विष्णु का अपमान है ? यदि हाँ तो फिर अब तक आपत्ति क्यों नहीं ? और यदि नहीं तो फिर भावना क्या है ? और यदि उस विष्णु रूपा जनता ने हर हर मोदी कह दिया तो फिर हर हर मोदी में बवाल क्यों ?
शंकराचार्य स्वरूपानंद जी तो पार्टी विशेष के प्रति लगाव रखने के लिए जाने जाते हैं लेकिन आदि शंकराचार्य ने ब्रह्म सूत्र की  रचना की  । स्वरूपानंद जी ने भी ब्रह्मसूत्र अवश्य ही पढ़ा होगा । उसका पहला सूत्र है - तत् त्वम् असि । यानि वह तुम हो । यानि वह ब्रह्म तुम हो । यानि पहले ही सूत्र में गुरु शिष्य को समझाता है - तुम ब्रह्म हो । तो क्या यह उस ब्रह्म का अपमान हो गया । शंकराचार्य जी ने यह सीखा भी होगा और सिखाया भी होगा । तो क्या यह ब्रह्म का अपमान हो गया ।
फिर शिष्य से कहा जाता है कि वह बोले और आत्मसात करे - अहम् ब्रह्मास्मि । यानि मैं ब्रह्म हूँ । तो क्या यह ब्रह्म का अपमान हो गया ? शंकराचार्य विद्वान् हैं और यह भी उन्होंने पढ़ा होगा अवश्य ही । तो फिर हर हर मोदी में बवाल क्यों ?
शास्त्रों में कहा गया है कि - शुनि चैव श्वपाके च पंडिता समदर्शिनः । यानि पंडित लोग कुत्ते में और चांडाल में भी भेद नहीं करते । वे कुत्ते में और चांडाल में भी उस ही ब्रह्म को देखते हैं  जिसे वे स्वयं में ढूंढते हैं । तो फिर यहाँ पर किसका अपमान हो गया ? क्या कुत्ते और चांडाल में उसी ब्रह्म को देखना ब्रह्म का अपमान हो गया ? यदि नहीं तो फिर हर हर मोदी में बवाल क्यों ?
श्रीमद्भागवत में लिखा है कि भगवान् कहते हैं कि जो भक्त निरपेक्ष भाव से जीवन यापन करता है मैं उसके पैरों की धूल  से अपने को पवित्र कर लेता हूँ । क्या भगवान् अपना अपमान कर रहे हैं ? इंडिया इज इंदिरा और इंदिरा इज इंडिया कहने पर तो कुछ नहीं हुआ था ? वाजपेयी जी ने इंदिरा गांधी जी को दुर्गा कहा था तब तो दुर्गा जी का कोई अपमान नहीं हुआ था ? पांच दिन बाद नवरात्रों में कन्या पूजन उसी दुर्गा भावना से होने वाला  है तब तो देवी का कोई अपमान नहीं होगा तो फिर यह व्यर्थ की  बकवास क्यों ?
यह बकवास इसलिए क्योंकि जिस प्रकार पापी अपने पाप से मरता है वैसे ही कांग्रेस अपने आप ही ख़त्म होगी । इस प्रकरण से भी नरेंद्र मोदी जी को ही फायदा होगा क्योंकि प्रकृति ऐसा ही चाहती है ।
इसलिए जोर से बोलिये -
हर हर मोदी , घर घर मोदी ।
क्योंकि शास्त्र कहता है - शिवोहम्  यानि मैं शिव हूँ । यानि भक्त को कहा गया है कि वह स्वयं को शिव समझे । अब जब भक्त को यह कहा गया है कि वह स्वयं को शिव समझे तो फिर समस्या क्या है हर हर मोदी में । 

21.3.14

तिजोरी की चाबी

तिजोरी की चाबी

शाम के समय बगीचे में घूमने आये दोस्त ने दूसरे दोस्त को उदास देख कर पूछा -
आज बहुत उदास और खिन्न से हो ,क्या कोई चिंता सता रही है क्या ?

दूसरे ने जबाब दिया -यार ,कमाते -कमाते बुढ़ापा आ गया ,जो कुछ बचाया उसे 
सँजोकर रखा है मगर बेटा बोलता है तिजोरी की चाबी सौंप दो। अब बता यह कैसे 
सम्भव है और इस तिजोरी की चाबी की वजह से हर दिन अशांति है। 

पहले ने पूछा -बच्चा क्या कमाता है ?

दूसरा बोला -अच्छा खासा व्यापार चल रहा है ,सब सुख सुविधा है घर में लेकिन 
ना जाने क्यों उसकी नजर मेरी तिजोरी पर गड़ी है। एक बात बता ,तूने अपनी 
बचत को कैसे सहेज कर रखा है। 

पहला बोला -मेने जो कुछ बचाया ,बच्चे को यह कर थमा दिया कि इस तिजोरी 
की पहरेदारी अब मैं नहीं करूँगा ,अब तुम जबाबदारी सम्भालो और मुझे बुढ़ापे 
को निश्चिंतता के साथ जीने दो बस बच्चे को जबाबदारी समझा मैं मस्ती से 
बुढ़ापा गुजार रहा हूँ। 

अपने मित्र का उत्तर सुन पहले ने तिजोरी की चाबी को कस के पकड़ लिया और 
चिंता में लीन हो गया।  

20.3.14

इस तरह सफल होगा 272 + का प्लान

इस तरह सफल होगा 272 + का प्लान

भारत के लोकतंत्र में वर्षों बाद किसी नेता ने पूर्ण सपना देखा वरना इससे पहले
तो सभी नेता चाहे किसी भी दल के हो सबने जुगाड़ तंत्र के सपने देखे थे। जुगाड़ी
नेताओं ने मान लिया था कि भारत में आने वाले कई चुनावों में जुगाड़ तंत्र ही
चलने वाला है इसलिए सबकी मानसिकता जुगाड़ वाली हो गई। नरेंद्र मोदी ही
एक ऐसा नेता निकले जिन्होंने फिर पूरा सपना देखा ,उनकी टक्कर के नेता
जोड़ तोड़ की तन्द्रा में अभी भी घसीट रहे हैं। आइये देखते हैं एक तस्वीर जो
272 + की बन चुकी है

1. 272 + की जिद्द -सफल और आत्म विश्वास से भरे नेता की विशेषता होती
है कि वे अपने टारगेट को सफलता के पड़ाव बिंदु से आगे देखना चाहते हैं।
मोदी ने अपनी जीत के सपने को स्पष्ट रखा इससे उनकी पार्टी के कार्यकर्त्ता
जोश से लबालब भर गए ,जोश ही ऊर्जा बनता है और ऊर्जा ही प्रकाश फैलाती
है।
2.विशिष्ट  छवि - मोदी ने अपनी छवि को राष्ट्रवादी हिन्दू के रूप में रखा जो
सबको साथ लेकर चलने को तैयार है। मोदी ने हिंदुत्व को अन्य नेताओं की
तरह जन्म या धर्म से जोड़ कर नहीं देखा उन्होंने भारतीयता से जोड़ कर देखा
कोई भी कोम जो भारत पर गर्व करती है मोदी उनका विकास चाहते हैं।

