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21.9.14

क्या फलदायी होगी बिहार के सीएम की लंदन-यात्रा?-ब्रज की दुनिया

21-09-2014,हाजीपुर,ब्रजकिशोर सिंह। मित्रों,किसी शायर ने क्या खूब कहा है कि तीर खाने की हवस है तो जिगर पैदा कर! सरफरोशी की गर तमन्ना है तो सर पैदा कर!! यहाँ कौन सी जगह है जहाँ जलवा-ए-माशूक नही! शौके दीदार अगर है तो नज़र पैदा कर!!
मित्रों,अब हम बोलेंगे तो बिहार के मुख्यमंत्री कहेंगे कि बोलता है। मगर करें क्या इनका रवैया ही कुछ ऐसा है कि हमको बार-बार बोलना ही पड़ जाता है। अब जब देसी व्यवसायी बिहार में फूटी कौड़ी भी लगाने को तैयार नहीं हैं तब बिहार के मुख्यमंत्री आज लंदन जा रहे हैं विदेशी निवेशकों से प्रत्यक्ष बातचीत करके उनको प्रत्यक्ष पूंजी निवेश के लिए तैयार करने के लिए। बिहार का दुर्भाग्य है कि यहाँ के नेता-मंत्री बहुत बार विदेशी दौरे कर चुके हैं लेकिन उसका लाभ अभी तक बिहार को चवन्नी का भी नहीं हुआ है। कोई जापान जाकर खेती करना सीखता है तो कोई अमेरिका जाकर जलापूर्ति के तरीके।
मित्रों,अभी पिछले महीने ही बिहार के नगर विकास मंत्री सम्राट चौधरी सीवेज सिस्टम देखने और सीखने के लिए लंदन जाना चाहते थे लेकिन तब इन्हीं जीतनराम मांझी ने उनको जाने नहीं दिया था क्योंकि उस समय पूरा पटना पानी में डूबा हुआ था। आज जबकि पटना में बरसात के पानी का जल-स्तर उस समय से और भी ज्यादा हो गया है तब मुख्यमंत्री खुद लंदन के लिए रवाना हो गए हैं पूँजी निवेश को आकर्षित करने।
मित्रों,जबसे बिहार में सुशासन की सरकार आई है तभी से नीतीश जी भी बिहार में पूंजी आकर्षित करने की कोशिश कर रहे हैं और लगातार कर रहे हैं लेकिन बिहार में चंद चवन्नी-अठन्नी के अलावा कुछ आया नहीं। अब हम आते हैं उस शेर पर जिसको हमने आलेख की शुरुआत में ही लिखा था। कहने का तात्पर्य यह है कि अगर बिहार में पूंजी निवेश चाहिए तो बिहार को ऐसा बनाईए कि लोग खुद ही चुंबक की तरह खिंचें चले आएँ। बिजली दीजिए,सड़कें दीजिए,जमीन दीजिए और सबसे जरूरी है कि अच्छी कानून-व्यवस्था दीजिए। जहाँ के अधिवासी अपने घरों तक में असुरक्षित हों,जहाँ की पुलिस डाका के दौरान फोन करने पर भी घटनास्थल पर हफ्तों तक नहीं पहुँचे और जहाँ अपने जान और माल की सुरक्षा स्वयं करें का नियम चलता हो वहाँ कोई होशमंद तो क्या कोई पागल भी अपनी पूंजी नहीं लगाएगा।
मित्रों,हमारे बिहार में बिजली का जाना नहीं बल्कि आना खबर बनती है। कई-कई दिनों तक लोगों को बिजली के दर्शन तक नहीं होते,सड़कों की हालत तो ऐसी है कि कई बार कुछ सड़कों से गुजरते हुए ऐसा महसूस होता है कि हम बाधा दौड़ में भाग ले रहे हैं। बरसात में अगर सड़कों पर पड़े गड्ढ़ों की गहराई का अंदाजा नहीं हो तो यकीनन आप अगले ही पल में छोटे-छोटे तालाब में मछली पकड़ते नजर आएंगे। उद्योग लगवाना है तो जमीन भी चाहिए और बिहार में कहाँ मिलेगी हजार-500 एकड़ जमीन ईकट्ठे? सड़क-रेल लाईन बनाने के लिए तो कोई किसान जमीन देना नहीं चाहता फिर बिहार सरकार उद्योगों के लिए जमीन कहाँ से लाएगी। कानून-व्यवस्था के बारे में हम थोड़ा-सा संकेत पहले भी दे चुके हैं। बिहार में आप दो-चार करोड़ के सड़क-निर्माण या दस-बीस लाख के स्कूल-भवन-निर्माण का भी ठेका अगर लेते हैं तो आपको दर्जनों छुटभैये रंगदारों का सामना करना पड़ेगा। कभी-कभी तो नक्सली भी पहुँच जाते हैं लेवी मांगने और नहीं देने पर जेसीबी-ट्रैक्टर आदि को फूँक डालते हैं और पुलिस उनकी कोई सहायता नहीं करती बल्कि उल्टे सलाह देती है कि साब! काहे को झंझट में पड़ रहे हो? दे दो न दो-चार लाख रुपया।
मित्रों,जाहिर है कि बिहार के पास अभी ऐसी नजर नहीं है कि उसको शौके दीदार का सौभाग्य मिले। हमारे बिहार में एक कहावत है कि बिन मांगे मोती मिले,मांगे मिले न भीख। मतलब कि किसी राज्य में पूंजी निवेश होगा या नहीं यह उस राज्य की परिस्थिति और योग्यता पर निर्भर करता है। अगर आपने वह योग्यता पैदा कर ली है तो आपको पैसों के लिए गिड़गिड़ाना नहीं पड़ेगा लोग खुद ही पैसे लेकर आपके पीछे भागेंगे वरना आप लंदन-न्यूयार्क घूमते रहिए कोई आपके ईलाके में फूटी कौड़ी भी नहीं लगाएगा। पता नहीं हमारे मुख्यमंत्री इस हकीकत से वाकिफ हैं भी या नहीं। वैसे सरकारी खर्च पर विदेश-यात्रा पर जाने के लिए कोई-न-कोई बहाना तो चाहिए ही था। राज्य की जनता के दिल को बहलाने के लिए मांझी यह ख्याल अच्छा है।

(हाजीपुर टाईम्स पर भी प्रकाशित)

1 comment:

shaina Ahmed said...

Its just to know.. we are waiting for result.