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26.8.15

शिक्षा को गिरवी रखने की भगवा तैयारी

- सुधांशु बाजपेयी- 

शिक्षा ही वो सीढ़ी है जिसके द्वारा वर्तमान समाज मे कोई आगे बढ़ सकता,सम्मानजनक जीवनयापन और रोजगार के बारे मे सोच सकता है, मगर जब शिक्षा कमोडिटी बन जाए तो स्वभविक ही है की वो सीढ़ी सिर्फ समर्थ लोगो के लिए ही होगी ! यू तो भारत मे शिक्षा के बाजारीकरण का प्रस्थान बिन्दु 1990 का वो दौर है ,जब शिक्षा को अघोषित रूप से सरकारी दायित्व से बाहर कर बाजार की वस्तु बना दिया गया,देश के दरवाजे उदारीकरण के नाम पर लुटेरी पूंजी के लिए खोल दिये गए ! परंतु आज जब उदारीकरण अपनी चरम अवस्था मे है,और उसे अब समाजवाद का भय भी उतना नही सता रहा,तब वो अपने ही “वेलफेयर स्टेट” के वादे से भी पीछे हट चुका है।



दूसरी तरफ आर्थिक मंदी से कराहते-घिसटते बाजार को उबारने के लिए भी लुटेरी पूंजी की गिद्ध द्रष्टि तीसरी दुनिया की उन सभी बुनियादी चीजो पर है,जो आपके जीवन के लिए अनिवार्य है, चाहे शिक्षा हो,स्वसहया हो या जमीन।  16 मई 2014 भारत मे लुटेरी पूंजी के इतिहास मे नया मोड है,जब एक तथाकथित सांस्कृतिक राष्ट्रवादी सरकार सत्ता मे आती है,अब तक के सबसे महगे चुनाव प्रचार के साथ लुटेरी पूंजी “मजबूत नेता,मजबूत सरकार” को लाती है, जिसका मतलब दरअसल होता है कि गरीबों,आदिवासियों,अल्पसंख्यको,महिलाओं और हर तरीके के प्रतिरोध को बुलडोज़ करते हुए देश के सभी संसाधनो को कार्पोरेट को सौंप देने मे मजबूती दिखने वाली सरकार। कांग्रेस संसाधनो के निजीकरण के जिस मिशन को मंद गति से पूरा कर रही थी,उसे ज़ोर के धक्के से पूरी आक्रामकता के साथ पूरा करवाना ।

हिन्दोस्तान की बुनियादी शिक्षा को कांग्रेस ने लगभग ज़मींदोज़ कर दिया,सरकारी स्कूल “मजबूरी स्कूल” मे तब्दील हो गए, और देखते ही देखते महंगी फ़ीसों वाली कनवेंट स्कूलो की फसले लहलहा उठी और बड़े ही शातिर तरीके से अस्सी फीसदी आबादी को बुनियादी शिक्षा से वंचित कर दिया गया । अब बारी उच्च शिक्षा की है तमाम सरकारी रियायतों,लोकलुभावन सुविधों के बावजूद महंगे फीस ढांचे के चलते निजी शिक्षा संस्थानध्विवि छात्रों को आकर्षित कर पाने असफल रह गए। दूसरी तरफ किफ़ायती फीस, संसाधन और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा ने सरकारी संस्थान, छात्रों के किफ़ायती शिक्षा माँडल के रूप मे इस रेस मे बहुत आगे खड़े है। तब बुनियादी शिक्षा की ही भाँति उच्च शिक्षा मे निजी संस्थाओं को प्रमोट करने के लिए जरूरी है उच्च शिक्षण संस्थों को कबाड़ा करना ।

एक पूरा पैकेज लाया गया है जो अगर लागू हुआ तो पुर भारतीय शिक्षा व्यवस्था सिर्फ कुछ लोगो तक महदूद रह जाएगी,आइये उच्च शिक्षा की नीलामी के कुछ खास बिन्दुओं के बारे मे बात करते है।
इसमे पहला है, डबल्यूटीओ के “दोहा प्रस्ताव” के अनुसार उच्चशिक्षा को “व्यवसायिक सेवा मानते हुए वैश्विक पूंजी के नियंत्रण मे दे देना,जिससे कि उच्च शिक्षा मे फीस वृद्धि,सीट से लेकर सारी बुनियादी संसाधनो पर भारतीय राज्य का नियंत्रण न के बराबर होगा, उच्चशिक्षा सीधे डबल्यूटीओ द्वारा नियंत्रित होगा,सरकार द्वारा दी जाने वाली सबसिडी धीरे धीरे खत्म कर दी जाएगी ।