3. वाक चातुर्य -मोदी उन गिने चुने नेताओं में से है जो वाक पटु हैं। शब्दों का
चयन,विषय पर पकड़ और जनता को बाँधे रखने की गजब की  क्षमता है।
विरोधियों की हलकी सी चूक को पूरी ताकत से पकड़ते हैं और उसकी विशाल
विकरालता को जनता के सामने उछाल देते हैं। बेचारे विपक्षी उसकी काट
ढूँढने में समय बर्बाद कर देते हैं।

4. लक्ष्य को पाने की ललक - मोदी के आर्थिक मॉडल में जटिलता नहीं है
इसलिए हर कोई उससे प्राप्त लाभ को महसूस करता है। मोदी जटिल काम
को निरन्तरता से अंजाम देते हैं जब तक लक्ष्य हासिल नहीं हो जाता तब
तक पसीना बहाते रहते हैं।

5. सरकार की हर भूल को भुनाना - सरकार की हर भूल पर पैनी नजर रखना
और अपने राज्य में उस भूल की जड़ को मिटाना,यह बड़ी मेहनत का काम
है मगर मोदी ने किया ,गुजरात के काम की तुलना में हर सरकार के काम को
देखना और उनकी कमजोर नस को बीच बाजार दबाना।

6. विरोधियों से प्रचार करवाना -मोदी को अपने प्रचार के लिए खुद के साथियों
के अलावा विरोधियों से भी मुफ्त प्रचार मिलता रहता है। हर एक पार्टी का नेता
अपने -अपने भाषण में मोदी का जिक्र करता रहता है जैसे हर एक सीट से मोदी
ही उम्मीदवार हैं। मोदी की आलोचना से उनके चाहने वाले पक्के बनते रहते हैं
और जो उनको नहीं जानते थे उनका ज्ञान हर नेता जनता को हर पल करवाता
रहता है।

7. पैनी व्युह रचना - मोदी की व्युह रचना उत्तम कोटि की होती है। छोटे से छोटे
पाशे पर गम्भीर चिन्तन और छोटे से छोटे विरोधी से सजग। साथीयों की खोज
में रहना और विरोधियों की फूट को अपने पक्ष में भुनाना। समाज के वर्ग विशेष
के मन को टटोलने की कवायद में लगे रहना। बूथ रचना से सोशियल मीडिया तक,
प्रिंट मीडिया से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तक सब जगह सुव्यवस्था।

8. विकास और व्यवस्था परिवर्तन के मुद्दे -मोदी की राष्ट्रवादी छवि और विकास
तथा परिवर्तन के मुद्दों की सरल व्याख्या जनता के दिल को छू लेती है। लोग
मोदी में भविष्य के सपने ढूँढ़ते हैं और मोदी गुजरात के विकास कामों को एक -
एक कर बताते जाते हैं और लोगों से आह्वान करते हैं उन पर भरोसा जताने का ,
विरोधीयों के तर्कों की धज्जियाँ उड़ाने में मोदी माहिर हैं।

9. राज्य के अनुसार टीम वर्क - मोदी जानते हैं की केवल विकास की बातों से
पूरी बात नहीं बनेगी। सपने को साकार करने के लिए जीत चाहिए और उसमें
जो नीति फीट बैठती हो उस पर डटे रहना है। राज्य के हिसाब से हर कार्ड को
खेलना है। मीडिया उनके बारे में क्या सोचता है या आलोचना करता है ,वे उस
पर कभी टिप्पणी नहीं करते ,उनकी अपनी टीम है और मौलिक सोच है।

10. अधूरे प्रतिस्पर्धी - मोदी को मजबूत प्रतिस्पर्धी नहीं मिले हैं ,विरोधियों
के कारनामें ,उनका कार्यकाल ,उनके राज्य की आन्तरिक अव्यवस्था ,
तुष्टिकरण की नाव में बैठे सभी प्रतिस्पर्धी ,विरोधियों की कथनी करनी का
फर्क ,बढ़ती महँगाई ये सब उनकी जीत में सहयोग कर रहे हैं।          

19.3.14

पेट की सलवटें । (गीत)

पेट की सलवटें । (गीत)
http://mktvfilms.blogspot.in/2014/03/blog-post.html

चल, पेट की  सलवटें, मिटाने की  कोशिश करें ।
हाँ,  इक  नए  नेता  की,  फिर  आज़माइश करें ।

अन्तरा-१.

गरीबी  का  बुखार है, फकीरी  का खुमार भी..!
चल, कड़ी  भूख  की  फिर  से  फरमाइश  करें ।
हाँ,  इक  नए  नेता  की, फिर आज़माइश  करें ।  

अन्तरा-२.

सुना   है,  ज़हर  की  खेती  होती  है  देश  में..!
चल, भीख में राशन की  फिर  गुजारिश  करें ।
हाँ,  इक  नए  नेता  की, फिर आज़माइश करें ।  

अन्तरा-३.

बच्चों  की  कसम  है  बाबू, अब वह रोते  नहीं..!
चंद  सांसों के लिए, क्यों न फिर सिफारिश करें ?
हाँ,  इक  नए  नेता  की, फिर आज़माइश  करें ।

अन्तरा-३.

या रब, देख  रहा  है  ना  सब? कह  दे  उन्हें...!
इक बार फिर, हसीं वादों की  तेज बारिश करें ।
हाँ,  इक  नए  नेता  की, फिर आज़माइश  करें ।

मार्कण्ड दवे । दिनांक - १९-०३-२०१४.




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मूल स्वरुप से भटक गई है होली-ब्रज की दुनिया

