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22.7.15

फीटर रेहड़ा चलाने को मजबूर हैंडबाल का महावीर

: दो बार नेशनल, चौदह बार स्टेट खेल चुके खिलाड़ी ने नीलामी के लिए रखी अपनी उपलब्धियां : जंगलात महकमें में चपरासी की नौकरी मांगने पर झेली राजनेता की फटकार : 500 रुपये के लिए दूसरों के नाम पर खेलकर दिलाई नौकरी, खुद रह गया वंचित :

डीडी गोयल

डबवाली (सिरसा)। हैंडबॉल का 'महावीर नेताओं की उदासीनता के चलते फीटर रेहड़ा चलाने को मजबूर है। दो बार नेशनल तथा चौदह बार स्टेट खेल चुका यह खिलाड़ी अपनी खेल उपलब्धियां नीलाम करने जा रहा है। बुरी तरह से टूट चुके इस खिलाड़ी का कहना है कि देश में प्रतिभा का नहीं। पैसे तथा राजनीतिक पहुंच रखने वालों का सम्मान होता है। खिलाडिय़ों के हिस्से में महज अपमान आता है। जिसे लेकर वह पूरी जिंदगी पछताते हैं।



हम बात कर रहे हैं गांव गोरीवाला के हैंडबाल खिलाड़ी महावीर प्रसाद की। दोनों हाथों से गोल करने की क्षमता रखने वाला गज़ब का यह खिलाड़ी नेशनल गेम्स में हरियाणा टीम का प्रतिनिधित्व कर चुका है। 1992 में जम्मू एंड कश्मीर सरकार के डिपार्टमेंट ऑफ यूथ सर्विसज एंड स्पोर्ट्र्स द्वारा आयोजित सब जूनियन नेशनल स्कूल गेम्स में हरियाणा ने महावीर की कप्तानी में भाग लिया था। उस समय उसकी उम्र महज 14 वर्ष थी। 1997-98 में भोपाल में आयोजित नेशनल स्कूल गेम्स के अंडर-19 में इस खिलाड़ी ने दूसरी बार जगह बनाई। इसके अतिरिक्त हिसार, करनाल, सिरसा, कैथल, यमुनानगर, अंबाला, झज्जर में चौदह बार स्टेट खेला। लेकिन राजनीतिकों ने इस खिलाड़ी की प्रतिभा से न्याय नहीं किया। वर्ष 2003-04 में जंगलात महकमे में चपरासी की नौकरी मांगने के लिए राष्ट्रीय खिलाड़ी को एक सफेदपोश के आगे गिड़गिड़ाना पड़ा। सफेदपोश ने जवाब दिया कि पहले फिजिकल पास करके आओ। सपना टूटने के बाद परिवार के आर्थिक हालातों ने खेल का मैदान छुड़वा दिया। वर्ष 2006 में फीटर रेहड़ा के लिए बैंक से पच्चीस हजार रुपये का लोन उठाया। दो दोस्तों से बिना ब्याज के पचास हजार रुपये उधार लिए। बैंक तथा एक दोस्त से लिया कर्ज चुकता कर दिया। एक दोस्त का कर्ज अभी भी सिर पर है।

गुरुजनों ने खूब किया प्रयास

राष्ट्रीय खेलों में भाग लेने के लिए महावीर के पास एक पाई भी नहीं थी। एसएस अध्यापक श्याम लाल ने 1992 में उसे 180 रुयये दिए। प्रतियोगिता में हरियाणा को चौथा स्थान दिलाकर वाहवाही लूटकर आए इस खिलाड़ी ने शेष बचे 80 रुपये अपने गुरु को लौटा दिए। 1997 में भी पुन: श्याम लाल ने भोपाल जाने के लिए होनहार खिलाड़ी को 400 रुपये दिए। बचे हुए 200 रुपये इस खिलाड़ी ने अपने अध्यापक को लौटा दिए। अध्यापक ने 200 रुपये में स्कूल वर्दी खरीदकर महावीर को पहनाई। खेलों की बदौलत इस खिलाड़ी ने एक रुपये में 6वीं से 10वीं तक चार कक्षाएं पास की। 11वीं में गांव गंगा में एडमिशन लिया। बीईओ संत कुमार बिश्नोई ने उसे स्कूल वर्दी लेकर दी। पिता गिरदावर लाल की मौत के बाद परिवारिक स्थिति बेहद खराब हो गई। पुन: स्कूल की ओर मुंह नहीं किया। यहां तक की 11वीं की परीक्षा का रिजल्ट जानने का प्रयास नहीं किया।

500-500 रुपये के लिए दूसरों के नाम पर खेला

घर की आर्थिक हालात सुधारने के लिए इस खिलाड़ी को क्या-क्या नहीं करना पड़ा, यह केवल वही जानता है। बेशक खुद को नौकरी नहीं मिली। लेकिन दूसरों के लिए वह 'महावीर से कम नहीं रहा। 500-500 रुपये के लिए दूसरों के नाम पर कई राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में भाग लिया। दूसरों के नाम का मेडल तथा सर्टिफिकेट मिला। जिसके बल पर उन युवाओं को हरियाणा पुलिस में नौकरी मिली। खुद फीटर पर सवार हो गया।

भतीजे-भतीजियों को पढ़ा रहा

खुद का सपना बेशक पूरा नहीं हुआ। 36 वर्षीय महावीर अपने भतीजे-भतीतियों को पढ़ाकर अपना सपना पूरा कर रहा है। फीटर रेहड़ा चलाने से महावीर को जो भी कमाई होती है, वह उन पर खर्च कर देता है। महावीर के अनुसार माली हालत को देखते हुए उसने शादी भी नहीं करवाई, चूंकि वह अपने साथ किसी ओर का भविष्य खराब नहीं करना चाहता था।

मैं खिलाड़ी रहा, इस बात का मुझे ताउम्र पछतावा रहेगा। जंगलात महकमा में नौकरी के बेहद चांस थे। मेरा नाम वेटिंग में था। राजनीतिक सिफारिश तथा रिश्वत में देने के लिए पैसे नहीं थे। घर की स्थिति सुधारने के लिए दिहाड़ी की। महज पांच सौ रुपये के लिए किसी दूसरे नाम पर खेला। मैंने अपने नेशनल सर्टिफिकेट नीलाम कर रखे हैं। किसी ने बोली पांच हजार रुपये लगाई है, पर मैं इसे सात हजार रुपये में बेचना चाहता हूं।

-महावीर, पूर्व कप्तान एवं नेशनल प्लेयर, हैंडबॉल


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