दूसरा है,सीबीसीएस यानि चाइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टेम जिसे शिक्षा के कैफेटियाकरण यानि कुछ भी “चुनने कि आजादी” जैसे सुनहरे वादों के साथ लाया जा रहा है,मगर भारतीय विशविद्यालयों के बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्चर को देखते हुए ये केवल सफ़ेद झूठ ही लगता है,जब विषयो के अध्यापक ही नही होगे,तो छात्र विषय चुन के भी क्या करेगे। साथ ही कोई छात्र क्यों अच्छे संस्थान को छोड़ेगा,तो अन्य संस्थान से कोई छात्र जा भी कैसे सकेगा,बल्कि इस नाम पर किया ये जाना है कि किस तरह छात्रों का शिक्षा के अतिरिक्त सांस्कृतिक, सामाजिक, राजनीतिक विकास को यहाँ तक कि खेल आदि को भी रोक दिया जाए साथ ही पाठ्यक्रमों भगवाकरण कर दिया जाए ।

अब छात्रो को 16 के बजाय 20 पढ़ने होंगे, जिसमे फ़ाउंडेशन मे आसानी से योग, गीता, नैतिकता जैसे विषयो को पढ़ाया जाएगा, साथ ही सतत मूल्यांकन अर्थात अब छात्रों को नर्सरी के बच्चो की तरह हर महीने टेस्ट देना होगा, बिना अकैडमिक सिलैबस को जाने ये फैसला बचकाना ही लगता है, साथ ही तब जब 12वी तक इक्नोमिक्स की बात करके वार्षिक मूल्यांकन भी औपचारिक बना दिया गया हो।

इस पैकेज का तीसरा महत्वपूर्ण दांव है कॉमन सेंट्रल यूनिवर्सिटी बिल रू एक तरफ इसके द्वारा देश की विविधतापूर्ण संस्कृति और विवि0 की स्वायत्ता को खत्म करने की साजिश तो दूसरी तरफ अध्यापको के पठन पाठन विमर्श और प्रतिरोध के पर कतरने के तैयारी है । समान पाठ्यक्रम दृ समान प्रवेश परीक्षा , भारत की विविधता पूर्ण भौगोलिक सांस्कृतिक जरूरतों के अनुरूप विशिष्ट पाठ्यक्रमों , रचनात्मकता एवं मौलिकता की हत्या कर देने के समान है , साथ ही विश्वविद्यालय की स्वायत्तता के खत्म होने का अर्थ है विश्वविद्यालय में प्रयोग और परिसरो की अपनी विशिष्टता को समाप्त कर देना ।

दूसरी तरफ केंद्रीकृत नियुक्ति व्यवस्था एवं स्थानांतरण के द्वारा शिक्षको पर नियंत्रण की कोशिश की जा रही है जिससे की समय-समय पर स्वतंत्र रूप से शिक्षको ध् शिक्षक संगठन के विरोध को कुंड किया जा सके । शिक्षण संस्थानो मे सत्ता की सहूलियत और विचारधारा के अनुरूप लोगों को भेजा जा सके।  इस पैकेज का सबसे आखिरी और खतरनाक दाँव है रूसा यानी राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान दृ जो की यू जी सी की जगह लेते हुए विवि को परफॉर्मेंस और नोर्म के आधार पर सरकारी ही नहीं निजी संस्थाओं पर भी कृपा ( फ़ंड ) बरसाएगा , ऐसे में साफ है जब सरकारी संस्थानो को दिन प्रतिदिन बर्बाद किया जा रहा हो, साथ ही भ्रष्टाचार के इस दौर में निजी संस्थान तिकड़म भिड़ा कर विशेष रियायती सरकारी सुविधायेँ पाने मे आगे हों,तो इस रेस मे भी उनका आगे निकालना तय ही है,इस तरह सरकारी संस्थानों को मिलने वाला पैसा भी इस शर्त के नाम पर बड़ी आसानी से निजी संस्थाओं को देकर सरकारी संस्थाओं को बद से बदतर कर दिया जाएगा ।

इस तरह ये पूरा पैकेज अगर एक लाइन मे कहे तो उच्च शिक्षा के कबाड़ाकरण का पैकेज है, जो उच्च शिक्षा को लुटेरी वैश्विक पूंजी के माल मे तब्दील करने तो जा ही रहा है, साथ ही देश की 80 फीसदी आबादी को गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा के अधिकार से वंचित करने का फरमान भी है,जरूरत है की ये सच्चाई समय रहते आम छात्रों ,गुरुजनों एवं नागरिकों तक पाहुचायी जाए, और उच्च शिक्षा को बचाने की मुहिम को मजबूत किया जाए।


Sudhanshu Bajpai 
sudhanshu.sud9@gmail.com

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