18-03-2014,ब्रजकिशोर सिंह,हाजीपुर। मित्रों,कहते हैं कि परिवर्तन संसार का नियम है लेकिन जब बात पर्वों-त्योहारों या परंपरा की हो तो कभी-कभी परिवर्तन की गति या मात्रा हमें चिंतित भी करने लगती है। होली को ही लें जो भारत का सबसे बड़ा त्योहार है। शहरों में तो पहले से भी होली सांकेतिक ही थी लेकिन अब तो गाँवों में भी शहरी होली मनाई जाने लगी है। इस बार की होली में हाजीपुर शहर में होली के कई दिन पहले से ही विभिन्न व्यवसायी संगठनों द्वारा होली-मिलन समारोहों का आयोजन होने लगा था। मैं उनमें से एक समारोह में निमंत्रित भी था। होलिका-दहन के दिन जाने पर देखा कि सामुदायिक भवन हाजीपुर में जगह-जगह बिजली कंपनियों की होर्डिंग्स लगी हुई थी। स्टेज पर दो-चार लोग बैठे हुए थे और एक स्थान पर डीजे पर भोजपुरी गीत बज रहा था और कई लोग बेसुरा डांस कर रहे थे। सामने कुर्सियाँ लगी हुई थीं जिन पर कई सौ लोग बैठे हुए थे। मैंने दो गिलास दूध पिया,कुछ तस्वीरें लीं और चल दिया। वहाँ मेरा दम घुटने लगा। दरअसल वहाँ ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा था जिसको कि मैं होली मानता और रुकता।
मित्रों,कल होकर होली के दिन मैं दोपहर दो बजे अपनी ससुराल के लिए रवाना हुआ। रास्ते में जितने भी गाँव मिले लगभग सभी गाँवों में लोग साउंड बॉक्स पर गंदे भोजपुरी होली गीतों की धुन पर थिरकते मिले। आयु यही कोई 8-10 से 30 तक की। उनके लड़खड़ाते पाँव यह बताने को काफी थे कि वे अहले सुबह से ही शराब पी रहे थे। रास्ते में कई स्थानों पर युवक मोटरसाईकिल पर हंगामा करते हुए भी देखे गए। कई स्थानों पर कीचड़ और गोबर से सने युवक हुल्लड़बाजी करते हुए भी देखे गए। मैंने अपनी ससुराल पहुँचते ही सालों से पूछा कि आपके गाँव में तो लोग हर दरवाजे पर घूम-घूमकर होली गाते ही होंगे तो उन्होंने बताया कि यहाँ कई साल पहले तक तो ऐसा होता था लेकिन अक्सर गायन मारपीट में बदल जाता था इसलिए अब इस परंपरा को बंद कर दिया गया। सुनकर मैं सन्नाटे में आ गया। फिर गाँव और शहर की होली में फर्क ही क्या रह गया? मैं तो होली गीतों का आनंद लेने ही ससुराल गया था लेकिन वहाँ भी निराशा ही हाथ लगी। शाम में कुछ बच्चे जरूर मुझसे मिलने आए लेकिन मेरी होली तो पहले ही फीकी हो चुकी थी। दरअसल,गाँव से लेकर शहर तक होली इतनी बदल चुकी थी और मुझे पता तक नहीं चला। जिस तरह ग्रामीण समाज में नैतिकता का ह्रास हुआ है,लोगों ने अपनी माँ-बहनों और रिश्तों की अहमियत को भुला दिया है उससे एक दिन तो ऐसा होना ही था। शहरी समाज में तो रक्त-संबंध होते ही नहीं इसलिए वहाँ तो परंपरागत होली की सोंचना भी नहीं चाहिए। अब गाँवों में भी लोग घूम-घूमकर ढोलक-झाल की थाप पर होली नहीं गाते और न ही घर-घर जाकर होली ही खेलते हैं। अब गाँवों में भी नववधुओं को रंगों में स्नान नहीं करवाया जाता। अब गाँवों में भी हर घर में प्रणाम करने या अबीर लगाने पर लोग सूखे नारियल,किशमिश आदि मेवों का मिश्रण नहीं खिलाते। अब गाँवों में भी होली के बाद भी आपसी दुश्मनी और रंजिश बनी रहती है और उसमें कमी लाने के बदले होली उसमें बढ़ोतरी ही कर जाती है। जब पूरा समाज ही अपने मूल स्वरुप से भटक गया हो तो होली को तो अपने मूल स्वरुप से दूर हो ही जाना था,सो हुआ। (हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

17.3.14

सेकुलरिज़्म का गड्ढा

लेखक – नरेश मिश्र
Cute_lion जंगल का राजा शेर शिकार को पेट के हवाले करने के बाद अपनी मांद की ओर जा रहा था । रास्ते में एक नौजवान जिद्दी, गुस्सैल बनैला सुअर मिल गया ।   
              Boarसुअर ने शेर को ललकारा “तुम जंगल के राजा कहलाते हो अगर ताकत है तो मुझसे लड़ कर राजा होने का दावा साबित करो ।
hungry_lion शेर का पेट भरा था । उसे नींद सता रही थी । उसने कहा भाई ! अपने रास्ते जाओ । मुझे तुमसे नहीं लड़ना है ।
 बनैला गुर्राया तुम डर गये । अपने से ज्यादा ताकतवर जानवर से पाला पड़ता है तो तुम्हारी सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती है ।"

शेर ने अपना पिण्ड छुड़ाते हुये कहा यही समझ लो । अब मुझे अपने रास्ते जाने दो ।

बनैला छूटते ही बोला मैं तुम्हें आसानी से छोड़ने वाला नहीं । या तो तुम हार मानलो या फिर मेरा मुकाबला करो ।"

शेर ने जवाब दिया मुझसे लड़ना ही चाहते हो तो किसी और दिन आना मैं तुम्हारी यह इच्छा भी पूरी कर दूंगा ।"jungle_book_tiger
बनैला ललकारते हुये बोला ठीक है । आज तो तुम्हें छोड़ देता हूँ । अगले हफ्ते इसी दिन,  इसी जगह मिलना । फैसला हो जायेगा कि जंगल का राजा कौन है ।"

एक हफ्ते बाद भूखा, गुस्साया शेर उसी जगह चट्टान पर खड़ा बनैले की राह देख रहा था । बनैला ठीक वक्त पर झाड़ी से निकल कर सामने आया । उसे देखते ही शेर का गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया ।  उसने दहाड़ मारी तो बनैला डर से थर थर कांपने लगा । उसके होश उड़ गये । शेर उसकी ओर लपका तो बनैला जान बचाने के लिये जंगल की ओर झाड़़ी फलांगता भाग खड़ा हुआ । शेर उसका पीछा छोड़ने वाला नहीं था । King_runs बनैला पहाड़ की चोटी पर चढ़ गया । नीचे एक बहुत बड़ा गड्ढा था। वनवासी साधु संत उसमें मल-मूत्र त्याग करते थे । बनैला उस गड्ढे में कूद पड़ा और चुनौती के स्वर में चीखने लगा हिम्मत है तो आ जाओ, मैं तुमसे निपट लूंगा ।"  Mad_pig

शेर की ऑंखे फटी की फटी रह गयीं । उसने कहा जिस नीचता के दलदल में तुम खड़े हो वहॉं मैं नहीं आ सकता । तुम जीत गये मैं चला ।"

जातक की यह कहानी चुनावी जंग में मुल्क को राह दिखाती है, सबक देती है । झूठ, घमण्ड, आरोप-प्रत्यारोप, घटिया जबान, तरह- तरह के नाटक नौटंकी और सेकुलर पाखण्ड का यह बदबूदार गड्ढा राजनीति के रणक्षेत्र में कूदने वाले खास नेता और उसके सहयोगियों क पनाहगाह है । विकासपरक राजनीति, सुशासन और सबको खुशहाली देने की चिंता करने वाला कोयी शेरदिल नेता इस बदबूदार, बदनुमा गड्ढा में उतर कर खास तरह के सियासी प्राणियों को चुनौती नहीं दे सकता । माना की झूठ का घटाटोप अंधेरा वोटरों को सही राह नहीं देखने देता लेकिन हर अंधेरी रात की सुबह जरूर होती है । सूरज निकलता है तो सारे सियासी चमगादड़ अंधेरे की तलाश करते हुये किसी कंदरा में उलटे लटक जाते हैं ।
 IMG-20140315-WA0000 IMG-20140315-WA0002 
 सभी चित्र : साभार फेसबुक
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भँग की तरँग में नेताजी

