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30.7.15

अब्दुल कलामः साधु वैज्ञानिक

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

इससे अच्छा महाप्रयाण क्या हो सकता है? डॉ. अब्दुल कलाम को वह सौभाग्य मिला, जो आज तक भारत के किसी भी राष्ट्रपति को नहीं मिला। वे अंतिम क्षण तक कार्यरत रहे। राष्ट्रपति पद छोड़ने के बाद भी वे जितने सक्रिय रहे, कोई और राष्ट्रपति नहीं रहा। वे राष्ट्रपति नहीं बनते तो भी वे बड़े आदमी थे। वे भारत के ऐसे पहले राष्ट्रपति थे, जो राजनीति से किसी भी तरह जुड़े नहीं थे। वैसे कोई व्यक्ति अक्सर राष्ट्रपति तो कई निजी विशेषताओं के कारण बनता है लेकिन राष्ट्रपति बनने के लिए अनेक राजनीतिक परिस्थितियां ही जिम्मेदार होती हैं। अब्दुल कलाम शुद्ध अपने गुणों के कारण राष्ट्रपति बने। मिसाइलमेन की तौर पर विख्यात होकर वे भारत रत्न तो बन ही चुके थे। उनके निधन पर सारे देश में जैसा शोक का माहौल बना है, वही बताता है कि वे कितने लोकप्रिय थे।



डॉ. कलाम अपने ढंग के अनूठे व्यक्ति थे। वे अनूठे मुसलमान भी थे। उन्होंने अपने आचरण से हिंदुस्तान के मुसलमानों को नई गरिमा प्रदान की। इस्लाम का उदार रुप देखना हो तो डॉ. कलाम के शानदार व्यक्तित्व में देखा जा सकता है। उनके व्यक्तित्व में विज्ञान और धर्म का अद्भुत मेल था। मैंने कई बार स्वयं देखा कि वे जैन मुनि महाप्रज्ञजी के साथ दर्शन के गूढ़ रहस्यों पर विचार-विमर्श करते थे। उनके कार्यक्रमों में भाग भी लेते थे। अक्षरधाम के प्रमुख स्वामी के साथ हुए आध्यात्मिक वार्तालाप पर भी उनकी पुस्तक छपी है। उन्होंने 2020 का भारत कैसा बने, इस मुद्दे पर एक स्वप्नदर्शी विचारक की तरह लिखा है। उन्होंने कई पुस्तकें मुझे स्वयं भेंट कीं। वे चाहते थे कि भारतीय लोकतंत्र द्विदलीय बने। चुनावी उम्मीदवार बिल्कुल स्वच्छ हों। शिक्षा में काम-धंधों का प्रशिक्षण अनिवार्य हो। भारत की सुरक्षा अभेद्य हो। गरीबी दूर हो। लेकिन यह सब कौन करेगा? हमारे नेता भी यही कहते हैं लेकिन वोट और नोट के चक्कर में सब कुछ भूल जाते हैं।

डॉ. राजेंद्र प्रसाद और डॉ. राधाकृष्णन के अलावा लगभग सभी राष्ट्रपतियों के साथ मेरा अच्छा परिचय रहा है। उन सब में मुझे डॉ. अब्दुल कलाम कुछ अलग ढंग के व्यक्ति लगते थे। मैं जब भी उनसे मिलता, मुझे लगता कि मैं किसी पढ़े-लिखे साधु से बात कर रहा हूं। राष्ट्रपति बनने पर भी उन्होंने अपनी सादगी और सहजता को ज्यों का त्यों बनाए रखा। राष्ट्रपति भवन की दावतों में वे खुद मेहमानों को पूछते थे। उनका चरित्र भी बेदाग था। उनके राष्ट्रपति-काल के दौरान उन्होंने सही बात पर हमेशा जोर दिया, हालांकि बिहार सरकार को बर्खास्त करने के आदेश पर उन्हें अपने मास्को-यात्रा के दौरान दस्तखत करने पड़े। सच पूछा जाए तो मैं कह सकता हूं कि आनेवाली पीढि़यों को हमारे राष्ट्रपतियों के नाम याद रहें या न रहें लेकिन भारत के महान वैज्ञानिक की तौर पर डॉ. अब्दुल कलाम का नाम सदा याद रहेगा। उन्हें मेरी सादर श्रद्धांजलि!

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