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23.7.15

"राष्ट्र निर्माता शिक्षक"


 बहुत कुछ कहना चाहता हूँ इस बारे में , पर आज की घटना अप्रत्यक्ष रूप से ही काफी कुछ कह जाती है ... जहां अधिकतम निजी विद्यालय एक बड़े व्यवसाय के रूप में उभर रहे हैं.. वहीँ सरकारी विद्यालयों की स्थितियां उन्ही के लोग बिगाड़ने में लगे हैं ....



    एक लम्बी सी कतार, लोगो का इतना बड़ा सैलाब , बहुत कम ही देखने को मिलता है, सभी सरकारी अध्यापक। शिक्षकों का इतना बड़ा समूह देख कर मन गर्व और सम्मान की सारी हदें पार कर जाता है,
    पर ये क्या ! वो जन सैलाब तो रैली के रूप में हैं, हाथ में पट्टिया , बड़े बड़े बैनर ... नारे लगाये जा रहे हैं ....चाहे जो मजबूरी हो हमारी मांगे पूरी हो, हम से जो टकराएगा मिटटी में मिल जायेगा... अरे पर हुआ क्या ...
    कई ऐसे चेहरे भी नज़र आ रहे थे जो शायद विद्यालयों में कभी न दिखे हों , या बहुत कम ही दिखे हों , पर रिक्शा पर चढ़े हुए पूरी रैली का प्रबंधन कर रहे थे ... कुछ पट्टिया पढ़ कर ध्यान आया की वे वर्तमान सरकार व शिक्षा मंत्री के विरुद्ध प्रदर्शन कर रहे थे ...पर " हम से जो टकराएगा, मिटटी में मिल जायेगा" से क्या आशय है..
पाठ्यक्रम में बदलाव किया गया, तो विरोध ! सच :- क्योंकि नया पाठ्यक्रम पढ़ाने के लिए पहले खुद को पढना पड़ेगा ...
तबादला होने का डर हो तो विरोध ! सच :-  क्योंकि घर का मोह नहीं छूटता .. घर से महज़ १०-१५ कि.मी. की दूरी पर किसी गाँव में जाना पड़ जाए तो सरकार को गाली निकालते हुए भी न चूके।
बेहतर शिक्षा के लिए अगर समय थोड़ा अधिक माँगा जाए तो विरोध ! सच :- क्योंकि कम समय में भी कटौती करने की आदत पड़ चुकी है।
जब देश में विदेशी षड्यंत्रों की गतिविधियां होती है, तब ये शिक्षक चुप क्यों !
जब देश भ्रष्टाचार की मार सहता है, तब ये शिक्षक चुप क्यों !
जब देश में आतंकी गतिविधियां होती है, तब ये शिक्षक चुप क्यों !
जब देश आरक्षण सम्बन्धी सुझाव देने की आवश्यकता होती है, तब ये शिक्षक चुप क्यों !
इतनी भीड़ तब क्यों इकट्ठी नहीं होती जब सच में देश मुश्किल हालात से गुज़र रहा होता है !
यह राष्ट्र निर्माता का सिर्फ एक पक्ष है... (सब बुरे नहीं होते, पर यदि अधिकतम अच्छे हो जाये तो परिस्थितियां ही बदल जाये)
मेरी समझ से मैंने विचार रखे हैं ... शिक्षकों की बहुत बड़ी भूमिका हर किसी के जीवन में रहती है .. मेरे जीवन में भी बहुत महत्ता है ...पर सच्चाई यह भी है की जहां प्यार , सम्मान होता है वहीँ पर तो तर्क, गुस्सा और नाराज़गी भी होती है...
मुकेश कुमार खत्री
वैल्युएबल ए.बी.एस. बाड़मेर (राज)




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