भँग की तरँग में नेताजी 

नेता और तरँग एक साथ चलते हैं ,जिसमें तरँग नहीं वो नेता कैसा ?नशा और तरँग में
यही एक मोटा फर्क है नशा उतरने के बाद असलियत बता देता है और तरंग उतरती -
चढ़ती है इसलिए नेता भूतपूर्व हो सकता है मगर तरँग के कारण खुद को नेता ही
मानता है।

एक बूढ़े अर्थ विज्ञानी को एक नेता ने तरँग की घुट्टी पिला दी,घुट्टी पीने के बाद वो
भी नेता बन गए और अर्थ पर घूम घूम कर यह बताते फिरते हैं कि मेने किया बहुत
कुछ मगर नजर नहीं आता है। अब उन्हें कौन समझाये कि ताऊ काले रँग में सब
छिप जाता है नजर आता है केवल रँग। …

एक उप प्रमुख तो भँग की तरँग में सपने देख कर उसका लाइव प्रसारण भी करने
लग गए। कम मत समझना ,इस बार पप्पू 200 अँक से पास होगा,सब कुछ रट
लिया है बस 2 G, खेल ,मकान ,जमीन ,रक्षा और कोयला ये पाठ दर्द बढ़ा रहे हैं।
ये कोर्स में नहीं है ,बाहर से जोड़ दिए गए हैं ,भूल जाओ   …

एक दल की माँ तो भाँग की तरँग को दस साल से उतरने ही नहीं दे रही है सुबह
शाम हर पत्ते को पिसती है मगर हर तरँग में छुटकू फिर भी छुटकू ही नजर आता
है ,बड़ा ही नहीं होता छुटकू !हे राम ,कब बड़ा होगा ,सयाना होगा ,घोड़े चढ़ेगा  …

एक दल के नेता तरँग में चैन उतरी साइकिल पर पेडल मारे जा रहे हैं। साँस
फूलने के बाद उतरती तरँग में खुद को वहीं का वहीं पाते हैं। एक दौ गाली
और झिड़की पुरानी कुर्सी को देते हैं और चढ़ती तरँग से जोर से पेडल मारते हैं,
सपने देखते हैं,शम्भू मेले का आयोजन करते हैं ,हरे -हरे पत्ते घिसते हैं मगर
तरँग ठहरती ही नहीं है  .... 

एक नेता तो अभी तक खाये हुए पत्ते चारे को पचाने के लिए तिहाड़ यात्रा पर जाते हैं
भँग के पत्ते को बट्टे पर पिसते हैं और नहीं खाने पर लठ बंधन पर ठुमका लगा देते
हैं खाने के बाद तरँग में गठबंधन की ताल पर उछलते हैं

एक विद्रोही ने कुछ समय पहले भंग कि नशीली घुट्टी बनायी ,पढ़े लिखे लोगों
पर आजमाई जब सबको एक साथ चढ़ गयी तो सबने तरँग में बैठा दिया टीले पर।
वहाँ ऊँचे टीले पर बैठने से विद्रोही का नेता में रूपांतरण हो गया। चढ़ती तरँग
में टीले पर कूदा कूद की ,निचे गिरा और रायता बना कर भंग घोटने लगा। भँग
की तरँग में चिल्लाने लगा -जोर लगा के  … सा ,खुद को तरँग में उड़ते पाया
लेकिन जनता ने रायता पी लिया और तरँग से बाहर आ गयी मगर भाई अभी
भी झूल रहा है ,जोर लगा के ही ई सा  …

एक नेता ने 15 साल पहले भंग की तरँग का बगीचा लगाया ,छक कर पी और
सबको घुट्टी पीने का न्योता दिया ,पहले गाँव वालो ने पी और झूम कर नाचने
लगे ,तरँग ऐसी चढ़ी की उतरी ही नहीं तब उस परफेक्ट पुड़िया को ले घर घर
पहुँच गए जो भी जिस भी कोने में बैठ कर पी रहा है तो तरंग में गाता है -हर
हर हर हर हर   …… घर घर घर घर     ....  यही तो तरँग की अद्भुत देन  ……       

16.3.14

पगथिया: मोदी की राजनीति और कांग्रेस की भूलें

पगथिया: मोदी की राजनीति और कांग्रेस की भूलें: मोदी की राजनीति और कांग्रेस की भूलें  चुनाव 2014 का घमासान शुरू हो चूका है और सभी दलों की राजनैतिक उठापठक भी। एक बात सामने है कि हर दल क...

15.3.14

क्या मोदी मिट्टी के शेर हैं?-ब्रज की दुनिया

15-03-14,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,अगर आपने भाजपा के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार श्री नरेन्द्र मोदी को किसी रैली के मंच पर आते हुए देखा होगा तो यह भी देखा होगा कि जब वे मंच पर आते हैं तो उनके समर्थक नारा लगाते हैं कि शेर आया,शेर आया। मोदी ने गुजरात में अपने काम से और रैलियों में अपने भाषणों से ऐसा दर्शाया भी है कि वे दिलेर मर्द हैं और उनका सीना सचमुच 56 ईंच का है।
मित्रों,फिर ऐसा क्या हो गया है कि वही नरेंद्र मोदी इन दिनों एक-के-बाद-एक आत्मघाती कदम उठाते चले जा रहे हैं। पहले उन्होंने घोर अवसरवादी रामविलास पासवान से बिहार में गठबंधन कर लिया वो भी तब जबकि सीबीआई ने उनके खिलाफ बोकारो कारखाना नियुक्ति घोटाला में तगड़े सबूत जुटा लिए थे। इतना ही नहीं रामविलास पासवान ने जिन उम्मीदवारों को चुनाव में उतारा है वे या तो उनके परिजन हैं या फिर राज्य के सबसे बड़े अपराधी। आप ही सोंचिए कि क्या समाँ बंधेगा जब स्वच्छ छविवाले वरिष्ठ नेता डॉ. रघुवंश प्रसाद सिंह के खिलाफ अपराधी-शिरोमणि रामा सिंह चुनाव लड़ेंगे?! हमारे कुछ मोदी समर्थक मित्र फेसबुक पर कह रहे हैं कि चाहे कुत्ता खड़ा हो या गदहा हम तो उसे ही जिताएंगे क्योंकि मोदी को प्रधानमंत्री बनाना है। क्या ऐसा करने से ही लोकसभा में अपराधियों का प्रतिशत कम होगा? आज अगर हम चुप रहे तो फिर अगले 5 सालों तक हम किस मुँह से आँकड़ा दिखाकर आरोप लगाएंगे कि देखिए कैसे लोकसभा अपराधियों का जमावड़ा बनती जा रही है?
मित्रों,इतना ही नहीं हरियाणा में विनोद शर्मा,कर्नाटक में श्रीरामुलु को टिकट देने की बेताबी से तो ऐसा ही लग रहा है कि नरेन्द्र मोदी लोकसभा चुनावों में हार के डर से यानि 272 का आँकड़ा प्राप्त नहीं होने के भय से भयभीत हो गए हैं और इसलिए ताबड़तोड़ उल्टे-सीधे गठबंधन करते जा रहे हैं। क्या मोदी नहीं जानते कि लंपट राज ठाकरे से महाराष्ट्र में गठबंधन करने की स्वाभाविक प्रतिक्रिया बिहार में होगी? अगर इसी तरह भयभीत होकर वे उल्टे-सीधे कदम उठाते रहे तो वह दिन दूर नहीं जब उनके पक्ष में बनी-बनाई हवा हवा हो जाएगी क्योंकि हवा बनाने में जहाँ महीनों लग जाते हैं वहीं हवा के खराब होने के लिए एक रात ही काफी होती है। कितना विडंबनापूर्ण सत्य है कि एक तरफ तो मोदी कांग्रेसी शहजादे की आलोचना करते रहे हैं वहीं दूसरी ओर खुद उनकी ही पार्टी ने इतने शहजादों को टिकट बाँटे हैं कि शहजादों की एक फौज ही खड़ी हो गई है।
मित्रों,युद्ध के मैदान में या तो हार होती या फिर जीत। शेरदिल योद्धा वही होता है जिसके मन में हार का भय एक क्षण के लिए भी घर न करने पाए। अधर्मियों की सेना जमा करके कोई धर्मयुद्ध कैसे लड़ सकता है? जब चुनावों से पहले भाजपा भी वही कर रही है जो कांग्रेस और आप पार्टी कर रही है तो फिर कैसे यकीन किया जाए कि चुनावों के बाद वह वह सब नहीं करेगी जो कांग्रेसनीत केंद्र सरकार पिछले 10 सालों से करती आ रही है? (हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

