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16.7.14

एफआईआर दर्ज करा के पछता रहा है पारस-ब्रज की दुनिया

16-07-2013,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,यूँ तो पूरे भारत की पुलिस के काम करने का अंदाज निराला है लेकिन हमारी हाजीपुर की पुलिस की तो कोई हद ही नहीं है। प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती। इसी शुक्रवार को जब मैं हाजीपुर नगर थाना के बैंक मेन्स कॉलोनी स्थित अपने मकान पर मौजूद नहीं था तभी देर रात को मेरे पड़ोस में स्थित किराने की दुकान गुंजन किराना स्टोर में चोरी हो गई। चोर दुकान का ताला तोड़कर करीब 20 हजार रुपये की नकदी और सामान ले गए। मेरी दुकानदार से अच्छी बनती है इसलिए जब परसों सोमवार को मैं घर आया तो हालचाल लेने चला गया। दुकानदार पारस कुमार जायसवाल ने बताया कि उसने शनिवार 12 जुलाई को ही नगर थाने में आवेदन दे दिया था,सोमवार के हिन्दुस्तान में समाचार प्रकाशित भी हुआ लेकिन अभी तक नगर थाने की पुलिस का कहीं अता-पता नहीं है।

मित्रों,कल अहले सुबह पारस मेरे घर पर आया और बताया कि संभावित चोर नत्थू साह पिता-श्री दशरथ साह उसको एफआईआर वापस लेने की अन्यथा परिवार सहित हत्या कर देने की धमकी दे गया है वो भी अकेले में नहीं मुहल्ला के दस आदमी के सामने। बेचारे का डर के मारे बुरा हाल था। उसने बताया कि जबसे वह धमकी देकर गया है दुकान खोलने की हिम्मत ही नहीं हो रही। मैं गरीब आदमी दुकान न खोलूँ तो कैसे खर्च चले और कैसे जीऊँ? मैंने तत्काल नगर थाने में फोन किया तो उधर से जवाब आया कि देखते हैं। फिर सवा दस बजे के करीब वैशाली जिले के पुलिस अधीक्षक सुरेश प्रसाद चौधरी जी से शिकायत की कि सुस्ती की भी एक सीमा होती है चोरी हुए चार दिन बीत गए मगर पुलिस तो क्या उसकी परछाई तक का कहीं अता-पता नहीं है। उन्होंने भी कहा देखते हैं। फिर दिन ढला और शाम हो गई। चार बजे फिर से चौधरी जी को फोन लगाया तो उन्होंने केस नं. मांगा जो मैंने दे दिया-केस नं.-575/14 डेटेड-13-07-2014।

मित्रों,अब आज बुधवार दिनांक 16 जुलाई,2014 के डेढ़ बज रहे हैं लेकिन अभी भी हाजीपुर नगर थाने की पुलिस छानबीन करने नहीं आई है। दोस्तों,मैं पहले भी अर्ज कर चुका हूँ कि हमारी पुलिस रक्षक नहीं भक्षक है,शोषक है फिर ऐसी पुलिस किस काम की? हम क्यों उठा रहे हैं या उठाएँ ऐसे पुलिस-तंत्र का खर्च? दरअसल हमारी बिहार पुलिस तब तक टस-से-मस नहीं होती जब तक कि उसकी जेब गर्म न कर दी जाए। वह पीड़ित से भी रिश्वत लेती है और पीड़क से भी इसलिए हमने दारोगा का फुल फॉर्म दो रोकर या गाकर कर दिया है। यही कारण है,यकीनन यही कारण है कि कोई भी पीड़ित व्यक्ति या महिला चाहे मामला बलात्कार का ही क्यों न हो एफआईआर दर्ज करवाने से हिचकते हैं। जब चोरी की घटना के तत्काल बाद ही एफआईआर कर देने के बाद 5 दिन बाद तक पुलिस घटनास्थल पर नहीं पहुँचती है तो इससे तो अच्छा है कि नुकसान को चुपचाप सह लिया जाए। अगर कल पारस की संभावित चोर हत्या कर देता तो इसके लिए दोषी कौन होगा? क्या अब 5 दिन बाद पुलिस अगर आती भी है तो चोरी का सामान बरामद होगा? क्या पुलिस ने चोर को चोरी के सामान को ठिकाने धराने के लिए पर्याप्त समय नहीं दे दिया है? क्या पुलिस का यह भ्रष्ट और लचर रवैय्या नत्थू जैसे अपराधियों का मनोबल नहीं बढ़ा रहा है? सवाल बहुत हैं मगर उत्तर किसी का भी नहीं है। कौन देगा और कहाँ से मिलेगा जवाब?

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

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