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23.7.15

संचार माध्यमों की नजर में भारतीय डायस्पोरा

सक्षम द्विवेदी

पांच सौ छियासी ई0पू0 ग्रीक भाषा से उत्पन्न शब्द डायस्पोरा आज भी जनमानस के बीच एक प्रचलित शब्द नहीं कहा जा सकता है। परन्तु इतना तो स्पष्ट है कि भारत की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, वर्तमान स्थिति और भविष्य की संभावनाओं के लिए डायस्पोरा एक महत्वपूर्ण विषय के रूप में हमारे समक्ष उपस्थित है। दरअसल डायस्पोरा का सामान्य अर्थ प्रवासन से है परन्तु ‘डायस्पोरा’ शब्द इसलिए प्रचलित है क्यों कि यहूदियों द्वारा बेबीलोन को छोड़कर जाने की घटना को इसी शब्द द्वारा परिभाषित किया गया। अर्थात जो लोग किन्ही कारणांे से अपने मूल निवास को छोड़कर किन्ही अन्य स्थानों पर गये तथा वहां रहकर भी अपने मूल स्थान व संस्कृति से न सिर्फ जुड़े रहे बल्कि उसको सांस्कृतिक,भाषाई और राजनैतिक स्तर पर प्रभावित भी करते रहे।



भारतीय दृष्टीकोण से बात की जाए तो संचार माघ्यमों ने डायस्पोरा की पहचान और सांस्कृतिक प्रसार को विभिन्न रूपों से प्रदर्शित किया। भारत से लोग सूरीनाम,फिजी,मॉरिशस,मलेशिया,अफ्रीकी देशों में बतौर श्रमिक गये। और वहां की भाषा संस्कृति पर अपना प्रभाव डाला। महात्मा गांधी ने खुद भी इस संदर्भ में बहुत कार्य किया। उन्होने अफ्रीका में रहकर ‘इंडियन ओपीनियन’ को चार भाषाओं हिन्दी,तमिल,गुजराती और अंग्रेजी में प्रकाशित किया।

भारतीयों द्वारा बोल जाने वाली भाषा और सूरीनाम की भाषा के मेल से एक नयी भाषा सरनामी का जन्म हुआ वहीं हिन्दी और फिजी के लोगों की भाषा के संयोग से फिज्हिन्द भाषा बनी।  भारतीयों ने अन्य देशों में अपने संगठन व संचार माघ्यमों को स्थापित कर संस्कृति व भाषा का प्रसार प्रारंभ किया। मॉरीशस में सन् 1868 में तमिल समाचार पत्र ‘ द मार्केटाइल एडवर्टाइज’ प्रकाशित किया गया। 1909 में प्रकाशित हिन्दुस्तानी समाचार पत्र हिन्दी तथा अंग्रजी मे छपता था।

विदेशों में भारतीय डायस्पोरा को ध्यान में रखकर कई संचार माघ्यमों का विकास हुआ। ‘देस-परदेस’ और ‘पंजाब टाइम्स’ ऐसे अखबार हैं जो ब्रिटेन में भारतीय पंजाबीयों पर केन्द्रित हैं। इसी प्रकार सनराइज रेडियो चैनल भारतीय लोक गीतों का प्रससारण विदेश में कर रहा है। भारतीय मूल के विदेश में रहने वाले लेखक वी0एस0 नॉयपाल को उनकी डॉयस्पोरिक कृति के लिए साहित्य का नोवेल पुरूस्कार प्रदान किया गया।

फिल्में में भी डायस्पोरिक समस्याओं को उठाया गया है। मनमोहन सिंह की ‘असां नू मान वतनां दा’ में एक ऐसे पंजाबी परिवार की समस्या को दिखाया गया है जो कि विदेश से वापस आकर भारत में रहना चाहता है परन्तु उसे अब अपनापन नजर नहीं आता है। इसी प्रकार ईश अमितोज की फिल्म ‘कंदबी कलाई’ में भारतीय डायस्पोरा की समस्या का निरूपण किया गया है। मीरा नायय की फिल्म ‘मानसून वेडिंग’ भारतीय विवाह परंपरा पर आधारित है। इसके अलावा नमस्ते लंदन,तमस,चेतन भगत के उपन्यास पर आधारित फिल्म टू स्टेट,नेम सेक,शोएब मंसूर की खुदा के लिए,पूरब-पश्चिम सहित आदि तमाम फिल्में डायस्पोरिक फिल्मों की श्रेणी में रखी जा सकतीं है।

आज जहां पहले की सरकारों द्वारा डायस्पोरा के प्रति अपनायी गयी सक्रिय असाहचर्य की भूमिका को त्यागकर उनसे जुड़ने और जोड़ने की कवायदें शुरू की जा चुकीं हैं। सिंहवी समिति की सिफारिशों को मानते हुये डायस्पोरा हेतु सुविधाएं मुहैया करने का प्रयास किया जा रहा है। प्रवासी भारतीय दिवस तथा मंत्रालय की शुरूआत की जा चुकी है। ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि संचार माघ्यमों में भी डायस्पोरा और महत्वपूर्ण विषय के रूप में नजर आये। खासकर भारतीय धारावाहिकों में आज भी डायस्पोरा एक लुप्तप्राय विषय कहा जा सकता है। अतः आज के समय में यह जरूरी हो जाता है कि अपने मूल के लोगों से जुड़ने तथा समस्याओं को समझने व उनका निराकरण करने के लिए संचार माध्यमों को डायस्पोरा के प्रति एक अहम भूमिका अदा करनी होगी।

सक्षम द्विवेदी
शोधार्थी डायस्पोरा एवम् प्रवासन
महात्मा गांधी अंर्तराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यानय वर्धा
महाराष्ट्र
मो0 8574965349

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