11.3.14

राजीव गांधी के नाम पर स्विस बैंक में 198000 करोड़ रुपया-विकीलिक्स-ब्रज की दुनिया

नई दिल्ली (एजेंसी)। विकीलिक्स ने स्विस बैंक में पैसा रखनेवाले 29 भारतीयों की सूची जारी की है जिसके अनुसार बैंक में राजीव गांधी के नाम पर एक लाख अंठानबे हजार करोड़ रुपया जमा है। विकीलिक्स ने दावा किया है उसके पास इन कालाधन धारकों के खिलाफ ठोस सबूत भी मौजूद हैं। सूची में उल्लिखित मुख्य नाम इस प्रकार हैं-
राजीव गाँधी (198000)
ए राजा (7800)
हर्षद मेहता (135800)
केतन पारीख (8200)
रामदेव पासवान (3500)
एच डी कुमारस्वामी (14500)
लालू प्रसाद यादव (29800)
पवन सिंह घटोवार (3908)
नीरा राडिया (289990)
एम के स्टालिन (10500)
ज्योतिरादित्य सिंधिया (9000)
कलानिधि मारन (15000)
एम् करूणानिधि (35000)
शरद पवार (28000)
सुरेश कलमाड़ी (5900)
पी चिदम्बरम (32000)
राज फाउंडेशन (189008)।
सूची का लिंक इस प्रकार हैः-http://www.hoaxorfact.com/images/jreviews/36_listofblackmoneyholders-1328610253.JPG
(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

10.3.14

क्या सुशासन का मतलब कदाचार भी है?-ब्रज की दुनिया

हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,इन दिनों पूरे बिहार में मैट्रिक की परीक्षा चल रही है। जैसा कि आप जानते हैं कि परीक्षा का मतलब होता है पराये की ईच्छा लेकिन बिहार ने इस साल सुशासन ने इसकी परिभाषा ही बदल दी है और मैट्रिक की परीक्षा में इस शब्द का मतलब हो गया है स्वेच्छा। चाहे चुनावी मौसम में वोट-बैंक के नाराज हो जाने का खतरा हो या फिर कुछ और इस साल बिहार की मैट्रिक-परीक्षा में कदाचार की गंगा बह रही है।
मित्रों,राज्य के लगभग प्रत्येक केंद्र पर विद्यार्थियों के साथ 5 स्टार मेहमानों जैसा सलूक किया जा रहा है। भीतर में तो किताब खोलकर लिखने की आजादी है ही बाहर से उनके परिजनों को भी चिट-पुर्जे पहुँचाने की पूरी छूट दी जा रही है। अलबत्ता इस प्रक्रिया में होम गार्ड और बिहार पुलिस के जवानों को जरूर कुछ आमदनी हो जा रही है। एक बार फिर से प्रत्येक केंद्र पर परीक्षार्थियों से इस लाजवाब सुविधा के बदले में हजारों रुपए की सुविधा-शुल्क परीक्षा-केंद्र के शिक्षकों व प्राचार्यों ने वसूली है।
मित्रों,सवाल उठता है कि सुशासन की तुगलकी शिक्षा-नीति ने सरकारी स्कूलों में शिक्षा को समाप्त तो पहले ही कर दिया था अब उसने परीक्षा को भी मजाक बनाकर रख दिया है। प्रश्न उठता है कि इस माहौल में कोई विद्यार्थी पढ़ाई करे भी तो क्यों करे? जिन चंद विद्यार्थियों ने पढ़ाई की भी है वे भी मजबूरन किताबों की सहायता से परीक्षा दे रहे हैं क्योंकि उनको लगता है कि किताब में तो सही लिखा होगा ही याद्दाश्त का क्या भरोसा? मैं श्री नीतीश कुमार जी से पूछना चाहता हूँ कि क्या जरुरत है ऐसी परीक्षा लेने की? सीधे क्यों नहीं विद्यार्थियों को डिग्री थमा देते? ऐसा करने से तो वोट-बैंक और भी ज्यादा मजबूत होगा। क्यों परीक्षार्थियों को घर से 30-40 किलोमीटर दूर आकर परीक्षा देने को मजबूर किया? उनके खुद के विद्यालय में ही क्यों नहीं ले ली गई परीक्षा? (हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

9.3.14

मूल समस्याओं से देश का ध्यान हटाने का पाप क्यों हो रहा है

मूल समस्याओं से देश का ध्यान हटाने का पाप क्यों हो रहा है 

पहला दृश्य -
एक पार्टी ने घोटालों और गपल्लों से भरपूर सरकार चलाई ,देश की तिजोरी को
लूटने दिया ;सरकार के मुख्य वजीर अपने कटे हाथ जनता को दिखाते रहे और
कहते रहे -देखों मेरे तो हाथ ही कटे हुए हैं फिर मैं तो ईमानदार ही कहलाऊंगा
ना !मैं कैसे कोई घोटाला कर सकता हूँ ?जिसने किया है घोटाला उसे कुर्सी से
हटा दिया (पैसे खा गया तो खा गया ,पैसे तो जनता से कर के रूप में और ऐंठ
लिए जायेंगे ) क़ुछ रूपये पैसे बहु -बेटी के काम आ गए तो यह नारी सम्मान
की बात है,क्या दामाद से हर पैसे का हिसाब माँगूगा ,ना भाई !रिश्ते की बात
है और अहसान का बदला भी चुकता करना था ,इसलिए हजार बार चुप्पी।
मगर चुनाव और चुप्पी एक साथ नहीं चल सकती थी ,जनता हर संदेह भरे
सवाल का सीधा सपाट उत्तर चाहती है और सही उत्तर सत्ता से बाहर का रास्ता
तय कर सकता है इसलिए गलत सवाल फेंको या साइड पार्टियों से फिंकवाओ
ताकि जनता के सवाल पेट में ही रह जाये और बे बात पर मोहर लगा दे !!!

दूसरा दृश्य -
जनता थोडा सा भी भरोसा करे और सत्ता के करीब पहुँचा दे तो सीट पर
विरोधी लोगों से सहायता लेकर बैठ जाओ और इस सफलता को जनता
की जीत कह कर खुद मौज मनाओ,बंगले ,गाडी ,भत्ते ,सुरक्षा,वेतन पक्का
करो और पतली गली से बड़े आराम से निकल लो क्योंकि जो काम करता
ही नहीं है उस पर अंगुली कैसे उठ सकती है। जिसने काम किया है उस पर
अंगुली आडी -तिरछी कैसे भी उठा दो। जनता ने बवंडर बनाया तो बल्ले -
बल्ले और जनता ने आपत्ति उठाई तो हँगामा कर दो। जो बड़ा है उस पर
पत्थर मारो क्योंकि कहीं ना कहीं तो लगेगा ही। सही लगा तो मजे और नहीं
लगा तो भी मजे। लोग हैं ,सड़क पर डपली बजाने वाले के इर्दगिर्द भी घेरा
डाल देते हैं तो दुखती नस पर हाथ सहलाने से तो साथ खड़े हो ही जायेंगे।
देश में अराजकता फैले तो उनको क्या वो तो हाथ उठाकर भारत माता की
फिर भी दिखावटी जय गला फाड़ कर बोल ही देंगे। जनता इनसे सवाल
भी क्या करे ये तो कुछ काम किये ही नहीं हैं ना।

तीसरा दृश्य - 
तुष्टिकरण को हवा देना और पार्टियाँ एक -दौ नहीं यानि एक -दौ को छोड़ कर
सब। गजब की निर्लज्जता है इन नेताओँ में। छड़े चौक 100 करोड़ लोगों को
सांप्रदायिक कहते फिरते हैं जैसे इनको सांप्रदायिक वोटों की जरुरत ही नहीं है।
तुष्टिकरण में खलल पड़ने पर धाड़ मार मार के आसुँ बहाते हैं। तुष्टिकरण को
हथियार बनाकर देश के दुश्मनों को नायक ठहराते हैं। बहुत सयानेपन से मुर्ख
बनाकर सत्ता की गोटी साधते रहे हैं। इन सबका एक ही काम और धर्म है कैसे
भी करो ,तुष्टिकरण को जिन्दा रखो ताकि वोट थोकबंद मिलते रहे।

चौथा दृश्य

एक पार्टी हर मंच से चाहे वह कॉलेज हो ,उद्योग मेला हो ,महिला मंडल हो ,
गाँव की चौपाल हो,शहर की बस्ती हो ,सबसे विकास की बात करती है।
किसानो के लिए बिजली और खाद की कम दाम पर उपलब्धि ,युवाओं के
लिए रोजगार के अवसर ,उद्योगो के लिए संतुलित परिस्थिति का निर्माण ,
नारी की सुरक्षा और आत्म निर्भरता की बात,सैनिकों के गौरव की बात,
घुसपैठियों पर लगाम की बात, कानून के सरली करण की बात ,काले धन
को वापिस लाने की बात ,भ्रष्ट व्यवस्था पर प्रहार की बात करती है मगर
बाकी सभी पार्टियाँ इस पार्टी को मुद्दों से भटका कर तथ्यहीन बातों की ओर
मोड़ने का मिलकर प्रयास कर रही है ,क्यों ?देश कि समस्याओं से हटकर
बात करने वाले सियासी दल क्या भारतीयों को बुद्धिहीन समझते हैं ?जनता
जानना चाहती है कि क्या तुष्टिकरण से देश आगे बढ़ जायेगा ?क्या साँप की
लकीरों को पीटने से बात बन जायेगी ?क्या सबको भ्रष्ट ठहरा देने से विकास
हो जायेगा ?

भारत चाहता है सार्थक बहस जिसके मंथन से देश को स्फूर्ति मिले ,भारत
चाहता है समस्याओं का हल कौन पार्टी किस तरीके से करना चाहती है ,
भारत चाहता है अपना खोया हुआ आत्म सम्मान जो किस तरीके से कौन
दिला सकता है ,भारत चाहता है उसके कर के पैसों का हिसाब ,भारत
चाहता है रोजगार सृजन के उपाय ,भारत चाहता है नारी का वास्तविक
सम्मान जो किस तरह के सुधार से ठोस रूप से मिलेगा ,भारत चाहता है
निर्धनता से लड़ने का तरीका   … मगर सत्ता के लोभी इन पर बहस नहीं
होने देते और कोई पार्टी ये सवाल उछालती है तो बाकी मिलकर उसका
मुँह बंद करने में लग जाते हैं और उन्हें धर्म निरपेक्षता पर खतरा नजर
आता है और उसकी दुहाई में समय बर्बाद कर देती है जो कि गलत है।            

7.3.14

केजरीवाल के 16 सवालों के 17 जवाब-ब्रज की दुनिया

07-03-14,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,गुजरात में विकास के दावों की पड़ताल करने पहुंचे आम आदमी पार्टी (आप) के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने 2 दिन प्रदेश में घूमने के बाद नरेंद्र मोदी की तरफ से 16 सवाल उछाल दिए और कहा कि मैं इन सवालों का जवाब मांगने उनसे मिलने जा रहा हूं। हालांकि, पहले से मिलने का समय नहीं लेने की वजह से उनके काफिले को गांधीनगर में सीएम ऑफिस से पहले ही रोक लिया गया। इसके बाद पार्टी नेता मनीष सिसोदिया मुख्यमंत्री के सेक्रेटरी से मिलने पहुंचे और वक्त मांगा, लेकिन फिलहाल मिलने का समय नहीं मिला।
गुजरात में दो दिनों के दौरे के बाद अरविंद केजरीवाल ने नरेंद्र मोदी सरकार पर जमकर निशाना साधा है। उन्होंने कहा कि गुजरात में विकास के बारे में नरेंद्र मोदी जो दावे करते हैं, वे खोखले हैं। केजरीवाल ने कहा कि मोदी के तमाम दावे झूठ की बुनियाद पर टिके हैं। उन्होंने कहा कि मोदी कहते हैं कि यहां रोजगार के अवसर सबसे ज्यादा हैं, लेकिन हकीकत इसके विपरीत है। प्रदेश में भारी बेरोजगारी है।
केजरीवाल ने मीडिया से बातचीत करते हुए कहा कि मोदी को बताना होगा कि उनका मुकेश अंबानी से क्या रिश्ता है? उन्हें बताना होगा कि आखिर करप्शन के आरोपों के बाद भी बाबू भाई बुखेरिया और पुरुषोत्तम सोलंकी जैसे लोगों को अब तक मंत्री क्यों बना रखा है?
साथ ही अरविंद केजरीवाल ने गुजरात में मोदी के 11 फीसदी कृषि विकास दावे को भी बेबुनियाद करार दिया। उन्होंने पूछा कि अगर गुजरात में कृषि क्षेत्र में विकास इतना ज्यादा है तो सैकड़ों की संख्या में किसान आत्महत्या क्यों कर रहे हैं? उन्होंने कहा कि गुजरात में किसानों को पानी नहीं मिल पा रहा है।
इतना ही नहीं उन्होंने यह पूछा है कि नरेंद्र मोदी बताएं कि उनके पास कितने हवाई जहाज और कितने हेलिकॉप्टर हैं? अगर अपने नहीं हैं तो किनके हैं? क्या वह इसके लिए पैसे देते हैं या फिर मुफ्त में इसका इस्तेमाल करते हैं?
केजरीवाल के मोदी से 16 सवाल
1. क्या आप प्रधानमंत्री बनने के बाद केजी बेसिन से निकली गैस के दाम बढ़ाएंगे?
2.पढ़े-लिखे युवाओं को ठेके पर नौकरी क्‍यों दे रहे हैं और उन्‍हें मात्र 5300 रुपये प्रति महीना दे रहे हैं, इतने में कोई कैसे जिंदगी चलाएगा?
3. गुजरात के सरकारी अस्‍पतालों में इलाज की सुविधा क्‍यों नहीं है?
4. पिछले दस सालों में राज्‍य में लघु उद्योग क्‍यों बंद हुए हैं?
5. किसानों की जमीनें बड़े उद्योगपतियों को कौड़ियों के भाव क्‍यों दिए जा रहे? आपने किसानों की जमीन छीनकर अडानी और अंबानी को दे दी है।
6. आपके पास कितने निजी हेलिकॉप्‍टर या प्लेन हैं? आपने ये खरीदे हैं या बतौर तोहफा मिला है? आपकी हवाई यात्राओं पर कितना खर्च आता है और इसके लिए पैसे कहां से आते हैं?
7.आपने हाल में पंजाब में कहा था कि कच्छ के सिख किसानों की जमीन नहीं छीनी जाएगी, तो इस मामले में गुजरात सरकार सुप्रीम कोर्ट क्यों गई है?
8.गुजरात में विकास के दावे झूठे हैं, मोदी जी आप बताइए कि गुजरात में कहां विकास हुआ है?
9. आपके मंत्रिमंडल में दागी मंत्री क्यों शामिल है, बाबू भाई बुखेरिया और पुरुषोत्तम सोलंकी जैसे दागी मंत्री सरकार का हिस्सा कैसे बने हुए हैं?
10. गुजरात के किसान बेहाल है। किसान खुदकुशी कर रहे हैं। हाल के वर्षों में गुजरात में 800 किसानों ने खुदकुशी की, क्यों?
11. प्रदेश में रोजगार का बुरा हाल क्यों है और बेरोजगारी क्यों बढ़ी है?
12.चार लाख किसानों ने बिजली के लिए कई साल से आवेदन दिया है, उन्हें अब तक बिजली क्यों नहीं मिली है?
13. मुकेश अंबानी से आपके क्या रिश्ते हैं, आपने अंबानी परिवार के दामाद सौरभ पटेल को मंत्रिमंडल में क्यों जगह दी?
14. गुजरात में सरकारी स्कूलों के हालात बदहाल क्यों है?
15. सरकारी दफ्तरों में बहुत ज्यादा करप्शन है, विभागों में भारी भ्रष्टाचार क्यों है?
16. कच्छ के किसानों को पानी नर्मदा बांध के बावजूद आज तक क्यों नहीं मिला? सारा पानी उद्योगपतियों को दे दिया गया।
झूठ-शिरोमणि श्री अरविन्द केजरीवाल ने जो सवाल उछाले हैं उनकी सच्चाई का परीक्षण करते हुए अब हम उनके 16 सवालों का बारी-बारी से जवाब देंगे-
1) उस स्थिति में गैस के दाम बिल्कुल नहीं बढ़ाए जाएंगे बल्कि उनको तर्कसंगत रखा जाएगा जैसे कि अटल जी के समय में था। महंगाई को कम करने के लिए दाम में कमी भी की जा सकती है उसी तरह के उपायों द्वारा जैसे कि केजरीवाल ने दिल्ली में बिजली और पानी के दाम कम किए थे।
2) ठीक उसी तरह चलाएंगे जैसे कि दिल्ली में ठेके और फिक्स वेतन पर बहाल शिक्षक और परिवहन कर्मचारी केजरीवाल जी के 49 दिनों के महान शासन के बाद भी चला रहे हैं।
3) कहाँ देख लिया आपने कि गुजरात के अस्पतालों में इलाज की सुविधा नहीं है? गुजरात के ज्यादातर अस्पतालों में दिल्ली के अस्पतालों से भी ज्यादा अच्छी सुविधा है केजरीवाल के 49 दिनों के शासन के बाद भी।
4) जो लघु उद्योग प्रतिस्पर्धा में नहीं टिकेंगे वे बंद तो होंगे ही। क्या उनके बंद होने के लिए गुजरात सरकार सीधे-सीधे जिम्मेदार है? अभी पूरी दुनिया में मंदी का दौर था ऐसे में मांग कम होने पर लघु उद्योगों की हालत तो खराब होनी ही थी। भारत की विकास दर 5 प्रतिशत से भी कम हो गई है तो गुजरात अछूता कैसे रह सकता है?
5) किसानों की जमीनें बाजार भाव पर खरीदी गई हैं न कि कौड़ियों के भाव में। अगर ऐसा होता तो वहाँ के किसान भी प. बंगाल के किसानों की तरह विरोध जरूर करते।
6) जैसा कि अमित शाह पहले ही बता चुके हैं कि गुजरात सरकार के पास 3 जेट विमान और 8 हेलीकॉप्टर हैं और मोदी गुजरात सरकार के विमानों में उड़ान भरते हैं। जहाँ तक इसमें होनेवाले व्यय का सवाल है तो सारा खर्च पार्टी उठाती है जिसके फंड में पार्टी के करोड़ों कार्यकर्ता प्रति वर्ष 1000,5000 और 10000 रुपए का सदस्यता शुल्क देते हैं। इसके अलावा अभी पार्टी फंड में करोड़ों देशवासी खुलकर अपना योगदान दे रहे हैं।
7) सुप्रीम कोर्ट में तो सरकार पहले ही चली गई थी इसलिए अच्छा होगा कि दूध-का-दूध और पानी-का-पानी कोर्ट में ही हो जाए। जहाँ तक जमीन छीनने का सवाल है तो जमीन कोई कानून का उल्लंघन करके कैसे छीन सकता है गुजरात कोई कश्मीर तो है नहीं?
8) यह भी बताना पड़ेगा कि गुजरात में विकास कहाँ हुआ है? गुजरात की सड़कें और आधारभूत संरचना,वहाँ की विकास-दर खुद ही बताती है कि राज्य का कितना विकास हुआ है? आज भारतभर के मजदूरों की पसंदीदा कार्यस्थली गुजरात क्यों बना हुआ है अगर वहाँ का विकास नहीं हुआ है?
9) क्या सिर्फ आरोप लगने से ही कोई भ्रष्ट हो जाता है? क्या किसी कोर्ट ने उनको इसके लिए दोषी ठहराया है? क्या केजरीवाल के पास उनके पास कोई सबूत है जैसे कि कभी शीला दीक्षित के खिलाफ हुआ करते थे तो वे प्रस्तुत करें? भाजपा के आंतरिक लोकपाल ने अपनी जाँच में पाया है कि ये लोग पाक-साफ हैं।
10) आत्महत्या तो आईएएस भी करते हैं तो क्या वे गरीबी के कारण ऐसा करते हैं? आधुनिक जीवन-शैली ने आदमी के अकेलेपन को बढ़ा दिया है और आत्महत्या का सबसे बड़ा कारण तनाव है न कि गरीबी। अगर गरीबी इसका कारण होता तो गरीब राज्यों के किसान ज्यादा आत्महत्या करते। क्या केजरीवाल जी बताएंगे कि उनको ये झूठे आँकड़े कहाँ से मिले और कितने सालों में उनके कथनानुसार 800 किसानों ने आत्महत्या की? क्या वे बताएंगे कि विदर्भ में पिछले एक साल में कितने किसानों ने आत्महत्या की है?
11) जब रोजगार-कार्यालय में निबंधित 99 प्रतिशत बेरोजगारों को रोजगार मिल रहा है तो फिर कहाँ बेरोजगारी बढ़ रही है? गुजरात तो दूसरे राज्यों के भी लाखों बेरोजगारों को रोजगार दे रहा है तो वहाँ के लोग कैसे बेरोजगार हो सकते हैं?
12) फिर से झूठ। गुजरात में बिजली के पेंडिंग आवेदनों की संख्या हजारों में है न कि लाखों में और इन सबका निपटारा शायद कुछ महीनों में ही कर दिया जाएगा।
13) क्या अंबानी के दामाद को मंत्री बनने का अधिकार नहीं है? क्या वह अच्छा प्रशासक नहीं हो सकता? केजरीवाल बताएंगे कि सोनिया के दामाद को क्लिनचिट देनेवाले युद्धवीर सिंह को उन्होंने टिकट क्यों दिया? सोनिया के दामाद से उनका क्या रिश्ता है? अंबानी के दामाद पर तो फिर भी भ्रष्टाचार का कोई आरोप नहीं है।
14) सरकारी स्कूल तो हर जगह बदहाल हैं। गुजरात के स्कूलों की हालत तो फिर भी अच्छी है। जब तक समाज के सम्मानित लोग अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ाएंगे इनकी स्थिति नहीं सुधरेगी। क्या केजरीवाल बताएंगे कि उन्होंने अपने बच्चों को पढ़ने के लिए सरकारी स्कूलों में क्यों नहीं भेजा?
15) कोई ऐसा दावा नहीं कर सकता कि गुजरात के दफ्तरों में भ्रष्टाचार है ही नहीं लेकिन वहाँ पूरे भारत में सबसे कम भ्रष्टाचार जरूर है। ऐसा हम ऐसे ही नहीं बल्कि वहाँ रहनेवाले अपने रिश्तेदारों की आपबीति के आधार पर दावा कर रहे हैं।
16) कच्छ के किसानों को अगर सिंचाई के लिए पानी नहीं मिल रहा है तो फिर पंजाब के उन सिख किसानों के खेत में पानी क्या केजरीवाल पटाते हैं जिनका कि जिक्र उन्होंने अपने सवालों में किया है? नहरों में जब पानी आएगा तो उसमें से ही किसानों के साथ-साथ उद्योगपतियों को भी पानी दिया जाएगा। केजरीवाल जी बताएंगे कि क्या उनको उद्योग-धंधों से नफरत है? क्या वे चाहते हैं कि भारत की औद्योगिक विकास-दर ऋणात्मक हो जाए? भारत गुलाम हो जाए और पूरी तरह से बर्बाद हो जाए? क्या सीआईए ने आपको ऐसा ही करने को कहा है?
17) अब हम पूछेंगे और उत्तर देंगे आप केजरीवाल जी। आपका समय हुआ समाप्त और हमारा हुआ शुरू-क्या आप बताएंगे कि क्या आप सचमुच सीआईए के एजेंट हैं? क्या आदेश दिया है आपको अमेरिका में बैठे हुए आपके आकाओं ने? क्या आपका पाकिस्तानी आईएसआई के साथ भी कोई संबंध है? क्या इस खेल में आपके साथ-साथ कांग्रेस पार्टी भी शामिल है? क्या दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी में खटमल है फिर उसने शीला दीक्षित को क्यों नहीं काटा? आपने अपना दिल्लीवाला सरकारी आवास तय समय में क्यों खाली नहीं किया? क्या आप उसको कभी खाली करेंगे भी? क्या आपको पता नहीं कि सामान्य शिष्टाचार कहता है कि किसी से मिलना हो तो पहले से समय ले लेना चाहिए? मोदी तो मोदी आप मुझ जैसे बेरोजगार से भी अगर बिना पहले से समय लिए मिलना चाहेंगे तो मैं भी आपसे नहीं मिलूंगा। यकीन नहीं हो तो प्रयास करके देख लीजिए। परसों आपकी कार का शीशा क्या सचमुच आपने खुद ही फोड़ा था जैसा कि कार के मालिक मनीष ब्रह्मभट्ट दावा कर रहे? आपने सच की तरह झूठ बोलना इसी जन्म में सीखा है या आपने कई जन्मों के परिश्रम के बाद इस काम में प्रवीणता प्राप्त की है?
हमको कोई हड़बड़ी नहीं है आप इत्मीनान से मेरे सवालों के उत्तर दे सकते हैं लेकिन उत्तर देने में झूठ नहीं बोलिएगा क्योंकि हमको झूठ से सख्त नफरत है। चलिए हम आपको एक सप्ताह का समय देते हैं मेरे इन आसान सवालों का उत्तर देने के लिए। हम नहीं मानते कि आपको इस सवालों के जवाब मालूम नहीं हैं बल्कि हम तो मानते हैं कि इन प्रश्नों के सबसे उम्दा जवाब आप ही दे सकते हैं। सवाल और भी हैं लेकिन मैं जानता हूँ कि आपको उत्तर देने की आदत नहीं है और आप मेरे द्वारा पूछे गए इन प्रश्नों के उत्तर नहीं देने जा रहे हैं इसलिए अभी इतना ही। जब आप मेरे इन प्रश्नों के उत्तर दे देंगे तो मैं आपसे निश्चित रूप से और भी सवाल पूछूंगा जो इन्हीं प्रश्नों की तरह अति सरल होंगे। (हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)